भेड़ाघाट और दुर्घटना के लिये याद रहेगा जबलपुर का तीसरा दिन



जबलपुर की यात्रा के दो सस्‍मरणों (जबलपुर की यात्रा - प्रथम दिनजबलपुर में दूसरा दिन - महेन्‍द्र, सलिल व ब्‍लागर मीट)को तो आपने पढ़ा ही होगा। आज मै भेड़ाघाट जा रहा हूँ , मेरी तनिक भी इच्‍छा नही है किन्‍तु सुपारी दी थी तो जाना पड़ेगा ही। जबलपुर की मीट में ही श्री गिरीश बिल्‍लोरे जी ने मुझे भेड़ाघाट घुमाने की सुपारी ले ली थी और उन्‍होने इसे अगले दिन पूरा करने के लिये एक अपरण कर्ता को मय कार के साथ भेज दिया। उसने बताया कि आपको खुफिया जगह ले जाया जा रहा है। मैंने पूछा आपके सरगना (गिरीश जी) वहां होंगे कि नहीं ? उत्तर मिला नहीं। फिर क्या था फोन मिलाया और शिकायत दर्ज की, तो अपनी व्यस्तता को बताई जो जायज थी।





मुझे और ताराचंद्र को उस गाड़ी चालक ने पूरी सहुलियत के साथ घुमाया, बहुत कम पैदल चलवाया। बहुत कम समय में बहुत ही यादगार स्मृति मेरे मन में बन गई। कुछ देन में कुछ खरीदारी भी किया किया। चलते वक्त नजदीक के एक होटल में जलपान भी किया। कुछ देर में वाहन चालक ने हमें अपने गंतव्‍य स्‍थान हरिभूमि पर पहुंचा दिया। कुछ देर में मित्र तारा अपने ऑफिस का काम देख कर मुझे आराम करने के लिये घर छोड आये। शाम 4-5 बजे तक वो फिर आते है और मुझे अपने साथ हरिभूमि के दफ्तर में अपने कुछ मित्रों से मिलवाया। काफी देर तक मुलाकात बातचीत का दौर चला । मुझे लगा कि मै ऑफिस के काम में बाधा पहुँच रहा हूँ तो सभी से अनुमति घूमने निकल पड़ा।


शाम का समय था कहां कहां घूमा मुझे पता नही था, तीन दिनो बाद पहली बार जबलपुर में साइबर कैफे दिखा। जैसे ही मै बैठा वैसे ही श्री गिरीश जी का फोन आया, कि मै हरिभूमि पर आपका इंतजार कर रहा हूँ। मुश्लिक से 5 मिनट भी न हुये थे, दाम पूछा तो 10 रूपये बताया देकर चलता बना। 5 मिनट में हरिभूमि पहुँच गया, श्री गिरीश जी के साथ चौराहे की चाय की चुस्‍की हुयी और और खबर सुनाई दी कि कही हेलीकाप्‍टर गिर पड़ा है। हरिभूमि से ज्‍यादा तेज गिरीश जी का नेटवर्क था जो इस खबर की पुष्टि की । इसी चर्चा के बीच बहुत तेज आंधी पानी भी आ गया, और हम जल्‍दी से गाड़ी में बैठकर श्री गिरीश जी के आवास पहुँच गये।

जलपान के साथ विभिन्‍न मुद्दे पर गरम चर्चा भी हुई, 2006 से लेकर वर्तमान चिट्ठाकारी पर चर्चा भी की गई, और भविष्‍य की संकल्‍पनाओं की आधारशिला भी रखा गया। कुछ बातो पर मुझे जबलपुर के उन ब्‍लागरो से कभी कुछ कहना चाहूँगा, जो मुझे अत्‍मीय मान देते है, समय अपने पर वह मै करूँगा। करीब रात्रि 10.30 भोजन के बाद हम सभी परिवार जनो से आ‍शीर्वाद ले विदा हुये। श्री गिरीश जी व परिवार से जो प्‍यार मिल उसके लिये धन्‍यवाद या आभार व्‍यक्‍त करना, उस स्‍वर्णिम पल का अपमान करना ही होगा, इन तीन दिनो में मुझे अपने परिवार की स्‍मृति तो थी किन्‍तु सभी की छवि जबलपुर के ब्‍लागरों मे दिख रही थी।

