किडनैपिंग पर क्या कानून है? – Law on Kidnapping in Hindi



अपहरण पर कानून धारा 363a भारतीय दंड संहिता
अपहरण पर कानून धारा 363a भारतीय दंड संहिता
किसी नाबालिग लड़के, जिसकी उम्र सोलह साल से कम है या नाबालिग लड़की, जिसकी उम्र अठारह साल से कम है, को उसके संरक्षक की आज्ञा के बिना कहीं ले जाना अपहरण का अपराध है तथा इसके लिए अपराधी को सात साल की कैद और जुर्माना हो सकता है।
अपहरण
किसी नाबालिग लड़के, जिसकी उम्र सोलह साल से कम है या नाबालिग लड़की, जिसकी उम्र अठारह साल से कम है, को उसके संरक्षक की आज्ञा के बिना कहीं ले जाना अपहरण का अपराध है तथा इसके लिए अपराधी को सात साल की कैद और जुर्माना हो सकता है। अगर कोई बहला फुसला कर भी बच्चों को ले जाए तो कहने को तो बच्चा अपनी मर्जी से गया, लेकिन कानून में वह अपराध होगा। 
 
व्यपहरण (Kidnapping )पर कानून
(अंतर्गत धारा 362, 364, 364क, 365, 366, 367, 369 भारतीय दंड संहिता)
व्यपहरण
किसी बालिग व्यक्ति को जोर जबरदस्ती से या बहला फुसला कर किसी कारण से कहीं ले जाया जाए तो यह व्यपहरण का अपराध है। यह कारण निम्नलिखित हो सकते है। जैसे:- फिरौती की रकम के लिए, उसे गलत तरीके से कैद रखने के लिए, उसे गंभीर चोट पहुंचाने के लिए, उसे गुलाम बनाने के लिए इत्यादि। 
 
धारा 366 भारतीय दंड संहिता Section 366 in The Indian Penal Code
धारा के अन्तर्गत विवाह आदि के करने को विवश करने के लिए किसी स्त्री को अपहृत करना या उत्प्रेरक करने के बारे में बताया गया है। इसमें बताया गया है कि जो कोई किसी स्त्री का अपहरण या व्यपहरण उसकी इच्छा के विरुद्ध किसी व्यक्ति से विवाह करने के लिए उस स्त्री को विवश करने के आशय से या यह विवश की जाएगी, यह सम्भाव्य जानते हुए अथवा आयुक्त सम्भोग करने के लिए उस स्त्री को विवश, यह विलुब्ध करने के लिए, यह सम्भाव्य जाने हुए करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक से भी दण्डनीय होगी। 
 
अनैतिक व्यापार पर कानून
(अंतर्गत धारा 366 क, 366ख, 372, 373 भारतीय दंड संहिता)
यदि कोई व्यक्ति किसी भी लड़की को वेश्यावृति के लिए खरीदता या बेचता है तो उसे दस साल तक की कैद और जुर्माना की सजा होगी। अनैतिक व्यापार निवारण अधिनियम, 1956 यदि कोई व्यक्ति वेश्यावृति के लिए किसी व्यक्ति को खरीदता बेचता, बहलाता फुसलाता या उपलब्ध करवाता है तो उसे तीन से चौदह साल तक की कैद और जुर्माने की सजा होगी। 
 
धारा 366 क भारतीय दंड संहिता Section 366A in The Indian Penal Code
धारा 366 क के अन्तर्गत अप्राप्त लड़की को उपादान के बारे में बताया गया है। इसके अन्तर्गत कहा गया है कि जो कोई अठारह वर्ष से कम आयु की अप्राप्तवय लड़की को, अन्य व्यक्ति से आयुक्त संभोग करने के लिए विवश या विलुब्ध करने के आशय से या तद्द्वारा विवश या विलब्ध किया जाएगा, यह सम्भाव्य जानते हुए ऐसी लड़की को किसी स्थान से जाने को कोई कार्य करने को, किसी भी साधन द्वारा उत्प्रेरित करेगा, वह कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी दण्डित किया जाएगा और जुर्माना से भी दण्डनीय होगा।
 
धारा 366 ख भारतीय दंड संहिता Section 366B in The Indian Penal Code 
धारा 366 (ख) के अन्तर्गत विदेश से लड़की को आयात करने के बारे में बताया गया है कम आयु की किसी लड़की का भारत के बाहर उसके किसी देश से या जम्मू-कश्मीर से आयात उसे किसी अन्य व्यक्ति से आयुक्त संभोग करने के लिए विवश या विलुब्ध करने के आशय से या तद्द्वारा विवश या विलुब्ध की जाएगी, यह सम्भाव्य जानते हुए करेगा, वह कारवास से जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा। 
 
