जब श्रीराम ने किया हनुमान जी के अहंकार का नाश



अहंकार का नाश
यह कथा उस समय की है जब लंका जाने के लिए भगवान श्रीराम ने सेतु निर्माण के पूर्व समुद्र तट पर शिवलिंग स्थापित किया था। वहाँ हनुमानजी को स्वयं पर अभिमान हो गया तब भगवान राम ने उनके अहम का नाश किया। यह कथा इस प्रकार है-
जब समुद्र पर सेतु बंधन का कार्य हो रहा था तब भगवान राम ने वहाँ गणेश जी और नौ ग्रहों की स्थापना के पश्चात शिवलिंग स्थापित करने का विचार किया। उन्होंने शुभ मुहूर्त में शिवलिंग लाने के लिए हनुमान जी को काशी भेजा। हनुमानजी पवन वेग से काशी जा पहुंचे। उन्हें देख भोलेनाथ बोले- “पवन पुत्र!” दक्षिण में शिवलिंग की स्थापना करके भगवान राम मेरी ही इच्छा पूर्ण कर रहे हैं क्योंकि महर्षि अगस्त्य विन्ध्याचल पर्वत को झुकाकर वहाँ प्रस्थान तो कर गए लेकिन वे मेरी प्रतीक्षा में हैं। इसलिए मुझे भी वहाँ जाना था। तुम शीघ्र ही मेरे प्रतीक को वहाँ ले जाओ। यह बात सुनकर हनुमान गर्व से फूल गए और सोचने लगे कि केवल वे ही यह कार्य शीघ्र-अति शीघ्र कर सकते हैं।
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यहाँ हनुमानजी को अभिमान हुआ और वहाँ भगवान राम ने उनके मन के भाव को जान लिया। भक्त के कल्याण के लिए भगवान सदैव तत्पर रहते हैं। हनुमान भी अहंकार के पाश में बंध गए थे। अतः भगवान राम ने उन पर कृपा करने का निश्चय कर उसी समय वारनराज सुग्रीव को बुलाया और कहा-“हे कपिश्रेष्ठ! शुभ मुहूर्त समाप्त होने वाला है और अभी तक हनुमान नहीं पहुँचे। इसलिए मैं बालू का शिवलिंग बनाकर उसे यहाँ स्थापित कर देता हूँ।”
तत्पश्चात उन्होंने सभी ऋषि-मुनियों से आज्ञा प्राप्त करके पूजा-अर्चनादि की और बालू का शिवलिंग स्थापित कर दिया। ऋषि-मुनियों को दक्षिणा देने के लिए श्रीराम ने कौस्तुम मणि का स्मरण किया तो वह मणि उनके समक्ष उपस्थित हो गई। भगवान श्रीराम ने उसे गले में धारण किया। मणि के प्रभाव से देखते-ही-देखते वहाँ दान-दक्षिणा के लिए धन, अन्न, वस्त्र आदि एकत्रित हो गए। उन्होंने ऋषि-मुनियों को भेंटें दीं। फिर ऋषि-मुनि वहाँ से चले गए।
मार्ग में हनुमान जी से उनकी भेंट हुई। हनुमानजी ने पूछा कि वे कहाँ से पधार रहे हैं? उन्होंने सारी घटना बता दी। यह सुनकर हनुमानजी को क्रोध आ गया। वे पलक झपकते ही श्रीराम के समक्ष उपस्थिति हुए और रुष्ट स्वर में बोले-“भगवन! यदि आपको बालू का ही शिवलिंग स्थापित करना था तो मुझे काशी किस लिए भेजा था? आपने मेरा और मेरे भक्तिभाव का उपहास किया है।”
श्रीराम मुस्कराते हुए बोले-“पवन पुत्र! शुभ मुहूर्त समाप्त हो रहा था, इसलिए मैंने बालू का शिवलिंग स्थापित कर दिया। मैं तुम्हारा परिश्रम व्यर्थ नहीं जाने दूँगा। मैंने जो शिवलिंग स्थापित किया है तुम उसे उखाड़ दो, मैं तुम्हारे लाए हुए शिवलिंग को यहां स्थापित कर देता हूँ।” हनुमान प्रसन्न होकर बोले-“ठीक है भगवन! मैं अभी इस शिवलिंग को उखाड़ फेंकता हूँ।”
उन्होंने शिवलिंग को उखाड़ने का प्रयास किया, लेकिन पूरी शक्ति लगाकर भी वे उसे हिला तक न सके। तब उन्होंने उसे अपनी पूंछ से लपेटा और उखाड़ने का प्रयास किया। किंतु वह नहीं उखड़ा। अब हनुमान को स्वयं पर पश्चात्ताप होने लगा। उनका अहंकार चूर हो गया था और वे श्रीराम के चरणों में गिरकर क्षमा माँगने लगे।
इस प्रकार हनुमान ने अहम का नाश हुआ। श्रीराम ने जहां बालू का शिवलिंग स्थापित किया था उसके उत्तर दिशा की ओर हनुमान द्वारा लाए शिवलिंग को स्थापित करते हुए कहा कि ‘इस शिवलिंग की पूजा-अर्चना करने के बाद मेरे द्वारा स्थापित शिवलिंग की पूजा करने पर ही भक्तजन पुण्य प्राप्त करेंगे।’ यह शिवलिंग आज भी रामेश्वरम में स्थापित है और भारत का एक प्रसिद्ध तीर्थ है।
साभारः वेदों की कथाएं, डायमंड प्रकाशन

