शिक्षाप्रद बाल कहानी - स्वप्न महल



एक रात राजा कृष्णदेव राय ने सपने में एक बहुत ही सुंदर महल देखा, जो अधर में लटक रहा था। उसके अंदर के कमरे रंग-बिरंगे पत्थर से बने थे। उसमें रोशनी के लिए दीपक या मशालों की जरूरत नहीं थी। बस जब मन में सोचा, अपने आप प्रकाश हो जाता था और जब चाहे अँधेरा।
 

उस महल में सुख और ऐश्वर्य के अनोखे सामान भी मौजूद थे। धरती से महल में पहुँचने के लिए बस इच्छा करना ही आवश्यक था। आँखें बंद करो और महल के अंदर। दूसरे दिन राजा ने अपने राज्य में घोषणा करवा दी कि जो भी ऐसा महल राजा को बनाकर देगा, उसे एक लाख स्वर्णमुद्राओं का पुरस्कार दिया जाएगा।

सारे राज्य में राजा के सपने की चर्चा होने लगी। सभी सोचते कि राजा कृष्णदेव राय को न जाने क्या हो गया है। कभी सपने भी सच होते हैं? पर राजा से यह बात कौन कहे?

राजा ने अपने राज्य के सभी कारीगरों को बुलवाया। सबको उन्होंने अपना सपना सुना दिया। कुशल व अनुभवी कारीगरों ने राजा को बहुत समझाया कि महाराज, यह तो कल्पना की बातें हैं। इस तरह का महल नहीं बनाया जा सकता। लेकिन राजा के सिर पर तो वह सपना भूत की तरह सवार था।

कुछ धूर्तों ने इस बात का लाभ उठाया। उन्होंने राजा से इस तरह का महल बना देने का वादा करके काफी धन लूटा। इधर सभी मंत्री बेहद परेशान थे। राजा को समझाना कोई आसान काम नहीं था। अगर उनके मुंह पर सीधे-सीधे कहा जाता कि वह व्यर्थ के सपने में उलझ रहे हैं तो महाराज के क्रोधित हो जाने का भय था।

मंत्रियों ने आपस में सलाह की। अंत में फैसला किया गया कि इस समस्या को तेनालीराम के अलावा और कोई नहीं सुलझा सकता। तेनालीराम कुछ दिनों की छुट्टी लेकर नगर से बाहर कहीं चले गए। एक दिन एक बूढ़ा व्यक्ति राजा कृष्णदेव राय के दरबार में रोता-चिल्लाता हुआ आ पहुँचा।

राजा ने उसे सांत्वना देते हुए कहा, ‘तुम्हें क्या कष्ट है? चिंता की कोई बात नहीं। अब तुम राजा कृष्णदेव राय के दरबार में हो। तुम्हारे साथ पूरा न्याय किया जाएगा।’‘मैं लुट गया, महाराज। आपने मेरे सारे जीवन की कमाई हड़प ली। मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं, महाराज। आप ही बताइए, मैं कैसे उनका पेट
भरूँ?’ वह व्यक्ति बोला।

क्या हमारे किसी कर्मचारी ने तुम पर अत्याचार किया है? हमें उसका नाम बताओ।’ राजा ने क्रोध में कहा। ‘नहीं, महाराज, मैं झूठ ही किसी कर्मचारी को क्यों बदनाम करूँ?’ बूढ़ा बोला। ‘तो फिर साफ क्यों नहीं कहते, यह सब क्या गोलमाल है? जल्दी बताओ, तुम चाहते क्या हो?’‘महाराज अभयदान पाऊँ तो कहूँ।’ ‘हम तुम्हें अभयदान देते हैं।’ राजा ने विश्वास दिलाया।

महाराज, कल रात मैंने सपने में देखा कि आप स्वयं अपने कई मंत्रियों और कर्मचारियों के साथ मेरे घर पधारे और मेरा संदूक उठवाकर आपने अपने खजाने में रखवा दिया। उस संदूक में मेरे सारे जीवन की कमाई थी। पाँच हजार स्वर्ण मुद्राएँ।’ उस बूढ़े व्यक्ति ने सिर झुकाकर कहा।

विचित्र मूर्ख हो तुम! कहीं सपने भी सच हुआ करते हैं?’ राजा ने क्रोधित होते हुए कहा। ठीक कहा आपने, महाराज! सपने सच नहीं हुआ करते। सपना चाहे अधर में लटके अनोखे महल का ही क्यों न हो और चाहे उसे महाराज ने ही क्यों न देखा हो, सच नहीं हो सकता।’

