ठंडे पानी से स्‍नान की बात ही कुछ और है ....



ठंडी मे जो मजा ठंडे पानी नहाने का वह गर्म पानी से नही, अभी 10 मिनट पहले नहाया हूँ, नहाने के बाद ठंड नाम की कोई चीज लग ही नहीं रही है। दो वर्ष पूर्व घर मे ही किसी ने कहा कि माघ मास में गर्म पानी से नहीं नहाना चाहिए जो पानी सामान्य तरीके से प्राप्त हो उसी से नहाना चाहिए।
Kumbh Mela Shahi Snan

माघ मास में प्रयागराज (इलाहाबाद) मे लाखो करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु आते है और गंगा मां के आंचल में स्नान करते है। माघ मास के सन्दर्भ में पौराणिक माहात्म्य का वर्णन किया गया है कि व्रत दान व तपस्या से भी भगवान श्रीहरि को उतनी प्रसन्नता नहीं होती, जितनी माघ मास में ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान मात्र से होती है।चूंकि यह भी कहा जाता है कि यह ऐसा पुण्य मास होता है कि आपको जहाँ भी उपलब्ध जल मिला वह गंगा जल की भांति पुण्य दायक होता है।

मै तो कहूंगा कि जिनको ठंड ज्यादा लगती है वो ठंडे पानी से प्रातः: 6 बजे तक स्नान आदि कर ले, ठंड तो उन्हें लगेगी नहीं और माघ मास में स्नान से मिलने वाले पुण्य से भी वो लाभान्वित होते रहेंगे। :)


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मनमोहन की हठ - जेपीसी नही पीसीए



2जी स्पेक्ट्रम लाइसेंस आवंटन विवाद संसद क्या रुकी प्रधानमंत्री को यह कहना पड़ा कि संसदीय प्रणाली खात्मे की ओर है। कांग्रेस भी करीब 10 साल विपक्ष की भूमिका मे रही है और उसने भी सरकार के समक्ष विपक्ष की भूमिका निभाई है किन्तु भ्रष्टाचार में लिप्त यूपीए सरकार ने जिस प्रकार विपक्ष की जेपीसी की मांग को खारिज कर रही है उससे तो यही प्रतीत होता है कि वाकई सरकार पर दाग गहरे है। आज जनता जानने को उत्सुक है कि अ‍ाखिर क्यो सोनिया ने कहा कि जेपीसी नहीं है, तो मनमोहन का कहना भी स्वाभाविक है कि जेपीसी नही, किन्तु आज सरकार सबसे बड़ी बात यह बताने में विफल रही कि जेपीसी क्यो नही है? आखिर क्या बात है कि यह वही प्रधानमंत्री है जो कि लोक लेखा समिति पीएसी के समक्ष हाजिर होने के तैयार हो जाते है किन्तु जेपीसी के सामना नही करना चाहते है।
जहाँ तक निष्‍पक्षता की बात आती है तो पीएसी को तो लोकसभा के अध्‍यक्ष की अनु‍मति के बिना मंत्रियों को भी बुलाने का अधिकार नहीं है प्रधानमंत्री की बात ही दूर है प्रधानमंत्री लाख पीएसी के समक्ष उ‍पस्थित होने की बात कहे किन्‍तु बिना लोकसभा अध्‍यक्ष की अनुमति के बिना पीएसी के अध्‍यक्ष उन्‍हे बुला नही सकते। मनमोहन की पीएसी के समक्ष जाने की जिद्द तो यही कहती है कि छोटा बच्‍चा मोतीचूर के लड्डू के लिये कर बैठता है चाहे उसे कितनी ही कीमती सामान न दो वो उसी लड्डू के लिये के लिये ही हठ किये बैठा रहेगा। अगर प्रधानमंत्री को लगता है कि पीएसी ही उचित मंच है तो मनमोहन जी को चाहिये कि पीएसी के समक्ष उपस्थित होने की क्‍या जरूरत है जरूरी है कि एक पंचायत बुला ले जो पंच कह देगे वही मान्‍य होगा।


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भाजपा के प्रदेश दफ्तर मे अमर उजाला का चाटुकार पत्रकार