धारा 372 भारतीय दंड संहिता  Section 372 in The Indian Penal Code
 वेश्यावृत्ति आदि के प्रयोजन के लिए अप्राप्तवय को बेचने के बारे में प्रावधान करती है। इसके अंतर्गत बताया गया है कि जो कोई 18 वर्ष से कम आयु के किसी व्यक्ति को इस आशय से कि ऐसा व्यक्ति से आयुक्त संभोग करने के लिए या किसी विधि विरुद्ध या दुराचार प्रयोजन के लिए कम में लाया या उपयोग किया जाए या यह सम्भाव्य जानते हुए कि ऐसा व्यक्ति किसी आयु में भी ऐसे किसी प्रयोजन के लिए काम में लाया जाएगा, या उपभोग किया जाएगा, बेचेगा, भाड़े पर देगा या अन्यथा व्ययनित करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
(6 धारा के अन्तर्गत 2 स्पष्टीकरण दिये गये हैं। स्पष्टीकरण 1 के अन्तर्गत बताया गया है कि जबकि अठारह वर्ष से कम आयु की नारी किसी वेश्या को, या किसी अन्य व्यक्ति को, जो वेश्यागृह चलाता हो या उसका प्रबंध करता हो, बेची जाए, भाड़े पर दी जाए या अन्यथा व्ययनित की जाए, तब इस प्रकार ऐसी नारी को व्ययनित करने वाले व्यक्ति के बारे में,जब तक कि तत्प्रतिकूल साबित न कर दिया जाए, यह उप धारणा की जाएगी कि उसने उसको इस आशय से व्ययनित किया है कि वह वेश्यावृत्ति के उपभोग में लाई जाएगी। स्पष्टीकरण -2 के अन्तर्गत आयुक्त सम्भोग से इस धारा के प्रयोजनों के लिए ऐसे व्यक्तियों में मैथुन अभिप्रेत है जो विवाह से संयुक्त नहीं है, या ऐसे किसी सम्भोग या बंधन से संयुक्त नहीं कि जो यद्यपि विवाह की कोटि में तो नहीं आता तथापि इस समुदाय की, जिसके वे हैं या यदि वे भिन्न समुदायों के हैं, जो ऐसे दोनों समुदायों की स्वीय विधि या रूञ्ढ़ि द्वारा उनके बीच में विवाह सदृश्य सम्बन्ध अभिसात किया जाता है। 
 
धारा 373 भारतीय दंड संहिता Section 373 in The Indian Penal Code
वेश्यावृत्ति के प्रयोजन के लिए अप्राप्वय का खरीदना आदि के बारे में हैं जो कोई अठारह वर्ष में कम आयु के किसी व्यक्ति को इस आशय के बारे में है कि ऐसा व्यक्ति किसी आयु में भी वेश्यावृत्ति या किसी व्यक्ति से आयुक्त सम्भोग करने के लिए या किसी विधि विरुद्ध दुराचार प्रयोजन के लिए काम में लाया या उपयोग किया जाए या यह सम्भाव्य जानते हुए कि ऐसा व्यक्ति किसी आयु में भी ऐसे किसी प्रयोजन के लिए काम में लाया जाएगा या उपभोग किया जाएगा, खरीदेगा, भाड़े पर लेगा या अन्यथा उसका कब्जा अभिप्रेत करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से जिसकी अवधि दस वर्ष तक की हो सकेगी, दण्डित किया जाएगा और जुर्माने से भी दण्डनीय होगा।
इस धारा के स्पष्टीकरण के अन्तर्गत बताया गया है कि अठारह वर्ष से कम आयु की नारी को खरीदने वाला, भाड़े पर लेने वाला या अन्यथा उसका कब्जा करने वाले तत्प्रतिकूल साबित न कर दिया जाए, यह उपधारणा की जाएगी कि ऐसी नारी का कब्जा उसने इस आशय से अभिप्रेत किया है कि वह वेश्यावृत्ति के प्रयोजनों के लिए उपभोग में लायी जाएगी।


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कहानी - असफल स्‍याही लेखन की



