शास्त्रोक्त धर्म




स्वयम्भू मनु ने धर्म के दस लक्षण बताये हैं:

धृतिः क्षमा दमोऽस्तेयं शौचमिन्द्रियनिग्रहः ।
धीर्विद्या सत्यमक्रोधो , दशकं धर्म लक्षणम् ॥
( धृति (धैर्य) , क्षमा (दूसरों के द्वारा किये गये अपराध को माफ कर देना, क्षमाशील होना) , दम (अपनी वासनाओं पर नियन्त्रण करना) , अस्तेय (चोरी न करना), शौच (अन्तरङ्ग और बाह्य शुचिता), इन्द्रिय निग्रहः (इन्द्रियों को वश मे रखना), धी (बुद्धिमत्ता का प्रयोग) , विद्या (अधिक से अधिक ज्ञान की पिपासा) , सत्य (मन वचन कर्म से सत्य का पालन) और अक्रोध (क्रोध न करना) ; ये दस धर्म के लक्षण हैं।)
जो अपने अनुकूल न हो वैसा व्यवहार दूसरे के साथ न करना चाहिये - यह धर्म की कसौटी है।

श्रूयतां धर्म सर्वस्वं श्रुत्वा चैव अनुवर्त्यताम् ।
आत्मनः प्रतिकूलानि , परेषां न समाचरेत् ॥
(धर्म का सर्वस्व क्या है, सुनो और सुनकर उस पर चलो ! अपने को जो अच्छा न लगे, वैसा आचरण दूसरे के साथ नही करना चाहिये । )



धर्म एव हतो हन्ति धर्मो रक्षति रक्षितः ।
तस्माद्धर्मो न हन्तव्यः मानो धर्मो हतोवाधीत् ॥
(धर्म उसका नाश करता है जो उसका (धर्म का ) नाश करता है | धर्म उसका रक्षण करता है जो उसके रक्षणार्थ प्रयास करता है | अतः धर्म का नाश नहीं करना चाहिए | ध्यान रहे धर्म का नाश करने वाले का नाश, अवश्यंभावी है।)

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अमरूद के औषधीय प्रयोग



अमरूद भ्रम, मूर्च्छा, कृमि, तृषा, शोष, श्रम तथा जलन (दाह) नाशक है। गर्मी के तमाम रोगों में जामफल खाना हितकारी है। यह शक्तिदायक, सत्त्वगुणी एवं बुद्धिवर्धक है, अतः बुद्धिजीवियों के लिए हितकर हैं। अमरूद एक बहुत ही मीठा, स्वादिष्ट, रसीला एवं पौष्टिक फल है। अमरूद को अफ्रीका का सेब भी कहा जाता है। अमरूद का पका हुआ फल खाने में उपयोग किया जाता है, कच्चे फलों को उसके तीखे स्वाद के कारण खाया नहीं जाता है। अमरूद में संतरा व नींबू की तुलना में 4 से 10 गुना अधिक विटामिन-सी पाया जाता है।

अमरूद का वैज्ञानिक नाम सिडियम गुआवा (Psidium guajava) है। कई लोगों का मानना है कि एक अमरूद को कभी बांटना नहीं चाहिए। अगर कोई व्यक्ति एक अमरूद खा रहा है, तो उसे पूरा खाना दें। ऐसा माना जाता है कि पूरे अमरूद में एक बीज ऐसा होता है, जो इम्युनिटी सिस्टम को बेहतर करता है और सर्दी -जुकाम से बचाता है। हालांकि, अमरूद से इम्युनिटी सिस्टम बेहतर होने की बात तो ठीक है, लेकिन बीज वाली बात का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है।

अमरूद कई तरह के होते हैं, जैसे – अमरूद सेब (apple guava), इलाहाबादी सफेदा अमरूद, लाल गूदेवाला, चित्तीदार आदि। सिर्फ किस्में ही नहीं, बल्कि अमरूद के अलग-अलग भाषा में नाम भी अलग-अलग हैं, जैसे – अंग्रेजी में गुआवा (guava), बंगाली में पेयारा व मराठी में पेरू आदि। आइये जानते है अमरूद के औषधीय गुण:-

शक्ति (ताकत) और वीर्य की वृद्धि के लिए
  • अच्छी तरह पके नरम, मीठे अमरूदों को मसलकर दूध में फेंट लें और फिर छानकर इनके बीज निकाल लें। आवश्यकतानुसार शक्कर मिलाकर सुबह नियमित रूप से 21 दिन सेवन करना धातुवर्द्धक होता है।
पेट दर्द
  • नमक के साथ पके अमरूद खाने से आराम मिलता है।
  • अमरूद के पेड़ के कोमल 50 ग्राम पत्तों को पीसकर पानी में मिलाकर छानकर पीने से लाभ होगा।
  • अमरूद के पेड़ की पत्तियों को बारीक पीसकर काले नमक के साथ चाटने से लाभ होता है।
  • अमरूद के फल की फुगनी (अमरूद के फल के नीचे वाले छोटे पत्ते) में थोड़ा-सी मात्रा में सेंधानमक को मिलाकर गुनगुने पानी के साथ पीने से पेट में दर्द समाप्त होता है।
  • यदि पेट दर्द की शिकायत हो तो अमरूद की कोमल पित्तयों को पीसकर पानी में मिलाकर पीने से आराम होता है। अपच, अग्निमान्द्य और अफारा के लिए अमरूद बहुत ही उत्तम औषधि है। इन रोगों से पीड़ित व्यक्तियों को 250 ग्राम अमरूद भोजन करने के बाद खाना चाहिए। जिन लोगों को कब्ज न हो तो उन्हें खाना खाने से पहले खाना चाहिए।
अमरूद खाने के लाभ बताइए

