तनाव : समस्या और समाधान



तनाव क्या है?

तेज़ी से बदलते माहौल में हमारे शरीर और मन पर जो असर पड़ता है, उसे तनाव कहते है। तनाव दो तरह का होता है। पहला – अच्छा तनाव और दूसरा – बुरा तनाव। जहां अच्छे तनाव की वजह से आप अपनी नौकरी में प्रमोशन पाते है, वहीं बुरे तनाव में आप किसी से गुस्से में बहस कर लेते है।

परिवार, पैसा, काम और स्कूल - ये तनाव के सामान्य कारण है। ज्यादा तनाव आपकी सेहत के लिए नुकसानदायक होता है और इसकी वजह से आपके परिवार और दोस्तों से संबंध भी बिगड़ सकते है। कई बार जब लोग लगातार तनाव भरी परिस्थितियों से गुज़रते है, तो उनका गुस्से पर नियंत्रण नहीं रहता।

तनाव क्या है?

तनाव के लक्षण क्या हैं?

डॉक्टर से नियमित चेकअप कराएं। नीचे दिए लक्षण किसी और कारण से भी हो सकते है। खराब स्वास्थ्य भी आपके तनाव को बढ़ा सकता है।

  1. सिरदर्द व पीठदर्द
  2. नींद नआना
  3. गुस्सा और हताश होना
  4. किसी एक चीज़ पर ध्यान न लगा पाना
  5. रोना
  6. दूसरों को नज़रअंदाज़ करना
  7. पेट खराब होना या अल्सर होना
  8. रैशेज़ (लाल चकते होना)
  9. हायब्लडप्रेशर, हृदयरोग, स्ट्रोक

तनाव के लक्षण क्या हैं?

तनाव से कैसे निपटें?

  1. नियमित रूप से 20 से 30 मिनट शारीरिक व्यायाम (चलना, दौड़ना या उठना बैठना) करें। इससे आपके दिमाग को सोचने का वक्त मिलेगा। अगर आप तनाव भरे माहौल में काम करते है, तो दोपहर का खाना खाने के बाद या चाय के दौरान थोड़ा टहलें।
  2. मेडिटेशन कीजिए (ध्यान लगाइए) राहत भरा संगीत सुनिए। 10-20 मिनट तक आंखें बंद करके शांति का अनुभव कीजिए। गहरी सांस लीजिए। दिमाग को शांत करें, और तनाव भरी बातें दिमाग से निकाल दें।
  3. अख़बार पढ़िए या किसी से बात कीजिए। अपनी भावनाओं को कागज़ पर लिखने से, या किसी से बात करने पर आप ये जान पाएंगे कि आपके तनाव के कारण क्या है।
  4. ‘न’ कहना सीखें। जो ज़िम्मेदारियां और चीजें आप संभाल ना पाएं, उन्हें ना लें।

 

तनाव कम करना है तो छोड़ दें ये बुरी आदतें

  1. देर तक सोना तनाव की शुरुआत आपकी सुबह से ही हो सकती है अगर आप रोज देर से सोकर उठते हैं। डॉक्टर भी मानते हैं कि देर से उठने वाले लोगों का मेटाबॉलिज्म ठीक नहीं रहता है जिससे उन्हें थकान, तनाव और उदासीनता अधिक सताती है। शोधों में भी यह माना गया है कि देर से उठने वाले लोग अक्सर सुबह का नाश्ता छोड़ते हैं जिससे उनका बॉडी साइकिल गड़बड़ होता है और वे जल्द तनावग्रस्त होते हैं।
  2. घंटों टीवी देखना आपको तनाव और अवसाद की स्थिति तक पहुंचाने के लिए काफी है। बजाय घंटों तक टीवी देखने के आप अपना समय परिवार के साथ बिताएंगे या सैर करेंगे तो तनाव से कोसों दूर रहेंगे।
  3. धूम्रपान आपका तनाव बढ़ाती है। धूम्रपान से धड़कन तेज हो जाती है जिससे तनाव बढ़ता है।
  4. जरूरत से ज्यादा काम -ऑफिस में काम का दबाव तो हर किसी की जिंदगी में होता है लेकिन जो लोग काम और परिवार में काम का संतुलन नहीं बैठा पाते और रुटीन में काम के अलावा कुछ नया नहीं कर पाते हैं, उन्हें तनाव और अवसाद होना तो वाजिब ही है। ऑफिस के काम के अलावा भी बहुत कुछ है, अपने शगल को मरने न दें।
  5. गलत खानपान जुड़ी ये आदतें तनाव बढ़ाने और आपको कई रोगों का शिकार बनाने के लिए काफी हैं।
  6. तनाव की समस्या, समाधान क्या है
  7. तनाव के कारण शरीर असंतुलित हो जाता है, जिसके कारण बदहजमी और पेट दर्द की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
  8. मानसिक तनाव के कारण चेहरे की मांसपेशियों पर अनावश्यक दबाव पड़ता है, जिसके कारण त्वचा में झुर्रियों की समस्या उत्पन्न हो जाती है।
  9. तनाव रक्तचाप को बढ़ाता है जो हृदय रोग का कारण बनता है।
  10. तनावग्रस्त होने पर व्यक्ति को नींद न आने की समस्या हो जाती है, जो उसके स्वास्थ्य को हानि पहुंचाती है।
  11. तनाव सिरदर्द की समस्या को उत्पन्न करता है।
  12. तनाव व्यक्ति की भूख को समाप्त कर देता है, जिसके कारण व्यक्ति का स्वास्थ्य बिगड़ने लगता है।
  13. तनाव मुंहासों की समस्या को उत्पन्न करने में भूमिका निभाता है।अत्यधिक तनाव आयु को कम करता है।