राजा कृष्णदेव राय हैरान होकर उस बूढ़े की ओर देख रहे थे। देखते-ही-देखते उस बूढ़े ने अपनी नकली दाढ़ी, मूँछ और पगड़ी उतार दी। राजा के सामने बूढ़े के स्थान पर तेनालीराम खड़ा था। इससे पहले कि राजा क्रोध में कुछ कहते, तेनालीराम ने कहा- ‘महाराज, आप मुझे अभयदान दे चुके हैं।’ महाराज हँस पड़े। उसके बाद उन्होंने अपने सपने के महल के बारे में कभी बात नहीं की।
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शिक्षाप्रद बाल कहानी - तीन सवाल-अकबर बीरबल



बादशाहा अकबर, बीरबल की हाजि़रजवाबी के बडे कायल थे। उनकी इस बात से दरबार के अन्य मंत्री मन ही मन बहुत जलते थे। उनमें से एक मंत्री, जो महामंत्री का पद पाने का लोभी था, ने मन ही मन एक योजना बनाई। उसे मालूम था कि जब तक बीरबल दरबार में मुख्य सलाहकार के रूप में है उसकी यह इच्छा कभी पूरी नहीं हो सकती।

एक दिन दरबार में अकबर ने बीरबल की हाजि़रजवाबी की बहुत प्रशंसा की। यह सब सुनकर उस मंत्री को बहुत गुस्सा आया। उसने बादशाह से कहा कि यदि बीरबल मेरे तीन सवालों का उत्तर सही-सही दे देता है तो मैं उसकी बुद्धिमता को स्वीकार कर लूँगा और यदि नहीं तो इससे यह सिद्ध होता है कि वह बादशाह का चापलूस है। अकबर को मालूम था कि बीरबल उसके सवालों का जवाब ज़रूर दे देंगे इसलिए उन्होंने उस मंत्री की बात स्वीकार कर ली। उस मंत्री के तीन सवाल थे -
आकाश में कितने तारे हैं?
धरती का केन्द्र कहाँ है?
सारे संसार में कितने स्त्री और कितने पुरुष हैं?
अकबर ने फौरन बीरबल से इन सवालों के जवाब देने के लिए कहा। और शर्त रखी कि यदि वह इनका उत्तर नहीं जानता है तो मुख्य सलाहकार का पद छोड़ने के लिए तैयार रहें।

बीरबल ने कहा, तो सुनिये बादशाह।

पहला सवाल - बीरबल ने एक भेड़ मँगवाई और कहा जितने बाल इस भेड़ के शरीर पर हैं आकाश में उतने ही तारे हैं। मेरे दोस्त, गिनकर तस्सली कर लो, बीरबल ने मंत्री की तरफ देखकर मुस्कुराते हुए कहा।

दूसरा सवाल - बीरबल ने ज़मीन पर कुछ लकीरें खींची और] कुछ हिसाब लगाया। फिर एक लोहे की छड़ मँगवाई गई और उसे एक जगह गाड़ दिया और बीरबल ने बादशाह से कहा, बादशाह बिल्कुल इसी जगह धरती का केन्द्र है, चाहे तो आप स्व्यं जाँच लें। बादशाह बोले ठीक है अब तीसरे सवाल के बारे में कहो।

अब बादशाह तीसरे सवाल का जवाब बड़ा मुश्किल है। क्योकि इस दुनिया में कुछ लोग ऐसे हैं जो ना तो स्त्री की श्रेणी में आते हैं और ना ही पुरुषों की श्रेणी में। उनमें से कुछ लोग तो हमारे दरबार में भी उपस्थित हैं जैसे कि ये मंत्री जी। बादशाह यदि आप इनको मौत के घाट उतरवा दें तो मैं स्त्री-पुरूष की सही सही संख्या बता सकता हूँ. अब मंत्री जी सवालों का जवाब छोडकर थर-थर काँपने लगे और बादशाह से बोले, बादशाह बस-बस मुझे मेरे सवालों का जवाब मिल गया। मैं बीरबल की बुद्धिमानी को मान गया हूँ।

बादशाह हमेशा की तरह बीरबल की तरफ पीठ करके हँसने लगे और इसी बीच वह मंत्री दरबार से दबे पाँव चला गया।

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शिक्षाप्रद बाल कहानी - बीरबल की खिचड़ी