बवासीर (पाइल्स)
  • सुबह खाली पेट 200-300 ग्राम अमरूद नियमित रूप से सेवन करने से बवासीर में लाभ मिलता है।
  • पके अमरुद खाने से पेट का कब्ज खत्म होता है, जिससे बवासीर रोग दूर हो जाता है।
  • कुछ दिनों तक रोजाना सुबह खाली पेट 250 ग्राम अमरूद खाने से बवासीर ठीक हो जाती है। बवासीर को दूर करने के लिए सुबह खाली पेट अमरूद खाना उत्तम है।
  • मल-त्याग करते समय बांयें पैर पर जोर देकर बैठें। इस प्रयोग से बवासीर नहीं होती है और मल साफ आता है।"
सूखी खांसी
  • गर्म रेत में अमरूद को भूनकर खाने से सूखी, कफयुक्त और काली खांसी में आराम मिलता है। यह प्रयोग दिन में तीन बार करें।
  • एक बड़ा अमरूद लेकर उसके गूदे को निकालकर अमरूद के अंदर थोड़ी-सी जगह बनाकर अमरूद में पिसी हुई अजवायन तथा पिसा हुआ कालानमक 6-6 ग्राम की मात्रा में भर देते हैं। इसके बाद अमरूद में कपड़ा भरकर ऊपर से मिट्टी चढ़ाकर तेज गर्म उपले की राख में भूने, अमरूद के भुन जाने पर मिट्टी और कपड़ा हटाकर अमरूद पीसकर छान लेते हैं। इसे आधा-आधा ग्राम शहद में मिलाकर सुबह-शाम मिलाकर चाटने से सूखी खांसी में लाभ होता है।"
अमरूद खाने के फायदे बताएं

दांतों का दर्द
  • अमरूद की कोमल पत्तियों को चबाने से दांतों की पीड़ा (दर्द) नष्ट हो जाती है।
  • अमरूद के पत्तों को दांतों से चबाने से आराम मिलेगा।
  • अमरूद के पत्तों को जल में उबाल लें। इसे जल में फिटकरी घोलकर कुल्ले करने से दांतों की पीड़ा (दर्द) नष्ट हो जाती है।
  • अमरूद के पत्तों को चबाने से दांतों की पीड़ा दूर होती है। मसूढ़ों में दर्द, सूजन और दातों में दर्द होने पर अमरूद के पत्तों को उबालकर गुनगुने पानी से कुल्ले करें।"
आधाशीशी (आधे सिर का दर्द)
  • आधे सिर के दर्द में कच्चे अमरूद को सुबह पीसकर लेप बनाएं और उसे मस्तक पर लगाएं।
  • सूर्योदय के पूर्व ही सवेरे हरे कच्चे अमरूद को पत्थर पर घिसकर जहां दर्द होता है, वहां खूब अच्छी तरह लेप कर देने से सिर दर्द नहीं उठने पाता, अगर दर्द शुरू हो गया हो तो शांत हो जाता है। यह प्रयोग दिन में 3-4 बार करना चाहिए।"

अमरूद खाने के फायदे बताएं
जुकाम
  • रुके हुए जुकाम को दूर करने के लिए बीज निकला हुआ अमरूद खाएं और ऊपर से नाक बंदकर 1 गिलास पानी पी लें। जब 2-3 दिन के प्रयोग से स्राव (बहाव) बढ़ जाए, तो उसे रोकने के लिए 50-100 ग्राम गुड़ खा लें। ध्यान रहे- कि बाद में पानी न पिएं। सिर्फ 3 दिन तक लगातार अमरूद खाने से पुरानी सर्दी और जुकाम दूर हो जाती है।
  • लंबे समय से रुके हुए जुकाम में रोगी को एक अच्छा बड़ा अमरूद के अंदर से बीजों को निकालकर रोगी को खिला दें और ऊपर से ताजा पानी नाक बंद करके पीने को दें। 2-3 दिन में ही रुका हुआ जुकाम बहार साफ हो जायेगा। 2-3 दिन बाद अगर नाक का बहना रोकना हो तो 50 ग्राम गुड़ रात में बिना पानी पीयें खा लें"
मलेरिया
  • मलेरिया बुखार में अमरूद का सेवन लाभकारी है। नियमित सेवन से तिजारा और चौथिया ज्वर में भी आराम मिलता है।
  • अमरूद और सेब का रस पीने से बुखार उतर जाता है।
  • अमरूद को खाने से मलेरिया में लाभ होता है।"
भांग का नशा
  • 2-4 अमरूद खाने से अथवा अमरूद के पत्तों का 25 ग्राम रस पीने से भांग का नशा उतर जाता है।