तनाव कम करना है तो छोड़ दें ये बुरी आदतें

 तनाव कम करने के उपाय

  1. सूर्योदय से पहले उठें, घूमने जाएँ, हल्का व्यायाम या योग करें।
  2. आप रोज कम से कम 30 मिनट भी योग करें तो आप काफी हद तक तनाव पर काबू पा सकते हैं। इससे आप शारीरिक तौर तो फिट रहेंगे ही साथ ही आपको मानसिक शांति भी मिलेगी।
  3. प्रातःकाल व सोते समय 15 मिनट ईश्वर का ध्यान करें।
  4. अपने अंदर छुपी रूचि को विकसित करने का प्रयास करें और हमेशा सकारात्मक चिंतन करें क्योकि नकारात्मक सोच से ऊर्जा नष्ट होती है।
  5. उत्साह एवं आत्मविश्वास के साथ काम करें। व्यवस्थित दिनचर्या की आदत डालें।
  6. तनाव पर काबू पाने के लिए किताबें पढ़ना भी एक अच्छा उपाय है। आप अपनी पसंदीदा किताबें पढ़ें जिससे काफी हद तक आपका तनाव कम होगा।
  7. कभी भी किसी विषय पर अत्यधिक गंभीर न हों।
  8. नींद न आना या फिर कम सोना भी तनाव का महत्वपूर्ण कारण है, इसलिए भरपूर नींद लें, नींद न आती हो तो सोने से पूर्व अच्छी पुस्तक का अध्ययन करें।
  9. नियमित सैर व एक्सरसाइज की आदत डालें।
  10. आदतों में बदलाव लाने का प्रयास करें, कभी-कभी हमारी गलत आदतें और स्वयं हमारा व्यवहार भी हमें तनावग्रस्त करता है।
  11. स्वयं को काम में व्यस्त रखें। व्यर्थ बातों को सोचकर तनावग्रस्त न हों।
  12. प्रात: जल्दी उठकर ताजी हवा में सांस लें।
  13. तनाव कम करने के लिए पूरी नींद लेना बेहद जरूरी होता है। रोजाना कम से कम 7 घंटे की नींद जरूर पूरी करें।

टेंशन मुक्ति की अचूक तरकीब

 इन दिनों भाग-दौड़ की जिंदगी में अमूमन लोग कुछ हद तक टेंशन (तनाव) में रहते है। तनाव पैदा होने की कई वजह हो सकती है, जैसे किसी तरह का टकराव, बढ़ती प्रतिस्पर्धा काम करने की समय सीमा धन कमाने की होड़ दुख, नाउम्मीद आदि। ऐसे समय में आप खुद को पहचानिए और अपनी क्षमता के अनुसार काम में लचीला रूख अपनाइए ताकि आप लगातार उत्साहित होते रहे। बहरहाल टेंशन से निजात पाने के लिए सहज तरकीब के जरिये आपको इससे मिलेगी मुक्ति और मानसिक शांति।

