करवा चौथ (Karwa Chauth)



करवा चौथ की पौराणिक कथा के अनुसार एक समय की बात है, जब नीलगिरी पर्वत पर पांडव पुत्र अर्जुन तपस्या करने गए। तब किसी कारणवश उन्हें वहीं रूकना पड़ा। उन्हीं दिनों पांडवों पर गहरा संकट आ पड़ा। तब चिंतित व शोकाकुल द्रौपदी ने भगवान श्रीकृष्ण का ध्यान किया तथा कृष्ण के दर्शन होने पर पांडवों के कष्टों के निवारण हेतु उपाय पूछा।
करवा चौथ (Karwa Chauth)

तब कृष्ण बोले- हे द्रौपदी! मैं तुम्हारी चिंता एवं संकट का कारण जानता हूं। उसके लिए तुम्हें एक उपाय करना होगा। जल्दी ही कार्तिक माह की कृष्ण चतुर्थी आने वाली है, उस दिन तुम पूरे मन से करवा चौथ का व्रत रखना। भगवान शिव, गणेश एवं पार्वती की उपासना करना, तुम्हारे सारे कष्ट दूर हो जाएंगे तथा सब कुछ ठीक हो जाएगा।
कृष्ण की आज्ञा का पालन कर द्रोपदी ने वैसा ही करवा चौथ का व्रत किया। तब उसे शीघ्र ही अपने पति के दर्शन हुए और उसकी सारी चिंताएं दूर हो गईं।
जब मां पार्वती द्वारा भगवान शिव से पति की दीर्घायु एवं सुख-संपत्ति की कामना की विधि पूछी तब शिव ने 'करवा चौथ व्रत’ रखने की कथा सुनाई थी। करवा चौथ का व्रत करने के लिए श्रीकृष्ण ने द्रौपदी को निम्न कथा का उल्लेख किया था।
पुराणों के अनुसार करवा नाम की एक पतिव्रता धोबिन अपने पति के साथ तुंगभद्रा नदी के किनारे स्थित गांव में रहती थी। उसका पति बूढ़ा और निर्बल था। एक दिन जब वह नदी के किनारे कपड़े धो रहा था तभी अचानक एक मगरमच्छ वहां आया, और धोबी के पैर अपने दांतों में दबाकर यमलोक की ओर ले जाने लगा। वृद्ध पति यह देख घबराया और जब उससे कुछ कहते नहीं बना तो वह करवा..! करवा..! कहकर अपनी पत्नी को पुकारने लगा।
पति की पुकार सुनकर धोबिन करवा वहां पहुंची, तो मगरमच्छ उसके पति को यमलोक पहुंचाने ही वाला था। तब करवा ने मगर को कच्चे धागे से बांध दिया और मगरमच्छ को लेकर यमराज के द्वार पहुंची। उसने यमराज से अपने पति की रक्षा करने की गुहार लगाई और साथ ही यह भी कहा कि मगरमच्छ को उसके इस कार्य के लिए कठिन से कठिन दंड देने का आग्रह किया और बोली- हे भगवन्! मगरमच्छ ने मेरे पति के पैर पकड़ लिए है। आप मगरमच्छ को इस अपराध के दंड-स्वरूप नरक भेज दें।
करवा की पुकार सुन यमराज ने कहा- अभी मगर की आयु शेष है, मैं उसे अभी यमलोक नहीं भेज सकता। इस पर करवा ने कहा- अगर आपने मेरे पति को बचाने में मेरी सहायता नहीं कि तो मैं आपको श्राप दूंगी और नष्ट कर दूँगी।
करवा का साहस देख यमराज भी डर गए और मगर को यमपुरी भेज दिया। साथ ही करवा के पति को दीर्घायु होने का वरदान दिया। तब से कार्तिक कृष्ण की चतुर्थी को करवा चौथ व्रत का प्रचलन में आया। जिसे इस आधुनिक युग में भी महिलाएं अपने पूरे भक्ति भाव के साथ करती है और भगवान से अपने पति की लंबी उम्र की कामना करती हैं।