मानसिक उन्माद (पागलपन)
  • सुबह खाली पेट पके अमरूद चबा-चबाकर खाने से मानसिक चिंताओं का भार कम होकर धीरे-धीरे पागलपन के लक्षण दूर हो जाते हैं और शरीर की गर्मी निकल जाती है।
  • 250 ग्राम इलाहाबादी मीठे अमरूद को रोजाना सुबह और शाम को 5 बजे नींबू, कालीमिर्च और नमक स्वाद के अनुसार अमरूद पर डालकर खा सकते हैं। इस तरह खाने से दिमाग की मांस-पेशियों को शक्ति मिलती है, गर्मी निकल जाती है, और पागलपन दूर हो जाता है। दिमागी चिंताएं अमरूद खाने से खत्म हो जाती हैं।"
पेट में गड़-बड़ी होने पर
  • अमरूद की कोंपलों को पीसकर पिलाना चाहिए।
ठंडक के लिए
  • अमरूद के बीजों को निकालकर पीसें और लड्डू बनाकर गुलाब जल में शक्कर के साथ पियें।
अमरूद का मुरब्बा
  • अच्छी किस्म के तरोताजा बड़े-बड़े अमरूद लेकर उसके छिलकों को निकालकर टुकड़े कर लें और धीमी आग पर पानी में उबालें। जब अमरूद आधे पककर नरम हो जाएं, तब नीचे उतारकर कपड़े में डालकर पानी निकाल लें। उसके बाद उससे 3 गुना शक्कर लेकर उसकी चासनी बनायें और अमरूद के टुकड़े उसमें डाल दें। फिर उसमें इलायची के दानों का चूर्ण और केसर इच्छानुसार डालकर मुरब्बा बनायें। ठंडा होने पर इस मुरब्बे को चीनी-मिट्टी के बर्तन में भरकर, उसका मुंह बंद करके थोड़े दिन तक रख छोड़े। यह मुरब्बा 20-25 ग्राम की मात्रा में रोजाना खाने से कोष्ठबद्धता (कब्जियत) दूर होती है।
आंखों के लिए
  • अमरूद के पत्तों की पोटली बनाकर रात को सोते समय आंख पर बांधने से आंखों का दर्द ठीक हो जाता है। आंखों की लालिमा, आंख की सूजन और वेदना तुरंत मिट जाती है।
  • अमरूद के पत्तों की पुल्टिस (पोटली) बनाकर आंखों पर बांधने से आंखों की सूजन, आंखे लाल होना और आंखों में दर्द करना आदि रोग दूर होते हैं।


अमरूद खाने के फायदे बताएं
कब्ज
  • 250 ग्राम अमरूद खाकर ऊपर से गर्म दूध पीने से कब्ज दूर होती है।
  • अमरूद के कोमल पत्तों के 10 ग्राम रस में थोड़ी शक्कर मिलाकर प्रतिदिन केवल एक बार सुबह सेवन करने से 7 दिन में अजीर्ण (पुरानी कब्ज) में लाभ होता है।
  • अमरूद को नाश्ते के समय काली मिर्च, काला नमक, अदरक के साथ खाने से अजीर्ण, गैस, अफारा (पेट फूलना) की तकलीफ दूर होकर भूख बढ़ जाएगी। नाश्ते में अमरूद का सेवन करें। सख्त कब्ज में सुबह-शाम अमरूद खाएं।
  • अमरूद को कुछ दिनों तक नियमित सेवन करने से 3-4 दिन में ही मल शुद्धि होने लग जाती है। कोष्ठबद्धता मिटती है एवं कब्जियत के कारण होने वाला आंखों की जलन और सिर दर्द भी दूर होता है।
  • अमरूद खाने से आंतों में तरावट आती है और कब्ज दूर हो जाता है। इसे खाना खाने से पहले ही खाना चाहिए, क्योंकि खाना खाने के बाद खाने से कब्ज करता है। कब्ज वालों को सुबह के समय नाश्ते में अमरूद लेना चाहिए। पुरानी कब्ज के रोगियों को सुबह और शाम अमरूद खाना चाहिए। इससे पेट साफ हो जाता है।
  • अमरूद खाने से या अमरूद के साथ किशमिश के खाने से कब्ज की शिकायत नहीं रहती है।
कुकर खांसी, काली खांसी (हूपिंग कफ)
  • एक अमरूद को भूभल (गर्म रेत या राख) में सेंककर खाने से कुकर खांसी में लाभ होता है। छोटे बच्चों को अमरूद पीसकर अथवा पानी में घोलकर पिलाना चाहिए। अमरूद पर नमक और कालीमिर्च लगाकर खाने से कफ निकल जाती है। 100 ग्राम अमरूद में विटामिन-सी लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग से लगभग आधा ग्राम तक होता है। यह हृदय को बल देता है। अमरूद खाने से आंतों में तरावट आती है। कब्ज से ग्रस्त रोगियों को नाश्ते में अमरूद लेना चाहिए। पुरानी कब्ज के रोगियों को सुबह-शाम अमरूद खाना चाहिए। इससे दस्त साफ आएगा, अजीर्ण और गैस दूर होगी। अमरूद को सेंधानमक के साथ खाने से पाचन शक्ति बढ़ती है।
  • एक कच्चे अमरूद को लेकर चाकू से कुरेदकर उसका थोड़ा-सा गूदा निकाल लेते हैं। फिर इस अमरूद में पिसी हुई अजवायन तथा पिसा हुआ कालानमक 6-6 ग्राम की मात्रा में लेकर भर देते हैं। इसके बाद अमरूद पर कपड़ा लपेटकर उसमें गीली मिट्टी का लेप चढ़ाकर आग में भून लेते हैं पकने के बाद इसके ऊपर से मिट्टी और कपड़ा हटाकर अमरूद को पीस लेते हैं। इसे आधा-आधा ग्राम की मात्रा में शहद के साथ मिलाकर सुबह-शाम रोगी को चटाने से काली खांसी में लाभ होता है।
  • एक अमरूद को गर्म बालू या राख में सेंककर सुबह-शाम 2 बार खाने से काली खांसी ठीक हो जाती है।