  1. सकारात्मक सोच : आप नकारात्मकता को उत्सर्ग कर सकारात्मक सोच रखें। यह सोच हमेशा हमें मन मस्तिष्क के अंदर-बाहर किसी भी बात से परेशान होने नहीं देती और दिशा निर्देश दे कर शांति स्तर पर पहुंचती है जबकि नकारात्मक सोच हमारी जिन्दगी को दिग्भ्रमित कर देती है।
  2. प्राणायाम या व्यायाम : मन-मस्तिष्क को तरोताजा रखने के लिए प्राणायाम या व्यायाम एक बेहद उपयोगी साधन है। इसके यमित अभ्यास करने से कांतिमय तो होते ही है। साथ ही हम हल्का फुल्का महसूस करते है और अंदर मौजूद ऊर्जा का सदुपयोग कर पाते हैं तथा मानसिक तनाव रहित हो जाते हैं।
  3. प्रसन्नता : हर दर्द की दवा है प्रसन्नता। टेंशन मुक्ति के लिए हास-परिहास को जिंदगी में शामिल कर प्रसन्नचित रहिए। यह आपके क्रोध, चिंता, खिन्नता, निराशा और चिड़चिड़ेपन आदि पर मरहम का काम करता है।
  4. दिनचर्या का बदलाव : नित्य एक ही काम करने या एक ही जगह ठहरने से मानव स्वभाव बदलाव चाहता है तो रुचि के अनुसार दिनचर्या का बदलाव करें। इससे अपने बारे में अच्छा महसूस करेंगे और जीवन की एकरसता टूटेगी।
  5. अपने लिए वक्त : भाग दोड़ की जिंदगी में अपने लिए वक्त निकाले। यह आपका हक है जिसके आधार पर आप तय कर सकते हैं कि आपकी मंजिल क्या है? यह आपकी निजी खोज है।इसे कोई छीन नहीं सकता।
  6. नयी पहल : अक्सर अवसर चूक जाने के पश्चात पछतावे के अलावा और कुछ हाथ नहीं लगता इसलिए जो बीत गई सो बात गई, वाला कथन अपनाइए और आगे की सुधि लेते हुए नई पहल करें।
  7. रचनात्मक कार्य : खाली समय मूड का सबसे बड़ा दुश्मन माना गया है। अत: सदैव दिमाग को रचनात्मक कार्यों में लगा देने से मूड खुशनुमा बना रहता है और मानसिक बाधाए दूर हो जाती है। अगर आप उपरोक्त टिप्स पर अमल करें तो निश्चय ही जिंदगी की भागम भाग में सबसे सद्भूत तथा टेंशन मुक्त होकर तरोताजा दिखेंगे।
  8. खुल कर करें मेल : मिलाप अक्सर देखने में आता है कि व्यक्ति काम की अधिकता और व्यस्तता के कारण परिवार और मित्रों के साथ के लिये भी वक्त नहीं निकाल पाता। होना यह चाहिये कि प्रतिदिन, चाहे आधा घंटा ही सही पर अपने प्रियजनों के लिये वक्त अवश्य निकालना चाहिये। अपनों के साथ अपने सुख-दु:ख बांटने से तनाव को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
  9. संगीत में स्नान : संगीत को सिर्फ मनोरंजन मानना बहुत बड़ी भूल है। संगीत सिर्फ कला ही नहीं वह ध्यान, चिकित्सा पद्धति और आध्यात्मिक साधना सब कुछ एक साथ है। प्रतिदिन 20 से 30 मिनट तक कोई अच्चा संगीत अवश्य सुने। संगीत ऐसा हो जो आपके दिमाग से विचारों की उथल-पुथल को शांत करके आपको गहरे मौन और ध्यान की गहराइयों में पहुंचा सके।
  10. मेडिटेशन : अगर कहा जाए कि संसार की अधिकांश समस्याओं को सिर्फ ध्यान के बल पर ठीक किया जा सकता है तो इसमें कोई भी अतिशयोक्ति नहीं है। नियमित ध्यान के अभ्यास से व्यक्ति में इंसानियत और मानवीयता के सद्गुणों का जन्म होता है। ध्यान से मानसिक तनाव को दूर करना सबसे अधिक कारगर और अचूक उपाय है।

 

इसे भी पढ़े
  1. अधोमुखश्वानासन योग - परिचय, विधि एवं लाभ
  2. पश्चिमोत्तानासन योग विधि, लाभ और सावधानी
  3. नौकासन योग विधि, लाभ और सावधानियां
  4. सूर्य नमस्कार की स्थितियों में विभिन्न आसनों का समावेष एवं उसके लाभ
  5. अनुलोम विलोम प्राणायामः एक संपूर्ण व्यायाम
  6. प्राणायाम और आसन दें भयंकर बीमारियों में लाभ
  7. वज्रासन योग : विधि और लाभ
  8. सूर्य नमस्कार का महत्त्व, विधि और मंत्र
  9. ब्रह्मचर्यासन से करें स्वप्नदोष, तनाव और मस्तिष्क के बुरे विचारों को दूर
  10. प्राणायाम के नियम, लाभ एवं महत्व
  11. मोटापा घटाने अचूक के उपाय


Share:

क्या मुस्लिम वास्तव में देश भक्त है ??



क्या मुस्लिम वास्तव में देश भक्त है ??
यह किसी पेज का स्क्रीन शॉट है जिसमे प्रश्न पूछा गया है कि आपको क्या होने पर गर्व है 1. भारतीय, 2. हिन्दू 3. मुस्लिम और इसमें 10 लोगो के कमेन्ट दिख रहा है जिसमेंं 5 हिन्दू और 5 मुस्लिम है। चित्र में सभी मुस्लिमो ने मुस्लिम (पीले रंग में) होने पर गर्व होने की बात कही उसी में मु‍स्लिम ने मुस्लिम और भारतीय होने पर गर्व होने की बात कही, सभी हिन्दूओं ने भारतीय होने में गर्व की बात कही और उसी मे से एक हिन्दू ने भारतीय के साथ हिन्दू होने की बात कही।
यह चित्र उस मुस्लिम चेहरे का प्रतिनिधित्व करता है उसकी सोच को दर्शाता है कि वास्तव देश इस्लाम की अपेक्षा आज भी उनके लिये दोयम दर्जे पर है। ज्‍यादातर मुस्लिम देश की मुख्‍य धारा मे जुडे ही नही और जुडना भी नही चाहते है। ज्‍यादातर मुस्लिमो को भारतीय होने ज्‍यादा मु‍सलमान हाने पर गर्व है। मुस्लिमो की यह सोच धर्मनिपेक्षता की श्रेणी मे आता हैै यह साम्‍प्रा‍यिकता की श्रेणी में यह तथाकथित वोट बैंक सेक्‍युलर नेताओ के लिये सोचने का विषय है।देश के मुस्लिमोे के नाम पर बटवारे के बाद भी आज मुुस्लिम भारत परस्‍त नही है, उनकी निष्‍ठा आज भी देश से ज्यादा इस्‍लाम पर है। भारत देश की रचना इसलिये पंथनिरपेक्ष राष्‍ट्र की नही रखी गर्इ कि धर्म कोे देश के से उपर रखा जाये।
घिन आती है तुच्‍छ धर्मिक मानसिकता पर जब देश में ही तिरंगे को पैरों तले रौदा जाता है और पाकिस्‍तानी झंडे को लहराया जाता है। कही न कही गडबड जरूर है भारत केे मुस्लिम बुरे नही है उनकी मानसिकता बुरी है। विश्‍व के कई देशो यहां तक कि इस्‍लामिक देशो में मुसलमान इस्‍लाम की पोंगापंथी को त्‍याग कर देश की मुख्‍यधारा जुडे हुये है। यह विचार करने की जरूरत है कि भारत जैसे देश मे जहां उनको सारी सहुलियत मौजूद है जोे उनको इस्‍लामिक देश मे नही है वहाँ उनकी मुस्लिम मानसिकता देश से सर्वोपरि है। आज जरूरत है कि रोग को पहचान कर उनका इलाज करने कीए कठोर निर्णय लेने की। जिससे पोंगा पंथी विचारधारा से मुक्ति की परिवर्तन हवा सभी तक पहुॅचे। बाकी जरूरत करने की जरूरत है ज्‍यादा कुछ कहने की नही है।


