श्री द्विवेदी ब्लॉगवाणी पर पक्षपात का आरोप लगाना समझ से परे है क्योंकि ब्लॉगवाणी किसके साथ पक्षपात कर रही है ? ब्लॉगवाणी एक ऐसा मंच है जो अपनी नीतियों के हिसाब से किसी ब्लॉग को अपने एग्रीगेटर पर शामिल करता है, यदि वह किसी को शामिल नहीं करता है तो उस पर पक्षपात का अरोप लगाना गलत ही है। क्योंकि ब्लावाणी ने स्पष्ट रूप से कहा है कि हम अपनी मर्जी के मालिक है।
आज श्री द्विवेदी जी यह कहा रहे है किन्तु आज से करीब 18-20 महीने पहले श्री द्विवेदी जी की एक टिप्पणी मुझे चिट्ठकार के सम्बन्ध में पढ़ने को मिली थी - देबू भाई के बारे में जानने का अवसर मिला। धन्यवाद।मैं उनके इस विचार से सहमत हूँ, यह कानून भी यही कहता है कि दूसरे की संपत्ति पर आप यदि कुछ कर रहे हैं तो उसकी सहमति से कर रहे हैं। आप एक लाइसेंसी हैं। अब आप वहाँ कोई भी ऐसा काम करते हैं जो संपत्ति के स्वामी द्वारा स्वीकृत नहीं है तो संपत्ति के स्वामी को आप को वहाँ से बेदखल करने का पूरा अधिकार है। आप उसे कोसते रहें तो कोसते रहें। आखिर संपत्ति के स्वामी ने अपने वैध अधिकार का उपयोग किया है कोई बेजा हरकत नहीं की है।
श्री द्विवेदी जी विद्वान अधिवक्ता है उनकी बात को कटाना हमारे बस में नही है किन्तु उपरोक्त उनकी यह दूसरी टिप्पणी ब्लॉगवाणी का स्वयं समर्थन कर रही है, वह अपने निर्णय लेने को स्वतंत्र है। किन्तु यह मै एक बात कहना चाहूंगा कि ब्लॉगवाणी मंच अपनी कोई बात रखने के लिए सदस्यता नहीं देता है, किंतु जिस चिट्ठकार के सम्बन्ध में उन्होंने कहा था वह अपनी बात को रखने के लिए सदस्यता देता है और किसी सदस्य को मंच से हटाये जाने के पर सदस्य को पूरा अधिकार है कि वह इस बात की जानकारी प्राप्त करें कि उसे किस बात के लिये हटाया गया ? जब मैने उक्त बात जाननी चाही थी तो श्री द्विवेदी जी बिना पूरी बात जाने अथवा जानकर भी बड़े ब्लॉगर के महिमा मंडन के मोह से छूट न सके और मुझे कानून की घुट्टी पिला गये।
श्री द्विवेदी जी के न्याय के पैमाने के मै समझ पाने की कोशिश कर रहा हूँ तो पाता हूँ कानून अंधा ही नही बहरा भी होता है। आज ब्लागवाणी का पक्षपात उन्हे समझ में आ रहा है किन्तु तब का पक्षपात उन्हे क्यो नही दिखा जब मैने उस बात को जानने का प्रयास किया कि मुझे चिट्ठाकार से निकालाने की बात पूछी थी ? तब तो श्री द्विवेदी जी ने किसी कि सम्पत्ति कहते हुये उसे चिट्ठकार के मालिक के अनैतिक कृत्य को मनमानी का पूरा मालिकाना अधिकार दे गये थे। न्याय का मतालब यही है कि बतालकारी के अरोपी को पता नही है कि आखिर बलात्कार हुआ किसका है ? न्याय की यह प्रक्रिया सिर्फ चिट्ठकारो की चौपट नगरी में ही सम्भव है, जहॉं समय के अनुसार कानून बदल जाता है। ब्लागवाणी पर ऊँगली उठाने से पहले यह सोचना चाहिये कि सर्वप्रथम यह कि ब्लागवाणी कोई सार्वजनिक चर्चा मंच नही है और न ही वह किसी को सदस्यता देता है, उसके सदस्यता देना सिर्फ पाठक के लिये है न कि किसी ब्लागर के लिये। हो सकता है कि तब और आज के टिप्पणी में अंतर इसलिये हो क्योकि तब वे चिट्ठाकारी के खेला के नये खिलाड़ी थे और आज वे इस खेला के माहिर खिलाडियो में शामिल हो चुके है और इसलिये नियम, कानून और पक्षपत की परिभाषा बदल चुकी है।
श्री द्विवेदी जी की दोनो टिप्पणी प्रस्तुत है - चिट्ठकार के सम्बन्ध में
ब्लागवाणी के सम्बन्ध में
यहाँ ब्लागों के लिंक देना उचित नही समझता क्योकि इससे अन्य सम्बन्धित लिंको को भी देना पड़ेगा।
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सबसे आगे है नारद
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