रक्तविकार के कारण फोड़े-फुन्सियों का होना
  • 4 सप्ताह तक नित्य प्रति दोपहर में 250 ग्राम अमरूद खाएं। इससे पेट साफ होगा, बढ़ी हुई गर्मी दूर होगी, रक्त साफ होगा और फोड़े-फुन्सी, खाज-खुजली ठीक हो जाएगी।

पुरानी सर्दी
  • 3 दिनों तक केवल अमरूद खाकर रहने से बहुत पुरानी सर्दी की शिकायत दूर हो जाती है।
पुराने दस्त
  • अमरूद की कोमल पित्तयां उबालकर पीने से पुराने दस्तों का रोग ठीक हो जाता है। दस्तों में आंव आती रहे, आंतों में सूजन आ जाए, घाव हो जाए तो 2-3 महीने लगातार 250 ग्राम अमरूद रोजाना खाते रहने से दस्तों में लाभ होता है। अमरूद में-टैनिक एसिड होता है, जिसका प्रधान काम घाव भरना है। इससे आंतों के घाव भरकर आंते स्वस्थ हो जाती हैं।
कफयुक्त खांसी
  • एक अमरूद को आग में भूनकर खाने से कफयुक्त खांसी में लाभ होता है।

मस्तिष्क विकार
  • अमरूद के पत्तों का फांट मस्तिष्क विकार, वृक्क प्रवाह और शारीरिक एवं मानसिक विकारों में प्रयोग किया जाता है।

आक्षेपरोग
  • अमरूद के पत्तों के रस या टिंचर को बच्चों की रीढ़ की हड्डी पर मालिश करने से उनका आक्षेप का रोग दूर हो जाता है।
हृदय
  • अमरूद के फलों के बीज निकालकर बारीक-बारीक काटकर शक्कर के साथ धीमी आंच पर बनाई हुई चटनी हृदय के लिए अत्यंत हितकारी होती है तथा कब्ज को भी दूर करती है।
हृदय की दुर्बलता
  • अमरूद को कुचलकर उसका आधा कप रस निकाल लें। उसमें थोड़ा-सा नींबू का रस डालकर पी जाए।
  • अमरूद में विटामिन-सी होता है। यह हृदय में नई शक्ति देकर शरीर में स्फूर्ति पैदा करता है। इसे दमा व खांसी वाले न खायें।
खांसी और कफ विकार
  •  यदि सूखी खांसी हो और कफ न निकलता हो तो, सुबह ही सुबह ताजे एक अमरूद को तोड़कर, चाकू की सहायता के बिना चबा-चबाकर खाने से खांसी 2-3 दिन में ही दम तोड़ देती है।
  • अमरूद का रस भवक यन्त्र द्वारा निकालकर उसमें शहद मिलाकर पीने से भी सूखी खांसी में लाभ होता है।
  • यदि बलगम खूब पड़ता हो और खांसी अधिक हो, दस्त साफ न हो हल्का बुखार भी हो तो अच्छे ताजे मीठे अमरूदों को अपनी इच्छानुसार खायें।
  • यदि जुकाम की साधारण खांसी हो तो अधपके अमरूद को आग में भूनकर उसमें नमक लगाकर खाने से लाभ होता है।
वमन (उल्टी)
  • अमरूद के पत्तों के 10 ग्राम काढ़े को पिलाने से वमन या उल्टी बंद हो जाती है।

तृष्ण (अधिक प्यास लगना)
  • अमरूद के छोटे-छोटे टुकड़े काटकर पानी में डाल दें। कुछ देर बाद इस पानी को पीने से मधुमेह (शूगर) या बहुमूत्र रोग के कारण तृष्ण में उत्तम लाभ होता है।
अतिसार (दस्त)
  • बच्चे का पुराना अतिसार मिटाने के लिए इसकी 15 ग्राम जड़ को 150 ग्राम पानी में ओटाकर, जब आधा पानी शेष रह जाये तो 6-6 ग्राम तक दिन में 2-3 बार पिलाना चाहिए।
  • कच्चे अमरूद के फल उबालकर खिलाने से भी अतिसार मिटता है।
  • अमरूद की छाल व इसके कोमल पत्तों का 20 मिलीलीटर क्वाथ पिलाने से हैजे की प्रारिम्भक अवस्था में लाभ होता है।
प्रवाहिका 
  • अमरूद का मुरब्बा प्रवाहिका एवं अतिसार में लाभदायक है।
गुदाभ्रंश (गुदा से कांच का निकलना)
  • बच्चों के गुदभ्रंश रोग पर इसकी जड़ की छाल का काढ़ा गाढ़ा-गाढ़ा लेप करने से लाभ होता है।
  • तीव्र अतिसार में गुदाभ्रंश होने पर अमरूद के पत्तों की पोटली बनाकर बांधने से सूजन कम हो जाती है और गुदा अंदर बैठ जाता है।
  • आंतरिक प्रयोग के लिए अमरूद और नागकेशर दोनों को महीन पीसकर उड़द के समान गोलियां बनाकर देनी चाहिए।
  • अमरूद के पेड़ की छाल, जड़ और पत्ते, बराबर-बराबर 250 ग्राम लेकर पीसकर रख लें तथा 1 किलो पानी में उबालें, जब आधा पानी शेष रह जायें, तब इस काढ़े से गुदा को बार-बार धोना चाहिए और उसे अंदर धकेलें। इससे गुदा अंदर चली जायेगी।
  • अमरूद के पेड़ की छाल 50 ग्राम, अमरूद की जड़ 50 ग्राम और अमरूद के पत्ते 50 ग्राम को मिलाकर कूटकर 400 ग्राम पानी में मिलाकर उबाल लें। आधा पानी शेष रहने पर छानकर गुदा को धोऐं। इससे गुदाभ्रंश (कांच निकलना) ठीक होता है।
  • अमरूद के पत्तों को पसकर इसके लुगदी (पेस्ट) गुदा को अंदर कर मलद्वार पर बांधने से गुदा बाहर नहीं निकलता है।
घुटनों के दर्द में
  • अमरूद के कोमल पत्तों को पीसकर गठिया के वेदना युक्त स्थानों पर लेप करने से लाभ होता है।

