मानसरोवर तिब्बत में स्थित एक झील है। यह झील लगभग 320 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है । इसके उत्तर में कैलाश पर्वत तथा पश्चिम में रक्षातल झील है । यह समुद्रतल से लगभग 4556 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है । इसकी परिमिति लगभग 88 किलोमीटर है और औसत गहराई 90 मीटर ।
हिन्दू धर्म में इसे लिए पवित्र माना गया है । इसके दर्शन के लिए हज़ारों लोग प्रतिवर्ष कैलाश मानसरोवर यात्रा में भाग लेते है । हिन्दू विचारधारा के अनुसार यह झील सर्वप्रथम भगवान ब्रह्मा के मन में उत्पन्न हुआ था । संस्कृत शब्द मानसरोवर, मानस तथा सरोवर को मिल कर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है - मन का सरोवर । यहां देवी सती के शरीर का दांया हाथ गिरा था। इसलिए यहां एक पाषाण शिला को उसका रूप मानकर पूजा जाता है। यहां शक्तिपीठ है।
हिन्दू धर्म में इसे लिए पवित्र माना गया है । इसके दर्शन के लिए हज़ारों लोग प्रतिवर्ष कैलाश मानसरोवर यात्रा में भाग लेते है । हिन्दू विचारधारा के अनुसार यह झील सर्वप्रथम भगवान ब्रह्मा के मन में उत्पन्न हुआ था । संस्कृत शब्द मानसरोवर, मानस तथा सरोवर को मिल कर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है - मन का सरोवर । यहां देवी सती के शरीर का दांया हाथ गिरा था। इसलिए यहां एक पाषाण शिला को उसका रूप मानकर पूजा जाता है। यहां शक्तिपीठ है।
अमरनाथ मंदिर के बाद कैलाश मानसरोवर को भगवान शिव का धाम माना गया है। अमरनाथ मंदिर के दर्शनों की तरह यह स्थल भी बेहद दुर्गम स्थान पर स्थित है। मानसरोवर को दूसरा कैलाश पर्वत कहा गया है। भगवान शिव के निवास स्थल के नाम से प्रख्यात यह स्थल अपनी अपरंपार महिमा के लिये प्रसिद्ध है। यह पर्वत कुल मिलाकर 48 किलोमीटर में फैला हुआ है। कैलाश मानसरोवर की यात्रा अत्यधिक कठिन यात्राएं में से एक यात्रा मानी जाती है। इस यात्रा का सबसे अधिक कठिन मार्ग भारत के पड़ोसी देश चीन से होकर जाता है। यहां की यात्रा के विषय में यह कहा जाता है, कि इस यात्रा पर वही लोग जाते है, जिसे भगवान भोलेनाथ स्वयं बुलाते है। यह यात्रा प्रत्येक वर्ष मई से जून माह के मध्य अवधि में होती है। कैलाश मानसरोवर यात्रा की अवधि 28 दिन की होती है।
कैलाश मानसरोवर स्थल धरती पर किसी स्वर्ग से कम नहीं है। इस स्थल के विषय में यह मान्यता है, कि जो व्यक्ति इस स्थल का पानी पी लेता है। उसके लिये भगवान शिव के बनाये स्वर्ग में प्रवेश मिल जाता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान ब्रह्मा जी ने मानसरोवर का निर्माण स्वयं किया था। माता के 51 शक्तिपीठों के अनुसार, इस स्थान पर माता सती का एक हाथ गिरा था। जिसके बाद ही यह झील बनी है। तभी से यह स्थान मात के 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।
कैलाश मानसरोवर मंदिर समुद्र स्थल से 4 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इतनी ऊंचाई पर होने के कारण यहां के गौरी नामक कुण्ड में सदैव बर्फ जमी रहती है। इस मंदिर के दर्शनों को आने वाले तीर्थयात्री इस बर्फ को हटाकर इस कुंड में स्नान करना विशेष रुप से शुभ मानते है। यहां भगवान शिव बर्फ के शिवलिंग के रुप में विराजित है। इस स्थान से भारत में जाने वाली कई महत्वपूर्ण नदियां निकलती है। कैलाश मानसरोवर के जल का पानी पीकर, गौरी कुण्ड में स्थान अवश्य किया जाता है।
कैलाश मानसरोवर मंदिर समुद्र स्थल से 4 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इतनी ऊंचाई पर होने के कारण यहां के गौरी नामक कुण्ड में सदैव बर्फ जमी रहती है। इस मंदिर के दर्शनों को आने वाले तीर्थयात्री इस बर्फ को हटाकर इस कुंड में स्नान करना विशेष रुप से शुभ मानते है। यहां भगवान शिव बर्फ के शिवलिंग के रुप में विराजित है। इस स्थान से भारत में जाने वाली कई महत्वपूर्ण नदियां निकलती है। कैलाश मानसरोवर के जल का पानी पीकर, गौरी कुण्ड में स्थान अवश्य किया जाता है।
इस धार्मिक स्थल की यात्रा करने वाले यात्रियों में न केवल हिन्दू धर्म के श्रद्वालु आते है, बल्कि यहां पर बौद्ध व अन्य धर्म के व्यक्ति भी कैलाश मानसरोवर में स्थित भगवान शिव के दर्शनों के लिये आते है, और पुन्य कमा कर जाते है। इसी स्थान पर एक ताल है, जो राक्षस ताल के नाम से विख्यात है। इस ताल से जुड़ी एक पौराणिक कथा प्रचलित है, कि यहां पर रावण ने भगवान शिव की आराधना की थी। रावण राक्षस कुल के थें, इसी कारण इस ताल का नाम "राक्षस ताल" पड़ा है।
कैलाश मानसरोवर के विषय में कहा जाता है, कि देव ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना इसी स्थान पर की थी। यहां पर गंगा नदी कैलाश पर्वत से निकलते हुए चार नदियों का रूप लेती है। जिससे उसके चार नाम हो जाते है। मानसरोवर की यात्रा का दृश्य बड़ा ही मनोरम है। यहां पर प्रकृति का रंग गहरा नीला और बेहद बर्फीला हो जाता है। कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने वाले श्रद्धालु यहां आकर कैलाश जी की परिक्रमा अवश्य करते है। कैलाश की परिक्रमा करने के बाद मानसरोवर की परिक्रमा की जाती है। यहां के सौन्दर्य को देख कर सभी को इस तथ्य पर विश्वास हो गया कि इस स्थान को ब्रह्माण्ड का मध्य स्थान क्यों कहा जाता है।
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