Share:

रामनरेश यादव - राज्यपाल मध्य प्रदेश व पूर्व मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश



 

श्री रामनरेश यादव का जन्म एक जुलाई 1928 ई. को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़, जिले के गांव आंधीपुर(अम्बारी) में एक साधारण किसान परिवार में हुआ। आपका बचपन खेत-खलिहानों से होकर गुजरा। आपकी माता श्रीमती भागवन्ती देवी जी धार्मिक गृहिणी थीं और पिता श्री गया प्रसाद जी महात्मा गांधी, पंडित जवाहरलाल नेहरू और डा. राममनोहर लोहिया के अनुयायी थे। आपके पिताजी प्राइमरी पाठशाला में अध्यापक थे तथा सादगी और ईमानदारी की प्रतिमूर्ति थे। श्री यादव को देशभक्ति, ईमानदारी और सादगी की शिक्षा पिताश्री से विरासत में मिली है। आपका भारतीय राजनीति में विशिष्ट स्थान है। आप कर्मयोगी और जनप्रिय नेता हैं। स्वदेशी एवं स्वावलंबन आपके जीवन का आदर्श है। आपके बहुमुखी कृतित्व एवं व्यक्तित्व के कारण आप बाबूजी'' के नाम से जाने जाते हैं।

श्री रामनरेश यादव का विवाह सन् 1949 में श्री राजाराम यादव निवासी ग्राम-करमिसिरपुर (मालीपुर) जिला-अम्बेडकर नगर (उ.प्र.)की सुपुत्री सुश्री अनारी देवी जी ऊर्फ शांति देवी जी के साथ हुआ। आपके तीन पुत्र और पांच पुत्रियां हैं। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा गांव के विद्यालय में हुई और आपने हाईस्कूल की शिक्षा आजमगढ़ के मशहूर वेस्ली हाई स्कूल से प्राप्त की। इन्टरमीडिएट, डी.ए.वी. कालेज, वाराणसी से और बी.ए., एम.ए. और एल.एल.बी. की डिग्री काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी से प्राप्त की। उस समय प्रसिद्ध समाजवादी चिन्तक एवं विचारक आचार्य नरेन्द्र देव काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के कुलपति थे। विश्वविद्यालय के संस्थापक एवं जनक पंडित मदनमोहन मालवीय जी के गीता पर उपदेश तथा भारत के पूर्व राष्ट्रपति एवं तत्कालीन प्रोफेसर डॉ. राधाकृष्णन के भारतीय दर्शन पर व्याख्यान की गहरी छाप आप पर विद्यार्थी जीवन में पड़ी।

श्री यादव ने स्नातकोत्तर की शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात वाराणसी में चिन्तामणि एंग्लो बंगाली इन्टरमीडिएट कालेज में प्रवक्ता के पद पर तीन वर्षों तक सफल शिक्षक के रूप में कार्य किया। आप पट्टी नरेन्द्रपुर इंटर कालेज जौनपुर में भी कुछ समय तक प्रवक्ता रहे। कानून की पढ़ाई पूरी करने के बाद सन् 1953 में आपने आजमगढ़ में वकालत प्रारम्भ की और अपनी कर्मठता तथा ईमानदारी के बल पर अपने पेशे तथा आम जनता में अपना एक महत्वपूर्ण स्थान बनाया।