लखनऊ यात्रा के दौरान एक दिन भाजपा के प्रदेश कार्यालय पर जाना हुआ। साथ में एक सम्मानित पत्रकार थे जिन्‍होने कही कि चल कर कुछ मित्र नेताओं की फोटो ले लिया जाये। मैने भी हामी भर दी, जब वहाँ पहुँचे तो भाजपा के बड़े नेता ने उन पत्रकार महोदय ये पूछा कि महोदय यह क्या करवा रहे है? (मजाकिये लहजें) उन पत्रकार महोदय ने कोई उत्तर न दिया मेरे मुँह से निकल आया कि सर अपने मोस्‍ट वॉन्‍टेड के चित्र संग्रह कर रहे है। हल्की सी मुस्कान के साथ बात खत्म हो रही थी किन्तु वहाँ उन नेताजी के साथ घूम रहे एक अमर उजाला के पत्रकार उम्र करीब 30 की रही होगी, मेरी बात उनको बहुत खराब लग गई।
नेताजी के सामने अपना कद और मै नेताजी का हितैषी हूँ साबित करने के लिये तपाक से मेरे से बोले कि तमीज से बात करो, जान नहीं रहे हो कि किससे बात कर रहे हो।
मैने भी उनकी तमीज उनके मुँह पर दे मारी और बोला कि अपनी लमीज अपने पास रखों और ये देखो की बात का माहौल किस लहजे का है।
फिर उनको अपनी चटुकारिका की पत्रकारिता का दम्भ दिखा और बोले कि फोटोग्राफर हो, फोटोग्राफर की तरह रहो।
मैने भी बोल दिया कि जिस हद(चाटुकारिता) की पत्रकारिता कर सकते तो तुम वही कर रहे हो, और जब किसी को फोटोग्राफर कभी लेकर टहल सकना तो किसी को फोटोग्राफर कहना।
उसने कहा कि तुम हो कौन ?
इसी बीच मामला गंभीर होता जा रहा था, हमारे साथ के वरिष्ठ पत्रकार ने हस्तक्षेप करते हुए, मेरा परिचय दिया कि फला मेरे मित्र है और इलाहाबाद से आये और अधिवक्ता है मेरे आग्रह पर कुछ चित्र लेने चले आये।
यह बात सुनकर अमर उजाला के चाटुकार का चेहरा मुझे घूरे जा रहा था पता नहीं क्यों ? और हम वहाँ से मंद मंद मुस्करा दिये और अपने काम को संपन्न कर वहाँ से चल दिये पर वो अभी तक मुझे देख रहा था।
मेरे मन ने मन ही मन में कहा कि वाह पत्रकारिता (चाटुकारिता)


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एक कुत्ते की बात



आज से दो दिन पहले मे गेट से बाहर निकला तो एक कुत्ता काटने को दौडा, और मै किसी प्रकार पहले बचाव किया, फिर जैसे ही उसी मारने के लिये ईट उठाने की कोशिश की तो वो फिर काटने को दौड़ा पर मैने भी किसी प्रकार से दो ईट उठा ली और उससे दो-दो हाथ खड़ा हो गया। मैने ईट उसके पेट में मारने की कोशिश की तो पता नहीं कैसे अपना सिर बीच मे ले आया और ईट उसके सिर पर जाकर ठीक से लगी, जैसे ही उसे ईंट लगी कुत्ते की सारी बकैती ऐसे गायब हुयी जैसे गधे के सिर से सींग और ऐसा भागा कि जब तक की आँख से ओझल न हो गया।
मेरी ईंट उसके सिर पर लगने का अफसोस था क्योंकि जानवरों के सिर पर चोट लगने से वो बच कम पाते है पर उसे ईंट लगने पर खुली चोट नहीं लगी थी इसी से मुझे थोड़ी तसल्ली थी। वह दो दिन से गायब रहा मुझे चिंता हो रही थी कि वो कहीं मर न गया हो। जब यह बात मैंने भैया को बताई तो भैया ने हंसते हुए कहा कि चोट दिमाग पर लगी है तो कहीं याददाश्त न भूल गया हो।

 
कल रात्रि वह कुत्ता मुझे फिर दिखा और एक टकटकी निगह से मुझे फिर देख रहा था, भौका भी नही। अचानक मैने जैसे ही एक ईट का टुकड़ा उठाने की कोशिश की वह उसी रफ्तार से भागा जैसे उस दिन भागा था और तब तक भागता रहा जब तक की आखो से ओझल न हो गया। मुझे यकीन हो गया कि वह ठीक और उसकी याददाश्त भी नही खोई। :)