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अध्धयन के लिए दिशा विचार



पढ़ाई की दिशा उत्तर-पूर्व


वर्तमान युग प्रतियोगिता का है यहाँ छोटी से छोटी कक्षा से लेकर बड़े से बड़े व्यावसायिक पाठ्यक्रमों में कड़ी प्रतिस्पर्धा है। पढ़ाई और मेहनत तो सभी करते हैं लेकिन पढ़ाई में यदि हम उचित दिशा का ज्ञान भी शामिल कर लें तो बेहतर परिणाम मिल सकते हैं पर बच्चों को पढ़ाई के लिए बैठते समय हम इस महत्वपूर्ण बात को भूल ही जाते हैं कि उसे किस दिशा की ओर मुँह कर के पढ़ने बैठाना है। साथ ही यह भी ध्यान रखना चाहिए कि पढ़ाई का स्थान कहाँ होना चाहिए जिससे पढ़ाई सुचारु रुप से व निर्विघ्न संपन्न हो और परीक्षा में उत्तम से उत्तम परिणाम आए।
जो युवक-युवतियाँ पश्चिम की ओर मुँह कर के पढ़ते हैं, देखा गया है कि उनका पढ़ाई में मन नहीं लगता। यदि वे पढ़ते भी हैं तो उत्तम परिणाम नहीं मिल पाते। पश्चिम दिशा ढलती हुई शाम की तरह चेतना में सुस्तपन को विकसित करती है। दक्षिण दिशा भी पढ़ाई हेतु उपयुक्त नहीं रहती, क्योंकि यह दिशा हमेशा निराशा का संचार कराती है। मन बेचैन रहता है, पढ़ने में भी मन नहीं लगता। परिणाम तो वे लोग भलीभाँति जानते होंगे जो दक्षिण ओर मुँह करके पढ़ते हैं।
उचित प्रकाश में ठंडे पानी से हाथ-मुंह धो कर जहाँ तक हो सके खुशबूदार अगरबत्ती लगाकर उत्तर की ओर मुंह करके पढ़ने से एक तो पढ़ाई के क्षेत्र में उन्नति होती है वहीं पढ़ा हुआ भी याद रहता है। और फिर परिणाम तो उत्तम ही रहेंगे। यदि सदा ही पूर्व दिशा की ओर मुँह करके पढ़ाई की जाए तो सदैव उत्तम परिणाम के साथ-साथ आगे बढ़ने के अवसर भी आते हैं।
पूर्व दिशा से ही नई चेतना व स्फूर्ति का संचार होता है और सूर्योदय इसी दिशा में होने के कारण सूर्य की तरह उन्नति पाने के योग बनते हैं। साथ ही उत्तर दिशा शीतलता भी प्रदान करती है और हम जानते ही हैं कि पढ़ाई के लिए दिमाग ठंडा होना आवश्यक है। जब मन स्थिर होगा तो पढ़ाई में अच्छी तरह से ध्यान केंद्रित होगा। इस प्रकार हम अध्ययन के लिए बैठक व्यवस्था उत्तर-पूर्व की ओर रखें तो निश्चित ही उत्तम परिणाम पाएँगे और हमारी मेहनत भी रंग लाएगी।


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श्री जगन्नाथ जी की आरती




आरती श्री जगन्नाथ मंगलकारी,
परसत चरणारविन्द आपदा हरी।
निरखत मुखारविंद आपदा हरी,
कंचन धूप ध्यान ज्योति जगमगी।
अग्नि कुण्डल घृत पाव सथरी। आरती..
देवन द्वारे ठाड़े रोहिणी खड़ी,
मारकण्डे श्वेत गंगा आन करी।
गरुड़ खम्भ सिंह पौर यात्री जुड़ी,
यात्री की भीड़ बहुत बेंत की छड़ी। आरती ..
धन्य-धन्य सूर श्याम आज की घड़ी। आरती ..




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श्री कृष्ण की आरती



KRISHNASTU BHAGWAN SAWAM

आरती कुंज विहारी की। श्रीगिरधर कृष्णमुरारी की।
गले में बैजंतीमाला, बजावै मुरली मधुर वाला।
श्रवन में कुण्डल झलकाला, नंद के आनंद नंदलाला। श्री गिरधर ..
गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली,
लतन में ठाढ़े बनमाली।
भ्रमर सी अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सो झलक,
ललित छवि स्यामा प्यारी की। श्री गिरधर ..
कनकमय मोर-मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसे,
गगन सो सुमन राशि बरसै,
बजे मुरचंग, मधुर मिरदंग, ग्वालनी संग,
अतुल रति गोपकुमारी की। श्री गिरधर ..
जहां ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणि श्रीगंगा,
स्मरन ते होत मोह-भंगा,
बसी शिव सीस, जटा के बीच, हरै अध कीच,
वरन छवि श्रीबनवारीकी। श्री गिरधर ..
चमकती उ"वल तट रेनू, बज रही वृन्दावन बेनू,
चहूं दिसि गोपी ग्वाल धेनू,
हँसत मृदु नँद, चाँदनी चंद, कटत भव-फंद,
टेर सुनु दीन भिखारी की। श्री गिरधर ..
आरती कुंज बिहारी की। श्री गिरधर कृष्ण मुरारी की।


