देवी कात्यायनी अमोद्य फलदायिनी हैं इनकी पूजा अर्चना द्वारा सभी संकटों का नाश होता है, माँ कात्यायनी दानवों तथा पापियों का नाश करने वाली हैं. देवी कात्यायनी जी के पूजन से भक्त के भीतर अद्भुत शक्ति का संचार होता है. इस दिन साधक का मन ‘आज्ञा चक्र’ में स्थित रहता है. योग साधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है. साधक का मन आज्ञा चक्र में स्थित होने पर उसे सहजभाव से मां कात्यायनी के दर्शन प्राप्त होते हैं. साधक इस लोक में रहते हुए अलौकिक तेज से युक्त रहता है.
माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यन्त दिव्य और स्वर्ण के समान चमकीला है. यह अपनी प्रिय सवारी सिंह पर विराजमान रहती हैं. इनकी चार भुजायें भक्तों को वरदान देती हैं, इनका एक हाथ अभय मुद्रा में है, तो दूसरा हाथ वरदमुद्रा में है अन्य हाथों में तलवार तथा कमल का फूल है.
चंद्र्हासुज्ज्वलकरा शार्दुलवरवाहना !
कात्यायनी शुभम दध्यादेवी दानवघातिनी !!
ChandrhaasujjwalKara Shaardulvar-wahana !
Katyayani dadhyadevi Daanavghaatini !!
Meaning -
चन्द्र को उज्जवल करने वाली. सिंह के वाहन वाली , दानव का नाश करने वाली कात्यायनी देवी को प्रणाम !!
Explanation-
The origins of Katyayani goddess are closely linked to bloodline of the sage KAT who beget the saint Katya as his son. Eventually famous saint katyayan was born in this line. It was his desire that goddess be born in his house as his daughter. The world meanwhile was reeling under tyrannies of demon mahishasur. The goddess appealed by the trinity of Brahma, Vishnu, Shiva born on 4th Navratra. Goddess accepted the ritual worship of katayayan rishi for 3days and on the tenth day Durga slew the demon Mahishasur. Goddess was born in Katayan's house so she adopted the name Katyayani.
Katyayani devi is depicted as a four armed goddess astride a lion. She holds a sword in one hand, a lotus in another, and remaining 2 hands are composed in mudras of blessing and the mudra of fearlessness, the blessing extended to all of katyayani's devotees.
As a potent force and facet of female energy, Katyayani claims as her own the Ajna or Agya Chakra. Symbolized by a lotus with 2 petals, this chakra is also known as third eye chakra.
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