सूर्य नमस्कार का महत्त्व, विधि और मंत्र Workout with Surya Namaskar



आदित्यस्य नमस्कारं ये कुर्वन्ति दिने दिने।
जन्मान्तरसहस्रेषु दारिद्र्यं नोपजायते ।।
अर्थ : जो लोग सूर्य को प्रतिदिन नमस्कार करते हैं, उन्हें सहस्रों जन्म दरिद्रता प्राप्त नहीं होती।

सूर्य-नमस्कार को सर्वांग व्यायाम भी कहा जाता है, समस्त यौगिक क्रियाओं की भाँति सूर्य-नमस्कार के लिये भी प्रातः काल सूर्योदय का समय सर्वोत्तम माना गया है। सूर्य नमस्कार सदैव मंत्र के साथ खुली हवादार जगह पर कम्बल का आसन बिछा खाली पेट अभ्यास करना चाहिये।इससे मन शांत और प्रसन्न हो तो ही योग का सम्पूर्ण प्रभाव मिलता है।

सूर्य नमस्कार पद्धति में आवश्यक नियम एवं सावधानियां
  1. 5 प्रकार के नियमों ( शौच, संतोष, तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान ) का पालन करना चाहिए।
  2. 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चे सूर्य नमस्कार नहीं करें।
  3. अधिक उच्च रक्तचाप, हृदय रोग तथा ज्वर की अवस्था में सूर्य नमस्कार नहीं करना चाहिए।
  4. व्यवस्थित दिनचर्या, मिथ्या आहार-विहार का सेवन नहीं करना चाहिए।
  5. अष्टांग योग में वर्णित 5 प्रकार के यम ( अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह ) का पालन करना चाहिए।
  6. खुले स्थान पर शुद्ध सात्विक, निर्मल स्थान पर, प्राकृतिक वातावरण में (शुद्ध जलवायु) सूर्य नमस्कार करना चाहिए।
  7. चाय, कॉफी, तम्बाकू, शराबादि, मादक द्रव्य एवं मांसाहारी तथा तामसिक आहार सेवन नहीं करना चाहिए।
  8. जहां तक संभव हो सूर्य नमस्कार प्रातःकाल 6-7 बजे के बीच करना चाहिए।
  9. ज्वर, तीव्र रोग या ऑपरेशन के बाद 4-5 दिन तक सूर्य नमस्कार नहीं करना चाहिए।
  10. प्रदूषण स्थान पर सूर्य नमस्कार नहीं करना चाहिए।
  11. प्रातः शौच के पश्चात् स्नानोपरान्त सूर्य नमस्कार करना चाहिये।
  12. भोजन सात्विक, हल्का-सुपाच्य करना चाहिए।
  13. सूर्य नमस्कार के समय ढी़ले कपड़े पहनने चाहिए।
  14. सूर्य नमस्कार के समय मन चंचल नहीं हो, उसे एकाग्र करना चाहिए।
  15. सूर्य नमस्कार के समय शरीर पर पुरूष लंगोट, जांघिया अथवा ढ़ीले वस्त्र पहनकर करना चाहिए।
  16. सूर्य नमस्कार खाली पेट प्रातः एवं सायं करना चाहिए।
  17. सूर्य नमस्कार निश्चित समय पर, नियमित रूप से, भूखे पेट ही करना चाहिए।
  18. सूर्य नमस्कार पद्धति में स्थान, काल, परिधान, आयु संबंधी आवश्यक नियमों का वर्णन किया जा रहा है।
  19. सूर्य नमस्कार प्रतिदिन नियमपूर्वक मंत्रोच्चारण सहित करना चाहिए।
  20. सूर्य नमस्कार में श्वास हमेशा नासिका से ही लेना चाहिए।
  21. सूर्य नमस्कार विद्युत का कुचालक चटाई, कम्बल या दरी पर करना चाहिए।
  22. सूर्य नमस्कार सदैव सूर्य की ओर मुँह करके करना चाहिए।
  23. स्त्रियों में मासिक धर्म में 6 दिन तक, 4 माह का गर्भ होने पर व्यायाम बंद करें एवं प्रसव के 4 माह बाद पुनः शुरू कर सकते हैं।
सूर्य नमस्कार मंत्र (Surya Namaskar Mantra) का अर्थ एवं भाव
सूर्य नमस्कार तेरह बार करना चाहिए और प्रत्येक बार सूर्य मंत्र के उच्‍चारण से विशेष लाभ होता है, वे सूर्य मंत्र निम्न है- 1. ॐ मित्राय नमः, 2. ॐ रवये नमः, 3. ॐ सूर्याय नमः, 4.ॐ भानवे नमः, 5.ॐ खगाय नमः, 6. ॐ पूष्णे नमः,7. ॐ हिरण्यगर्भाय नमः, 8. ॐ मरीचये नमः, 9. ॐ आदित्याय नमः, 10.ॐ सवित्रे नमः, 11. ॐ अर्काय नमः, 12. ॐ भास्कराय नमः, 13. ॐ सवितृ सूर्यनारायणाय नमः

  1. ॐ मित्राय नमः ( सबके मित्र को प्रणाम ) -नमस्कारासन ( प्रणामासन) स्थिति में समस्त जीवन के स्त्रोत को नमन किया जाता है। सूर्य समस्त ब्रह्माण्ड का मित्र है, क्योंकि इससे पृथ्वी समेत सभी ग्रहों के अस्तित्व के लिए आवश्यक असीम प्रकाश, ताप तथा ऊर्जा प्राप्त होती है। पौराणिक ग्रंथों में मित्र कर्मों के प्रेरक, धरा-आकाश के पोषक तथा निष्पक्ष व्यक्ति के रूप में चित्रित किया है। प्रातः कालीन सूर्य भी दिवस के कार्यकलापों को प्रारम्भ करने का आह्वान करता है तथा सभी जीव-जन्तुओं को अपना प्रकाश प्रदान करता है।
  2. ॐ रवये नमः ( प्रकाशवान को प्रणाम ) - “रवये“ का तात्पर्य है जो स्वयं प्रकाशवान है तथा सम्पूर्ण जीवधारियों को दिव्य आशीष प्रदान करता है। तृतीय स्थिति हस्तउत्तानासन में इन्हीं दिव्य आशीषों को ग्रहण करने के उद्देश्य से शरीर को प्रकाश के स्रोत की ओर ताना जाता है।
  3. ॐ सूर्याय नमः ( क्रियाओं के प्रेरक को प्रणाम ) -यहाँ सूर्य को ईश्वर के रूप में अत्यंत सक्रिय माना गया है। प्राचीन वैदिक ग्रंथों में सात घोड़ों के जुते रथ पर सवार होकर सूर्य के आकाश गमन की कल्पना की गई है। ये सात घोड़े परम चेतना से निकलने वाल सप्त किरणों के प्रतीक है। जिनका प्रकटीकरण चेतना के सात स्तरों में होता है - भू (भौतिक), - भुवः (मध्यवर्ती, सूक्ष्म ( नक्षत्रीय), स्वः ( सूक्ष्म, आकाशीय), मः ( देव आवास), जनः (उन दिव्य आत्माओं का आवास जो अहं से मुक्त है), तपः (आत्मज्ञान, प्राप्त सिद्धों का आवास) और सप्तम् (परम सत्य)। सूर्य स्वयं सर्वोच्च चेतना का प्रतीक है तथा चेतना के सभी सात स्वरों को नियंत्रित करता है। देवताओं में सूर्य का स्थान महत्वपूर्ण है। वेदों में वर्णित सूर्य देवता का आवास आकाश में है उसका प्रतिनिधित्त्व करने वाली अग्नि का आवास भूमि पर है।
  4. ॐ भानवे नमः ( प्रदीप्त होने वाले को प्रणाम ) -सूर्य भौतिक स्तर पर गुरू का प्रतीक है। इसका सूक्ष्म तात्पर्य है कि गुरू हमारी भ्रांतियों के अंधकार को दूर करता है - उसी प्रकार जैसे प्रातः वेला में रात्रि का अंधकार दूर हो जाता है। अश्व संचालनासन की स्थिति में हम उस प्रकाश की ओर मुँह करके अपने अज्ञान रूपी अंधकार की समाप्ति हेतु प्रार्थना करते हैं।
  5. ॐ खगाय नमः ( आकाशगामी को प्रणाम ) -समय का ज्ञान प्राप्त करने हेतु प्राचीन काल से सूर्य यंत्रों (डायलों ) के प्रयोग से लेकर वर्तमान कालीन जटिल यंत्रों के प्रयोग तक के लंबे काल में समय का ज्ञान प्राप्त करने के लिए आकाश में सूर्य की गति को ही आधार माना गया है। हम इस शक्ति के प्रति सम्मान प्रकट करते हैं जो समय का ज्ञान प्रदान करती है तथा उससे जीवन को उन्नत बनाने की प्रार्थना करते हैं।
  6. ॐ पूष्णे नमः ( पोषक को प्रणाम ) -सूर्य सभी शक्तियों का स्त्रोत है। एक पिता की भाँति वह हमें शक्ति, प्रकाश तथा जीवन देकर हमारा पोषण करता है। साष्टांग नमस्कार की स्थिति में हमें शरीर के सभी आठ केंद्रों को भूमि से स्पर्श करते हुए उस पालनहार को अष्टांग प्रणाम करते हैं। तत्त्वतः हम उसे अपने सम्पूर्ण अस्तित्व को समर्पित करते है तथा आशा करते हैं कि वह हमें शारीरिक, मानसिक तथा आध्यात्मिक शक्ति प्रदान करें।
  7. ॐ हिरण्यगर्भाय नमः (स्वर्णिम विश्वात्मा को प्रणाम) हिरण्यगर्भ, स्वर्ण के अंडे के समान सूर्य की तरह देदीप्यमान, ऐसी संरचना है जिससे सृष्टिकर्ता ब्रह्म की उत्पत्ति हुई है। हिरण्यगर्भ प्रत्येक कार्य का परम कारण है। सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड, प्रकटीकरण के पूर्व अन्तर्निहित अवस्था में हिरण्यगर्भ के अन्दर निहित रहता है। इसी प्रकार समस्त जीवन सूर्य (जो महत् विश्व सिद्धांत का प्रतिनिधित्व करता है ) में अन्तर्निहित है। भुजंगासन में हम सूर्य के प्रति सम्मान प्रकट करते है तथा यह प्रार्थना करते है कि हममें रचनात्मकता का उदय हो।
  8. ॐ मरीचये नमः ( सूर्य रश्मियों को प्रणाम ) -मरीच ब्रह्मपुत्रों में से एक है। परन्तु इसका अर्थ मृग मरीचिका भी होता है। हम जीवन भर सत्य की खोज में उसी प्रकार भटकते रहते हैं जिस प्रकार एक प्यासा व्यक्ति मरूस्थल में ( सूर्य रश्मियों से निर्मित ) मरीचिकाओं के जाल में फँसकर जल के लिए मूर्ख की भाँति इधर-उधर दौड़ता रहता है। पर्वतासन की स्थिति में हम सच्चे ज्ञान तथा विवके को प्राप्त करने के लिए नतमस्तक होकर प्रार्थना करते हैं जिससे हम सत् अथवा असत् के अन्तर को समझ सकें।
  9. ॐ आदित्याय नमः ( अदिति-सुत को प्रणाम) -विश्व जननी ( महाशक्ति ) के अनंत नामों में एक नाम अदिति भी है। वहीं समस्त देवों की जननी, अनंत तथा सीमारहित है। वह आदि रचनात्मक शक्ति है जिससे सभी शक्तियाँ निःसृत हुई हैं। अश्व संचालनासन में हम उस अनन्त विश्व-जननी को प्रणाम करते हैं।
  10. ॐ सवित्रे नमः ( सूर्य की उद्दीपन शक्ति को प्रणाम ) -सवित्र उद्दीपक अथवा जागृत करने वाला देव है। इसका संबंध सूर्य देव से स्थापित किया जाता है। सावित्र उगते सूर्य का प्रतिनिधि है जो मनुष्य को जागृत करता है और क्रियाशील बनाता है। “सूर्य“ पूर्ण रूप से उदित सूरज का प्रतिनिधित्व करता है। जिसके प्रकाश में सारे कार्य कलाप होते है। सूर्य नमस्कार की हस्तपादासन स्थिति में सूर्य की जीवनदायिनी शक्ति की प्राप्ति हेतु सवित्र को प्रणाम किया जाता है।
  11. ॐ अर्काय नमः ( प्रशंसनीय को प्रणाम ) -अर्क का तात्पर्य है - ऊर्जा। सूर्य विश्व की शक्तियों का प्रमुख स्त्रोत है। हस्तउत्तानासन में हम जीवन तथा ऊर्जा के इस स्त्रोत के प्रति अपनी श्रद्धा प्रकट करते है।
  12. ॐ भास्कराय नमः ( आत्मज्ञान-प्रेरक को प्रणाम ) -सूर्य नमस्कार की अंतिम स्थिति प्रणामासन (नमस्कारासन) में अनुभवातीत तथा आध्यात्मिक सत्यों के महान प्रकाशक के रूप में सूर्य को अपनी श्रद्धा समर्पित की जाती है। सूर्य हमारे चरम लक्ष्य-जीवन मुक्ति के मार्ग को प्रकाशित करता है। प्रणामासन में हम यह प्रार्थना करते हैं कि वह हमें यह मार्ग दिखाएं। इस प्रकार सूर्य नमस्कार पद्धति में बारह मंत्रों का अर्थ सहित भावों का समावेश किया जा रहा है।
  13. ॐ सवितृ सूर्यनारायणाय नमः