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फटी एड़ियों का घरेलू उपाय Fati Adiyo Ka Gharelu Upay



Home Remedies for Cracked Heels
फटी एड़ियों को नरम बनाने के लिए कुछ ख़ास देखभाल की जरूरत है। लापरवाही वश कई बार एड़ियों मई हद से ज्यादा दरारे पद जाती है की उन से खून निकलने लगता है। ऐसी हालत मई दर्द के मारे चलने मई बहुत कठिन होता है । फटी एड़ियों के उपचार जान ने से पहले इनके फटने का कारण जानना आवश्यक है। लोग अपने चेहरे का ख्याल रखने के लिए तो कई तरह के जतन करते हैं लेकिन अपने पैरो का ख्याल नहीं रखते। इस कारण एड़ियों की त्वचा डेड हो जाती है। तेज गर्मी, तेज ठंड, धूल, मिट़टी, खून की कमी, शरीर में खुश्की बढऩे और नंगे पैर चलने से हमरे पैर की एड़ियां फट जाती हैं। कभी-कभी खानपान में कमी और विटामिन ई की कमी और आयरन की पर्याप्त मात्र न लेने से एड़ियां फट जाती हैं। एड़ियों की देखभाल न की जाए तो इनमे बहुत दर्द होता है और दरार आने के बाद उसमें से खून निकलना शुरू हो जाता है। आपको चलने में भी बहुत परेशानी हो सकती है। इसे ठीक करने के लिए बाजार में अनेक क्रीम और दवाइयां मिलती है। कुछ घरेलु तरीके भी हैं जिन्हें अपनाकर फटी एडिय़ां ठीक की जा सकती है।