श्री यादव ने छात्र जीवन से समाजवादी आन्दोलन में शामिल होकर अपने राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन की शुरूआत की। आजमगढ़ जिले के गांधी कहे जाने वाले बाबू विश्राम राय जी का आपको भरपूर सानिध्य मिला। श्री यादव ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और डाक्टर रामनोहर लोहिया के विचारों को अपना आदर्श माना है। आपने समाजवादी विचारधारा के अन्तर्गत विशेष रूप से जाति तोड़ो, विशेष अवसर के सिद्धान्त, बढ़े नहर रेट, किसानों की लगान माफी, समान शिक्षा, आमदनी एवं खर्चा की सीमा बांधने, वास्तविक रूप से जमीन जोतने वालों को उनका अधिकार दिलाने, अंग्रेजी हटाओ आदि आन्दोलनों को लेकर अनेकों बार गिरफ्तारियां दीं। आपातकाल के दौरान आप मीसा और डी.आई. आर के अधीन जून 1975 से फरवरी 1977 तक आजमगढ़ जेल और केन्द्रीय कारागार नैनी इलाहाबाद में निरूद्ध रहे। आप अपने राजनीतिक एवं सामाजिक जीवन में विभिन्न दलों एवं संगठनों तथा संस्थाओं से संबद्ध रहे। राज्यसभा सदस्य तथा संसदीय दल के उपनेता भी रहे। आप अखिल भारतीय राजीव ग्राम्य विकास मंच, अखिल भारतीय खादी ग्रामोद्योग कमीशन कर्मचारी यूनियन और कोयला मजदूर संगठन कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में ग्रामीणों और मजदूर तबके के कल्याण के लिये लम्बे समय तक संघर्षरत रहे। बनारस हिन्दु विश्वविद्यालय में एक्सिक्यूटिव कॉसिंल के सदस्य भी थे। अखिल भारतीय अन्य पिछड़ा वर्ग (ओ.बी.सी.) रेलवे कर्मचारी महासंघ के आप राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं, और आप जनता इंटर कालेज अम्बारी आजमगढ़ (उ.प्र.) के प्रबंधक हैं तथा अनेकों शिक्षण संस्थाओं के संरक्षक भी हैं तथा गांधी गुरूकुल इन्टर कालेज भंवरनाथ, आजमगढ़ के प्रबंध समिति के अध्यक्ष भी हैं।

श्री रामनरेश यादव 23 जून 1977 को उत्तरप्रदेश राज्य के मुख्यमंत्री निर्वाचित हुए। मुख्यमंत्रित्व काल में आपने सबसे अधिक ध्यान आर्थिक, शैक्षणिक तथा सामाजिक दृष्टि से पिछड़े लोगों के उत्थान के कार्यों पर दिया तथा गांवों के विकास के लिये समर्पित रहे। आपने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आदर्शों के अनुरूप उत्तरप्रदेश में अन्त्योदय योजना का शुभारम्भ किया। श्री यादव सन् 1988 में संसद के उच्च सदन राज्यसभा के सदस्य बने एवं 12 अप्रैल 1989 को राज्यसभा के अन्दर डिप्टी लीडरशिप,पार्टी के महामंत्री एवं अन्य पदों से त्यागपत्र देकर तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस की सदस्यता ग्रहण की।

आपने मानव संसाधन विकास संबंधी संसदीय स्थायी समिति के पहले अध्यक्ष के रूप में आपने स्वास्थ्य, शिक्षा और संस्कृति के चहुंमुखी विकास को दिशा देने संबंधी रिपोर्ट सदन में पेश की। केन्द्रीय जन संसाधन मंत्रालय के अंतर्गत गठित हिन्दी भाषा समिति के सदस्य के रूप में आपने महत्वपूर्ण योगदान दिया। वित्त मंत्रालय की महत्वपूर्ण नारकोटिक्स समिति के सदस्य के रूप में सीमावर्ती राज्यों में नशीले पदार्थों की खेती की रोकथाम की पहल की। प्रतिभूति घोटाले की जांच के लिए बनी संयुक्त संसदीय समिति के सदस्य के रूप में आपने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी। पब्लिक एकाउंट कमेटी (पी.ए.सी.), संसदीय सलाहकार समिति (गृह विभाग), रेलवे परामर्शदात्री समिति और दूरभाष सलाहकार समिति के सदस्य के रूप में आप कार्यरत रहे। आप कुछ समय तक कृषि की स्थाई संसदीय समिति के सदस्य तथा इंडियन काँसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च की जनरल बाडी तथा गवर्निंग बाडी के सदस्य भी रहे। आपका लखनऊ में अम्बेडकर विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय का दर्जा दिलाने में काफी योगदान था।

श्री रामनरेश यादव ने सन् 1977 में आजमगढ़ (उ.प्र.) से छठी लोकसभा का प्रतिनिधित्व किया। आप 23 जून 1977 से 15 फरवरी 1979 तक उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। आपने 1977 से 1979 तक निधौली कलां (एटा) का विधानसभा में प्रतिनिधित्व किया तथा 1985 से 1988 तक शिकोहाबाद (फिरोजाबाद) से विधायक रहे। श्री यादव 1988 से 1994 तक (लगभग तीन माह छोड़कर) उत्तरप्रदेश से राज्यसभा सदस्य रहे और 1996 से 2007 तक फूलपुर(आजमगढ़) का विधानसभा में प्रतिनिधित्व किया। सम्प्रति श्री रामनरेश यादव मध्यप्रदेश के राज्यपाल हैं।



Share:

RTI मलतब सूचना का अधिकार के अंतर्गत आरटीआई कैसे लिखे



 


 सूचना का अधिकार अधिनियम (अधिनियम सं. 22/2005)

अधिनियम का परिचय - संसद ने सूचना का अधिकार अधिनियम पारित किया है, जिसे 15 जून, 2005 को राष्ट्रपति की स्वीकृति मिली और 21 जून 2005 को सरकारी गजट में अधिसूचित किया गया। अधिनियम के अनुसार, यह, जम्मू व कश्मीर राज्य को छोड़कर, संपूर्ण भारत पर लागू है। 