सूर्य नमस्कार कैसे करे (How to do Surya Namaskar)

सूर्य नमस्कार को उनके विभिन्न स्थितियों के माध्यम से समझ और जान सकते है

How to do Surya Namaskar


  1. प्रथम स्थिति- स्थित प्रार्थनासन -सूर्य-नमस्कार की प्रथम स्थिति स्थितप्रार्थनासन की है।सावधान की मुद्रा में खड़े हो जाएं।अब दोनों हथेलियों को परस्पर जोड़कर प्रणाम की मुद्रा में हृदय पर रख लें।दोनों हाथों की उँगलियाँ परस्पर सटी हों और अँगूठा छाती से चिपका हुआ हो। इस स्थिति में आपकी केहुनियाँ सामने की और बाहर निकल आएँगी।अब आँखें बन्द कर दोनों हथेलियों का पारस्परिक दबाव बढ़ाएं । श्वास-प्रक्रिया निर्बाध चलने दें।
  2. द्वितीय स्थिति - हस्तोत्तानासन या अर्धचन्द्रासन -प्रथम स्थिति में जुड़ी हुई हथेलियों को खोलते हुए ऊपर की ओर तानें तथा सांस भरते हुए कमर को पीछे की ओर मोडें।गर्दन तथा रीढ़ की हड्डियों पर पडने वाले तनाव को महसूस करें।अपनी क्षमता के अनुसार ही पीछे झुकें और यथासाध्य ही कुम्भक करते हुए झुके रहें।
  3. तृतीय स्थिति - हस्तपादासन या पादहस्तासन -दूसरी स्थिति से सीधे होते हुए रेचक (निःश्वास) करें तथा उसी प्रवाह में सामने की ऒर झुकते चले जाएँ । दोनों हथेलियों को दोनों पँजों के पास जमीन पर जमा दें। घुटने सीधे रखें तथा मस्तक को घुटनों से चिपका दें यथाशक्ति बाह्य-कुम्भक करें। नव प्रशिक्षु धीरे-धीरे इस अभ्यास को करें और प्रारम्भ में केवल हथेलियों को जमीन से स्पर्श कराने की ही कोशिश करें।
  4. चतुर्थ स्थिति- एकपादप्रसारणासन -तीसरी स्थिति से भूमि पर दोनों हथेलियां जमाये हुए अपना दायाँ पाँव पीछे की ओर फेंके। इस प्रयास में आपका बायां पाँव आपकी छाती के नीचे घुटनों से मुड़ जाएगा,जिसे अपनी छाती से दबाते हुए गर्दन पीछे की ओर मोड़कर ऊपर आसमान की ओर देखें।दायाँ घुटना जमीन पर सटा हुआ तथा पँजा अंगुलियों पर खड़ा होगा। ध्यान रखें, हथेलियां जमीन से उठने न पायें।श्वास-प्रक्रिया सामान्य रूप से चलती रहे।
  5. पंचम स्थिति- भूधरासन या दण्डासन -एकपादप्रसारणासन की दशा से अपने बाएँ पैर को भी पीछे ले जाएँ और दाएँ पैर के साथ मिला लें ।हाथों को कंधों तक सीधा रखें । इस स्थिति में आपका शरीर भूमि पर त्रिभुज बनाता है , जिसमें आपके हाथ लम्बवत् और शरीर कर्णवत् होते हैं।पूरा भार हथेलियों और पँजों पर होता है। श्वास-प्रक्रिया सामान्य रहनी चाहिये अथवा कोहनियों को मोड़ कर पूरे शरीर को भूमि पर समानांतर रखना चाहिए। यह दण्डासन है।
  6. षष्ठ स्थिति - साष्टांग प्रणिपात -पंचम अवस्था यानी भूधरासन से साँस छोड़ते हुए अपने शरीर को शनैः शनैः नीचे झुकायें। केहुनियाँ मुड़कर बगलों में चिपक जाना चाहिए। दोनों पंजे, घुटने, छाती, हथेलियाँ तथा ठोढी जमीन पर एवं कमर तथा नितम्ब ऊपर उठा होना चाहिये । इस समय 'ॐ पूष्णे नमः ' इस मंत्र का जप करना चाहिये । कुछ योगी मस्तक को भी भूमि पर टिका देने को कहते हैं।
  7. सप्तम स्थिति - सर्पासन या भुजङ्गासन -छठी स्थिति में थोड़ा सा परिवर्तन करते हुए नाभि से नीचे के भाग को भूमि पर लिटा कर तान दें। अब हाथों को सीधा करते हुए नाभि से ऊपरी हिस्से को ऊपर उठाएं। श्वास भरते हुए सामने देखें या गर्दन पीछे मोड कर ऊपर आसमान की ओर देखने की चेष्टा करें । ध्यान रखें, आपके हाथ पूरी तरह सीधे हो या यदि कोहनी से मुडे हो तो केहुनियाँ आपकी बगलों से चिपकी हों।
  8. अष्टम स्थिति- पर्वतासन -सप्तम स्थिति से अपनी कमर और पीठ को ऊपर उठाइए, दोनों पँजों और हथेलियों पर पूरा वजन डालकर नितम्बों को पर्वतशृङ्ग की भाँति ऊपर उठा दें तथा गर्दन को नीचे झुकाते हुए अपनी नाभि को देखें।
  9. नवम स्थिति - एकपादप्रसारणासन (चतुर्थ स्थिति) -आठवीं स्थिति से निकलते हुए अपना दायां पैर दोनों हाथों के बीच दाहिनी हथेली के पास लाकर जमा दें। कमर को नीचे दबाते हुए गर्दन पीछे की ओर मोड़कर आसमान की ओर देखें ।बायाँ घुटना जमीन पर टिका होगा।
  10. दशम स्थिति – हस्तपादासन -नवम स्थिति के बाद अपने बाएं पैर को भी आगे दाहिने पैर के पास ले आए । हथेलियां जमीन पर टिकी रहने दें । साँस बाहर निकालकर अपने मस्तक को घुटनों से सटा दें । ध्यान रखें, घुटने मुडें नहीं, भले ही आपका मस्तक उन्हें स्पर्श न करता हो।
  11. एकादश स्थिति - ( हस्तोत्तानासन या अर्धचन्द्रासन ) -दशम स्थिति से श्वास भरते हुए सीधे खड़े हों। दोनों हाथों की खुली हथेलियों को सिर के ऊपर ले जाते हुए पीछे की ओर तान दें ।यथा सम्भव कमर को भी पीछे की ओर मोडें।
द्वादश स्थिति -स्थित प्रार्थनासन ( प्रथम स्थिति )
ग्यारहवीं स्थिति से हाथों को आगे लाते हुए सीधे हो जाएँ । दोनों हाथों को नमस्कार की मुद्रा में वक्षस्थल पर जोड़ लें । सभी उँगलियाँ परस्पर जुड़ी हुई तथा अँगूठा छाती से सटा हुआ । कोहनियों को बाहर की तरफ निकालते हुए दोनों हथेलियों पर पारस्परिक दबाव दें।

Benefits of Sun Salutation (Surya Namaskar)


सूर्य नमस्कार के लाभ Benefits of Sun Salutation (Surya Namaskar)
"आदित्यस्य नमस्कारान् ये कुर्वन्ति दिने दिने ।
आयुः प्रज्ञा बलं वीर्यं तेजस्तेषां च जायते।।
अकालमृत्युहरणं सर्वव्याधिविनाशनम्।
सूर्यपादोदकं तीर्थं जठरे धारयाम्यहम्।।"
अर्थात् जो प्रतिदिन सूर्य नमस्कार करते हैं उनकी आयु, बुद्धि, बल, वीर्य एवं तेज (ओज) बढ़ता है। अकाल मृत्यु नहीं होती है तथा सभी प्रकार की व्याधियों का नाश होता है। सूर्य नमस्कार एक सम्पूर्ण व्यायाम है।