एड़ियों के फटने के कारण
  • पैर साफ़ ना रखने से एड़ियाँ फट जाती और पैर फट जाते है। सामान्य स्त्रियाँ घर के कामों मे मशगूल होने के कारण जल्दी से जल्दी स्नान करती है जिस से वो अपने पैर भली भांति धोना भूल जाती हैं और पैर पर मेल इकट्ठा होने के कारण एड़ियाँ फट जाती है।
  • शरीर मई कैल्शियम की कमी के कारण भी एड़ियाँ फट जाती हैं।
  • नंगे पैर चलने से एड़ियों में धुल जम जाती है जिस से एड़ियाँ फट जाती हैं।
शरीर मे खुश्की होने के कारण भी एड़ियों मे दरार आ जाती है।
ज्यादा तर स्त्रियाँ अधिकतर पानी में काम करती हैं और पानी भी एक प्रमुख कारण है जिस से एड़ियाँ फट सकती हैं।
कैसे फटी हुई एड़ियों को ठीक करें
रोज़ रात को 1 चमच नींबू का रस, 1 चमच गुलाब जल व 1 चमच अरंडी के तेल को एक साथ मिला कर इनका मिश्रण बना लीजिये फिर उस से अपनी एड़ियों पे लगा कर मालिश करने से एड़ियों के फटने से छुटकारा मिलेगा।
1 चमच शुद्ध मोम व एक चमच शुद्ध घी लेकर गरम करें। जब दोनों घुल जायें तब आंच से उतार कर उनकी एक एक बूँद एड़ियों की दरारों मई लगायें। इस से काफी आराम मिलेगा आपको एंड इस प्रयोग को तब तक दोहराते रहे जब तक आपको आराम न मिल जाये।
आधा टब पानी में नमक मिला कर अपने पैर पाँच मिनट तक उसमें डूबा कर रखें । फिर उसे अच्छी तरह से धो लीजिये फिर उसे अच्छे से सुखा कर उसपे जैतून का तेल लगा लीजिये । इस प्रयोग को करने से काफी राहत मिलेगी आपको।