रात्रि के समय में जबलपुर की तुलना किसी दुल्हन से करना गलत न होगा। मै जबलपुर की छटा पर से निगाह हटा नहीं पा रहा था, मै उसे देख ही रहा था चौराहे पर एक तीव्र गति से आती हुई फोरविलर के कारण कि गाड़ी असंतुलित हो गई और हम गिर पड़े। जबलपुर के लोगो का प्यार और भगवान हमारे साथ थे इस कारण ज्यादा कुछ नहीं हुआ, हमारे मित्र ताराचंद्र आगाह थे इसलिये बिल्कुल सुरक्षित थे, थोड़ा गाड़ी डैमेज हो गई थी, मै शहर के नजरे लेने में व्‍यस्‍त और इसका खामियाजा मुझे भुगतना पड़ा, इस कारण मुझे सड़क पर ही घुटना टेकना पड़ा और नतीजा यह हुआ कि पैट भी फट गई और घुटना भी छिल गया (दर्जी की दया से पैंट रफू और डॉक्टर की दया चोट दोनो जल्‍दी ही विदा हो गये, पर पैंट मे भी दाग है और पैर में भी जो जबलपुर की याद दिलाता रहेगा ) । ताराचंद्र ने पूछा चोट तो नहीं लगी, मैंने कहा नहीं, थोड़ा गाड़ी धीरे चलाया करो, दुर्घटना सिर्फ हमारी गलती से ही नही होती है। हम चल दिये मुझे घर पहुँच तारा चन्‍द्र जी अपने ऑफिस चले गये।

सुबह जब तारा चन्‍द्र उठे मेरी पैंट और चोट देखी जो उन्‍हे फील हुया, कुछ गलती जरूर हुई थी। यही फील करवाना मेरा मकसद भी था, क्‍योकि मेरा मानना है कि दुर्घटना अपनी गलती से नही होती है पर अपनी सावधानी से टाली जा सकती है। आगे की चर्चा अगले पोस्‍ट में ये यादगार अन्तिम दिन था क्‍योकि मुझे इस दिन एक नया परिवार मिला।


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मदद के लिये आभार, आखिर हल मिल ही गया



पिछले कुछ दिनो से मेरा ब्लॉग एक अजीब सी समस्या से जूझ रहा था, उस समस्या के निजात के लिये ब्लॉग समूह से मदद माँगी थी। पोस्ट लिखता था पोस्‍ट मेन पेज पर तो दिखती थी किन्तु पोस्ट के रूप में नही दिख रही थी। परसो मै और जीतू भाई काफी देर तक इस समस्या पर विचार करते रहे किंतु समस्या का समाधान हो ही नहीं रहा था,जीतू भाई भी अपना अमूल्य समय निकाल कर मेरी सहायता करने में लगे थे।

मेरा ब्लॉग दो जगहों पर रिडाईरेक्‍ट हो रहा था, जो एक तकनीकी कमी थी, अन्तोगत्वा जीतू भाई के अनुसार मैने अगले दिन फिर से काम प्रारंभ किया। काम मे लगा ही था कि श्री विजय तिवारी किसलय जी से सुखद बात हुई उनसे बात करने के बाद तो मन प्रसन्न हो हो गया। उनसे बात समाप्त हुई है और जैसे फिर ब्लॉग में हाथ लगाया अपने आप समस्‍या समाप्‍त हो गई।
मुझे एहसास हुआ कि किसी काम की सफलता के पीछे मेहनत के साथ-साथ सही समय का हो भी आवश्यक होता है।


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अदिति ने क्‍यो मारा ?



आज करीब साढ़े 3 साल की अदिति अपनी 6 महीने की की छोटी बहन को तीन-चार झापड़ मार दिया। मुझे कारण नहीं पता था किन्तु मै देख रहा था, और अदिति को ड़ाट दिया, मारा बिलकुल भी नही। मेरी शिकायत अम्मा जी के पास तक पहुंच गई। छोटे चाचा हमको मारे है, दूसर चाचा मगओं। अदिति के रोने गाने के साथ बात खत्म हो गई।
अभी कुछ देर पहले सभी लोग चाय पी रहे थे और सुबह की घटना की चर्चा हुई। पता चला कि अदिति ने छोटी बिट्टी को क्यों मारा। कारण यह था कि छोटी बिट्टी ने बेड गंदा कर दिया था। अदिति ने अम्मा जी से ये शिकायत की थी कि मै उसकी बड़ी बहन हूँ उसको सहूर सिखा रही थी। ये पे हमका छोटे चाचा मारे है।