मैंने भी एक असफल स्याह चिठ्ठा लिखने प्रयास किया था आज से लगभग दो माह पहले दिनांक 17/01/2007 को अपनी कुछ मजबूरियों को लेकर। इसके प्रति प्रेरित होने तथा असफल होने के पीछे कई कारण थे। कारण कि मैं इस ओर प्रेरित हुआ ? उन दिनों मै भिन्न कारणों से हिन्दी टंकण नहीं कर पा रहा था। तब उन्हीं दिनों सागर भाई ने मुझे बाराहा के लिये कई घंटों की ऑनलाइन कोचिंग मुझे दी थी पर मुझे बाराहा पर लिखने में बिल्कुल भी मजा नहीं आता था और न ही आज भी आता है। मुझे एक पत्र लिखना हुआ, IndicIME के बिना मैं बिल्कुल विकलांग सा लगने लगता हूँ। फिर मैंने एक जुगाड़ लगाया कि कलम और कागज का उपयोग किया जाये और मैंने किया भी, पर मेरे पास समस्याओं की कमी नहीं थी और मेरा स्कैनर भी ठीक नहीं था। तो एक और जुगाड़ असफल जुगाड़ लगाया और पत्र का फोटो अपने कैमरे से खींच लिया। उस पर उसका रूप देखने के बाद मुझे लगा कि उक्त दस्तावेज को यहीं दफना देना उचित होगा।
पर जब बात चल ही चुकी है तो मैं भी पीछे क्यों रहूँ असफलता भुनाने से, तो देखिए वह पत्र जो मैंने 17 जनवरी को लिखा था।
कहानी - असफल स्‍याही लेखन की


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भगवान झूलेलाल जंयती (चैत्र शुक्‍ल द्वि‍तीया) पर विशेष



क्या है भगवान झूलेलाल की कहानी
 
क्या है भगवान झूलेलाल की कहानी
Story of Lord Jhulelal
झूलेलाल को वेदों में वर्णित जल-देवता, वरुण देव का अवतार माना जाता है। वरुण देव को सागर के देवता, सत्य के रक्षक और दिव्य दृष्टि वाले देवता के रूप में सिंधी समाज भी पूजता है। उनका विश्वास है कि जल से सभी सुखों की प्राप्ति होती है और जल ही जीवन है। जल-ज्योति, वरुणावतार, झूलेलाल सिंधियों के ईष्ट देव हैं जिनके आगे दामन फैलाकर सिंधी यही मंगलकामना करते हैं कि सारे विश्व में सुख-शांति, अमन-चैन, कायम रहे और चारों दिशाओं में हरियाली और खुशहाली बने रहे।
 
चैत्र मास की प्रथम किरण के उदय होते ही विक्रम संवत का शंखनाद हो उठता है और इसी शंखनाद के गुंजन से गूंजती है- एकता व भाईचारे की आवाज़। यही आवाज़ न केवल सिंधी समुदाय को बल्कि समूचे राष्ट्र को एक नयी राह दिखलाती है। चंद्र मास की द्वितीय तिथि को सिंधी दिवस-‘चेटीचण्ड’ का महान पर्व मनाया जाता है। पाकिस्तान के ठट्टा शहर में जहाँ झूलेलाल जी ने जन्म लिया था, विस्थापन के बाद बिहार से गए याकूब भाई ने वहाँ कब्जा जमाया। संभवतः किसी अलौकिक चमत्कार को भाँपकर वे भी झूलेलाल जी का मुरीद बन गया। तब से उसने व उसके परिजनों ने झूलेललाजी की अखंड ज्योति को आज भी कायम रखा है। यहाँ के वर्तमान रह वासियों की आस्था भी परवान पर है। कुछ विद्वानों के अनुसार सिंध का शासक मिरखशाह अपनी प्रजा पर अत्याचार करने लगा था जिसके कारण सिंधी समाज ने 40 दिनों तक कठिन जप, तप और साधना की। तब सिंधु नदी में से एक बहुत बड़े नर मत्स्य पर बैठे हुए भगवान झूलेलाल प्रकट हुए और कहा मैं 40 दिन बाद जन्म लेकर मिरखशाह के अत्याचारों से प्रजा को मुक्ति दिलाऊंगा। चैत्र माह की द्वितीया को एक बालक ने जन्म लिया जिसका नाम उडेरोलाल रखा गया। अपने चमत्कारों के कारण बाद में उन्हें झूलेलाल, लालसांई, के नाम से सिंधी समाज और ख्वाजा खिज्र जिन्दह पीर के नाम से मुसलमान भी पूजने लगे। चेटीचंड के दिन श्रद्धालु बहिराणा साहिब बनाते हैं। शोभा यात्रा में ‘छेज’ (जो कि गुजरात के डांडिया की तरह लोक नृत्य होता है) के साथ झूलेलाल की महिमा के गीत गाते हैं। ताहिरी (मीठे चावल), छोले (उबले नमकीन चने) और शरबत का प्रसाद बांटा जाता है। शाम को बहिराणा साहिब का विसर्जन कर दिया जाता है। सिंधु नदी के किनारे जिंदपीर पर जहाँ झूलेलालजी ब्रह्मलीन हुए थे, वहाँ आज भी प्रतिवर्ष चालीस दिनों का मेला लगता है जिसे चालीहा कहा जाता है। इसी चालीहे के दौरान प्रत्येक सिंधी भाषी चाहे वह जहाँ भी हो, यथासंभव अपनी धार्मिक मर्यादाओं का पालन करता है।
 