सूर्य नमस्कार के 51 लाभ

  1. आँखों की रोशनी बढ़ती है।
  2. आत्मविश्वास में वृद्धि, व्यक्तित्व विकास में सहायक है।
  3. इसका नियमित अभ्यास करने वाले व्यक्ति को हृदय रोग, उच्च रक्तचाप, निम्न रक्तचाप, मधुमेह, गठिया, कब्ज जैसी समस्याओं के होने की आशंका बेहद कम हो जाती है।
  4. इसके अभ्यास से रक्त संचालन तीव्र होता है तथा चयापचय की गति बढ़ जाती है, जिससे शरीर के सभी अंग सशक्त तथा क्रियाशील होते हैं।
  5. इसके अभ्यास से शरीर की लोच शक्ति में आश्चर्यजनक वृद्धि होती है। प्रौढ़ तथा बूढे़ लोग भी इसका नियमित अभ्यास करते हैं तो उनके शरीर की लोच बच्चों जैसी हो जाती है।
  6. इसके नियमित अभ्यास से मोटापे को दूर किया जा सकता है और इससे दूर रहा भी जा सकता है।
  7. कमर लचीली होती है और रीढ़ की हड्डी मजबूत होती है।
  8. कशेरुक व कमर लचीली बनती है।
  9. कार्य करने में कुशलता एवं रूचि बढ़ती है।
  10. क्रोध पर काबू रखने में मददगार होता है।
  11. गले के रोग मिटते है एवं स्वर अच्छा रहता है।
  12. चेहरा तेजस्वी, वाणी सुमधुर एवं ओजस्वी होती है।
  13. त्वचा रोग होने की संभावना समाप्त हो जाती है।
  14. धातुक्षीणता में लाभदायक है।
  15. नलिका विहीन ग्रंथियों की क्रियाशीलता सामान्य एवं संतुलित रहती है।
  16. पचनक्रिया में सुधार होता है।
  17. पाचन सम्बन्धी समस्याओं, अपच, कब्ज, बदहजमी, गैस, अफारे तथा भूख न लगने जैसी समस्याओं के समाधान में बहुत ही उपयोगी भूमिका निभाता है।
  18. पेट के पास की वसा (चर्बी) घट कर भार मात्रा (वजन) कम होती है जिससे मोटे लोगों के वजन को कम करने में यह बहुत ही मददगार होता है।
  19. पैरों एवं भुजाओं की मांसपेशियों को सशक्त करता है। सीने को विकसित करता है।
  20. फुफ्फुसों की कार्य क्षमता बढ़ती है।
  21. बालों को सफेद होने झड़ने व रूसी से बचाता है।
  22. बाहें व कमर के स्नायु बलवान हो जाते हैं।
  23. मधुमेह, मोटापा, थायराइड आदि रोगों में विशेष लाभदायक है।
  24. मन की एकाग्रता बढ़ती है।
  25. मानसिक तनाव, अवसाद, एंग्जायटी आदि के निदान के साथ क्रोध, चिड़चिड़ापन तथा भय का भी निवारण करता है।
  26. मानसिक शांति एवं बल, ओज एवं तेज की वृद्धि करता है।
  27. मोटी कमर को पतली एवं लचीली बनाता है।
  28. यह शरीर के सभी अंगों, मांसपेशियों व नसों को क्रियाशील करता है।
  29. रक्त परिभ्रमण सम्यक् होता है, जिससे मुँह की कांति एवं शोभा बढ़ती है।
  30. रक्त संचार की गति तेज होने से विजातीय तत्त्व शरीर से बाहर निकलते हैं।
  31. रज-वीर्य, दोषों को मिटाता है, महिलाओं में मासिक धर्म को नियमित करता है।
  32. रीढ़ की सभी वर्टिब्रा को लचीला, स्वस्थ एवं पुष्ट करता है।
  33. वात, पित्त तथा कफ को संतुलित करने में मदद करता है। त्रिदोष निवारण में मदद करता है।
  34. शरीर एवं मन दोनों स्वस्थ बनते हैं।
  35. शरीर की अतिरिक्त चर्बी को घटाता है।
  36. शरीर की अनावश्यक मेद (चर्बी) कम होती है।
  37. शरीर की सभी महत्वपूर्ण ग्रंथियों, जैसे पिट्यूटरी, थायराइड, पैराथायराइड, एड्रिनल, लिवर, पैंक्रियाज, ओवरी आदि ग्रंथियों के स्राव को संतुलित करने में मदद करता है।
  38. शरीर के सभी अंगों को पोषण प्राप्त होता है।
  39. शरीर के सभी संस्थान, रक्त संचरण, श्वसन, पाचन, उत्सर्जन, नाड़ी तथा ग्रंथियों को क्रियाशील एवं सशक्त करता है।
  40. शरीर में खून का प्रवाह तेज होता है जिससे ब्लड प्रेशर की बीमारी में आराम मिलता है।
  41. सभी महत्वपूर्ण अवयवों में रक्त संचार बढ़ता है।
  42. सामाजिक कार्यों में रूचि बढ़ती है, मनोऽवसाद दूर होकर उमंग एवं उत्साह बढ़ता है।
  43. सूर्य नमस्कार का असर दिमाग पर पड़ता है और दिमाग ठंडा रहता है।
  44. सूर्य नमस्कार शरीर के समस्त अंग-प्रत्यंग बलिष्ट एवं निरोग होते हैं।
  45. सूर्य नमस्कार से मेरुदण्ड एवं कमर लचीली बनती है। उदर, आंत्र, आमाशय, अग्नाशय, हृदय, फुफ्फुस सहित सम्पूर्ण शरीर को स्वस्थ बनाता है।
  46. सूर्य नमस्कार से विटामिन-डी मिलता है जिससे हड्डियां मजबूत होती हैं।
  47. स्मरण शक्ति तेज होती है।
  48. स्मरण शक्ति तथा आत्म शक्ति में वृद्धि करता है।
  49. हाथ-पैर-भुजा, जंघा-कंधा आदि सभी अंगों की मांसपेशियाँ पुष्ट एवं सुन्दर होती है।
  50. हृदय की मांसपेशियाँ एवं रक्त वाहिनियों स्वस्थ होती हैं।
  51. हृदय व फेफड़ों की कार्यक्षमता बढ़ती है।
अतः सूर्य नमस्कार सम्पूर्ण शरीर का पूर्ण व्यायाम है। इन क्रियाओं को करने के पश्चात् अन्य आसनों को करने की आवश्यकता नहीं रह जाती क्योंकि इन क्रियाओं में सभी आसनों का सार मिला हुआ है। इसलिए शारीरिक एवं मानसिक आरोग्य के लिए सूर्य नमस्कार श्रेयस्कर है।

कैसा हो क्रम -सूर्य नमस्कार गतिशील आसन माना जाता है। इसका अभ्यास आसनों के अभ्यास के पूर्व करना चाहिए। इससे शरीर सक्रिय हो जाता है, नींद, आलस्य व थकान दूर हो जाती है।

सावधानी भी है जरूरी -क्षमता से अधिक चक्रों का अभ्यास या शरीर पर अनावश्यक ज़ोर डालने का प्रयास बिल्कुल न करें। रोग से ग्रसित लोग योग्य मार्गदर्शन में प्रयास करें।

एकाग्रता का ध्यान रखें -श्वास-प्रश्वास एवं शरीर के दबाव बिन्दु पर एकाग्रता बनाए रखें।

सीमाएं भी जानें
  1. इसका अभ्यास सभी आयु वर्ग के लोग अपनी क्षमता का ध्यान रखते हुए कर सकते हैं। पादहस्तासन का अभ्यास साइटिका, स्लिप डिस्क तथा स्पॉन्डिलाइटिस के रोगी कदापि न करें।
  2. फ्रोजन शोल्डर की समस्या से ग्रस्त लोग पर्वतासन, अष्टांग नमस्कार तथा भुजंगासन का अभ्यास न करें।
  3. महिलाएं मासिक धर्म एवं गर्भधारण के दिनों में इसका अभ्यास न करें।
  4. उच्च रक्तचाप तथा हृदय रोगी इसका अभ्यास योग्य मार्गदर्शन में करें।
  5. बच्चों को इसका अभ्यास उचित मार्गदर्शन में कराए ताकि कोई नुकसान न हो।
  6. इसके अभ्यास के लिए सुबह का समय चुनें ताकि खाली पेट कर पाए और अभ्यास करने के आधे घंटे बाद ही खाए।
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    हिन्दी व्याकरण - संधि Hindi Vyakaran - Sandhi



    संधि की परिभाषा -  संधि (सम् + धि) शब्द का अर्थ है 'मेल'। दो निकटवर्ती वर्णों के परस्पर मेल से जो विकार (परिवर्तन) होता है वह संधि कहलाता है। जैसे - सम् + तोष = संतोष ; देव + इंद्र = देवेंद्र ; भानु + उदय = भानूदय।
    हमारी हिंदी भाषा में संधि के द्वारा पूरे शब्दों को लिखने की परंपरा नहीं है। लेकिन संस्कृत में संधि के बिना कोई काम नहीं चलता। संस्कृत की व्याकरण की परम्परा बहुत पुरानी है। संस्कृत भाषा को अच्छी तरह जानने के लिए व्याकरण को पढ़ना जरूरी है। शब्द रचना में भी संधियाँ काम करती हैं।
    or
    पास-पास स्थित पदों के समीप विद्यमान वर्णों के मेल से होने वाले विकार को संधि कहते हैं। संधि के तीन भेद होते हैं-स्वर संधि, व्यंजन संधि और विसर्ग संधि।
    or

    जब दो शब्द मिलते हैं तो पहले शब्द की अंतिम ध्वनि और दूसरे शब्द की पहली ध्वनि आपस में मिलकर जो परिवर्तन लाती हैं उसे संधि कहते हैं। अथार्त संधि किये गये शब्दों को अलग-अलग करके पहले की तरह करना ही संधि विच्छेद कहलाता है। अथार्त जब दो शब्द आपस में मिलकर कोई तीसरा शब्द बनती हैं तब जो परिवर्तन होता है , उसे संधि कहते हैं।
    संधि के उदहारण
    नयन + अभिराम = नयनाभिरामचरण + अमृत = चरणामृत
    परम + अर्थ = परमार्थ
    स + अवधान = सावधान
    संधि के भेद - हिंदी व्याकरण में संधि मुख्य रूप से तीन प्रकार की होती हैं- स्वर संधि, व्यंजन संधि, और विसर्ग संधि

    स्वर संधि
    व्यंजन संधि
    विसर्ग संधि
    स्वर संधि

    जब स्वर के साथ स्वर का मेल होता है तब जो परिवर्तन होता है उसे स्वर संधि कहते हैं। हिंदी में स्वरों की संख्या ग्यारह होती है। बाकी के अक्षर व्यंजन होते हैं। जब दो स्वर मिलते हैं जब उससे जो तीसरा स्वर बनता है उसे स्वर संधि कहते हैं।
    स्वर संधि के उदहारण
    वसुर+अरि = सुरारि (अ+अ = आ)
    विद्या+आलय = विद्यालय (आ+आ = आ)
    मुनि+इन्द्र = मुनीन्द्र (इ+इ = ई)
    श्री+ईश = श्रीश ( ई+ई+ = ई)
    गुरु+उपदेश = गुरुपदेश (उ+उ = ऊ)
    स्वर संधि के प्रकार
    दीर्घ संधि
    गुण संधि
    वृद्धि संधि
    यण संधि
    अयादि संधि
    1. दीर्घ संधि

    जब ( अ , आ ) के साथ ( अ , आ ) हो तो ‘ आ ‘ बनता है , जब ( इ , ई ) के साथ ( इ , ई ) हो तो ‘ ई ‘ बनता है , जब ( उ , ऊ ) के साथ ( उ , ऊ ) हो तो ‘ ऊ ‘ बनता है। अथार्त सूत्र –
    अक: सवर्ण दीर्घ:


    मतलब अक प्रत्याहार के बाद अगर सवर्ण हो तो दो मिलकर दीर्घ बनते हैं। दूसरे शब्दों में हम कहें तो जब दो सुजातीय स्वर आस – पास आते हैं तब जो स्वर बनता है उसे सुजातीय दीर्घ स्वर कहते हैं , इसी को स्वर संधि की दीर्घ संधि कहते हैं। इसे ह्रस्व संधि भी कहते हैं।
    दीर्घ संधि के उदाहरण
    धर्म + अर्थ = धर्मार्थ
    पुस्तक + आलय = पुस्तकालय
    विद्या + अर्थी = विद्यार्थी
    रवि + इंद्र = रविन्द्र
    गिरी +ईश = गिरीश
    मुनि + ईश =मुनीश
    मुनि +इंद्र = मुनींद्र
    भानु + उदय = भानूदय
    वधू + ऊर्जा = वधूर्जा
    विधु + उदय = विधूदय
    भू + उर्जित = भुर्जित।
    2. गुण संधि