फटी एड़ियों का अन्य घरेलू उपाय – Fati Adiyo Ka Any Gharelu Upay
  1. शहद (Honey) का इस्तेमाल कर करें एड़ियां (Fati Adiya) दुरुस्त - फटी एड़ी (Fati Adi) ठीक करने के लिए शहद को अच्छा माना जाता है। आधा कप शहद में पानी मिलाकर करीब 20 मिनट तक उसमे अपनी पैरो की एड़ियों को डुबोकर रखें। 20 मिनट बाद पैरों को निकाल लें और साफ तौलिये से पोंछ लें।
  2. नारियल के तेल का प्रयोग – Coconut Oil - नारियल के तेल को हल्का गर्म कर रात को सोने से पहले एड़ियों (Ediyon) पर लगाएं। सर्दियां हैं तो सॉक्स पहन कर सो जाए। सुबह उठकर पैरों को पानी से धोए। 10-15 दिन तक करे एड़ियां मुलायम होने लगेगी।
  3. सरसों का तेल भी लाभकारी – Mustard Oil -  नहाते समय पैर की एड़ियों को अच्छी तरह सफाई करें। सरसों के तेल से मालिश करने ये एड़ियों का फटना कुछ दिनों में कम होने लगेगा।
  4. चीनी और जैतून के तेल का प्रयोग – Cinnamon & Olive Oil - चीनी और जैतून के तेल का मिश्रण तैयार कर लें। इस मिश्रण को स्क्रब से पैरो में रब करे। थोड़ी देर के बाद पैरों को धो लें। साफ तौलिये से पैरो को पोछ लें। ऑलिव ऑयल या जैतून के तेल का इस्तेमाल करने से पैर कोमल और मुलायम हो जाते हैं। सबसे पहले अपने हाथों पर तेल लेकर अपने पैरों की अच्छे से मसाज करने के बाद आधे घंटे तक इसे ऐसे ही छोड़ दें। बाद में पानी से अपने पैर धो लें।
  5. ग्लिसरीन और गुलाब जल भी फायदेमंद – Glycerin & Rose Water - अगर एड़ियां (Fati Adiya) अधिक फटी हैं तो ग्लिसरीन और गुलाब जल एक सरल उपाय है। इससे फटी एड़ियों को नमी मिलती है और वे कोमल रहती हैं। एक-चौथाई ग्लिसरीन में तीन-चौथाई गुलाब जल मिलाकर मिश्रण तैयार करें। इस मिश्रण को फटी एड़ियों परं लगाएं। कुछ देर तक लगाए रखने के बाद गुनगुने पानी से धो लें।
  6. त्रिफला चूर्ण प्रयोग कर पाएं राहत – Triphala Powder - त्रिफला चूर्ण को खाने के तेल में डालकर मिला लें और इसका गाढ़ा पेस्ट बना लें। इस पेस्ट को रोजाना रात को सोते समय एड़ियों (Ediyon) में लगाएं। कुछ दिनों तक इस पेस्ट को ऐसे ही लगाते रहें। इस पेस्ट को लगाने से फटी एड़ियां ठीक होने लगेगी।
  7. पपीते के छिलके भी गुणकारी – Papaya - पपीते को छीलकर इसके छीलको को पहले सुखा लें। इसके बाद छिलकों को पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में थोड़ी ग्लिसरीन मिलाएं। इस मिश्रण को दिन में दो बार फटी एड़ियों (Cracked Heels) में लगाने से फटी एड़िया जल्दी ठीक हो जाएंगी।
  8. देसी घी और नमक – Clarified Butter & Salt - देसी घी और नमक को मिलाकर मिश्रण तैयार करें। इस मिश्रण को फटी एड़ियों पर लगाएं। जल्दी ही फटी एड़ियां (Fati Adiya – Cracked Heels) ठीक हो जाएंगी और पैरों की त्वचा कोमल बनेगी। 
  9. गेंदे के पत्ते का पेस्ट भी लाभकारी – Leaves of Marigold Flowers -  गेंदे के पत्तों को लेकर उन्हें पीस लें। गेंदे के पत्तों का रस निकाल लें। इस रस में थोड़ी वैसलीन मिलाकर अच्छी तरह मिला लें। इस मिश्रण को फटी एड़ियों (Fati Ediyon) पर लगाएं। जल्दी ही एड़ियां ठीक हो जाएंगी।
  10. पैर पर लगाएं गुनगुना मोम – Hot Wax - मोम के प्रयोग से भी फटी एड़ियों को ठीक किया जा सकता है। सोने से पहले पैरो को गर्म पानी से धो लें। अब पैरो में गुनगुना मोम लगाएं। इससे पैरों की फटी एड़ियों को ठीक करने में मदद मिलती है।
  11. स्क्रबिंग बड़े काम की – Scrubbing - अगर आपकी एड़ियां फटी हुई हैं तो स्क्रबिंग की मदद से फटी और बेजान एड़ियों को ठीक किया जा सकता है। इससे आपकी एड़ियां बड़ी आसानी से मुलायम हो जाती हैं। स्क्रबिंग से आपके डेड स्किन हट जाते हैं और एड़ियां खूबसूरत दिखने लगती है। स्क्रबिंग से पहले आप अपने पैर को थोड़ी देर के लिए गुनगुने पानी में डुबोकर रखें। गुनगुने पानी में थोड़ा नमक अवश्य मिलाएं। इससे पैरों का दर्द एकदम छूमंतर हो जाएगा।
  12. ओट और जोजोबा ऑयल – Oat & Jojoba Oil - ओट मिल से हमारी से हमारी त्वचा में निखार आता है। इसी तरह जोजोबा ऑयल मॉइश्चर करने के काम आता है। ओटमील का पाउडर और जोजोबा ऑयल को मिलाकर एक पेस्ट बनाएं और इसे अपनी फटी एड़ियों पर इस्तेमाल करें। फिर गुनगुने पानी के साथ अपने पांव धो लें। नियमित इस्तेमाल से एड़ियां सुंदर हो जाएंगी।


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॥ श्री रामाष्टकः ॥ (Shree Ramashtak)



Ramashtakam


श्री रामाष्टकः
हे रामा पुरुषोत्तमा नरहरे नारायणा केशव ।
गोविन्दा गरुड़ध्वजा गुणनिधे दामोदरा माधवा ।।

हे कृष्ण कमलापते यदुपते सीतापते श्रीपते ।
बैकुण्ठाधिपते चराचरपते लक्ष्मीपते पाहिमाम् ।।