बुखार
  • अमरूद के कोमल पत्तों को पीस-छानकर पिलाने से ज्वर के उपद्रव्य दूर होते है।
विदाह (पित्त की जलन) में 
  • अमरूद के बीज निकालकर पीसकर गुलाब जल और मिसरी मिला कर पीने से अत्यंत बढ़े हुए पित्त और विदाह की शांति होती है।
भांग या धतूरे का नशा
  • अमरूद के पत्तों के स्वरस को भरपेट पिलाने से या अमरूद खाने से भांग, धतूरा आदि का नशा दूर हो जाता है।

पेट की गैस बनना
  • अदरक का रस एक चम्मच, नींबू का रस का आधा चम्मच और शहद को डालकर खाने से पेट की गैस में धीरे-धीरे लाभ होता हैं।

दस्त
  • अमरूद के पेड़ की कोमल नई पत्तियों को पानी में उबालकर, छानकर थोड़ी-थोड़ी-सी मात्रा में पकाकर पीने से अतिसार का आना रुक जाता है।
  • अमरूद में मिश्री डालकर या अमरूद और मिश्री का सेवन करने से दस्त का आना बंद हो जाता हैं।
  • अमरूद के पेड़ की 10 पत्तियां, नींबू की 2 पत्तियां, तुलसी की 3 पत्तियों को बराबर मात्रा में लेकर एक कप पानी में डालकर काढ़ा बनाकर पीने से राहत मिलती है।

मुंह का रोग और मुंह के छाले
  • मुंह के रोग में जौ, अमरूद के पत्ते एवं बबूल के पत्ते। इस सबको जलाकर इसके धुंए को मुंह में भरने से गला ठीक होता है तथा मुंह के दाने नष्ट होते हैं।
  • रोजाना भोजन करने के बाद अमरूद का सेवन करने से छाले में आराम मिलता है। 
  • अमरूद के पत्तों में कत्था मिलाकर पान की तरह चबाने से मुंह के छाले ठीक हो जाते हैं।
अग्निमान्द्यता (अपच) के लिए
  • अमरूद के पेड़ की 2 पत्तियों को चबाकर पानी के साथ सेवन करने से आराम होता हैं।
प्यास अधिक लगना
  • अमरूद, लीची, शहतूत व खीरा खाने से प्यास का अधिक लगना बंद हो जाता है।
मधुमेह के रोग
  • पके अमरूद को आग में डालकर उसे निकाल लें, और उसका भरता बना लें, उसमें अवश्कतानुसार नमक, कालीमिर्च, जीरा, मिलाकर सेवन करें। इससे मधुमेह रोग से लाभ होता है।

योनि की जलन और खुजली
  • अमरूद के पेड़ की जड़ को पीसकर 25 ग्राम की मात्रा में लेकर 300 ग्राम पानी में डालकर पका लें, फिर इसी पानी को साफ कपड़े की मदद से योनि को साफ करने से योनि में होने वाली खुजली समाप्त हो जाती है।
गठिया रोग
  • गठिया के दर्द को सही करने के लिए अमरूद की 5-6 नई पत्तियों को पीसकर उसमें जरा-सा काला नमक डालकर प्रतिदिन सेवन करने से रोगी को लाभ मिलता है।
फोड़े-फुंसियों के लिए
  • अमरूद की थोड़ी सी पत्तियों को लेकर पानी में उबालकर पीस लें। इस लेप को फुंसियों पर लगाने से लाभ होता है।
विसर्प-फुंसियों का दल बनना
  • 4 हफ्तों तक रोजाना दोपहर में 250 ग्राम अमरूद खाने से पेट साफ होता है, पेट की गर्मी दूर होती है, खून साफ होता है जिससे फुंसिया और खुजली भी दूर हो जाती है।