एक बार शहंशाह अकबर ने घोषणा की कि यदि कोई व्यक्ति सर्दी के मौसम में नर्मदा नदी के ठंडे पानी में घुटनों तक डूबा रहकर सारी रात गुज़ार देगा उसे भारी भरकम उपहारों से पुरस्कृत किया जाएगा।

एक गरीब धोबी ने अपनी गरीबी दूर करने के लिए सारी रात नदी में घुटने तक के पानी में खड़े रहकर ठिठुरते बिताई और जहाँपनाह से अपना ईनाम लेने पहुँचा।

बादशाह अकबर ने उससे पूछा, तुमने नदी में खड़े-खड़े ही कैसे सारी रात बिना सोए बिताई? तुम्हारे पास क्या सबूत है?
 

धोबी ने उत्तर दिया, जहाँपनाह, नदी के छोर से महल का एक कमरा नज़र आता है। मैं सारी महल के कमरे में जल रहे दीपक को देखता रहा और इस तरह जागते हुए सारी रात नदी के शीतल जल में गुज़ारी।

तो, इसका मतलब यह हुआ कि तुम महल के दीये की गर्मी लेकर सारी रात पानी में खड़े रहे और ईनाम चाहते हो। सिपाहियों इसे जेल में बन्द कर दो-बादशाह ने क्रोधित होकर कहा।

बीरबल भी दरबार में था। उसे यह देख बुरा लगा कि बादशाह नाहक ही उस गरीब पर ज़ुल्म कर रहे हैं। बीरबल दूसरे दिन दरबार में हाजि़र नहीं हुए, जबिक उस दिन दरबार की एक आवश्यक बैठक थी। बादशाह ने एक खादिम को बीरबल को बुलाने भेजा। खादिम ने लौटकर जवाब दिया, बीरबल खिचड़ी पका रहे हैं और वह खिचड़ी पकते ही उसे खाकर आएँगे।

जब बीरबल बहुत देर बाद भी नहीं आए तो बादशाह को कुछ सन्देह हुआ। वे खुद तफ्तीश करने पहुँचे। बादशाह ने देखा कि एक बहुत लंबे से डंडे पर एक घड़ा बाँधकर उसे बहुत ऊँचा लटका दिया गया है और नीचे ज़रा-सी आग जल रही है। पास में बीरबल आराम से पेड़ की छाँव में लेटे हुए हैं।

बादशाह ने तमककर पूछा, यह क्या तमाशा है? क्या ऐसी भी खिचड़ी पकती है?

बीरबल ने कहा - माफ करें, जहाँपनाह, ज़रूर पकेगी। वैसी ही पकेगी जैसी की धोबी को महल के दीये की गरमी मिली थी।


बादशाह को बात समझ में आ गई। उन्होंने बीरबल को गले लगाया और धोबी को रिहा करने और उसे ईनाम देने का हुक्म दिया।

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शिक्षाप्रद बाल कहानी - गोलू-मोलू और भालू



गोलू-मोलू पक्के दोस्त थे। गोलू जहाँ दुबला-पतला था, वहीं मोलू गोल-मटोल। दोनों एक-दूसरे पर जान देने का दम भरते थे, लेकिन उनकी जोड़ी देखकर लोगों की हँसी आ जाती। एक बार उन्हें किसी दूसरे गाँव में रहने वाले मित्र का निमंत्रण मिला। उसने उन्हें अपनी बहन के विवाह के अवसर पर बुलाया था।

उनके मित्र का गाँव बहुत दूर नहीं था लेकिन वहाँ तक पहुँचने के लिए जंगल से होकर गुज़रना पड़ता था। और उस जंगल में जंगली जानवरों की भरमार थी।
दोनों चल दिए जब वे जंगल से होकर गुज़र रहे थे तो उन्हें सामने से एक भालू आता दिखा। उसे देखकर दोनों भय से थर-थर काँपने लगे। तभी दुबला-पतला गोलू तेज़ी से दौड़कर एक पेड़ पर जा चढ़ा, लेकिन मोटा होने के कारण मोलू उतना तेज़ नहीं दौड़ सकता था। उधर भालू भी निकट आ चुका था, फिर भी मोलू ने साहस नहीं खोया। उसने सुन रखा था कि भालू मृत शरीर को नहीं खाते। वह तुरंत ज़मीन पर लेट गया और साँस रोक ली। ऐसा अभिनय किया कि मानो शरीर में प्राण हैं ही नहीं। भालू घुरघुराता हुआ मोलू के पास आया, उसके चेहरे व शरीर को सूँघा और उसे मृत समझकर आगे बढ़ गया।

जब भालू काफी दूर निकल गया तो गोलू पेड़ से उतरकर मोलू के निकट आया और बोला, ‘‘मित्र, मैंने देखा कि भालू तुमसे कुछ कह रहा था। क्या कहा उसने ?’’