  1. सार्वजनिक प्राधिकारी- "सार्वजनिक प्राधिकारी" से आशय है (क) संविधान द्वारा अथवा उसके अंतर्गत (ख) संसद द्वारा निर्मित किसी अन्य कानून के द्वारा (ग) राज्य विधायिका द्वारा बनाए गए किसी अन्य कानून के द्वारा (घ) समुचित सरकार आदि द्वारा जारी अथवा दिए गए किसी आदेश के द्वारा स्थापित कोई प्राधिकरण अथवा निकाय अथवा स्व-शासी संस्था।
  2. सूचना का अधिकार - सूचना का अधिकार में ऐसी सूचना तक पहुँच का होना समाहित है, जो किसी सार्वजनिक प्राधिकारी द्वारा धारित अथवा उसके नियंत्रण में है। इसमें कार्य, दस्तावेज, अभिलेखों को देखने, दस्तावेजों/ अभिलेखों से टीप, उद्धरण लेने और सामग्री के प्रमाणित नमूने तथा इलेक्ट्रॉनिक रूप में संग्रहीत सूचना प्राप्त करने का अधिकार शामिल है।
  3. प्रकटन से छूट-प्राप्त सूचना - अधिनियम की धारा 8 व 9 में कतिपय श्रेणियों की सूचनाओं को नागरिकों पर प्रकट करने से छूट का प्रावधान है। सूचना पाने के इच्छुक व्यक्तियों को सलाह दी जाती है कि वे सूचना हेतु अनुरोध प्रस्तुत करने के पहले अधिनियम की तत्संबंधी धाराओं को देख लें।
  4. सूचना के लिए कौन अनुरोध कर सकता है - कोई भी नागरिक निर्धारित शुल्क देकर अंग्रेजी/हिन्दी/जहाँ आवेदन किया जा रहा हो वहाँ की राजभाषा भाषा में लिखित में अथवा इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से सूचना के लिए आवेदन कर सकता है। आवेदन लखनऊ स्थित केन्द्रीय जन सूचना अधिकारी को सीधे अथवा केन्द्रीय सहायक जन सूचना अधिकारी के माध्यम से भेजा जाना चाहिए। RTI मलतब सूचना का अधिकार - ये कानून हमारे देश मे 2005 मे लागू हुआ। जिस का उपयोग कर के आप सरकार और किसी भी विभाग से सूचना मांग सकते है आम तौर पर लोगो को इतना ही पता होता है, परंतु इस सम्‍बन्‍ध में रोचक जानकारी निम्न हूँ -

  1. आरटीआई से आप सरकार से कोई भी सवाल पूछ कर सूचना ले सकते है
  2. आरटीआई से आप सरकार के किसी भी दस्तावेज़ की जांच कर सकते है
  3. आरटीआई से आप दस्तावेज़ या Document की प्रमाणित Copy ले सकते है
  4. आरटीआई से आप सरकारी काम काज मे इस्तमल सामग्री का नमूना ले सकते है
  5. आरटीआई से आप किसी भी कामकाज का निरीक्षण कर सकते है आरटीआई कि निम्‍न धाराऐं महत्‍वपूर्ण है इन्‍हे स्‍मरण में रखना चाहिये -
  1. धारा 6 (1) - आरटीआई का application लिखने का धारा है
  2. धारा 6 (3) - अगर आप की application गलत विभाग मे चली गयी है तो गलत विभाग इस को 6 (3)
  3. धारा के अंतर्गत सही विभाग मे 5 दिन के अंदर भेज देगा
  4. धारा 7(5) - इस धारा के अनुसार BPL कार्ड वालों को कोई आरटीआई शुल्क नही देना होता
  5. धारा 7 (6) - इस धारा के अनुसार अगर आरटीआई का जवाब 30 दिन मे नही आता है तो सूचना फ्री मे दी जाएगी
  6. धारा 18 - अगर कोई अधिकारी जवाब नही देता तो उस की शिकायत सूचना अधिकारी को दी जाए
  7. धारा 19 (1) - अगर आप की आरटीआई का जवाब 30 दिन मे नही आता है तो इस धारा के अनुसार आप प्रथम अपील अधिकारी को प्रथम अपील कर सकते हो
  8. धारा 19 (3) - अगर आप की प्रथम अपील का भी जवाब नही आता है तो आप इस धारा की मदद से 90 दिन के अंदर 2nd अपील अधिकारी को अपील कर सकते हो आरटीआई कैसे लिखे -


इस के लिए आप एक साधा पेपर ले और उस मे 1 इंच की कोने से जगह छोड़े और नीचे दिए गए प्रारूप मे अपने आरटीआई लिख ले

..........................................................................
..........................................................................