भगवान झूलेलाल के अवतार-धारण की भी एक गाथा है। इतिहास में दर्ज है कि झूलेलालजी ने किसी भाषा या किसी धर्म की रक्षा के लिए नहीं, बल्कि संपूर्ण मानव समाज के उत्थान के लिए जन्म लिया था। मिरख बादशाह के जनता पर अत्याचार तो उसी दिन बंद हो गए थे, जिस दिन बादशाह ने स्वयं ललसाईं की वाणी सुनी थी। तत्पश्चात लोगों में जल के प्रति आस्था बढ़ी और सिंधी भाषा में यह कहावत स्थापित हुई- 'जो बहू जल का महत्व नहीं समझे वह घी-मक्खन की कीमत भी नहीं समझेगी।' यही वजह है कि विश्व भर के तमाम दरवेशों, पीरों और मौलाओं में सर्वाधिक पूजे जाते हैं झूलेलालजी।
 
दमादम मस्त कलंदर... गीत को लोकप्रियता भले ही बांग्लादेश की गायिका रूना लैला द्वारा गाने के बाद मिली हो लेकिन सदियों से इस गीत के बोल झूलेलाल जी की अर्चना में समर्पित किए जाते रहे हैं। संपूर्ण विश्व में संभवतः यह एकमात्र गीत ऐसा है, जिसे पचासों नामचीन गायकों ने अपनी-अपनी शैली में प्रस्तुत किया है। आबिदा परवीन, अदनान सामी, साबरी ब्रदर्स, भगवंती नावाणी, लतिका सेन, विशाल-शेखर जैसे कई गायक इस कतार में हैं। चारई चराग तो दर बरन हमेशा, पंजवों माँ बारण आई आं भला झूलेलालण... अर्थात चारों दिशाओं में आपके दीप प्रज्वलित हैं। मैं पाँचवाँ चिराग लेकर आपके समक्ष हाजिर हूँ। माताउन जी जोलियूँ भरींदे न्याणियून जा कंदे भाग भला झूलेलालण... अर्थात हर माँ की आशाओं को पूरा करना और हर एक कन्या के भविष्य को सुनहरा बनाना। लाल मुहिंजी पत रखजंए भला झूलेलालण, सिंधुड़ीजा सेवण जा शखी शाहबाज कलंदर, दमादम मस्त कलंदर... अर्थात हे ईश्वर, मेरी लाज बचाए रखना, पीरों के पीर मैं सिर्फ आपके भरोसे हूँ। पूरे गीत का आशय यह है कि अपने पैदा किए हुए हर जीव को सुखी, संपन्न और शांति का जीवन देना ईश्वर।
 
इस गीत में सिंधी सभ्यता समाहित है। अपने जीवन के सरल बहाव के साथ-साथ परोपकार की भावना भी हर सिंधी भाषी में मिलती है। विस्थापन के बाद सिंधियों की पहली जरूरत थी अपना पैर जमाना। इस प्रारंभिक समस्या से काफी कुछ मुक्ति पाने के बाद सिंधी युवा परोपकार के कामों में लगातार आ रहे हैं। अब संस्थाओं का गठन केवल स्वभाषियों के विकास ही नहीं, बल्कि समस्त मानव समाज सेवा के लिए होने लगा है। विश्व इतिहास में यह एकमात्र सभ्यता ऐसी है, जो विस्थापन पश्चात अल्प समय में ही अपनी भाषा, भूषा, भोजन और भजन को कायम रख सकी है। विस्थापित से स्थापित हुआ यह समाज अब दूसरों की स्थापना का भी सहयोगी है।
 
Story of Lord Jhulelal

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