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राष्ट्रहित एवं स्‍थाई सरकार के लिये घर से निकले पपप



आप सभी प्रबुद्ध वर्ग के लोगों से निवेदन है कि राष्‍ट्रहित व स्‍थाई सरकार के गठन के लिये घर से निकल कर मतदान में भाग ले। साथ ही साथ अपने मित्रों व परिजनो को प्रोत्‍साहित करें। आज के दौर केवल केन्द्रीय पार्टी ही स्‍थाई सरकार दे सकती है उसमें भारतीय जनता पार्टी सर्वश्रेष्ट विकल्प है।


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जबलपुर में दूसरा दिन - महेन्‍द्र, सलिल व ब्‍लागर मीट



यह लेख पूरा लिख चुका था किन्तु सेव न कर पाने के कारण फिर लिखना पड़ा, उतना अच्छा फिर नहीं लिख पाऊंगा जितना लिखा था। जैसा कि यह जबलपुर में मेरा दूसरा दिन था, हम घर से निकल कर ताराचंद्र के ऑफिस हरिभूमि कार्यालय पर पहुँचे। मै पहले विवेक रंजन और संजीव सलिल जी से फोन पर बात कर चुका था, बात के अनुसार सलिल जी के घर पर जाना हुआ। काव्य की विभिन्न विधाओं के विषय पर उनसे चर्चा हुई। हिन्‍दी पत्रकार के वर्तमान परिदृश्य पर भी उनसे चर्चा की गई। लगभग 1 घंटे की मीट के बात हम सलिल जी से अनुमति लेकर पुन: अपने घर पहुँचे। तभी श्री महेन्द्र मिश्र जी से बात हुई उन्होंने भी कहा कि आज हम खाली है मिला जा सकता है। पुन: मित्र ताराचंद्र जी ने मुझे महेन्द्र जी के घर पर पहुँचा कर अपने पत्रकारिता के काम में लग गये। मै और महेंद्र जी करीब 2 घन्‍टे तक साथ रहे और हिन्दी चिट्ठाकारी के वर्तमान परिदृश्य पर चर्चा की। मैंने उनके ब्लॉग का अवलोकन किया, और भी बहुत सी बातें उनसे सीखने को मिली और जो कुछ मेरा अधकचरा ज्ञान था उसे बॉटने का सौभाग्य मिला। उनके परिवार से भी रूबरू हुआ। उनके परिवार में सबसे बड़े पुत्र मयूर मिश्र जी से भी मित्रता हुई, वे शिक्षा में एमसीए के छात्र है। उन्‍हे भी मैने चिट्ठकारी में हाथ अजमाने का अनुरोध किया, जिसे उन्‍होने सहर्ष स्‍वीकार कर लिया। मुझे प्रतीक्षा है कि वे चिट्ठाकारी मे आयेगे। 
 
करीब दो बजे हम फिर अपने घर को चल दिये और कुछ देर आराम किया, फिर मैंने श्री गिरीश जी को फोन किया तो पता चला कि वे अपने कुछ कार्यो में व्यस्त है। जो महत्‍वपूर्ण थे, फिर क्या था मै अपने पैदल चलो अभियान पर चल दिया और जबलपुर के कई मोहल्लों का अवलोकन किया जिसमें मुझे जावरा के दर्शन हुये। पिछली पोस्ट में जवारे के विषय में ज्ञान जी ने पूछा था कि यह क्या है ? तो वरिष्‍ठ जन श्री विजय तिवारी किसलय जी ने जैसा मुझे इसके बारे में बताया था उनका अच्छा तो मै नही बता पाऊंगा किन्तु जितना कह सकता हूँ जरूर कहना चाहूँगा। जवारे का यात्रा नवरात्रि के उत्सव के रूप में की जाती है, जिसमें देवी के पीठो से यह यात्रा निकाल कर 2-3 किमी दूर पैदल नंगे पैर जाकर विसर्जित की जाती है। मान्यता यह है कि यह वह समय होता है जब फसल पकती है, और काटी जाती है। बीजों का निरीक्षण करने के लिए कि वह ठीक है या नहीं उन्हें बोया जाता है, जब यह भली भांति प्रकार से उग जाते है तो पता चलता है कि यह बीज उन्‍नत किस्‍म के है और उन्हें खाने के रूप में उपयोग किया जाता है। देवी की भक्ति का यह असर होता है कि लोग अपने शरीर पर अस्‍त्र शस्‍त्र चुभोए रहते है, किन्तु देवी कृपा के कारण उन्हें पीड़ा नहीं होती है। देवी के प्रति आस्था प्रकट करने के लिये लोग अपने शरीर पर नौ दिनों तक जवरे को बोते है। इस पर्व में बलि जैसी कुप्रथा भी है किन्‍तु वर्तमान समय में पशु बलि की जगह कद्दू की बलि भी दिख जाती है। नौ दिनों तक चलने वाला इस पर्व से पूरा शहर का वातावरण भक्तिमय लगता है। श्री किसलय जी से अनुरोध करूँगा कि वे जवारे में बारे मे एक अच्‍छी पोस्‍ट लिखे।
 