    जब ( अ , आ ) के साथ ( इ , ई ) हो तो ‘ ए ‘ बनता है , जब ( अ , आ )के साथ ( उ , ऊ ) हो तो ‘ ओ ‘बनता है , जब ( अ , आ ) के साथ ( ऋ ) हो तो ‘ अर ‘ बनता है। उसे गुण संधि कहते हैं।
    गुण संधि के उदाहरण
    नर + इंद्र + नरेंद्र
    सुर + इन्द्र = सुरेन्द्र
    ज्ञान + उपदेश = ज्ञानोपदेश
    भारत + इंदु = भारतेन्दु
    देव + ऋषि = देवर्षि
    सर्व + ईक्षण = सर्वेक्षण
    3. वृद्धि संधि


    जब ( अ , आ ) के साथ ( ए , ऐ ) हो तो ‘ ऐ ‘ बनता है और जब ( अ , आ ) के साथ ( ओ , औ )हो तो ‘ औ ‘ बनता है। उसे वृधि संधि कहते हैं।
    वृधि संधि के उदाहरण
    मत + एकता = मतैकता
    एक + एक =एकैक
    धन + एषणा = धनैषणा
    सदा + एव = सदैव
    महा + ओज = महौज
    4. यण संधि

    जब ( इ , ई ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ य ‘ बन जाता है , जब ( उ , ऊ ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ व् ‘ बन जाता है , जब ( ऋ ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ र ‘ बन जाता है।
    यण संधि के तीन प्रकार के संधि युक्त्त पद होते हैं।
    य से पूर्व आधा व्यंजन होना चाहिए।
    व् से पूर्व आधा व्यंजन होना चाहिए।
    शब्द में त्र होना चाहिए।


    यण स्वर संधि में एक शर्त भी दी गयी है कि य और त्र में स्वर होना चाहिए और उसी से बने हुए शुद्ध व् सार्थक स्वर को + के बाद लिखें। उसे यण संधि कहते हैं।
    यण संधि के उदाहरण
    इति + आदि = इत्यादि
    परी + आवरण = पर्यावरण
    अनु + अय = अन्वय
    सु + आगत = स्वागत
    अभी + आगत = अभ्यागत
    5. अयादि संधि


    जब ( ए , ऐ , ओ , औ ) के साथ कोई अन्य स्वर हो तो ‘ ए – अय ‘ में , ‘ ऐ – आय ‘ में , ‘ ओ – अव ‘ में, ‘ औ – आव ‘ ण जाता है। य , व् से पहले व्यंजन पर अ , आ की मात्रा हो तो अयादि संधि हो सकती है लेकिन अगर और कोई विच्छेद न निकलता हो तो + के बाद वाले भाग को वैसा का वैसा लिखना होगा। उसे अयादि संधि कहते हैं।
    अयादि संधि के उदाहरण
    ने + अन = नयन
    नौ + इक = नाविक
    भो + अन = भवन
    पो + इत्र = पवित्र
    व्यंजन संधि

    जब व्यंजन को व्यंजन या स्वर के साथ मिलाने से जो परिवर्तन होता है , उसे व्यंजन संधि कहते हैं।
    व्यंजन संधि के उदाहरण
    जगत्+नाथ = जगन्नाथ त्+न = न्न
    सत्+जन = सज्जन त्+ज = ज्ज
    उत्+हार = उद्धार त्+ह =द्ध
    सत्+धर्म = सद्धर्म त्+ध =द्ध
    आ+छादन = आच्छादन आ+छा = च्छा
    व्यंजन संधि के नियम

    (1) जब किसी वर्ग के पहले वर्ण क्, च्, ट्, त्, प् का मिलन किसी वर्ग के तीसरे या चौथे वर्ण से या य्, र्, ल्, व्, ह से या किसी स्वर से हो जाये तो क् को ग् , च् को ज् , ट् को ड् , त् को द् , और प् को ब् में बदल दिया जाता है अगर स्वर मिलता है तो जो स्वर की मात्रा होगी वो हलन्त वर्ण में लग जाएगी लेकिन अगर व्यंजन का मिलन होता है तो वे हलन्त ही रहेंगे। उदहारण -
    क् के ग् में बदलने के उदाहरण
    दिक् + अम्बर = दिगम्बर
    दिक् + गज = दिग्गज
    वाक् +ईश = वागीश
    च् के ज् में बदलने के उदाहरण :
    अच् +अन्त = अजन्त
    अच् + आदि =आजादी
    ट् के ड् में बदलन के उदाहरण :
    षट् + आनन = षडानन
    षट् + यन्त्र = षड्यंत्र
    षड्दर्शन = षट् + दर्शन
    षड्विकार = षट् + विकार
    षडंग = षट् + अंग
    त् के द् में बदलने के उदाहरण :
    तत् + उपरान्त = तदुपरान्त
    सदाशय = सत् + आशय
    तदनन्तर = तत् + अनन्तर
    उद्घाटन = उत् + घाटन
    जगदम्बा = जगत् + अम्बा
    प् के ब् में बदलने के उदाहरण :
    अप् + द = अब्द
    अब्ज = अप् + ज

    (2) यदि किसी वर्ग के पहले वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्) का मिलन न या म वर्ण ( ङ,ञ ज, ण, न, म) के साथ हो तो क् को ङ्, च् को ज्, ट् को ण्, त् को न्, तथा प् को म् में बदल दिया जाता है। उदाहरण -
    क् के ङ् में बदलने के उदाहरण :
    वाक् + मय = वाङ्मय
    दिङ्मण्डल = दिक् + मण्डल
    प्राङ्मुख = प्राक् + मुख
    ट् के ण् में बदलने के उदाहरण :
    षट् + मास = षण्मास
    षट् + मूर्ति = षण्मूर्ति
    षण्मुख = षट् + मुख
    त् के न् में बदलने के उदाहरण :

    उत् + नति = उन्नति

    जगत् + नाथ = जगन्नाथ

    उत् + मूलन = उन्मूलन
    प् के म् में बदलने के उदाहरण :
    अप् + मय = अम्मय

    (3) जब त् का मिलन ग, घ, द, ध, ब, भ, य, र, व से या किसी स्वर से हो तो द् बन जाता है। म के साथ क से म तक के किसी भी वर्ण के मिलन पर ‘ म ‘ की जगह पर मिलन वाले वर्ण का अंतिम नासिक वर्ण बन जायेगा।उदहारण :
    म् + क ख ग घ ङ के उदहारण :
    सम् + कल्प = संकल्प/सटड्ढन्ल्प
    सम् + ख्या = संख्या
    सम् + गम = संगम
    शंकर = शम् + कर
    म् + च, छ, ज, झ, ञ के उदाहरण :
    सम् + चय = संचय
    किम् + चित् = किंचित
    सम् + जीवन = संजीवन
    म् + ट, ठ, ड, ढ, ण के उदाहरण :
    दम् + ड = दण्ड/दंड
    खम् + ड = खण्ड/खंड
    म् + त, थ, द, ध, न के उदाहरण :
    सम् + तोष = सन्तोष/संतोष
    किम् + नर = किन्नर
    सम् + देह = सन्देह
    म् + प, फ, ब, भ, म के उदाहरण :
    सम् + पूर्ण = सम्पूर्ण/संपूर्ण
    सम् + भव = सम्भव/संभव
    त् + ग , घ , ध , द , ब , भ ,य , र , व् के उदाहरण :-
    सत् + भावना = सद्भावना
    जगत् + ईश =जगदीश
    भगवत् + भक्ति = भगवद्भक्ति
    तत् + रूप = तद्रूपत
    सत् + धर्म = सद्धर्म

    (4) त् से परे च् या छ् होने पर च, ज् या झ् होने पर ज्, ट् या ठ् होने पर ट्, ड् या ढ् होने पर ड् और ल होने पर ल् बन जाता है। म् के साथ य, र, ल, व, श, ष, स, ह में से किसी भी वर्ण का मिलन होने पर ‘म्’ की जगह पर अनुस्वार ही लगता है। उदाहरण :-
    म + य , र , ल , व् , श , ष , स , ह के उदाहरण :-
    सम् + रचना = संरचना
    सम् + लग्न = संलग्न
    सम् + वत् = संवत्
    सम् + शय = संशय
    त् + च , ज , झ , ट , ड , ल के उदाहरण :
    उत् + चारण = उच्चारण
    सत् + जन = सज्जन
    उत् + झटिका = उज्झटिका
    तत् + टीका =तट्टीका
    उत् + डयन = उड्डयन
    उत् +लास = उल्लास

    (5)जब त् का मिलन अगर श् से हो तो त् को च् और श् को छ् में बदल दिया जाता है। जब त् या द् के साथ च या छ का मिलन होता है तो त् या द् की जगह पर च् बन जाता है। उदहारण :
    उत् + चारण = उच्चारण
    शरत् + चन्द्र = शरच्चन्द्र
    उत् + छिन्न = उच्छिन्न
    त् + श् के उदहारण :
    उत् + श्वास = उच्छ्वास
    उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट
    सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र

    (6) जब त् का मिलन ह् से हो तो त् को द् और ह् को ध् में बदल दिया जाता है। त् या द् के साथ ज या झ का मिलन होता है तब त् या द् की जगह पर ज् बन जाता है। उदाहरण :
    सत् + जन = सज्जन
    जगत् + जीवन = जगज्जीवन
    वृहत् + झंकार = वृहज्झंकार
    त् + ह के उदाहरण :
    उत् + हार = उद्धार
    उत् + हरण = उद्धरण
    तत् + हित = तद्धित

    (7) स्वर के बाद अगर छ् वर्ण आ जाए तो छ् से पहले च् वर्ण बढ़ा दिया जाता है। त् या द् के साथ ट या ठ का मिलन होने पर त् या द् की जगह पर ट् बन जाता है। जब त् या द् के साथ ‘ड’ या ढ की मिलन होने पर त् या द् की जगह पर‘ड्’बन जाता है। उदाहरण :
    तत् + टीका = तट्टीका
    वृहत् + टीका = वृहट्टीका
    भवत् + डमरू = भवड्डमरू
    अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, + छ के उदाहरण :-
    स्व + छंद = स्वच्छंद
    आ + छादन =आच्छादन
    संधि + छेद = संधिच्छेद
    अनु + छेद =अनुच्छेद

    (8) अगर म् के बाद क् से लेकर म् तक कोई व्यंजन हो तो म् अनुस्वार में बदल जाता है। त् या द् के साथ जब ल का मिलन होता है तब त् या द् की जगह पर ‘ल्’ बन जाता है। उदाहरण :
    उत् + लास = उल्लास
    तत् + लीन = तल्लीन
    विद्युत + लेखा = विद्युल्लेखा
    म् + च् , क, त, ब , प के उदाहरण :
    किम् + चित = किंचित
    किम् + कर = किंकर
    सम् +कल्प = संकल्प
    सम् + चय = संचयम
    सम +तोष = संतोष
    सम् + बंध = संबंध
    सम् + पूर्ण = संपूर्ण

    (9) म् के बाद म का द्वित्व हो जाता है। त् या द् के साथ ‘ह’ के मिलन पर त् या द् की जगह पर द् तथा ह की जगह पर ध बन जाता है। उदहारण :
    उत् + हार = उद्धार/उद्धार
    उत् + हृत = उद्धृत/उद्धृत
    पद् + हति = पद्धति
    म् + म के उदहारण :
    सम् + मति = सम्मति
    सम् + मान = सम्मान