आदौ रामतपोवनादि गमनं हत्वा मृगं कांचनम् ।
वैदेही हरणं जटायु मरणं सुग्रीव सम्भाषणम् ।।

बालीनिर्दलनं समुद्रतरणं लंकापुरीदाहनम् ।
पश्चाद्रावण कुम्भकर्णहननं एतद्घि रामायणम् ।।


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डाकू रत्नाकर से महर्षि वाल्मीकि (Maharishi Valmiki)





इंसान की अगर इच्छा शक्ति उसके साथ हो तो वह कोई भी काम बड़े आराम से कर सकता है। इच्छा शक्ति और दृढ़ संकल्प इंसान को रंक से राजा बना देती है और एक अज्ञानी को महान ज्ञानी। भारतीय इतिहास में आदि कवि महर्षि वाल्मीकि जी की जीवन कथा भी हमें दृढ़ संकल्प और मजबूत इच्छा शक्ति अर्जित करने की तरफ अग्रसर करती है। कभी रत्नाकर के नाम से चोरी और लूटपाट करने वाले वाल्मीकि जी ने अपने संकल्प से खुद को आदि कवि के स्थान तक पहुंचाया और “वाल्मीकि रामायण” के रचयिता बने। आइए आज इन महान कवि की जीवन यात्रा पर एक नजर डालें।

दस्यु (डाकू) रत्नाकर से महर्षि वाल्मीकि(Maharishi Valmiki)
पौराणिक कथा के अनुसार प्राचीन समय में एक रत्नाकर नाम का दस्यु था जो अपने इलाके से आने-जाने वाले यात्रियों को लूटकर अपने परिवार का भरण पोषण करता था। एक बार नारद मुनि भी इस दस्यु के शिकार बने। जब रत्नाकर ने उन्हें मारने का प्रयत्न किया तो नारद जी ने पूछा – तुम यह अपराध क्यों करते हो?
रत्नाकर: अपने परिवार के भरण-पोषण के लिए? नारद मुनि: अच्छा तो क्या जिस परिवार के लिए तुम यह अपराध करते हो वह तुम्हारे पापों का भागीदार बनने को तैयार है ?
इसको सुनकर रत्नाकर ने नारद मुनि को पेड़ से बांध दिया और प्रश्न का उत्तर जानने के लिए अपने घर चला गया। घर जाकर उसने अपने परिवार वालों से यह सवाल किया लेकिन उसे यह जानकर आश्चर्य हुआ कि कोई भी उसके पाप में भागीदार नहीं बनना चाहता।

घर से लौटकर उसने नारद जी को स्वतंत्र कर दिया और अपने पापों का प्रायश्चित करने की मंशा जाहिर की। इस पर नारद जी ने उसे धैर्य बँधाया और राम नाम जप करने का उपदेश दिया। लेकिन भूल वश वाल्मीकि राम-राम की जगह ‘मरा-मरा’ का जप करते हुए तपस्या में लीन हो गए। इसी तपस्या के फलस्वरूप ही वह वाल्मीकि के नाम से प्रसिद्ध हुए और रामायण की महान रचना की।

संस्कृत का पहला श्लोक
महर्षि वाल्मीकि के जीवन से जुड़ी एक और घटना है जिसका वर्णन अत्यंत आवश्यक है। एक बार महर्षि वाल्मीकि एक क्रौंच पक्षी के जोड़े को निहार रहे थे। वह जोड़ा प्रेम करने में लीन था। पक्षियों को देखकर महर्षि वाल्मीकि न केवल अत्यंत प्रसन्न हुए, बल्कि सृष्टि की इस अनुपम कृति की प्रशंसा भी की। इतने में एक पक्षी को एक बाण आ लगा, जिससे उसकी जीवन -लीला तुरंत समाप्त हो गई। यह देख मुनि अत्यंत क्रोधित हुए और शिकारी को संस्कृत में कुछ श्लोक कहा। मुनि द्वारा बोला गया यह श्लोक ही संस्कृत भाषा का पहला श्लोक माना जाता है।

