कुलदेवता - देवबाबा (भगवान राम जी), कुलदेवी - विंध्यावासिनी (दुर्गा माता), कुल - सूर्यवंशी, गुरु - शुक्राचार्य, गोत्र - भारद्वाज, नदी - सरयू माता, पंक्षी - बाज, पवित्र वृक्ष- नीम, प्रवर - भारद्वाज, बार्हस्पत्य, अंगिरस, मंत्र - गोपाल मंत्र, वेद - यजुर्वेद, शाखा - वाजसनेयि माध्यांदिन एवं सूत्र - पारस्कर गृह्यसूत्र इस प्रकार रैकवार क्षत्रिय वंश का विवरण क्षत्रिय इतिहास में प्राप्त होता है।
रैकवार क्षत्रिय वंश कुल देवी
रैकवार वंश के आदि पुरुष महाराजा राकादेव जी हैं। महाराजा राकादेव जी की इष्ट देवी माता दुर्गा जी है। रैकवार वंश की कुलदेवी दुर्गा जी को इसीलिए मानते हैं। महाराजा राकदेवजी ने रैकागढ़ बसाया था तथा अपनी कुलदेवी की पूजा भाद्रपद (भादों) मास के अंतिम बुधवार को पूजा किया करते थे। रैकवार वंश में बालक के जन्म व बालक-बालिका की शादी विवाह व सभी शुभ कामों में कुलदेवी की पूजा हल्दी, अच्छत, सुपाड़ी, लौंग तथा पीला चावल से परिवार,घर के कुलदेवी की पूजा कुल के क्रमशः जेष्ठ पुत्र, जेष्ठ पौत्र, जेष्ठ प्रपौत्र तथा जेष्ठ पड़पौत्र एवं उनकी धर्मपत्नीयों के द्वारा किया जाता है। रैकवार वंश का विस्तार धीरे धीरे महाराजा राका जी के वंशज रैकागढ़ स्टेट से महाराजा सल्देव जी, महाराजा बल्देव जी व भैरवानंद जी के रामनगर धमेढ़ी (बाराबंकी) एवं बहराईच बौड़ी, रेहुवा, चहलरी तथा हरिहरपुर में रैकवार वंशीय राज्य व तालुकेदारी स्थापित किया था।
रैकवार वंश की कुलदेवी माता दुर्गा की पूजा सदा से परिवार के कुलदेवी की पूजा कुल के क्रमशः जेष्ठ पुत्र, जेष्ठ पौत्र, जेष्ठ प्रपौत्र तथा जेष्ठ पड़ पौत्र एवं उनकी धर्मपत्नीयों के द्वारा किया जाता है। वैसे भागीदारी पूरे परिवार की रहती है। हमारे पूर्वजों की यही परंपरा हर जगह आज भी मौजूद है, सभी शुभ दिनों में कुलदेवी दुर्गा माता की पूजा होती है। कुलदेवी, माता दुर्गा जी की अपार कृपा दृष्टि अपने भक्तों पर रहती है। अपने पूर्वजों ने जब युद्ध लड़े तो कुलदेवी की पूजा करके ही मोर्चा में मैदान पर जाते थे। महाराजा प्रताप शाह व महाराजा बाल भद्र सिंह व राजा नरपति सिंह व बख्तावर सिंह जी 1857 में अंग्रेजों से युद्ध लड़े थे, तो माता कुलदेवी दुर्गा जी की पूजा पहले किया था।
शास्त्रों में बताया गया है कि जिस कुल यानी वंश में कुलदेवी प्रसन्न रहती हैं, वहां की सात पीढ़ियों में खुशहाली जीवन व्यतीत करती हैं। शास्त्रों के अनुसार हर वंश की एक देवी होती है, जिसकी विशेष मौकों पर पूजा की जाती है। उन्हें खुश रखने का सबसे आसान तरीका होता है, विशेष मौकों पर पूरे परिवार द्वारा विधिपूर्वक पूजा करना। इसके अलावा श्राद्ध पक्ष के दौरान पितृ तर्पण की परम्परा का पालन भी जरूर करना चाहिए, इससे पितृ पक्ष का आशीर्वाद बना रहता है।
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