    (10) म् के बाद य्, र्, ल्, व्, श्, ष्, स्, ह् में से कोई व्यंजन आने पर म् का अनुस्वार हो जाता है।‘त् या द्’ के साथ ‘श’ के मिलन पर त् या द् की जगह पर ‘च्’ तथा ‘श’ की जगह पर ‘छ’ बन जाता है। उदहारण :
    उत् + श्वास = उच्छ्वास
    उत् + शृंखल = उच्छृंखल
    शरत् + शशि = शरच्छशि
    म् + य, र, व्,श, ल, स, के उदहारण :-
    सम् + योग = संयोग
    सम् + रक्षण = संरक्षण
    सम् + विधान = संविधान
    सम् + शय =संशय
    सम् + लग्न = संलग्न
    सम् + सार = संसार

    (11) ऋ, र्, ष् से परे न् का ण् हो जाता है। परन्तु चवर्ग, टवर्ग, तवर्ग, श और स का व्यवधान हो जाने पर न् का ण् नहीं होता। किसी भी स्वर के साथ ‘छ’ के मिलन पर स्वर तथा ‘छ’ के बीच ‘च्’ आ जाता है। उदाहरण :
    आ + छादन = आच्छादन
    अनु + छेद = अनुच्छेद
    शाला + छादन = शालाच्छादन
    स्व + छन्द = स्वच्छन्द
    र् + न, म के उदाहरण :
    परि + नाम = परिणाम
    प्र + मान = प्रमाण

    (12) स् से पहले अ, आ से भिन्न कोई स्वर आ जाए तो स् को ष बना दिया जाता है। उदहारण :
    वि + सम = विषम
    अभि + सिक्त = अभिषिक्त
    अनु + संग = अनुषंग
    भ् + स् के उदाहरण :-
    अभि + सेक = अभिषेक
    नि + सिद्ध = निषिद्ध
    वि + सम + विषम

    (13)यदि किसी शब्द में कही भी ऋ, र या ष हो एवं उसके साथ मिलने वाले शब्द में कहीं भी ‘न’ हो तथा उन दोनों के बीच कोई भी स्वर,क, ख ग, घ, प, फ, ब, भ, म, य, र, ल, व में से कोई भी वर्ण हो तो सन्धि होने पर ‘न’ के स्थान पर ‘ण’ हो जाता है। जब द् के साथ क, ख, त, थ, प, फ, श, ष, स, ह का मिलन होता है तब द की जगह पर त् बन जाता है। उदाहरण :-
    राम + अयन = रामायण
    परि + नाम = परिणाम
    नार + अयन = नारायण
    संसद् + सदस्य = संसत्सदस्य
    तद् + पर = तत्पर
    सद् + कार = सत्कार
    विसर्ग संधि

    विसर्ग के बाद जब स्वर या व्यंजन आ जाये तब जो परिवर्तन होता है उसे विसर्ग संधि कहते हैं।
    विसर्ग संधि के उदहारण
    मन: + अनुकूल = मनोनुकूल
    नि:+अक्षर = निरक्षर
    नि: + पाप =निष्पाप
    विसर्ग संधि के 10 नियम होते हैं

    (1) विसर्ग के साथ च या छ के मिलन से विसर्ग के जगह पर ‘श्’बन जाता है। विसर्ग के पहले अगर ‘अ और बाद में भी ‘अ’ अथवा वर्गों के तीसरे, चौथे , पाँचवें वर्ण, अथवा य, र, ल, व हो तो विसर्ग का ओ हो जाता है।उदाहरण :
    मनः + अनुकूल = मनोनुकूल
    अधः + गति = अधोगति
    मनः + बल = मनोबल
    निः + चय = निश्चय
    दुः + चरित्र = दुश्चरित्र
    ज्योतिः + चक्र = ज्योतिश्चक्र
    निः + छल = निश्छल
    तपश्चर्या = तपः + चर्या
    अन्तश्चेतना = अन्तः + चेतना
    हरिश्चन्द्र = हरिः + चन्द्र
    अन्तश्चक्षु = अन्तः + चक्षु

    (2) विसर्ग से पहले अ, आ को छोड़कर कोई स्वर हो और बाद में कोई स्वर हो, वर्ग के तीसरे, चौथे, पाँचवें वर्ण अथवा य्, र, ल, व, ह में से कोई हो तो विसर्ग का र या र् हो जाता ह। विसर्ग के साथ ‘श’ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर भी ‘श्’ बन जाता है।
    दुः + शासन = दुश्शासन
    यशः + शरीर = यशश्शरीर
    निः + शुल्क = निश्शुल्क
    निः + आहार = निराहार
    निः + आशा = निराशा
    निः + धन = निर्धन
    निश्श्वास = निः + श्वास
    चतुश्लोकी = चतुः + श्लोकी
    निश्शंक = निः + शंक

    (3) विसर्ग से पहले कोई स्वर हो और बाद में च, छ या श हो तो विसर्ग का श हो जाता है। विसर्ग के साथ ट, ठ या ष के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘ष्’ बन जाता है।
    धनुः + टंकार = धनुष्टंकार
    चतुः + टीका = चतुष्टीका
    चतुः + षष्टि = चतुष्षष्टि
    निः + चल = निश्चल
    निः + छल = निश्छल
    दुः + शासन = दुश्शासन

    (4)विसर्ग के बाद यदि त या स हो तो विसर्ग स् बन जाता है। यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में अ या आ के अतिरिक्त अन्य कोई स्वर हो तथा विसर्ग के साथ मिलने वाले शब्द का प्रथम वर्ण क, ख, प, फ में से कोई भी हो तो विसर्ग के स्थान पर ‘ष्’ बन जायेगा।
    निः + कलंक = निष्कलंक
    दुः + कर = दुष्कर
    आविः + कार = आविष्कार
    चतुः + पथ = चतुष्पथ
    निः + फल = निष्फल
    निष्काम = निः + काम
    निष्प्रयोजन = निः + प्रयोजन
    बहिष्कार = बहिः + कार
    निष्कपट = निः + कपट
    नमः + ते = नमस्ते
    निः + संतान = निस्संतान
    दुः + साहस = दुस्साहस

    (5) विसर्ग से पहले इ, उ और बाद में क, ख, ट, ठ, प, फ में से कोई वर्ण हो तो विसर्ग का ष हो जाता है। यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में अ या आ का स्वर हो तथा विसर्ग के बाद क, ख, प, फ हो तो सन्धि होने पर विसर्ग भी ज्यों का त्यों बना रहेगा।
    अधः + पतन = अध: पतन
    प्रातः + काल = प्रात: काल
    अन्त: + पुर = अन्त: पुर
    वय: क्रम = वय: क्रम
    रज: कण = रज: + कण
    तप: पूत = तप: + पूत
    पय: पान = पय: + पान
    अन्त: करण = अन्त: + करण
    विसर्ग संधि के अपवाद (1)
    भा: + कर = भास्कर
    नम: + कार = नमस्कार
    पुर: + कार = पुरस्कार
    श्रेय: + कर = श्रेयस्कर
    बृह: + पति = बृहस्पति
    पुर: + कृत = पुरस्कृत
    तिर: + कार = तिरस्कार
    निः + कलंक = निष्कलंक
    चतुः + पाद = चतुष्पाद
    निः + फल = निष्फल

    (6) विसर्ग से पहले अ, आ हो और बाद में कोई भिन्न स्वर हो तो विसर्ग का लोप हो जाता है। विसर्ग के साथ त या थ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ बन जायेगा।
    अन्त: + तल = अन्तस्तल
    नि: + ताप = निस्ताप
    दु: + तर = दुस्तर
    नि: + तारण = निस्तारण
    निस्तेज = निः + तेज
    नमस्ते = नम: + ते
    मनस्ताप = मन: + ताप
    बहिस्थल = बहि: + थल
    निः + रोग = निरोग निः + रस = नीरस

    (7) विसर्ग के बाद क, ख अथवा प, फ होने पर विसर्ग में कोई परिवर्तन नहीं होता। विसर्ग के साथ ‘स’ के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘स्’ बन जाता है।
    नि: + सन्देह = निस्सन्देह
    दु: + साहस = दुस्साहस
    नि: + स्वार्थ = निस्स्वार्थ
    दु: + स्वप्न = दुस्स्वप्न
    निस्संतान = नि: + संतान
    दुस्साध्य = दु: + साध्य
    मनस्संताप = मन: + संताप
    पुनस्स्मरण = पुन: + स्मरण
    अंतः + करण = अंतःकरण

    (8) यदि विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘इ’ व ‘उ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के बाद ‘र’ हो तो सन्धि होने पर विसर्ग का तो लोप हो जायेगा साथ ही ‘इ’ व ‘उ’ की मात्रा ‘ई’ व ‘ऊ’ की हो जायेगी।
    नि: + रस = नीरस
    नि: + रव = नीरव
    नि: + रोग = नीरोग
    दु: + राज = दूराज
    नीरज = नि: + रज
    नीरन्द्र = नि: + रन्द्र
    चक्षूरोग = चक्षु: + रोग
    दूरम्य = दु: + रम्य

    (9) विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के साथ अ के अतिरिक्त अन्य किसी स्वर के मेल पर विसर्ग का लोप हो जायेगा तथा अन्य कोई परिवर्तन नहीं होगा।
    अत: + एव = अतएव
    मन: + उच्छेद = मनउच्छेद
    पय: + आदि = पयआदि
    तत: + एव = ततएव

    (10) विसर्ग के पहले वाले वर्ण में ‘अ’ का स्वर हो तथा विसर्ग के साथ अ, ग, घ, ड॰, ´, झ, ज, ड, ढ़, ण, द, ध, न, ब, भ, म, य, र, ल, व, ह में से किसी भी वर्ण के मेल पर विसर्ग के स्थान पर ‘ओ’ बन जायेगा।
    मन: + अभिलाषा = मनोभिलाषा
    सर: + ज = सरोज
    वय: + वृद्ध = वयोवृद्ध
    यश: + धरा = यशोधरा
    मन: + योग = मनोयोग
    अध: + भाग = अधोभाग
    तप: + बल = तपोबल
    मन: + रंजन = मनोरंजन
    मनोनुकूल = मन: + अनुकूल
    मनोहर = मन: + हर
    तपोभूमि = तप: + भूमि
    पुरोहित = पुर: + हित
    यशोदा = यश: + दा
    अधोवस्त्र = अध: + वस्त्र
    विसर्ग संधि के अपवाद (2)
    पुन: + अवलोकन = पुनरावलोकन
    पुन: + ईक्षण = पुनरीक्षण
    पुन: + उद्धार = पुनरुद्धार
    पुन: + निर्माण = पुनर्निर्माण
    अन्त: + द्वन्द्व = अन्तर्द्वन्द्व
    अन्त: + देशीय = अन्तर्देशीय
    अन्त: + यामी = अंतर्यामी


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    राजीव शुक्‍ला की नैतिकता



    राजीव शुक्‍ला बहुत बड़े पत्रकार है, इतने बड़े ही जो वो कहते है ब्रह्मवाक्य की तरह होता है। कल ही हिन्‍दी दैनिक जागरण में उनका लेख पढ़ा जिस पर उन्होंने वरिष्ठ अधिवक्ता राम जेठमलानी पर कटु शब्दों के तीखे बाण छोड़े थे। राम जेठमलानी दलगत से लेकर अदालत के सारे पाठ मिस्टर मलानी को को पाठ पढ़ा गये। कि राम जेठमलानी की कोई राजनीति नहीं है कल भाजपा में थे फिर कांग्रेस में आये फिर भाजपा के टिकट से राज्यसभा में जा रहे है। राजीव शुक्‍ला दूसरों को राजनीति का पाठ पढ़ाने में बहुत माहिर है किन्तु जब नैतिकता के पालन के बात खुद पर आती है तो वे सारी नैतिकता की रेढ़ मार देते है।