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अकरकरा के औषधीय प्रयोग



अकरकरा (Anacyclus pyrethrum) का पौधा अल्जीरिया में सबसे अधिक मात्रा में पैदा होता है। भारत में यह कश्मीर, आसाम, बंगाल के पहाड़ी क्षेत्रों में, गुजरात और महाराष्ट्र आदि की उपजाऊ भूमि में कहीं-कहीं उगता है। वर्षा के शुरू में ही इसका झाड़ीदार पौधा उगना प्रारंभ हो जाता है। अकरकरा का तना रोए दार और ग्रंथि युक्त होता है। अकरकरा की छाल कड़वी और मटमैले रंग की होती है। इसके फूल पीले रंग के गंध युक्त और मुंडक आकर में लगते हैं। जड़ 8 से 10 सेमी लंबी और लगभग 1.5 सेमी चौड़ी तथा मजबूत और मटमैली होती है।
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विभिन्न भाषाओं में नाम
  1. संस्कृत - आकारकर, आकल्लक
  2. हिंदी - अकरकरा
  3. मराठी - अक्कलकरा
  4. गुजराती - अकोरकरो
  5. बंगाली आकरकरा।
  6. फारसी वेश्वतर्खून, कोही।
  7. अरबी आकिकिहां, अदुक लई।
  8. पंजाबी - अकरकरा।
  9. अंग्रेजी पेलिटरी।
  10. लैटिन एनासाइक्लस पाइरेथ्रम।
रंग : अकरकरा ऊपर से काला और अंदर से सफेद होता है।
स्वाद : इसका स्वाद तेज, चरपरा, ठंडा, चुनचुनाहट पैदा करने वाला होता है।
प्रकृति : अकरकरा की प्रकृति गर्म और खुश्क होती है।
गुण : अकरकरा कड़वी, रूक्ष, तीखी, प्रकृति में गर्म तथा कफ और वात नाशक है। इसके अलावा यह कामोत्तेजक (सेक्स उत्तेजना को बढ़ाने वाला), धातुवर्द्धक (वीर्य को बढ़ाने वाला), रक्तशोधक (खून को साफ करने वाला), शोथहर (सूजन को कम करने वाला), मुंह दुर्गंध नाशक (मुंह की बदबू) को नष्ट करना), दन्त रोग, हृदय की दुर्बलता (दिल की कमजोरी), बच्चों के दांत निकलने के समय के रोग, तुतलाहट, हकलाहट, रक्त संचार (शरीर में खून के बहाव) को बढ़ाने में भी गुणकारी हैं।
हानिकारक प्रभाव : अकरकरा का बाह्य प्रयोग अधिक मात्रा में करने से त्वचा का रंग लाल हो जाता है तथा उस पर जलन होती है। यदि इसका सेवन आन्तरिक रूप से अधिक किया गया हो तो इससे- नाड़ी की गति बढ़ना, दस्त लगना, जी मिचलाना, उबकाई आना, बेहोशी छाना, रक्तपित्त आदि दुष्प्रभाव पैदा हो जाते हैं। फेफड़ों के लिए भी यह हानिकारक होता है, क्योंकि इससे उनकी गति बढ़ जाती है।

Akarkara Herb Is Beneficial For Many Diseases

विभिन्न रोगों में अकरकरा से उपचार
Akarkara Powder Benefits in Hindi
  1. अर्दित (मुंह टेढ़ा होना) होने पर - उसी के साथ अकरकरा का 100 मिलीलीटर काढ़ा मिलाकर पिलाने से अर्दित मिटता है। अकरकरा का चूर्ण और राई के चूर्ण को शहद में मिलाकर जिह्वा पर लेप करने से अर्धांगवात मिटती है।
  2. खांसी - अकरकरा का 100 मिलीलीटर का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से पुरानी खांसी मिटती है। अकरकरा के चूर्ण को 3-4 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से यह बलपूर्वक दस्त के रास्ते कफ को बाहर निकाल देती है।
  3. गर्भनिरोधक - अकरकरा को दूध में पीसकर रूई लगाकर तीन दिनों तक योनि में लगातार रखने से 1 महीने तक गर्भ नहीं ठहरता है।
  4. गले का रोग - अकरकरा चूर्ण की लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग से लगभग आधा ग्राम की मात्रा में फंकी लेने से बच्चों और गायकों (सिंगर) का स्वर सुरीला हो जाता है। तालू, दांत और गले के रोगों में इसके कुल्ले करने से बहुत लाभ होता है।
  5. गृध्रसी (सायटिका) - अकरकरा की जड़ को अखरोट के तेल में मिलाकर मालिश करने से गृध्रसी मिटती है।
  6. जीभ के विकार के कारण हकलापन - अकरकरा की जड़ के चूर्ण को काली मिर्च व शहद के साथ 1 ग्राम की मात्रा में मिलाकर जीभ पर मालिश करने से जीभ का सूखापन और जड़ता दूर होकर हकलाना या तोतलापन कम होता है। इसे 4-6 हफ्ते प्रयोग करें।
  7. जुकाम के कारण सिर दर्द - अकरकरा को दांतों के बीच दबाने से जुकाम का सिर दर्द दूर हो जाता है।
  8. ज्वर (बुखार) होने पर - अकरकरा की जड़ के चूर्ण को जैतून के तेल में पकाकर मालिश करने से पसीना आकर ज्वर उतर जाता है। अकरकरा 10 ग्राम को 200 मिलीलीटर पानी में काढ़ा बना लें। इस काढ़े में 5 मिलीलीटर अदरक का रस मिलाकर लेने से सन्निपात ज्वर में लाभ मिलता है। अकरकरा 10 ग्राम और चिरायता 10 ग्राम लेकर कूटकर पीसकर चूर्ण बना लें। इस चूर्ण में से 3 ग्राम चूर्ण पानी के साथ लेने से बुखार समाप्त होता है।
  9. तुतलापन, हकलाहट- अकरकरा और काली मिर्च बराबर लेकर पीस लें। इसकी एक ग्राम की मात्रा को शहद में मिलाकर सुबह-शाम जीभ पर 4-6 हफ्ते नियमित प्रयोग करने से पूरा लाभ मिलेगा। अकरकरा 12 ग्राम, तेजपत्ता 12 ग्राम तथा काली मिर्च 6 ग्राम पीसकर रखें। 1 चुटकी चूर्ण प्रतिदिन सुबह-शाम जीभ पर रखकर जीभ को मलें। इससे जीभ के मोटापे के कारण उत्पन्न तुतलापन दूर होता है।
  10. दमा (श्वास) होने पर - अकरकरा के कपड़छन चूर्ण को सूंघने से श्वास का अवरोध दूर होता है। लगभग 20 ग्राम अकरकरा को 200 मिलीलीटर जल में उबालकर काढ़ा बनाएं और जब यह काढ़ा 50 मिलीलीटर की मात्रा में शेष रह जाये तो इसमें शहद मिलाकर अस्थमा के रोगी को सेवन करने से अस्थमा रोग ठीक हो जाता है।
  11. दांत रोग- अकरकरा को सिरके में पीसकर दुखते दांत पर रखकर दबाने से दर्द में लाभ होता है। अकरकरा और कपूर को बराबर की मात्रा में पीसकर नियमित रूप से सुबह-शाम मंजन करते रहने से सभी प्रकार के दांतों की पीड़ा दूर हो जाती है।
  12. दांतों में दर्द - अकरकरा को बारीक पीसकर पाउडर बना लें। उसके पाउडर में लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग नौसादर, लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग अफीम और लगभग 1 ग्राम का चौथा भाग कपूर को मिलाकर मिश्रण बना लें। इस मिश्रण को दांतों के बीच के खाली जगहों को भरें। इससे दांतों का दर्द ठीक होता है तथा मसूढ़ों से खून आना बंद हो जाता है। अकरकरा का बारीक चूर्ण बनाकर मसूढ़ों पर मालिश करने से व खोखले दांतों की जड़ में लगाने से कीड़े नष्ट होकर दर्द खत्म हो जाता है। अकरकरा व कपूर के चूर्ण को रूई में लपेटकर लौंग के तेल में भिगो लें। इसे दर्द वाले दांत के नीचे दबाकर रखें तथा मुंह का राल (लार) बाहर गिरने दें। इससे दांत का तेज दर्द जल्द ठीक होता है। गर्मी के कारण दांतों में दर्द रहता हो तो अकरकरा, तज और मस्तांगी को बराबर मात्रा में लें। इन सबको पीस-छानकर प्रतिदिन दांतों पर मलें। इससे रोग में जल्द आराम मिलता है। अकरकरा और कपूर दोनों बराबर लेकर पीसकर मंजन करने से सभी प्रकार की दांतों की पीड़ा मिटती है। अकरकरा की जड़ के काढ़े से कुल्ला करने से दांतों का दर्द दूर होता है और हिलते हुए दांत जम जाते हैं। अकरकरा की जड़ को दांतों पर मलने से दांतों का दर्द दूर होता है।
  13. दिमाग को तेज करने के लिए - अकरकरा और ब्राह्मी समान मात्रा में लेकर चूर्ण बनायें, इसको आधा चम्मच नियमित सेवन करने से बुद्धि तेज होती है|
  14. नपुंसकता (नामर्दी) होने पर- अकरकरा का बारीक चूर्ण शहद में मिलाकर शिश्न (पुरुष लिंग) पर लेप करके रोजाना पान के पत्ते लपेटने से शैथिल्यता (ढीलापन) दूर होकर वीर्य बढेगा। अकरकरा 2 ग्राम, जंगली प्याज 10 ग्राम इन दोनों को पीसकर लिंग पर मलने से इन्द्री कठोर हो जाती है। 11 या 21 दिन तक यह प्रयोग करना चाहिए।
  15. नाक के रोग - अकरकरा के चूर्ण को नाक से सूंघने से बंध-रोग (नाक से छींक न आना) दूर हो जाता है।