शाम साढ़े सात बजे तक घर लौट आता हूँ,और शाम की ब्‍लागर मीट के लिये तैयार होता हूँ। साढ़े आठ बजे मै कार्यक्रम स्‍थल पर पहुँच गया था। ब्‍लागर मिलना गोष्‍ठी बहुत ही सफल रही, करीब एक दर्जन ब्‍लागरों को इसमें आना हुआ। कार्यक्रम में आचार्य संजीव सलिल, तारा चन्द्र, डूबे जी कार्टूनिस्ट,गिरिश बिल्लोरे जी, संजय तिवारी संजू, बवाल, विवेक रंजन श्रीवास्तव,आनन्द कृष्ण, महेन्द्र मिश्रा सहित गणमान्‍य ब्‍लागर उपस्थित थे, क्षमा करे यदि किसी का नाम छूट रहा हो। इसी कार्यक्रम में समीर लाल जी की काव्‍य पुस्‍तक बिखरे मोती का पूर्व विमोचन किया गया। कार्यक्रम में समीर लाल जी 2006 के साल को याद करते हुये कहा कि उड़नतश्‍तरी और महाशक्ति दोनो ब्‍लागर उस समय के जब हम 150 से कम चिट्ठाकार हुआ करते थे आज नियमित और अनियमित ब्‍लागरों की संख्‍या करीब 6000 के आस पास है। समीर लाल जी के द्वारा अपने साथ मेरे नाम को जोड़ना, चिट्ठाकारी में मेरे लिये अब तक का सबसे बड़ा सम्‍मान है। मैने और समीर लाल जी अपने और चिट्ठाकारी के प्रथम साल की कुछ खट्टी मीठी यादों को ताजा किया, जिनका चर्चा किया जाना मेरी जान में उचित नही होगा। विवेक रंजन जी ने कहा कि इस ब्‍लागर मीट में शामिल सभी लोग अपने ब्‍लाग पर एक दूसरे का लिंक लगाये, मैने उसका सहर्ष अनुमोदन किया। आज जबलपुर के ज्‍यादातर ब्‍लागर के लिंक मेरे ब्‍लाग महाशक्ति पर उपलब्‍ध है, यह देखना है किन किन के ब्‍लागों पर अन्‍य सभी के लिंक आ गये है ? :)

रात्रि लगभग 12 बजे हमारी मीट बवाल जी के दिव्‍य काव्य पाठ के साथ ही समाप्त हो गई।

चलते-चलते 
समीर लाल जी की पुस्तक बिखरे मोती को इलाहाबाद के वरिष्ठ चिट्ठाकार श्री सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी जी को भेंट करने का निर्देश हुआ था, कल प्रात: उनसे मुलाकात हुई। चिट्ठाकारी के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा हुई। हम पहली बार मिले और 25 मिनट की लघु वार्ता में एक दूसरे को जानने का मौका मिला, इलाहाबाद में एक ब्‍लागर सेमिनार के आयोजन की योजना है। जिसकी सूचना आपको जल्द दी जाएगी। मेरे साथ महाशक्ति समूह मुख्य तकनीकी प्रबंधक मानवेन्द्र प्रताप सिंह भी थे। दिनांक 15 अप्रैल को मै आवश्यक कार्य से वाराणसी और जौनपुर की यात्रा पर रहूँगा, शायद ही ब्लॉगर मीट हो पाये। :) 
 


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