मां निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
यत्क्रौंचमिथुनादेकम् अवधीः काममोहितम्॥
(अरे बहेलिये, तूने काममोहित मैथुनरत क्रौंच पक्षी को मारा है।जा तुझे कभी भी प्रतिष्ठा की प्राप्ति नहीं हो पाएगी)

वाल्मीकि रामायण महर्षि वाल्मीकि ने ही संस्कृत में रामायण की रचना की। उनके द्वारा रची रामायण वाल्मीकि रामायण कहलाई। रामायण एक महाकाव्य है जो कि श्रीराम के जीवन के माध्यम से हमें जीवन के सत्य से, कर्तव्य से, परिचित करवाता है। वाल्मीकि रामायण में भगवान राम को एक साधारण मानव के रूप में प्रस्तुत किया गया है। एक ऐसा मानव, जिन्होंने संपूर्ण मानव जाति के समक्ष एक आदर्श उपस्थित किया। रामायण प्राचीन भारत का सबसे महत्वपूर्ण ग्रंथ है।


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बिल्वपत्र का महत्व एवं प्रयोग



बिल्व (बेल) पत्र का महत्व एवं प्रयोग
Bael (Aegle marmelos), also known as Bengal quince, golden apple, stone apple, wood apple, bili.


बिल्व (बेल )पत्र

बिल्व (बेल ) फल

मान्यता है कि शिव को बिल्व-पत्र चढ़ाने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। दरअसल बिल्व-पत्र एक पेड़ की पत्तियां हैं, जो आमतौर पर तीन-तीन के समूह में मिलती हैं। कुछ पत्तियां पांच के समूह की भी होती हैं लेकिन ये बड़ी दुर्लभ होती हैं। बिल्व को बेल भी कहते हैं। वास्तव में ये बिल्व की पत्तियां एक औषधि है। इसके औषधीय प्रयोग से हमारे कई रोग दूर हो जाते हैं। बिल्व के पेड़ का भी विशिष्ट धार्मिक महत्व है। कहते हैं कि इस पेड़ को सींचने से सब तीर्थो का फल और शिवलोक की प्राप्ति होती है।

महादेव का रूप है वृक्ष.बिल्व वृक्ष का धार्मिक महत्व है। कारण यह महादेव का ही रूप है। धार्मिक परंपरा में ऐसी मान्यता है कि बिल्व के वृक्ष के मूल अर्थात जड़ में लिंगरूपी महादेव का वास रहता है। इसीलिए बिल्व के मूल में महादेव का पूजन किया जाता है। इसकी मूल यानी जड़ को सींचा जाता है। इसका धार्मिक महत्व है। धर्मग्रंथों में भी इसका उल्लेख है-
बिल्वमूले महादेवं लिंगरूपिणमव्ययम्।
य: पूजयति पुण्यात्मा स शिवं प्राप्नुयाद्॥
बिल्वमूले जलैर्यस्तु मूर्धानमभिषिञ्चति।
स सर्वतीर्थस्नात: स्यात्स एव भुवि पावन:॥
शिव पुराण १३/१४
अर्थ- बिल्व के मूल में लिंगरूपी अविनाशी महादेव का पूजन जो पुण्यात्मा व्यक्ति करता है, उसका कल्याण होता है। जो व्यक्ति शिवजी के ऊपर बिल्वमूल में जल चढ़ाता है उसे सब तीर्थो में स्नान का फल मिल जाता है।

बिल्व-पत्र तोड़ने का मंत्रबिल्व-पत्र को सोच-विचार कर ही तोड़ना चाहिए। पत्ते तोड़ने से पहले यह मंत्र बोलना चाहिए-
"अमृतोद्भव श्रीवृक्ष महादेवप्रिय: सदा।
गृह्णामि तव पत्राणि शिवपूजार्थमादरात् ॥"
अर्थ- अमृत से उत्पन्न सौंदर्य व ऐश्वर्यपूर्ण वृक्ष महादेव को हमेशा प्रिय है। भगवान शिव की पूजा के लिए हे वृक्ष में तुम्हारे पत्र तोड़ता हूं।