सूचना का अधिकार 2005 की धारा 6(1) और 6(3) के अंतर्गत आवेदन


सेवा मे
(अधिकारी का पद)/ जन सूचना अधिकारी
विभाग का नाम

विषय - आरटीआई act 2005 के अंतर्गत .................. से संबधित सूचनाए

1- अपने सवाल यहाँ लिखे
2-
3
4

मैं आवेदन फीस के रूप में 10रू का पोस्टल ऑर्डर ........ संख्या अलग से जमा कर रहा /रही हूं।

या

मैं बी.पी.एल. कार्ड धारी हूं इसलिए सभी देय शुल्कों से मुक्त हूं। मेरा बी.पी.एल. कार्ड नं..............है।

यदि मांगी गई सूचना आपके विभाग/कार्यालय से सम्बंधित नहीं हो तो सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 की धारा 6 (3) का संज्ञान लेते हुए मेरा आवेदन सम्बंधित लोक सूचना अधिकारी को पांच दिनों के समयाविध् के अन्तर्गत हस्तान्तरित करें। साथ ही अधिनियम के प्रावधानों के तहत सूचना उपलब्ध् कराते समय प्रथम अपील अधिकारी का नाम व पता अवश्य बतायें।

भवदीय
नाम:
पता:
फोन नं:

भारतीय विधि और कानून पर आधारित महत्वपूर्ण लेख 



Share:

वीर सम्राट सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य



वीर सम्राट सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य 

हेम चन्द्र सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य दिल्ली के सिंहासन पर बैठे अंतिम हिन्दू सम्राट थे। उन्होंने भारत को एक शक्तिशाली हिन्दू राष्ट्र बनाने के लिए अत्यंत साहसी तथा पराक्रमपूर्ण विजय प्राप्त की थीं। हेमचन्द्र अलवर क्षेत्र में राजगढ़ के निकट माछेरी ग्राम में 1501 ईं. में जन्मे धार्मिक संत पूरणदास के पुत्र थे। बाद में उनका परिवार सुन्दर भविष्य की कामना से रिवाड़ी आ गया था तथा वहीं हेमचन्द्र ने शिक्षा प्राप्त की थी।

उन दिनों ईरान-इराक से दिल्ली के मार्ग पर रिवाड़ी महत्वपूर्ण नगर था। उन्होंने शेरशाह सूरी की सेना को रसद तथा अन्य आवश्यक सामग्री पहुंचानी शुरू कर दी थी तथा बाद में युद्ध में काम आने वाले शोरा भी बेचने लगे थे। शेरशाह सूरी की मृत्यु 22 मई, 1545 ईं. को हुई थी। यह कहा जाता है कि शेरशाह के उत्तराधिकारी इस्लामशाह की नजर रिवाड़ी में हाथी की सवारी करते हुए, युवा, बलिष्ठ हेमचंद्र पर पड़ी तथा वे उसे अपने साथ ले गए, उनकी प्रतिभा को देखकर इस्लामशाह ने उन्हें शानाये मण्डी, दरोगा ए डाक चौकी तथा प्रमुख सेनापति ही नहीं, बल्कि अपना निकटतम सलाहाकार बना दिया। साथ में 1552 ई. में इस्लामशाह की मत्यु पर उसके 12 वर्षीय पुत्र फिरोज खां को शासक बनाया गया, परन्तु तीन दिन के बाद आदित्यशाह सूरी ने उसकी हत्या कर दी। नए शासक का मूलत: नाम मुवरेज खां या मुबारक शाह था, जिसने 'आदित्यशाह' की उपाधि धारण की थी। आदित्यशाह एक विलासी शराबी तथा निर्बल शासक था। उसके काल में चारों ओर भयंकर विद्रोह हुए। आदित्यशाह ने व्यावहारिक रूप से हेेमचन्द्र को शासन की समस्त जिम्मेदारी सौंपकर, प्रधानमंत्री तथा अफगान सेना का मुख्य सेनापति बना दिया। अधिकतर अफगान शिविरों ने भी आदित्यशाह के खिलाफ विद्रोह कर दिए थे। हेमचन्द्र ने अद्भुत शौर्य तथा वीरता का परिचय देते हुए एक-एक करके उनके विरुद्ध 22 युद्ध लड़े तथा सभी में महान सफलताएं प्राप्त की थीं। उसने एक-एक करके आदित्यशाह के सभी शत्रुओं को पराजित कर दिया।

1556 ईं. में जब बाबर का ज्येष्ठ पुत्र हुमायूं पुन: भारत लौटा तथा उसने खोये साम्राज्य पर अधिकार करना चाहा। आदित्य शाह स्वयं तो चुनार भाग गया, और हेमचन्द्र को हुमायूं से लड़ने के लिए भेज दिया। इसी बीच 26 जनवरी, 1556 ई. को अफीमची हुमायूं की, जो जीवन भर इधर-उधर भटकता तथा लुढ़कता रहा, सीढ़ियों से लुढ़क कर मौत हो गई। हेमचन्द्र ने इस स्वर्णिम अवसर को न जाने दिया। उन्होंने भारत में स्वदेशी राज्य की स्थापना के लिए अकबर की सेनाओं को आस-पास के क्षेत्रों से भगा दिया। हेमचन्द्र ने सेना को संगठित कर, ग्वालियर से आगरा की ओर प्रस्थान किये। उनकी विजयी सेनाओं ने आगरा के मुगल गवर्नर सिकन्दर खां बेगम को पराजित किया।