    ये वही राजीव शुक्‍ला है जो कभी मूछ वाले हुआ करते थे आज नैतिकता की दुहाई मे मूँछ को भी खा गये। राजीव शुक्‍ला जी अगर अपना इतिहास देखे तो ये उसी भाजपा को गाली देते नज़र आते है, जिसकी मदद से लोकतांत्रिक कांग्रेस पार्टी के टिकट वो पहली बार राज्‍यसभा से पहुँचे थे और बाद कांग्रेस मे शामिल हो गये। आखिर जिस चीज के लिये शुक्‍ला जी जेठमलानी पर अरोप लगा रहे है वही करके तो वो भी राज्‍यसभा मे पहुँचे थे। दूसरो को नसी‍हत और नैतिकता का पाठ पढ़ना बहुत अच्‍छा लगता है किन्‍तु अपने पर आने पर सारी नैतिकता घोर का पी जाते है ऐसे लोग।

    मैने कहीं पढा था कि आजकल के पत्रकार पत्रकारिता कम और दलाली ज्यादा करते है. राजीव शुक्ल उसकी मिसाल हैं। कानपुर से पत्रकारिता का सफर शुरू हुआ और कुछ ही सालों में करोड़ों का न्यूज चैनल लांच कर देना एक पत्रकार के बूते की बात नहीं। सत्तासीनों से करीबियों की वजह से किसी की गिरेबान में हाथ डालने की हिम्मत भी नहीं। डीएनए और भास्कर की यह खबर वाकई काबिलेतारीफ है, लेकिन शुक्ला जी का कोई बाल भी नहीं टेढ़ा होगा, यह भी मैं कहे देता हूं। बीसीसीआई में हैं तो क्या हुआ सोनिया जी के किचेन कैबिनेट के वे मेंबर भी तो हैं। मै महोदय की बात से बिल्‍कुल सहमत हूं । राजीव शुक्‍ला जैसे लोग नाम और दाम के लिये किसी हद तक जा सकते है और उसी की मिशाल है गांधी परिवार के तलवे चाटते राजीव शुक्‍ला, जो एंडरसन मामले मे राजीव गांधी और कांग्रेस का का बचाव करते आते है।
    आखिर मजरा यही है कि लोग नैतिकता को बेच कर राजनीतिक रोटिया खा रहे है। ऐसे लोगो ने दलगत राजनीति मे घुस कर अपनी भद्द तो करवाते है साथ ही साथ अपने पेशे को भी नही छोड़ते है। कम से कम राजनैतिक लाभ के लिये अपने पेशे से विश्वासघात करना ठीक नही है।


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    मदद - टेम्‍पलेट के लिये ppp



    मुझे अपने फोटो ब्‍लाग Aditi-Mahashakti Ka Photo Blog के लिये बढि़या फोटो टेम्‍पलेट चाहता हूँ, जिसमे फोटो के आकार बड़ा द‍िखे। अगर किसी को ऐसे टेम्‍पलेट के सम्‍बन्‍ध मे जानकारी हो तो देने का कष्‍ट करे। मुझे अभी तक मन का टेम्‍पलेट नही मिल रहा है इसी कारण फोटो की पोस्टिंग नही कर पा रहा हूँ, यदि कोई अच्‍छा टेम्‍पलेट मिलता है तो अच्‍छा रहेगा। धन्‍यवाद


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    इलाहाबाद मिलन का अंतिम सच



    तुम लोग अभी नही हो लेकिन मै तुम्हे बहुत मिस कर रहा हूँ, तुम सब बहुत याद आ रहे हो, किसी के लिये अतिशयोक्ति होगी कि कि वाणी कट्टरता वाला व्यक्ति इतना भावुक हो सकता है, पिछले 36 घंटे मे मै जितनी देर तुम लोगों के साथ रहा और अभी कुछ मिनट पूर्व नीशू और मिथलेश के जाने पर वो 36 घंटो का साथ अब अखर रहा है, वो उन 36 घंटे का परिणाम है कि दोस्त तुम्हारे लिये आँखे नम है, तुम सब जा रहे थे पर दिल कहता था कि कह दूँ एक दिन और रुक जाओ, मुझे पता है कि तुम लोग बस अड्डे पर होगे ..... व्यक्ति को इतना लगाववादी नही होना चाहिये।


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    जूनियर ब्‍लॉगर एसोसिएशन की बैठक के पहले और बाद के आनंद‍ित क्षण



    आखिर में वो बहुत प्रतिक्षित समय आ गया जब जूनियर ब्लॉगर एसोसिएशन के द्वारा नामी जूनियर चिट्ठाकारों का मिलन कार्यक्रम आयोजित किया जाना था। कार्यक्रम का अपना रोमांच और उत्साह था, इसी उत्साह के बल पर हमीरपुर से संतोष कुमार और उनके आग्रह प्रेम कुमार जी दिनांक 15-06 की सुबह 8 बजे इलाहाबाद में मेरे आवास पर पहुंचे।
    जूनियर ब्‍लॉगर एसोसिएशन की ब्‍लागरीय उड़ान
    भ्राता द्वय को जलपान ग्रहण करने के पश्चात उनसे कई विषयों पर महत्वपूर्ण चर्चा थी। उन्होंने भी अपनी चिट्ठकारी की कई खट्टे-पलो को बांटे। काफी देर बाद घर से सूचना आई कि कुछ खाने के लिये मंडी से सब्जियां ले आओ तो सभी लोग टहलते घूमते मंडी की ओर निकल गये। अचानक पंसारी की दुकान पर पहुँचा तो मेरे मुँह यह शब्द निकल आया कि फला चीज का क्या हाल चाल है ? :) इस पर सभी उपस्थित लोग हंस पड़े। कि भाव की जगह हाल चाल क्यों पूछ रहा है क्योकि मै उस टाइम फोन पर था और .......... :)
    जूनियर ब्‍लागर एसोशिएशन की निर्माणाधीन इमारत का विभागीय निरीक्षण

    करीब दोपहर 12 बजे नीशू तिवारी और मिथलेश दुबे भी हमारे द्वार पर दस्तक देकर फोन कर रहे थे। उन्होने बताया कि सलीम खान अपना रिजर्वेशन करवाने के बाद भी कार्यक्रम नहीं पहुंच पा रहे है और लखनऊ रेलवे स्टेशन पर पहुँच कर मिथलेश दूबे का लखनऊ से इलाहाबाद के लिए करवाया रिजर्वेशन टिकट मिथलेश को सौंपा, इस कार्यक्रम में सलीम खान जी उपस्थिति से मै भी उत्साहित था। ईश्वर की अनुकम्पा होगी तो उनसे शीघ्र ही मिलने का कोई कार्यक्रम अवश्य बनेगा। कार्यक्रम की तैयारियों को लेकर हम लोग विभिन्न कार्यों में एक दूसरे का परस्पर सहयोग किया, मुझे सहयोग की भावना इस प्रकार थी कि कभी लगा ही नहीं कि ये अतिथि है और ब्लॉगर मिलन के लिये पधारे है। निश्चित रूप दोनों का सहयोग पाकर बहुत अच्छा लगा।
    कहा ''अदिति'' ने ''अतिथि'' तुम फिर कब आओगे

    जिन लोगों की कार्यक्रम में सहभागिता हो सकती थी, दूरभाष के द्वारा संपर्क किया गया और उनकी स्थिति को जाना गया है। कार्यक्रम में वीनस केसरी जी समय से पूर्व उपस्थित होकर हमारे मध्य उत्साह को दोगुना करने का काम किया, यह हमारे लिये हर्ष का विषय है कि जो भी आया समय को महत्व देते हुए आया। घर में ही दो चिट्ठाकार होने के बाद भी कामों की वजह से वो भाग नहीं ले सकें किंतु उसका मुझे लाभ मिला और मै पूर्ण समय कार्यक्रम में बना रहा।
    ऐतिहासिक आकाशीय क्षण

    कार्यक्रम 2 बजे प्रारंभ होना था कि यात्रा के कारण थकावट सवार थी मिथलेश जी और नीशू जी में, इस कारण भोजन प्रारम्भ करने में विलंब हुआ, हमारे द्वारा लघु सहभोज आयोजित किया गया, जिसका सभी लोगो गर्मजोशी और आनंद के साथ भोजन ग्रहण किया, भोजन के पश्चात ठीक 3 बजे हमारा कार्यक्रम प्रारम्भ हुआ और यह करीब 5.30 बजे इसके बाद, शहर के विभिन्न इलाकों का भ्रमण का लुफ्त उठाया गया।
    रात्रि दो बजे विशेष रणनीति होने के बाद निश्चिंत मुद्रा मे
    हमारे द्वारा कार्यक्रम का पूर्ण आनंद लिया गया, 24 घंटे इंटरनेट सेवा होने के बाद भी हम लोगों ने कार्यक्रम को इंजॉय करना ज्यादा महत्वपूर्ण समझा इसलिए कार्यक्रम के बाद किसी पोस्‍ट को छापने और इंटरनेट पर समय व्यर्थ के बजाय एक दूसरे के समझने का बेहतर प्रयास किया। कार्यक्रम आधारित पोस्ट शीघ्र ही प्रस्तुत होगी, जिसकी सार्थकता को आप स्वयं सिद्ध करेगे।
     
    शीघ्र ही फिर मिलना होगा,

    जय श्रीराम- भारत माता की जय


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    100+ Best Motivational Thoughts in Hindi – सर्वश्रेष्ठ अनमोल वचन



    100+ Best Motivational Thoughts in Hindi
    1. अगर आप किसी काम के बारे में बहुत सोचते हो, तो आप वो काम नहीं कर पाओगे। – ब्रूस ली
    2. अगर सफलता का कोई रहस्य है, तो वो इस योग्यता में निहित है कि दूसरे व्यक्ति की बात को समझना और चीजों को उसके और अपने नजरिए से देख पाना। – हेनरी फोर्ड
    3. अगर हम हल का हिस्सा नहीं है, तो हम समस्या है। – शिव खेड़ा
    4. अधिक अनुभव, अधिक सहनशीलता और अधिक अध्ययन यही विद्वत्ता के तीन महास्तंभ हैं।- अज्ञात
    5. अधिक हर्ष और अधिक उन्नति के बाद ही अधिक दुख और पतन की बारी आती है।-जयशंकर प्रसाद
    6. अध्यापक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं। वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से उन्हें सींच-सींच कर महाप्राण शक्तियाँ बनाते हैं।- महर्षि अरविंद
    7. अनुभव, ज्ञान उन्मेष और वयस् मनुष्य के विचारों को बदलते हैं।- हरिऔध
    8. अनुराग, यौवन, रूप या धन से उत्पन्न नहीं होता। अनुराग, अनुराग से उत्पन्न होता है।- प्रेमचंद
    9. अपना जीवन जीने के दो तरीके है, एक मायने के कुछ भी चमत्कार नहीं है, दूसरे मायने के सब कुछ चमत्कार है। – अब्राहम लिंकन
    10. अपने ज्ञान के प्रति जरूरत से अधिक यकीन करना मूर्खता है। ये याद रखें कि सबसे मजबूत कमजोर हो सकता है और सबसे बुद्धिमान गलती कर सकता है। – महात्मा गांधी
    11. अपने मिशन में कामयाब होने के लिए, आपको अपने लक्ष्य के प्रति एकचित निष्ठावान होना पड़ेगा। – अब्दुल कलाम
    12. अपने विषय में कुछ कहना प्राय: बहुत कठिन हो जाता है क्योंकि अपने दोष देखना आपको अप्रिय लगता है और उनको अनदेखा करना औरों को।- महादेवी वर्मा
    13. अपने ह्रदय में उस दिव्य चिंगारी, जिसे अंतरात्मा कहते है, को जिंदा रखने के लिए मेहनत करो। – जॉर्ज वाशिंगटन
    14. अहसास के साथ आप जो कुछ भी यकीन करते हैं वही आपकी हकीक़त बन जाती है।
    15. आप अपने चरित्र व साहस का निर्माण किसी अन्य के अवसर व स्वतंत्रता को छीनकर नहीं कर सकते। – अब्राहम लिंकन
    16. आभार,आत्मा से उत्पन्न होने वाली सबसे खूबसूरत कली है। – हेनरी वार्ड बीचर
    17. इस दुनिया में सभी भेद-भाव किसी स्तर के है, ना कि प्रकार के, क्योंकि एकता ही सभी चीजों का रहस्य है। – स्वामी विवेकानंद
    18. उत्कृष्टता एक सतत प्रक्रिया है कोई दुर्घटना नहीं। – अब्दुल कलाम
    19. उन लोगों के अटल साहस से ज्यादा प्रभावशाली कुछ भी नहीं है, जो अपनी आजादी और सम्मान के लिए दुःख सहने और त्याग करने के लिए तैयार है। – मार्टिन लूथर किंग जेआर
    20. एक मूर्ख खुद को बुद्धिमान समझता है, लेकिन बुद्धिमान व्यक्ति खुद को मूर्ख समझता है। – विलियम शेक्सपियर
    21. एक संतुलित मन के बराबर कोई तपस्या नहीं है. संतोष के बराबर कोई ख़ुशी नही है, लोभ के जैसी कोई बीमारी नहीं है दया के जैसा कोई सदाचार नहीं है। – चाणक्य
    22. एक सफल आदमी बनने की कोशिश करने के बजाए आप एक ऐसा व्यक्ति बनने की कोशिश करें जो अपनी बात का पक्का हो। – अल्बर्ट आइंस्टीन
    23. कभी भी घृणा को घृणा से खत्म नहीं किया जा सकता घृणा प्यार से कम होती है. यह एक अटल नियम है। – बुद्ध
    24. कभी-कभी सफलता सही निर्णय लेने के बारे में नहीं होती, ये बस कोई निर्णय लेने के बारे में होती है। – रोबिन शर्मा
    25. करुणा में शीतल अग्नि होती है जो क्रूर से क्रूर व्यक्ति का हृदय भी आर्द्र कर देती है।- सुदर्शन
    26. कवि और चित्रकार में भेद है। कवि अपने स्वर में और चित्रकार अपनी रेखा में जीवन के तत्व और सौंदर्य का रंग भरता है।- डॉ. रामकुमार वर्मा
    27. कविता का बाना पहन कर सत्य और भी चमक उठता है।- अज्ञात
    28. कुछ भी आपको शारीरिक, बौद्धिक और आध्यात्मिक रूप से कमजोर बनाता हो उसे झर समझ के उसका बहिष्कार करे। – स्वामी विवेकानंद
    29. कुछ भी इतना कठिन नहीं है अगर आप उसे छोटे-छोटे कार्यो में विभाजित कर ले। – हेनरी फोर्ड
    30. कुटिल लोगों के प्रति सरल व्यवहार अच्छी नीति नहीं।- श्री हर्ष
    31. कोई ख़ुशी से जो भी करता है, स्वास्थ्य के लिए अच्छा है। – महात्मा गांधी
    32. कोई भी उस व्यक्ति से प्रेम नहीं करता, जिससे वो डरता है। – अरस्तु
    33. खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है। – स्वामी विवेकानंद
    34. ख़ुशी तब होती है जब आप जो सोचते है जो कहते है और जो करते है, सब में संतुलन होता है। – विलियम शेक्सपियर
    35. गर्व लक्ष्य को पाने के लिए किए गए प्रयत्न में निहित है, ना की उसे पाने में। – महात्मा गांधी
    36. चरित्र को हम अपनी बात मनवाने का सबसे प्रभावी माध्यम कह सकते है। – अस्तु
    37. जंज़ीरें, जंज़ीरें ही हैं, चाहे वे लोहे की हो या सोने की, वे समान रूप से तुम्हें गुलाम बनाती हैं।- स्वामी रामतीर्थ
    38. जहाँ प्रकाश रहता है वहाँ अंधकार कभी नहीं रह सकता।- माघ
    39. जिंदगी एक साइकिल की तरह है, अगर आपको बैलेंस बनाकर रखना है तो आपको पैडल मारते रहना होगा। – अल्बर्ट आइंस्टीन
    40. जिस प्रकार बिना जल के धान नहीं उगता उसी प्रकार बिना विनय के प्राप्त की गयी विधा फलदायी नहीं होती। – भगवान महावीर
    41. जीवन में सफल होने का सबसे बढ़िया तरीका है, उस नसीहत पर काम करना जो दुसरो को देते है। – मदर टेरेसा
    42. जैसे अंधे के लिए जगत अंधकारमय है और आँखों वाले के लिए प्रकाशमय है वैसे ही अज्ञानी के लिए जगत दुखदायक है और ज्ञानी के लिए आनंदमय।- संपूर्णानंद
    43. जैसे जल द्वारा अग्नि को शांत किया जाता है वैसे ही ज्ञान के द्वारा मन को शांत रखना चाहिए।- वेदव्यास
    44. जो अपने ऊपर विजय प्राप्त करता है वही सबसे बड़ा विजयी हैं।- गौतम बुद्ध
    45. जो अपने दिल से काम नहीं कर सकते वे हासिल करते है, लेकिन बस खोखली चीजे अधूरे मन से मिली सफलता अपने आस-पास कड़वाहट पैदा करती है। – अब्दुल कलाम
    46. जो दीपक को अपने पीछे रखते हैं वे अपने मार्ग में अपनी ही छाया डालते हैं।- रवींद्र
    47. जो दूसरों में बुराई ढूंढते है, उन्हें निश्चित तोर पर बुराई मिल भी जाती है। – अब्राहम लिंकन
    48. जो बहाने बनाने में अच्छा है, वो शायद ही किसी और काम में अच्छा हो। – बेजामिन फ्रकलिन
    49. ज्ञान, दवा और हिम्मत तीन ऐसे नैतिक गुण है, जो पूरे विश्व में मान्य है। – कवयुशिय्स
    50. तलवार ही सब कुछ है, उसके बिना न मनुष्य अपनी रक्षा कर सकता है और न निर्बल की।- गुरु गोविंद सिंह
    51. त्योहार साल की गति के पड़ाव हैं, जहाँ भिन्न-भिन्न मनोरंजन हैं, भिन्न-भिन्न आनंद हैं, भिन्न-भिन्न क्रीड़ास्थल हैं - बरुआ
    52. दुखियारों को हमदर्दी के आँसू भी कम प्यारे नहीं होते- प्रेमचंद
    53. दुनिया का सबसे बड़ा धर्म है अपने स्वभाव में अपने आप के प्रति सच्चे रहना, अपने आप पर विश्वास रखो हमेशा। – स्वामी विवेकानंद
    54. दुनिया की सबसे खुबसूरत चीजे न ही देखी जा सकती है और ना छुई, उन्हें बस दिल से महसूस किया जा सकता है। – हेलेन केलर
    55. दुनिया मजाक करे या तिरस्कार, उसकी परवाह किए बिना मनुष्य को अपना कर्तव्य करते रहना चाहिए। – स्वामी विवेकानंद
    56. नजरिया एक छोटी सी चीज है जिससे बहुत फर्क पड़ता है। – विस्टन चचिर्ल
    57. नजरिया एक छोटी सी चीज है,जिससे बहुत फर्क पड़ता है। – विंस्टन च्रिचर्ल
    58. नम्रता और मीठे वचन ही मनुष्य के आभूषण होते हैं। शेष सब नाममात्र के भूषण हैं।- संत तिरुवल्लुवर
    59. नेकी से विमुख हो जाना और बदी करना नि:संदेह बुरा है, मगर सामने हँस कर बोलना और पीछे चुगलखोरी करना उससे भी बुरा है।- संत तिरुवल्लुवर
    60. प्रत्येक बालक यह संदेश लेकर आता है कि ईश्वर अभी मनुष्यों से निराश नहीं हुआ है।- रवींद्रनाथ ठाकुर
    61. बदलाव प्रारम्भ में सबसे कठिन, मध्य में सबसे बेकार और अंत में सबसे अच्छा होता है। – रॉबिन शर्मा
    62. बाधाएं वो डरावनी चीजे है, जो आप तब देखते है जब आप लक्ष्य से अपनी आँखे हटा लेते है। – हेनरी फोर्ड
    63. बिना सेहत के जीवन, जीवन नहीं है, बस पीड़ा की एक स्थति है, मोंत की छवि है। – गोतम बुद्ध
    64. बीते हुए कल से सीखें, आज के लिए जिए और आने वाले कल के लिए उम्मीद रखे। – अल्बर्ट आइंस्टीन
    65. बुराई को देखना और सुनना ही बुराई की शुरुआत है। – कन्फ्यूशियस
    66. भय ही पतन और पाप का मुख्य कारण है। – स्वामी विवेकानंद
    67. भाग्य के विपरीत होने पर अच्छा कर्म भी दुःखदायी हो जाता है। – चाणक्य
    68. मनुष्य अपने सबसे अच्छे रूप में सभी जीवों में सबसे उदार होता है, लेकिन यदि कानून और न्याय न हो तो वो सबसे खराब बन जाता है। – अरस्तु
    69. मनुष्य का जीवन एक महानदी की भाँति है जो अपने बहाव द्वारा नवीन दिशाओं में राह बना लेती है।- रवींद्रनाथ ठाकुर
    70. मनुष्य क्रोध को प्रेम से, पाप को सदाचार से लोभ को दान से और झूठ को सत्य से जीत सकता है।- गौतम बुद्ध
    71. मन्त्रणा के समय कर्तव्य पालन में कभी ईर्ष्या नहीं करनी चाहिए। – चाणक्य
    72. महान सौंदर्य, अत्यधिक ताकत, बहुत धन का वास्तव में कुछ खास उपयोग नहीं है. एक सच्चा हृदय सबसे ऊपर है।– बेजामिन फ्रकलिन
    73. महान सौंदर्य, अत्यधिक ताकत, बहुत धन का वास्तव में कुछ खास उपयोग नहीं है। एक सच्चा हृदय सबसे ऊपर है। – बेंजामिन फ्रैंकलिन
    74. मित्रों का उपहास करना उनके पावन प्रेम को खंडित करना है।- राम प्रताप त्रिपाठी
    75. मुठ्ठी भर संकल्पवान लोग जिनकी अपने लक्ष्य में दृढ़ आस्था है, इतिहास की धारा को बदल सकते हैं। -महात्मा गांधी
    76. यदि आप सभी गलतियों के लिए दरवाजे बंद कर देंगे तो सच बाहर रह जाएगा। – रवीन्द्रनाथ टैगोर
    77. यदि हमारे मन में शांति नहीं है तो इसकी वजह है कि हम यह भूल चुके है कि हम एक दुसरे के है। – मदर टेरेसा
    78. ये मायने नहीं रखता की आप कहाँ से आ रहे है, बस ये मायने रखते है कि आप कहाँ जा रहे है। – ब्रायन ट्रेसी
    79. लोग क्या सोचेंगे, इस बात की चिंता करने की बजाए क्यों न कुछ ऐसा करने में समय लगाए जिसे प्राप्त करने पर लोग आप की प्रशंसा करें। – डेल कानेर्गी
    80. लोग हमारी परवाह नहीं करते है कि आप कितना जानते है, वो ये जानना चाहते है कि आप कितना ख्याल रखते है। – शिव खेड़ा
    81. वही उन्नति करता है जो स्वयं अपने को उपदेश देता है।- स्वामी रामतीर्थ
    82. विद्रोह को क्रांति नहीं कहा जा सकता, यह हो सकता है कि विद्रोह का अंतिम परिणाम क्रांति हो। – भगत सिंह
    83. विश्व के सभी धर्म, भले ही और चीजों में अंतर रखते हो, लेकिन सभी इस बात पर एकमत है कि दुनिया में कुछ नहीं बस सत्य जीवित रहता है। – महात्मा गांधी
    84. विश्वास वो शक्ति है जिससे उजड़ी हुई दुनिया में प्रकाश किया जा सकता है। – हेलेन केलर
    85. शरीर को स्वस्थ रखना हमारा कर्तव्य है, वरना हम अपने दिमाग को स्वच्छ और मजबूत नहीं रख पाएंगे – बुद्ध
    86. शिक्षित मन की यह पहचान है कि वो किसी भी विचार को स्वीकार किये बिना उसके साथ सहज रहे। – अरस्तु
    87. सच्चे साहित्य का निर्माण एकांत चिंतन और एकांत साधना में होता है।- अनंत गोपाल शेवडे
    88. समझदार आदमी को सारस की तरह होश से काम लेना चाहिए. जगह, वक्त और अपनी योग्यता को समझते हुए कार्य को सिद्ध करना चाहिए। – चाणक्य
    89. समझदार होने की असली निशानी ज्ञान नहीं है बल्कि कल्पना करने की आपकी सकती है। – अल्बर्ट आइंस्टीन
    90. स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है!- लोकमान्य तिलक
    91. स्वस्थ नागरिक किसी देश के लिए सबसे बड़ी सम्पति होते है। – विस्टन
    92. हजार योद्धाओं पर विजय पाना आसान है, लेकिन जो अपने ऊपर विजय पाता है वही सच्चा विजयी है। – गौतम बुद्ध
    93. हताश न होना सफलता का मूल है और यही परम सुख है। उत्साह मनुष्य को कर्मों में प्रेरित करता है और उत्साह ही कर्म को सफल बनाता है।- वाल्मीकि
    94. हताश न होना ही सफलता का मूल है और यही परम सुख है।- वाल्मीकि
    95. हम जितना अध्ययन करते है, उतना ही हमें अपने अज्ञान का आभास होता जाता है। – स्वामी विवेकानंद
    96. हम सब यहाँ किसी खास वजह से है अपने अतीत के कैदी बनना छोड़िए. अपने भविष्य के निर्माता बनिए। – रोबिन शर्मा
    97. हम सभी एक दुसरे की मदद करना चाहते है, मनुष्य ऐसे ही होते है, हम एक दूसरे के सुख के लिए जीना चाहते है दुःख के लिए नहीं। – चार्ली चैपलिन
    98. हमें नई परिस्थितियों में नई सोच के साथ काम करना चाहिए। – अब्राहम लिंकन
    99. हमें भूत के बारे में पछतावा नहीं करना चाहिए, ना ही भविष्य के बारे में चिंतित होना चाहिए, विवेकवान व्यक्ति हमेशा वर्तमान में जीते है। – चाणक्य
    100. हमेशा याद रखो कि आपका अपना सफल होने का संकल्प ही किसी भी चीज से ज्यादा महत्वपूर्ण है। – अब्राहम लिंकन
    101. हमेशा सही करे, ये कुछ लोगो को संतुष्ट करेगा और बाकियों को अचंभित। – मार्क
    102. हार से डरो मत..कोशिश अच्छी हो तो हारना भी यशस्वी होता है। – ब्रूस ली


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    ब्‍लागिंग वाले गुंड़ो मै "महाशक्ति" चुनौती स्‍वीकार करता हूँ



    कानपुर से लौटा जाने से पूर्व एक पोस्ट की थी, लौट कर देखा नेट खराब था नेट ठीक हुआ तो देखा कि उस पोस्ट पर तो किसी दादा जी द्वारा बहुत अभद्र शब्दों प्रयोग था जिसे हटाया जाना ही ठीक था। इस प्रकार के शब्दों का प्रयोग कतई उचित नहीं है। अत: उसे आते ही हटाना उचित समझा। क्योंकि यह सर्वथा उचित नहीं है।

    कुछ लोग चिट्टाकारी की मार्यादाओ की सीमा को लांग रहे है, जब ऐसा करने वाले लोग 40-45 साल उम्र की सीमा पार करने वाले लोग करते है बहुत झोभ होता है। हाल मैंने दो सज्जनों के ब्लॉग पर अपने नाम को देखा है, अकारण प्रत्यक्ष नामोल्लेख करके लिखना बहुत खेद जनक है। मै खुद इस बात से हत प्रभ हूँ कि अपने आपको खुद वरिष्‍ठ कहने वाले लोग मर्यादा भंग करते है। कहावत है कि नंगो से खुद भी डरता है मै तो इंसान हूँ यही सोच कर अभी तक इग्नोर कर रहा था किन्तु अब सिर से पानी ऊपर हो गया है बात खुदा से श्रीकृष्ण तक जा पहुँची है, ऐसे नंगो की #@*^%& ढकने की पूरी तैयारी जूनियर ब्लॉगर एसोसिएशन खुद करेगा।

    जहाँ तक मुझे याद है कि मेरे द्वारा किसी के नाम का उल्लेख करते हुये कोई भूत में लेख लिखा किंतु जिस प्रकार उनके द्वारा प्रत्यक्ष रूप से मेरे नाम का उल्लेख किया, वह मर्यादा विरूद्ध है, किसी पाठक ने कुछ समय पूर्व टिप्‍प्‍णी मे सही कहा था कि जब बुर्जुग मर्यादा को खूंटी पर टांग दें तो इससे बुरा और क्या हो सकता है?

    मुझे हंसी आती है उन महान पाठको और टिप्पणीकारों पर जिनको आदर्श मानता हूँ वे ऐसे भद्दे, फूहड़ तथा व्यक्तिगत आक्षेप से व्‍यंग को बिना पढ़ कर लोग सर्वोत्तम व्‍यंग का दर्जा देने वाले ब्‍लागर समूह को चाहिये कि नाम पर टिप्पणी करने के बजाय उनके काम और लेखन पर टिप्पणी करें तो अपने आप नीर-क्षीर अलग हो जायेगा। किन्तु ब्लॉगरों की आदत ही है बिना पढ़े टिप्‍पणी करने की और व्यंग का लेबल देख कर ठेल दी महान व्यंग की उपाधि देती हुई टिप्‍पणी, चाहे वाह करने वाली की माँ-बहन की ही #@*^%& कर दी गई हो, ब्लॉगरों की आदत ही हो गई है वह कोठे पर बैठकर वाह वाह करने वालो की तरह, जैसे वहाँ बैठ कर वाह-वाह करते है वैसे ही यहाँ भी टिप्पणी कर बधाई देते नजर आते है।

    उस तथाकथित पोस्ट पर मात्र रचना जी ने ही सार्थक टिप्‍पणी की जो वास्तव मे पोस्ट को पढ़ा, अन्यथा एक दिन मे सर्वाधिक टिप्‍पणी करने का रिकॉर्ड दर्ज करने वाले तथा सदी के महान ब्लागर भी उस पोस्ट को साधुवाद देते नज़र आये, राक्षसी पोस्ट पर उम्‍दा नामक टिप्‍प्‍णी अमेरिका, जर्मनी, इंग्लैंड, लखनऊ तथा पता नही कहाँ से आयी पर बिना पोस्ट पढ़े टिप्‍पणी करने की आदत न बदल पायी।

    महान परसाई की प्रशिद्ध दत्तक औलाद के शब्‍दो मे महाशक्ति के बारे दो लाईन - वो ‘महाशक्ति'…हाँ!…वही जिसे अपनी शक्ति पे बड़ा नाज़ है…असल में तो उसे खुद नहीं पता कि उसकी शक्ति का ह्रास हुए तो मुद्दतें बीत चुकी हैं मुझे उनके शब्‍दो से अपने बारे जानकर अच्‍छा लगा कि महाशक्ति के शक्ति ह्रास के बारे जानकारी रखते है, मतलब महाशक्ति के दम के बारे मे पूरी जानकारी है, और जानकारी नही रही होगी तो अपने पुरखो से पता कर ली होगी।

    लगातार मेरे नाम महाशक्ति/प्रमेन्द्र को लेकर, इलाहाबाद को लेकर तथा जूनियर ब्लॉग एसोसिएशन के बारे भिन्न लोगों ने लगातार पोस्ट ठेले जा रहे है, जैसे जूनियर ब्लॉगर एसोसिएशन को लेकर उनकी #@*^%& मे किसी ने मिर्ची ठूस दी हो और दर्द के मारे भद्दी पोस्‍टों की दस्त कर रहे है।

    जहाँ तक महाशक्ति की शक्ति ह्रास की बात है तो कुछ पारस्परिक मित्रों के कहने पर मैंने लगातार विवादों की जंग में मंदक की भूमिका निभाई और जो कुछ भी मैंने इस मसले पर चुप रह कर किया, उसी का परिणाम था कि प्रतिनिधि मंडल मेरठ गया और प्रस्तुत मसले का कुछ हल निकाल सका। मैंने पूरे संयम के साथ मामले पर नियंत्रित करने का किया, पर कुछ पिचालियों को सूअरों की भांति गंदगी मे लौटने में आनंद मिलता है। जहाँ उस विवाद में मैंने विवाद को निपटाने का जिन मित्रों से वादा किया था वो मैंने निभाया किन्तु वर्तमान में जो लोग अब गलत दिशा मे बात ले जा रहे है, अगर कुछ लोगों को इसी में मजा आता है तो मै अब स्‍वयं चुनौती लेने का तैयार हूँ। मै इस मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं करूँगा और जरूरत पड़ी तो ही सामने आऊँगा। जो मित्रगण मठाधीशी की ध्‍वस्‍त करने मे लगे है वही आप लोगो के लिये काफी है, मुझे नहीं लगता कि मेरी इस प्रकरण में जरूरत है, अब कोई भी व्यक्ति मेरे से सम्‍पर्क करने की कोशिश न करे, क्योंकि जहां तक मेरा काम था मै कर चुका हूँ। अगर अब वो गलत भी करते है तो मै पूर्ण रूप से उनके साथ हूँ।

    अब जो लोग भी "जूनियर ब्लॉगर एसोसिएशन तथा उससे जुड़े किसी भी व्यक्ति का नाम करते हुये अभद्र पोस्‍ट लिखेगा तो अपनी भद्द करवाने का खुद जिम्मेदार होगा", जूनियर ब्लॉगर एसोसिएशन का प्रत्‍येक सदस्‍य अपना विरोध ऐसे वाहियात पोस्‍टो पर साम-दाम-दंड-भेद के साथ दर्ज करने के लिए स्वतंत्र है।


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    आज कानपुर में ppp



    आज रात्रि 7 जून तथा कल 8 जून को मै कानपुर मे रहूँगा, कल 10 बजे से अपने कार्य समाप्ति तक व्‍यस्‍तता रहेगी। 10 बजे से पूर्व तथा इलाहाबाद के लिये ट्रेन पकड़ने से पहले समय मिला तो परिचित अपरचित ब्‍लारगों तथा मित्रों से मिलने की कोशिश रहेगी।


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