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श्री गणेश चालिसा (Shri Ganesh Chalisa)




जय गणपति सदगुण सदन,
कविवर बदन कृपाल,
विघ्न हरण मंगल करन,
जय जय गिरिजालाल

जय जय जय गणपति गणराजू,
मंगल भरण करण शुभः काजू,
जय गजबदन सदन सुखदाता,
विश्व विनायका बुद्धि विधाता

वक्रतुंडा शुची शुन्दा सुहावना,
तिलका त्रिपुन्दा भाल मन भावन,
राजता मणि मुक्ताना उर माला,
स्वर्ण मुकुता शिरा नयन विशाला

पुस्तक पानी कुथार त्रिशूलं,
मोदक भोग सुगन्धित फूलं,
सुन्दर पीताम्बर तन साजित,
चरण पादुका मुनि मन राजित

धनि शिव सुवन शादानना भ्राता,
गौरी लालन विश्व-विख्याता,
रिद्धि सिद्धि तव चंवर सुधारे,
मूषका वाहन सोहत द्वारे

कहूं जन्मा शुभ कथा तुम्हारी,
अति शुची पावन मंगलकारी,
एक समय गिरिराज कुमारी,
पुत्र हेतु तप कीन्हा भारी

भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा,
तब पहुँच्यो तुम धरी द्विजा रूपा,
अतिथि जानी के गौरी सुखारी,
बहु विधि सेवा करी तुम्हारी

अति प्रसन्ना हवाई तुम वरा दीन्हा,
मातु पुत्र हित जो टाप कीन्हा,
मिलही पुत्र तुही, बुद्धि विशाला,
बिना गर्भा धारण यही काला

गणनायक गुण ज्ञान निधाना,
पूजित प्रथम रूप भगवाना,
असा कही अंतर्ध्याना रूप हवाई,
पालना पर बालक स्वरूप हवाई

बनिशिशुरुदंजबहितुम थाना,
लखी मुख सुख नहीं गौरी समाना,
सकल मगन सुखा मंगल गावहीं,
नाभा ते सुरन सुमन वर्शावाहीं

शम्भू उमा बहुदान लुतावाहीं,
सुरा मुनिजन सुत देखन आवहिं,
लखी अति आनंद मंगल साजा,
देखन भी आए शनि राजा

निज अवगुण गाणी शनि मन माहीं,
बालक देखन चाहत नाहीं,
गिरिजा कछु मन भेद बढायो,
उत्सव मोरा न शनि तुही भायो

कहना लगे शनि मन सकुचाई,
का करिहौ शिशु मोहि दिखायी,
नहीं विश्वास उमा उर भयू,
शनि सों बालक देखन कह्यौ

पदताहीं शनि द्रिगाकोना प्रकाशा,
बालक सिरा उडी गयो आकाशा,
गिरजा गिरी विकला हवाई धरणी,
सो दुख दशा गयो नहीं वरनी


हाहाकार मच्यो कैलाशा,
शनि कीन्हों लखी सुत को नाशा,
तुरत गरुडा चढी विष्णु सिधाए,
काटी चक्र सो गजशिरा लाये

बालक के धड़ ऊपर धारयो,
प्राण मंत्र पढ़ी शंकर दारयो,
नाम’गणेशा’शम्भुताबकीन्हे,
प्रथम पूज्य बुद्धि निधि वर दीन्हे

बुद्धि परीक्षा जब शिव कीन्हा,
पृथ्वी कर प्रदक्षिना लीन्हा,
चले शदानना भरमि भुलाई,
रचे बैठी तुम बुद्धि उपाई

चरण मातु-पितु के धारा लीन्हें,
तिनके सात प्रदक्षिना कीन्हें
धनि गणेशा कही शिव हिये हरष्यो,
नाभा ते सुरन सुमन बहु बरसे

तुम्हारी महिमा बुद्धि बढाई,
शेष सहसा मुख सके न गई,
मैं मति हीन मलीना दुखारी,
करहूँ कौन विधि विनय तुम्हारी

भजता ‘रामसुन्दर’ प्रभुदासा,
जगा प्रयागा ककरा दुर्वासा,
अब प्रभु दया दीना पर कीजै,
अपनी भक्ति शक्ति कुछा दीजै

ll दोहा ll
श्री गणेशा यह चालीसा, पाठा कर्रे धरा ध्यान l
नीता नव मंगल ग्रह बसे, लहे जगत सनमाना ll
सम्बन्ध अपना सहस्र दश, ऋषि पंचमी दिनेशा l
पूर्ण चालीसा भयो, मंगला मूर्ती गणेशा ll



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