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कहाँ है सेक्‍यूलर रूदालियाँ और मीडिया - बांग्लादेश में उपद्रवियों ने काली मंदिर तोड़ा



हमारे पड़ोसी देश बांग्लादेश में रहने वाले हिंदुओं के लिए हालात चिंताजनक होते जा रहे हैं। वहां हिंदू विरोधी माहौल बनता जा रहा है। बांग्लादेश में हिंदुओं के पवित्र पूजा स्थलों पर हमले हो रहे हैं। रविवार की सुबह देश की राजधानी ढाका में बांग्लादेश छात्र लीग (बीसीएल) के उपद्रवी सदस्यों ने रंगदारी वसूलने के मामले में विवाद बढ़ने पर ऐतिहासिक रामना काली मंदिर को तोड़ दिया।




मंदिर टूटने से बांग्लादेशी हिंदुओं में नाराजगी है। हालांकि, बांग्लादेश में हिंदू धर्म से जुड़े प्रतीकों और त्योहारों पर हमले का मामला नया नहीं है। कुछ हफ्तों पहले दुर्गा पूजा के दौरान भी कई हिंदुओं पर हमले की बात सामने आई थी। वहीं, इस साल कृष्ण जन्माष्टमी पर भी शाम तक ही पूजा खत्म करने के सरकार के आदेश से भी हिंदुओं को ठेस लगी थी। लीग पर आरोप है कि इसके कार्यकर्ताओं ने रामना मंदिर इलाके में दो मूर्तियों को तोड़ डाला और आसपास की दुकानों में तोड़फोड़ मचा दी।
बांग्लादेश में हिंदुओं के दमन पर एमनेस्टी इंटरनेशनल भी चिंतित है। एमनेस्टी का कहना है कि प्रधानमंत्री खालिदा जिया के नेतृत्व वाली बांग्लादेश नेशनल पार्टी के समर्थकों द्वारा अक्टूबर के बाद से हिंदुओं पर हमले बढ़ गए हैं। इसकी वजह है कि नेशनल पार्टी के समर्थकों को लगता है कि हिंदू अवामी लीग का समर्थन कर सकते हैं। एमनेस्टी ने इसके लिए बांग्लादेश सरकार की कड़ी आलोचना करते हुए कहा है कि हिंदुओं पर हमले करने वाले लोगों को सज़ा भी नहीं मिल रही है।
बांग्लादेश में हिंदू अल्पसंख्यक हैं। देश की आबादी पंद्रह करोड़ है जिसमें करीब 8 फीसदी हिंदू हैं और अन्य बौद्ध, ईसाई और आदिवासी हैं। बांग्लादेश में हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार और दमन का असर उनकी आबादी पर भी देखा जा सकता है। बांग्लादेश में हिंदुओं की तादाद लगातार घटती जा रही है। बांग्लादेश में 1941 में हिंदुओं की आबादी जहां 28 फीसदी थी वही 1991 में घटकर 10.5 फीसदी हो गई। हिंदुओं की आबादी 1961 से 1991 के बीच करीब 8 फीसदी घट गई।
एक आकलन के मुताबिक 1947 में भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद बांग्लादेश (तब पूर्वी पाकिस्तान) में करीब 30 लाख हिंदुओं का हत्या हो चुकी है। डॉ. सब्यसाची घोष दस्तीदार की किताब 'इंपायर्स लास्ट कैजुअलटी' में दावा किया गया है कि हिंदुओं के इस्लामीकरण के चलते इनमें से ज्यादातर हत्याएं हुईं।
बांग्लादेश में आज हिंदुओं के सामने न सिर्फ अपनी धार्मिक आस्था को बचाए रखने की चुनौती है बल्कि उन्हें नरसंहार, अपहरण, फिरौती, रंगदारी, सार्वजनिक तौर पर अपमान जैसी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। किताब में कहा गया है कि बांग्लादेश में हिंदू जजों, पेशेवर लोगों, अध्यापकों, वकीलो और सिविल सर्वेंट को चुन-चुनकर मारा जा रहा है। सबसे ज्यादा चिंताजनक पहलू यह है कि बांग्लादेश में बहुसंख्यक मुस्लिम समुदाय के लड़के हिंदू लड़कियों का अपहरण कर उनसे जबरदस्ती शादियां कर रहे हैं।


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