पत्तियां कब न तोड़ें - विशेष दिन या पर्वो के अवसर पर बिल्व के पेड़ से पत्तियां तोड़ना मना है। शास्त्रों के अनुसार इसकी पत्तियां इन दिनों में नहीं तोड़ना चाहिए-

सोमवार के दिन
चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी और अमावस्या की तिथियों को।
संक्रांति के पर्व पर।
अमारिक्तासु संक्रान्त्यामष्टम्यामिन्दुवासरे ।
बिल्वपत्रं न च छिन्द्याच्छिन्द्याच्चेन्नरकं व्रजेत ॥ - (लिंगपुराण)अर्थ - अमावस्या, संक्रान्ति के समय, चतुर्थी, अष्टमी, नवमी और चतुर्दशी तिथियों तथा सोमवार के दिन बिल्व-पत्र तोड़ना वर्जित है।


क्या चढ़ाया गया बिल्व-पत्र भी चढ़ा सकते हैं-शास्त्रों में विशेष दिनों पर बिल्वपत्र चढ़ाने से मना किया गया है तो यह भी कहा गया है कि इन दिनों में चढ़ाया गया बिल्व-पत्र धोकर पुन: चढ़ा सकते हैं।

अर्पितान्यपि बिल्वानि प्रक्षाल्यापि पुन: पुन:।
शंकरायार्पणीयानि न नवानि यदि चित्॥ (स्कन्दपुराण, आचारेन्दु)
अर्थ- अगर भगवान शिव को अर्पित करने के लिए नूतन बिल्व-पत्र न हो तो चढ़ाए गए पत्तों को बार-बार धोकर चढ़ा सकते हैं।

विभिन्न रोगों की कारगर दवा :बिल्व-पत्र-बिल्व का वृक्ष विभिन्न रोगों की कारगर दवा है। इसके पत्ते ही नहीं बल्कि विभिन्न अंग दवा के रूप में उपयोग किए जाते हैं। पीलिया, सूजन, कब्ज, अतिसार, शारीरिक दाह, हृदय की घबराहट, निद्रा, मानसिक तनाव, श्वेतप्रदर, रक्तप्रदर, आंखों के दर्द, रक्तविकार आदि रोगों में बिल्व के विभिन्न अंग उपयोगी होते हैं। इसके पत्तो को पानी से पकाकर उस पानी से किसी भी तरह के जख्म को धोकर उस पर ताजे पत्ते पीसकर बांध देने से वह शीघ्र ठीक हो जाता है।

पूजन में महत्व- वस्तुत: बिल्व पत्र हमारे लिए उपयोगी वनस्पति है। यह हमारे कष्टों को दूर करती है। भगवान शिव को चढ़ाने का भाव यह होता है कि जीवन में हम भी लोगों के संकट में काम आएं। दूसरों के दुःख के समय काम आने वाला व्यक्ति या वस्तु भगवान शिव को प्रिय है। सारी वनस्पतियां भगवान की कृपा से ही हमें मिली हैं अत: हमारे अंदर पेड़ों के प्रति सद्भावना होती है। यह भावना पेड़-पौधों की रक्षा व सुरक्षा के लिए स्वतः प्रेरित करती है।

पूजा में चढ़ाने का मंत्र- भगवान शिव की पूजा में बिल्वपत्र यह मंत्र बोलकर चढ़ाया जाता है। यह मंत्र बहुत पौराणिक है।
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम्।
त्रिजन्मपापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्॥
अर्थ- तीन गुण, तीन नेत्र, त्रिशूल धारण करने वाले और तीन जन्मों के पाप को संहार करने वाले हे शिवजी आपको त्रिदल बिल्व पत्र अर्पित करता हूं।


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