हेमचन्द्र ने अपार धनराशि के साथ आगरा पर कब्जा किया। और वे विशाल सेना के साथ अब दिल्ली की ओर बढे। दिल्ली का मुगल गवर्नर तारीफ बेग खां अत्यधिक घबरा गया तथा भावी सम्राट अकबर तथा बैरमखां से एक विशाल सेना तुरन्त भेजने का आग्रह किया। बैरमखां की सेना जो पंजाब के गुरुदासपुर के निकट कलानौर में डेरा डाले पड़ी थी, बैरमखां ने तुरन्त अपने योग्यतम सेनापति पीर मोहम्मद शेरवानी के नेतृत्व में एक विशाल सेना देकर भेजा। भारतीय इतिहास का एक महान निर्णायक युद्ध 6 अक्तूबर, 1556 ई. तुगलकाबाद में हुआ जिसमें लगभग 3000 मुगल सैनिक मारे गए। आखिर 7 अक्तूबर, 1556 को भारतीय इतिहास का वह विजय दिवस आया जब दिल्ली के सिंहासन पर सैकड़ों वर्षों की गुलामी तथा अधीनता के बाद हिन्दू साम्राज्य की स्थापना हुई। यह किसी भी भारतीय के लिए, जो भारतभूमि को पुण्यभूमि मातृभूमि मानता हो, अत्यंत गौरव का दिवस था।

हेमचन्द्र का राज्याभिषेक भी भारतीय इतिहास की अद्वितीय घटना थी। भारत के प्राचीन गौरवमय इतिहास से परिपूर्ण पुराने किले (पांडवों के किले) में हिन्दू रीति-रिवाजों के अनुसार राज्याभिषेक था। अफगान तथा राजपूत सेना को सुसज्जित किया गया। सिंहासन पर एक सुन्दर छतरी लगाई गई। हेमचन्द्र ने भारत के शत्रुओं पर विजय के रूप में 'शकारि' विजेता की भांति ' विक्रमादित्य' की उपाधि धारण की। नए सिक्के गढ़े गए। राज्याभिषेक की सर्वोच्च विशेषता सम्राट हेमचन्द्र विक्रमादित्य की घोषणाएं थीं जो आज भी किसी भी प्रबुद्ध शासक के लिए मार्गदर्शक हो सकती हैं। सम्राट ने पहली घोषणा की, कि भविष्य में गोहत्या पर प्रतिबंध होगा तथा आज्ञा न मानने वाले का सिर काट लिया जाएगा। सम्भवत: यह समूचे पठानों, मुगलों, अंग्रेजो तथा भारत की स्वतंत्रता के बाद तक की दृष्टि से पहली घोषणा थी। (देश की स्वतंत्रता के पश्चात डा. राजेन्द्र प्रसाद ने ऐसे 3000 पत्रों व तारों को देश के प्रथम प्रधानमंत्री पंडित नेहरू को भेजते हुए आग्रह किया था कि भारत का पहला कानून 15 अगस्त, 1947 को गौ हत्या बंद के बारे में होना चाहिए। तत्कालीन प्रकाशित पत्र-व्यवहार से ज्ञात होता है कि मिश्रित संस्कृति का ढोंग पीटते हुए पं. नेहरू ने इसे अस्वीकार कर दिया था ) ।

जहां दिल्ली में यह विजय दिवस था, वहां बैरम खां के खेमे में यह शोक दिवस था। आगरा, दिल्ली सम्भलपुर तथा अन्य स्थानों के भगोड़े मुगल गवर्नर अपनी पराजित सेनाओं के साथ मुंह लटकाए खड़े थे। अनेक सेनानायकों ने हेमचन्द्र के विरुद्ध लड़ने से मना कर दिया था, वे बार-बार काबुल लौटने की बात कर रहे थे। परन्तु बैरम खां इस घोर पराजय के लिए तैयार न था। आखिर 5 नवम्बर, 1556 ई. को पानीपत में पुन: हेमचन्द्र व मुगलों की सेनाओं में टकराव हुआ।

प्रत्यक्ष द्रष्टाओं का कथन है कि हेमचन्द्र के दाईं और बाईं ओर की सेनाएं विजय के साथ आगे बढ़ रही थीं। केन्द्र में स्वयं सम्राट सेना का संचालन कर रहे थे। परन्तु अचानक आंख में एक तीर लग जाने से वे बेहोश हो गए। देश का भाग्य पुन: बदल गया। हेमचन्द्र को बेहोश हालत में ही सिर काट कर मार दिया गया। उनका मुख काबुल भेजा गया तथा शेष धड़ दिल्ली के एक दरवाजे पर लटका दिया गया। उससे भी उनकी जब तसल्ली न हुई उनके पुराने घर मछेरी पर आक्रमण किया गया। लूटमार की गई, उनके 80 वर्षीय पिता पूरनदास को धर्म परिवर्तन के लिए कहा गया, न मानने पर उनका भी कत्ल कर दिया गया।

क्षत्रिय राजपूतों से संबधित अन्य महत्पूर्ण लेख - 

  1. राजस्थान का इतिहास एक परिचय 
  2. क्षत्रिय- राजपूत के गोत्र और उनकी वंशावली 
  3. क्षत्रियों की उत्पत्ति एवं ऐतिहासिक महत्व 
  4. ऐतिहासिक साक्ष्यों पर आधारित -क्षत्रियों की वंशावली 
  5. बैस राजपूत वंश


Share: