भारत के प्रत्येक राज्य में राज्यपाल पद की संवैधानिक व्यवस्था है, राज्यपाल अपने पद को भारत के संविधान की अनुच्छेद 153 के अन्तर्गत किया गया है। यह राज्य कार्य पालिका का सर्वोच्च अंग होता है जिसकी नियुक्ति भारत के महामहीम राष्ट्रपति द्वारा की जाती है जो केन्द्रीय सरकार द्वारा नामित व्यक्ति होता है।
राज्यपाल की योग्यता संविधान के अनुच्छेद 157 में उल्लेख किया गया है और पद को धारण करने के लिये शर्तो का उल्लेख संविधान के अनुच्छेद 158 में उल्लिखित है। सामान्य रूप से राज्यपाल का कार्यकाल 5 वर्ष के लिये होता है किन्तु संविधान के अनुच्छेद 156 के अधीन राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त अपना पद धारण कर सकता है। राज्यपाल को उसके पद और गोपनीयता की शपथ उस राज्य के उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अथवा उनकी अनुपस्थिति में वरिष्ठतम न्यायाधीश दिलाता है।
संविधान के अनुसार राज्यपाल के तीन रूप देखते को मिलते है प्रथम राज्य मंत्रिमंडल के सालाह पर चलने वाला, द्वितीय कि केन्द्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप मे कार्य करने वाल और तृतीय कि स्वाविवेक से कार्य करना जिसमे प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को मानना आवश्यक नहीं है।
राज्यपाल को अपने पद धारण करने पर निम्म शक्तियाँ प्राप्त होती है -
- कार्यपालकीय शक्तियाँ - राज्य की कार्य पालिका शक्ति राज्यपाल में निहित होती है, और राज्य के समस्त कार्यपालकीय कार्य राज्यपाल के नाम पर ही सम्पादित किये जाते है।
- वित्तीय शक्तियाँ - राज्यपाल के सिफारिश के बिना कोई भी धन विधेयक विधानसभा में पेश नहीं किया जा सकता है। (अनुच्छेद 166-1), राज्यपाल की संस्तुति के बिना कोई भी अनुदान मांग प्रस्तुत नहीं किया जा सकता है। (अनुच्छेद 203-3), राज्य का साधारण बजट राज्यपाल द्वारा ही प्रस्तुत किया जाता है। (अनुच्छेद 202)
- विधायी शक्तियाँ - राज्यपाल ही विधान मंडल के सदनों की बैठकों को आहूत करता है, वह दोनों सदनों का सत्रावसान व भंग करने की शक्ति रखता है। (अनुच्छेद 174-1,2)
- न्यायिक शक्तियाँ- मृत्युदंड को छोड़कर राष्ट्रपति के समान ही क्षमादान की शक्ति निहित है
- अध्यादेश जारी करने की शक्ति - राज्यपाल को भी राष्ट्रपति के भांति अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्राप्त है (अनुच्छेद 202)
त्रिपुरा के राज्यपाल का राजभवन
भारतीय संविधान के अनुसार भारत के किसी राज्य के राज्यपाल की निम्न अधिकार एवं कर्तव्य है-
153. राज्यों के राज्यपाल
प्रत्येक राज्य के लिये एक राज्यपाल होगा : परन्तु इस अनुच्छेद की कोई बात ही एक व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों के लिये राज्यपाल नियुक्त किये जाने से निवारित नहीं करेगी।
154. राज्य की कार्यपालिका शक्ति-
(1) राज्य की कार्य पालिका शक्ति राज्यपाल में निहित होगी और वह इसका प्रयोग इस संविधान के अनुसार स्वयं अपने अधीनस्थ अधिकारियों के द्वारा करेगा।
(2) इस अनुच्छेद की कोई बात
(क) किसी विद्यमान विधि द्वारा किसी अन्य प्राधिकारी के प्रदान किये गये कृत्य राज्यपाल को अंतरित करने वाली नहीं समझी जायेगी, या
(ख) राज्यपाल के अधीनस्थ किसी प्राधिकारी को विधि द्वारा कृत्य प्रदान करने से संसद या राज्य के विधान मंडल को निवारित नहीं करेगी।
155. राज्यपाल की नियुक्ति
राज्य के राज्यपाल को राष्ट्रपति अपने हस्ताक्षर और मुद्रा सहित अधिपत्र द्वारा नियुक्त करेगा।
156. राज्यपाल की पदावधि-
(1) राज्यपाल, राष्ट्रपति के प्रसादपर्यन्त पद धारण करेगा। (2) राज्यपाल, राष्ट्रपति को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा अपना पद त्याग सकेगा।(3) इस अनुच्छेद के पूर्वगामी उपबंधों के अधीन रहते हुये राज्यपाल अपने पद ग्रहण की तारीख से पांच वर्ष की अवधि तक पद धारण करेगा।परन्तु राज्यपाल, अपने पद की अवधि समाप्त हो जाने पर भी तब तक पद धारण करता रहेगा जब तक उसका उत्तराधिकारी अपना पद ग्रहण नहीं कर लेता है।
157. राज्यपाल नियुक्त होने के लिये अर्हताएं
कोई व्यक्ति राज्यपाल होने का पात्र तभी होगा जब वह भारत का नागरिक है और पैंतीस वर्ष की आयु पूरी कर चुका है।
158. राज्यपाल के पद के लिए शर्तें
(1) राज्यपाल संसद के किसी सदन या पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट किसी राज्य के विधान मंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होगा और यदि संसद के किसी सदन का या ऐसे किसी राज्य के विधान मंडल के किसी सदन का कोई सदस्य राज्यपाल नियुक्त हो जाता है तो यह समझा जायेगा कि उसने उस सदन में अपना स्थान राज्यपाल के रूप में अपने पद ग्रहण की तारीख से रिक्त कर दिया है।
(2) राज्यपाल अन्य कोई लाभ का पद धारण नहीं करेगा।
(3) राज्यपाल, बिना किराया दिये, अपने शासकीय निवासों के उपयोग का हकदार होगा और ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का भी जो संसद विधि द्वारा अवधारित करे और जब तक इस निमित्त इस प्रकार उपबंध नहीं किया जाता है तब तक ऐसी उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकारों का, जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हैं , हकदार होगा।
(3d)जहां एक ही व्यक्ति को दो या दो से अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जाता है वहां उस राज्यपाल को संदेय उपलब्धियां और भत्ते उन राज्यों के बीच ऐसे अनुपात में आवंटित किये जाएंगे जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा अवधारित करे।
(4) राज्यपाल की उपलब्धियां और भत्ते उसकी पदावधि के दौरान कम नहीं किये जायेगे।
159- राज्यपाल द्वारा शपथ या प्रतिज्ञान
प्रत्येक राज्यपाल और व्यक्ति जो राज्यपाल कें कृत्यों का निर्वहन कर रहा है, अपना पद ग्रहण करने से पहले उस राज्य के संबंध में अधिकारिता का प्रयोग करने वाले उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति या उसकी अनुपस्थिति में उस न्यायालय के उपलब्ध ज्येष्ठतम न्यायाधीश के समक्ष लिखित प्रारूप में शपथ लेगा या प्रतिज्ञान करेगा और उस पर अपने हस्ताक्षर करेगा।
160- कुछ आकस्मिकताओं में राज्यपाल के कृत्यों का निर्वहन
राष्ट्रपति ऐसी किसी आकस्मिकता में, जो इस अध्याय में उपबंधित नहीं है राज्य के राज्यपाल के कृत्यों के निर्वहन के लिये ऐसा उपबंध कर सकेगा जो वह ठीक समझता है।
161- क्षमा आदि की और कुछ मामलों में दंडादेश के निलंबन, परिहार या लघुकरण की शक्ति होगी।
162. राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार
इस संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए, किसी राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार उन विषयों पर होगा जिनके संबंध में उस राज्य के विधान मंडल को विधि बनाने की शक्ति है: परन्तु जिस विषय के संबंध में राज्य के विधान-मंडल और संसद को विधि बनाने की शक्ति है उसमें राज्य की कार्यपालिका शक्ति इस संविधान द्वारा, या संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा, संघ या उसके प्राधिकारों को अभिव्यक्त रूप से प्रदत्त कार्यपालिका शक्ति के अधीन और परिसीमित होगी।
163- राज्यपाल को सहायता और सलाह देने के लिये मंत्रि परिषद:
(1) जिन बातों में इस संविधान द्वारा या उसके अधीन राज्यपाल से यह अपेक्षित है कि वह अपने कृत्यों या उनमें से किसी को अपने विवेकानुसार करे उन बातों को छोड़कर राज्यपाल को अपने कृत्यों का प्रयोग करने में सहायता और सलाह देने के लिये एक मंत्रि परिषद होगी जिसका प्रधान, मुख्यमंत्री होगा।
(2) यदि कोई प्रश्न उठता है कि कोई विषय ऐसा है या नहीं जिसके संबंध में इस संविधान द्वारा या इसके अधीन राज्यपाल से यह अपेक्षित है कि वह अपने विवेकानुसार कार्य करे तो राज्यपाल का अपने विवेकानुसार किया गया विनिश्चय अंतिम होगा और राज्यपाल द्वारा की गई किसी बात की विधि मान्यता इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जायेगी कि उसे अपने विवेकानुसार कार्य करना चाहिये था या नहीं।
(3) इस प्रश्न की किसी न्यायालय में जांच नहीं की जायेगी क्या मंत्रियों ने राज्यपाल को कोई सलाह दी , और यदि दी तो क्या दी।
164. मंत्रियों के बारें में अन्य उपबन्ध
(1) मंख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल करेगा और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति, राज्यपाल, मुख्यमंत्री की सलाह पर करेगा तथा मंत्री, राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त अपने पद धारण करेंगे।
परन्तु बिहार,मध्यप्रदेश और उड़ीसा राज्यों में जनजातियों के कल्याण का भारसाधक एक मंत्री होगा जो साथ ही अनुसूचित जातियों और पिछड़े वर्गों के कल्याण का या किसी अन्य कार्य का भी भारसाधक होगा।
(2) मंत्रि परिषद की विधान सभा के प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होगी।
(3) किसी मंत्री द्वारा अपना पद ग्रहण करने से पहले राज्यपाल तीसरी अनुसूची में इस प्रयोजन के लिये दिये गये प्रारूपों के अनुसार उसको पद ओर गोपनीयता की शपथ दिलाएगा।
(4) कोई मंत्री, जो निरंतर छह मास तक की किसी अवधि तक राज्य के विधानमंडल का सदस्य नहीं है उस अवधि की समाप्ति पर मंत्री नहीं रहेगा।
(5) मंत्रियों के वेतन और भत्ते ऐसे होगे जो उस राज्य का विधानमंडल, विधि द्वारा समय समय पर अवधारित करे और जब तक उस राज्य का विधानमंडल इस प्रकार अवधारित नहीं करता है तब तक ऐसे होगे जो दूसरी अनुसूची में विनिर्दिष्ट हें।
165- राज्य का महाधिवक्ता
(1) प्रत्येक राज्य का राज्यपाल, उच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के लिये अर्हित किसी व्यक्ति को राज्य का महाधिवक्ता नियुक्त करेगा।
(2) महाधिवक्ता का यह कर्तव्य होगा कि वह उस राज्य की सरकार को विधि संबंधी ऐसे विषयों पर सलाह दे और विधिक स्वरूप के ऐसे अन्य कर्तव्यों का पालन करे जो राज्यपाल उनको समय समय पर निर्देशित करे या सौंपे और उन कृत्यों का निर्वहन करे जो उसको इस संविधान अथवा तत्समय प्रवत्त्त किसी अन्य विधि द्वारा या उसके अधीन प्रदान किये गये हों।
(3) महाधिवक्ता, राज्यपाल के प्रसादपर्यन्त पद धारण करेगा और ऐसा पारिश्रमिक प्राप्त करेगा जो राज्यपाल अवधारित करे।
166. राज्य सरकार के कार्य का संचालन
(1) किसी राज्य की सरकार की समस्त कार्यपालिका कार्रवाई राज्यपाल के नाम से की हुई कही जायेगी।
(2) राज्यपाल के नाम से किये गये और निष्पादित आदेशों और अन्य लिखित को ऐसी रीति से अधिप्रमाणित किया जायेगा जो राज्यपाल द्वारा बनाए जाने वाले नियमों में विनिर्दिष्ट की जाए और इस प्रकार अधिप्रमाणित आदेश या लिखत की विधिमान्यता इस आधार पर प्रश्नगत नहीं की जायेगी कि वह राज्यपाल द्वारा किया गया निष्पादित आदेश या लिखत नहीं है।
(3) राज्यपाल, राज्य सरकार का कार्य अधिक सुविधापूर्वक किये जाने के लिये और जहां तक वह कार्य ऐसा नहीं है जिसके विषय में इस संविधान द्वारा या इसके अधीन राज्यपाल से यह अपेक्षित है कि वह विवेकानुसार कार्य करे वहां तक मंत्रियों में उक्त कार्य के आवंटन के लिये नियम बनाएगा।
167. राज्यपाल को जानकारी देने आदि के संबंध में मुख्यमंत्री के कर्तव्य
प्रत्येक राज्य के
मुख्यमंत्री का यह कर्तव्य होगा कि वह-
(क) राज्य के कार्यों के प्रशासन संबंधी और विधान विषयक प्रस्थापनाओं संबंधी मंत्रि परिषद के सभी विनिश्चय राज्यपाल को संसूचित करे,
(ख) राज्य के कार्यों के प्रशासन संबंधी और विधान विषयक प्रस्थापनाओं संबंधी जो जानकारी राज्यपाल मांगे वह दे, और
(ग) किसी विषय को जिस पर किसी मंत्री ने विनिश्चय कर दिया है किन्तु मंत्रि परिषद ने विचार नहीं किया है राज्यपाल द्वारा अपेक्षा किये जाने पर परिषद के समक्ष विचार के लिये रखे।
168. राज्यों के विधान मंडलों का गठन
(1) प्रत्येक राजय के लिये एक विधान मंडल होगा जो राज्यपाल और-(क)बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक और उत्तर प्रदेश राज्यों में एक सदनों से, (ख) अन्य राज्यों में एक सदन से मिलकर बनेगा।
(2) जहां किसी राज्य के विधान मंडल के दो सदन हैं वहां एक का नाम विधान परिषद और दूसरे का नाम विधान सभा होगा और जहां केवल एक सदन है वहां उसका नाम विधान सभा होगा।
169.राज्यों में विधान परिषदों का उत्सादन या सृजन-
(1) अनुच्छेद 168 में किसी बात के होते हुये भी संसद विधि द्वारा किसी विधान परिषद वाले राज्य में विधान परिषद के उत्सादन के लिये या ऐसे राज्य में जिसमें विधान परिषद नहीं है विधान परिषद के सृजन के लिए उपबंध कर सकेगी यदि उस राज्य की विधान सभा ने इस आशय का संकल्प विधान सभा की कुल सदस्य संख्या के बहुमत द्वारा तथा उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों की संख्या के कम से कम दो तिहाई बहुमत द्वारा पारित कर दिया है।
(2) खंड (1) में निर्दिष्ट किसी विधि में इस संविधान के संशोधन के लिए ऐसे उपबंध अंतर्विष्ट होंगे जो उस विधि के उपबंधों को प्रभावी करने के लिये आवश्यक हों तथा ऐसे अनुपूरक, आनुषंगिक और पारिमामिक उपबंध भी अंतविर्षट हो सकेंगे जिन्हें संसद आवश्यक समझे।
(3) पूर्वोक्त प्रकार की कोई विधि अनुच्छेद 368 के प्रायोजनों के लिये इस संविधान का संशोधन नहीं समझी जायेगी।
170. विधान सभाओं की संरचना -
(1) अनुच्छेद 333 के अधीन रहते हुये, प्रत्येक राज्य की विधान सभा उस राज्य में प्रादेशिक निर्वाच्न क्षेत्र से प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा चुने हुये पांच सौ से अनधिक और साठ से अन्यून सदस्यों से मिलकर बनेगी।
(2) खंड (1) के प्रयोजनों के लिये, प्रत्येक राज्य की प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्र में ऐसी रीति से विभाजित किया जायेगा कि प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र की जनता का उसको आवंटित स्थानों की संख्या से अनुपात समस्त राज्य में यथासाध्य एक ही हो।
स्पष्टीकरण- इस खंड में ''जनसंख्या'' पद से ऐसी अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना में अभिनिश्चित की गई जनसंख्या अभिप्रेत है जिसके आंकड़े प्रकाशित हो गये हैं।
परन्तु इस स्प्ष्टीकरण में अंतिम पूर्ववर्ती जनगणना के प्रति जिसके सुसंगत आंकड़े प्रकाशित हो गये हैं , निर्देश का, जब तक सन् 2000 के पश्चात की गई पहली जनगणना के सुसंगत आंकड़े प्रकाशित नहीं हो जाते हें, यह अर्थ लगाया जायेगा कि वह 1971 की जनगणना के प्रति निर्देश हैं।
(3) प्रत्येक जनगणना की समाप्ति पर प्रत्येक राज्य की विधान सभा में स्थानों की कुल संख्या और प्रत्येक राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजन का उसे प्राधिकारी द्वारा और ऐसी रीति से पुन: समायोजन किया जायेगा जो संसद विधि द्वारा अवधारित करे।
परन्तु ऐसे पुन: समायोजन से विधान सभा में प्रतिनिधत्व पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा जब तक उस समय विद्यमान विधान सभा का विघटन नहीं हो जाता है।
परन्तु यह और कि ऐसा पुन: समायोजन उस तारीख से प्रभावी होगा जो राष्ट्रपति आदेश द्वारा विनिर्दिष्ट करे और ऐसे पुन: समायोजन के प्रभावी होने तक विधान सभा के लिये कोई निर्वाचन उन प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों के आधार पर हो सकेगा जो ऐसे पुन: समायोजन के पहले विद्यमान हैं।परन्तु यह ओर भी कि जब तक सन् 2000 के पश्चात की गई पहली जनगणना के सुसंगत आंकड़े प्रकाशित नहीं हो जाते हैं तब तक प्रत्येक राज्य की विधान सभा में स्थानों की कुल संख्या का और इस खंड के अधीन ऐसे राज्य के प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजन का पुन: समायोजन आवश्यक नहीं होगा।
171-विधान परिषदों की संरचना-
(1) विधान परिषद वाले राज्य की विधान परिषद के सदस्यों की कुल संख्या उस राज्य की विधान सभा के सदस्यों की कुल संख्या के (एक तिहाई) से अधिक नहीं होगी। परन्तु किसी राज्य की विधानपरिषद के सदस्यों की कुल संख्या किसी भी दशा में चालीस से कम नहीं होगी।
(2) जब तक संसद विधि द्वारा अन्यथा उपबंध न करे जब तक किसी राज्य की विधान परिषद की संरचना खंड (3) में उपबंधित रीति से होगी।
(3) किसी राज्य की विधान परिषद के सदस्यों की कुल संख्या का-
(क) यथाशक्य निकटतम एक तिहाई भाग उस राज्य की नगरपालिकाओं, जिला बोर्डों और अन्य ऐसे स्थानीय प्राधिकारियों के, जो संसद विधि द्वारा विनिर्दिष्ट करे, सदस्यों से मिलकर बनने वाले निर्वाचक मंडलों द्वारा निर्वाचित होगा।
(ख) यथाशक्य निकटतम बारहवां भाग उस राज्य में निवास करने वाले ऐसे व्यक्तियों से मिलकर बनने वाले निर्वाचक-मंडलों द्वारा होगा, जो भारत के राजक्षेत्र में किसी विश्वविद्यालय के कम से कम तीन वर्ष से स्नातक हैं या जिनके पास कम से कम तीन वर्षों से ऐसी अर्हताएं हें जो संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि या उसके अधीन ऐसे किसी विश्वविद्यालय के स्नातक की अर्हताओं के समतुल्य विहित की गई हों,
(ग) यथाशक्य निकटतम बारहवां भाग ऐसे व्यक्तियों से मिलकर बनने वाले निर्वाचक मंडलों द्वारा निर्वाचित होगा जो राज्य के भीतर माध्यमिक पाठशालाओं से अनिम्न स्तर की ऐसी शिक्षा संस्थाओं में, जो संसद द्वारा बनार्इ्र गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन विहित की जायें, पढ़ाने के काम से कम से कम तीन वर्ष से लगे हुयें हैं।
(घ) यथाशक्य निकटतम एक तिहाई भाग राज्य की विधान सभा के सदस्यों द्वारा ऐसे व्यक्तियों में से निर्वाचित होगा जो विधान सभा के सदस्य नहीं हैं।
(ड.) शेष सदस्य राज्यपाल द्वारा खंड (5) के उपबंधों के अनुसार नामनिर्देशित किये जायेगे।
(4) खंड (3) के उपखंड (क), उपखंड (ख) और उपखंड (ग)के अधीन निर्वाचित होने वाले सदस्य ऐसे प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों में चुने जायेंगे, जो संसद द्वारा बनाई गई विधि द्वारा या उसके अधीन विहित किये जाएं तथा उक्त उपखंडों के और उक्त खंड के उपखंड (घ) के अधीन निर्वाचन आनुपातिक प्रातिनिधत्व पध्दति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा होंगे।
(5) राज्यपाल द्वारा खंड (3) के उपखंड (ड.) के अधीन नाम निर्देशित किये जाने वाले सदस्य ऐसे व्यक्ति होगे जिन्हें निम्नलिखित विषयों के संबंध में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव है, अर्थात- साहित्य, विज्ञान, कला, सहकारी आंदोलन और समाज सेवा।
172- राज्यों के विधान मंडलो की अवधि-
(1) प्रत्येक राज्य की प्रत्येक विधान सभा, यदि पहले ही विघटित नहीं कर दी जाती है तो, अपने प्रथम अधिवेशन के लिये नियत तारीख से (पांच वर्ष)तक बनी रहेगी, इससे अधिक नहीं और (पांच वर्ष) की उक्त अवधि समाप्ति का परिणाम विधान सभा का विघटन होगा।
परन्तु उक्त अवधि को, जब आपात कीउदघोषणा प्रवर्तन में है, तब संसद विधि द्वारा ऐसी अवधि के लिये बढ़ा सकेगी, जो एक बार में एक वर्ष से अधिक नहीं होगी और उदघोषणा के प्रवर्तन में न रह जाने के पश्चात किसी दशा में उसका विस्तार छह मास की अवधि से अधिक नहीं होगा।
(2) राज्य की विधान परिषद का विघटन नहीं होगा, किन्तु उसके सदस्यों में से यथासंभव निकटतम एक तिहाई सदस्य संसद द्वारा विधि द्वारा इस समय निमित्त बनाए गये उपबंधों के अनुसार, प्रत्येक द्वितीय वर्ष की समाप्ति पर यथाशक्य शीघ्र निवृत्त हो जायेंगे।
173- राज्य के विधान मंडल की सदस्यता के लिये अर्हताएं-
कोई व्यक्ति किसी राज्य के विधान मंडल के लिये किसी स्थान को भरने के लिये चुने जाने के लिये अर्हित तभी होगा जब-
(क) वह भारत का नागरिक है और निर्वाचन आयोग द्वारा इस निमित्त प्राधिकृत व्यक्ति के समक्ष तीसरी अनुसूची में इस प्रायोजन के लिये दिये गये प्रारूप के अनुसार शपथ लेता है या प्रतिज्ञान करता है और उस पर अपने हस्ताक्षर करता है।
(ख) वह विधान सभा के स्थान के लिये कम से कम पच्चीस वर्ष की आयु का और विधान परिषद के स्थान के लिये कम से कम तीस वर्ष की आयु का है, और,
(ग) उसके पास ऐसी अन्य अर्हताएं है जो इस निमित्त संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि द्वारा या उसके अधीन विहित की जायें।
174- राज्य के विधान मंडल के सत्र, सत्रावसान और विघटन-
(1) राज्यपाल समय समय पर राज्य के विधान मंडल के सदन या प्रत्येक सदन को ऐसे समय और स्थान पर जो वह ठीक समझे, अधिवेशन के लिये आहूत करेगा किन्तु उसके एक सत्र की अंतिम बैठक सत्र की प्रथम बैठक के लिये नियत तारीख के बीच छह मास का अन्तर नहीं होगा।
(2) राज्यपाल समय समय पर- (क) सदन या किसी सदन का सत्रावसान कर सकेगा , (ख) विधान सभा का विघटन कर सकेगा ,
175 - सदन या सदनों में अभिभाषण का और उनको संदेश भेजने का राज्यपाल का अधिकार-
(1) राज्यपाल, विधान सभा में या विधान परिषद वाले राज्य की दशा में उस राज्य के विधान मंडल के किसी सदन में या एक साथ समवेत दोनों सदनों में, अभिभाषण कर सकेगा और इस प्रयोजन के लिये सदस्यों की उपस्थिति की अपेक्षा कर सकेगा।
(2) राज्यपाल, राज्य के विधान मंडल में उस समय लंबित किसी विधेयक के सम्बन्ध में संदेश या कोई अन्य संदेश, उस राज्य के विधान मंडल के सदन या सदनों को भेज सकेगा और जिस सदन को कोई संदेश इस प्रकार भेजा गया है वह सदन उस संदेश द्वारा विचार करने के लिये अपेक्षित विषय पर सुविधानुसार शीघ्रता से विचार करेगा।
176- राज्यपाल का विशेष अभिभाषण-
(1) राज्यपाल, 40 (विधान सभा के लिए प्रत्येक साधारण निर्वाचन के पश्चात् प्रथम सत्र के आरंभ में और प्रत्येक वर्ष के प्रथम सत्र के आरंभ में) विधान सभा में या विधान परिषद वाले राज्य की दशा में एक साथ समवेत दोनों सदनों में अभिभाषण करेगा और विधान मंडल को उसके आहवान के कारण बतायेगा।(2) सदन या प्रत्येक सदन की प्रक्रिया का विनियमन करने वाले नियमों द्वारा ऐसे अभिभाषण में निर्दिष्ट विषयों की चर्चा के लिये समय नियत करने के लिये 41 उपबंध किया जायेगा।
177- सदनों के बारें में मंत्रियों ओर महाधिवक्ता के अधिकार-
प्रत्येक मंत्री और राज्य के महाधिवक्ता को यह अधिकार होगा कि वह उस राज्य की विधान सभा में या विधान परिषद वाले राज्य की दशा में दोनों सदनों में बोले और उनकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग ले और विधान मंडल की किसी समिति में , जिसमें उसका नाम सदस्य के रूप में दिया गया है, बोले और उसकी कार्यवाहियों में अन्यथा भाग ले, किन्तु इस अनुच्छेद के आधार पर वह मत देने का हकदार नहीं होगा।
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