मोलू ने गुस्से में भरकर जवाब दिया, ‘‘मुझे मित्र कहकर न बुलाओ और ऐसा ही कुछ भालू ने भी मुझसे कहा। उसने कहा, गोलू पर विश्वास न करना, वह तुम्हारा मित्र नहीं है।’’

सुनकर गोलू शर्मिन्दा हो गया। उसे ज्ञात हो गया था कि उससे कितनी भारी भूल हो गई थी। उसकी मित्रता भी सदैव के लिए समाप्त हो गई।

शिक्षा-सच्चा मित्र वही है जो संकट के काम आए।

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शिक्षाप्रद बाल कहानी - कौवे की परेशानी



यदि आपको सुखी रहना है तो किसी से अपनी तुलना नहीं करो। ‘आप’ आप ही हो। आप के समान कोई नहीं। फिर क्यों दूसरों से अपनी तुलना करना? आइए इस बात को एक कहानी के माध्यम से समझते हैं -

एक कौआ जंगल में रहता था और अपने जीवन से संतुष्ट था। एक दिन उसने एक हंस को देखा, “यह हंस कितना सफ़ेद है, कितना सुन्दर लगता है।” उसने मन ही मन सोचा।
 

उसे लगा कि यह सुन्दर हंस दुनिया में सबसे सुखी पक्षी होगा, जबकि मैं तो कितना काला हूँ! यह सब सोचकर वह काफी परेशान हो गया और उससे रहा नहीं गया, उसने अपने मनोभाव हंस को बताए ।

हंस ने कहा “वास्तिकता ऐसी है कि पहले मैं खुद को आसपास के सभी पक्षियों में सुखी समझता था। लेकिन जब मैंने तोते को देखा तो पाया कि उसके दो रंग हैं तथा वह बहुत-ही मीठा बोलता है। तब से मुझे लगा कि सभी पक्षियों में तोता ही सुन्दर तथा सुखी है।”

अब कौआ तोते के पास गया।

तोते ने कहा “मैं सुख से जीवन जी रहा था, लेकिन जब मैंने मोर को देखा तब मुझे लगा कि मेरे दो रंग ही हैं, परन्तु मोर तो विविधरंगी है। मुझे तो वही सुखी लगता है।”

फिर कौआ उड़कर प्राणी संग्रहालय गया। जहाँ कई लोग मोर देखने एकत्र हुए थे।

जब सब लोग चले गए तो कौआ उसके पास जाकर बोला “मित्र, तुम तो अति सुन्दर हो। कितने सारे लोग तुम्हें देखने के लिए इकट्ठे होते हैं! प्रतिदिन तुम्हें देखने के लिए हजारों लोग आते हैं! जब कि मुझे देखते ही लोग मुझे उड़ा देते हैं। मुझे लगता है कि पृथ्वी पर तो तुम ही सभी पक्षियों में सबसे सुखी हो।”

मोर ने गहरी साँस लेते हुए कहा “मैं हमेशा सोचता था कि ‘मैं इस पृथ्वी पर अतिसुन्दर हूँ, मैं ही अतिसुखी हूँ।’ परन्तु मेरे सौन्दर्य के कारण ही मैं यहाँ पिंजरे में बंद हूँ। मैंने सारे प्राणी गौर से देखे तो मैं समझा कि ‘कौआ ही ऐसा पक्षी है जिसे पिंजरे में बंद नहीं किया जाता।’ मुझे तो लगता है कि काश
मैं भी तुम्हारी तरह एक कौआ होता तो स्वतंत्रता से सभी जगह घूमता-उड़ता, सुखी रहता!”

हम अनावश्यक ही दूसरों से अपनी तुलना किया करते हैं और दुखी-उदास बनते हैं प्रत्येक दिन को भगवान की भेंट समझ कर आनंद से जीना चाहिए। सुखी होना तो सब चाहते है लेकिन सुखी रहने के लिए दूसरों से तुलना करना छोड़ना होगा।

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