  16. पक्षाघात (लकवा) - अकरकरा की सूखी डंडी महुए के तेल में मिलाकर मालिश करने से लकवा दूर होता है। अकरकरा की जड़ को बारीक पीसकर महुए के तेल में मिलाकर मालिश करने से पक्षाघात में लाभ होता है। अकरकरा की जड़ का चूर्ण लगभग आधा ग्राम की मात्रा में शहद के साथ सुबह-शाम चाटने से पक्षाघात (लकवा) में लाभ होता है।
  17. पेट के रोग - छोटी पीपल और अकरकरा की जड़ का चूर्ण बराबर की मात्रा में पीसकर आधा चम्मच शहद के साथ सुबह-शाम, भोजन के बाद सेवन करते रहने से पेट सम्बंधी अनेक रोग दूर हो जाते है।
  18. पेट में पानी का भरना (जलोदर) - अकरकरा का चूर्ण सुबह और शाम पीने से जलोदर में लाभ होता है।
  19. वाजीकरण - अकरकरा, सफेद मूसली और असगंध सभी को बराबर मात्रा में लेकर पीस लें, इसे 1-1 चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम एक कप दूध के साथ नियमित लें।
  20. बालाचार, बालग्रह - अकरकरे को धागे में बांधकर बच्चे के गले में पहनाने से मिर्गी, आक्षेप आदि रोग ठीक हो जाते हैं।
  21. मंदाग्नि - शुंठी का चूर्ण और अकरकरा दोनों की 1-1 ग्राम मात्रा को मिलाकर फंकी लेने से मंदाग्नि और अफारा दूर होता है। 20 शरीर की शून्यता और आलस्य होने पर - अकरकरा के 1 ग्राम चूर्ण को 2-3 पीस लौंग के साथ सेवन करने से शरीर की शून्यता और इसकी जड़ के 100 मिलीलीटर काढ़े पीने से आलस्य मिटता है।
  22. मसूड़ों का रोग - अकरकरा के पत्तों को पानी में उबालकर प्रतिदिन गरारे करें। यह मुंह के सभी रोग को नष्ट करती है।
  23. मस्तक की पीड़ा में - अकरकरा की जड़ को पीसकर मस्तक पर हल्का गर्म लेप करने से मस्तक की पीड़ा मिटती है। अकरकरा को दांतों के बीच में रखने से प्रतिश्याय (जुकाम) से होने वाला सिर दर्द मिटता है। इसको चबाने से लार छूटकर दाढ़ की पीड़ा मिट जाती है।
  24. सिक-धर्म की अनियमितता - अकरकरा का काढ़ा बनाकर पीने से मासिक-धर्म समय पर होता है।
  25. मिरगी (अपस्मार) - अकरकरा को सिरके में पीसकर शहद के साथ मिलाकर जिस दिन मिरगी न आये उस दिन रोगी को चटाने से मिर्गी आना बंद हो जाता है। अकरकरा, ब्राह्मी और शंखाहुली का काढ़ा बनाकर मिर्गी के रोगी को देने से मिर्गी आना बंद हो जाती है। 15 ग्राम पिसा हुआ अकरकरा और 30 ग्राम बीज निकले हुए मुनक्का को मिलाकर उसकी चने के आकार के बराबर की गोलियां बनाकर छाया में सुखा लें। इसे सुबह और शाम को एक-एक गोली लेने से और पिसे हुए अकरकरा को नाक में सूंघने से मिरगी का रोग पूरी तरह से ठीक हो जाता है। ब्राह्मी के साथ इसका काढ़ा बना करके पिलाने से मिर्गी में लाभ होता है। अकरकरा को बारीक पीसकर थोड़ा-सा शहद मिलाकर सूंघने से मिर्गी दूर होती है।
  26. मुख दुर्गंध (मुंह से बदबू आने पर) - अकरकरा, माजूफल, नागरमोथा, भुनी हुई फिटकरी, काली मिर्च, सेंधा नमक सबको बराबर मिलाकर बारीक पीस लें। इस मिश्रण से प्रतिदिन मंजन करने से दांत और मसूड़ों के सभी विकार दूर होकर दुर्गन्ध मिट जाती है।
  27. शीतपित्त - अकरकरा को कूट-पीसकर चूर्ण बना लें। इसे 3 ग्राम की मात्रा में पानी के साथ खाने से शीत पित्त का विकार दूर होता है।
  28. सफेद दाग (श्वेत कुष्ठ) - अकरकरा के पत्तों का रस निकालकर श्वेत कुष्ठ पर लगाने से कुष्ठ थोड़े समय में ही अच्छा हो जाता है।
  29. सिर के दर्द में- यदि सर्दी के कारण से सिर में दर्द हो तो अकरकरा को मुंह में दांतों के नीचे दबायें रखें। इससे शीघ्र लाभ होगा। बादाम के हलवे के साथ आधा ग्राम अकरकरा का चूर्ण सुबह-शाम सेवन करने से लगातार एक समान बने रहने वाला सिर दर्द ठीक हो जाता है। अकरकरा को जल में पीसकर गर्म करके माथे पर लेप करने से सिर का दर्द ठीक हो जाता है।
  30. हिचकी - एक ग्राम अकरकरा का चूर्ण 1 चम्मच शहद के साथ चटाएं।
  31. हृदय रोग - अर्जुन की छाल और अकरकरा का चूर्ण दोनों को बराबर मिलाकर पीसकर दिन में सुबह और शाम आधा-आधा चम्मच की मात्रा में खाने से घबराहट, हृदय की धड़कन, पीड़ा, कंपन और कमजोरी में लाभ होता है। कुलंजन, सोंठ और अकरकरा की लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग मात्रा को 400 मिलीलीटर पानी में उबालें, जब यह 100 मिलीलीटर की मात्रा में शेष बचे तो उतारकर ठंडा कर लें। फिर इसे पीने से हृदय रोग मिटता है।
  32. काली मिर्च और लंबी काली मिर्च के साथ अकरकरा की जड़ का पाउडर सामान्य सर्दी ठीक करने में मददगार होता है। इसमें एंटीवायरल गुण होते हैं जो फ्लू के सभी लक्षणों को कम करता है और नाक बंद होने को कम करता है।
  33. करकरा, माजूफल, नागरमोथा, फूली हुई फिटकरी, काली मिर्च, सेंधा नमक बराबर की मात्रा में मिलाकर पीस लें। इससे नियमित मंजन करते रहने से दांत और मसूड़ों के समस्त विकार दूर होकर दुर्गंध मिट जाती है।
  34. अकरकरा नपुंसकता और इरेक्टाइल डिस्फंक्शन के इलाज के लिए बेहतर उपाय है और इससे ब्लड प्रेशर भी नहीं बढ़ता है। इसके अलावा साइलेंडाफील की तुलना में इसके कम दुष्प्रभाव हैं। इसे अकेले उपयोग किए जाने पर कुछ सप्ताह के बाद अकरकरा की प्रभाविता कम हो जाती है।
  35. सेक्सुअल समस्याओं दूर करने का रामबाण इलाज है अकरकरा, अकरकरा इच्छा को उत्तेजित करता है और जननांगों की ओर खून के बहाव को बढ़ाता है। अकरकरा कामोत्तेजक, कामेच्छा उत्तेजना और स्पर्मेटोजेनिक क्रियाएं होती है। यह एंड्रोजन के स्राव को प्रभावित करता है और उसके बनने को बढ़ाता है। अकरकरा प्रजनन क्षमता को बढ़ाता है। स्पर्म की संख्या बढ़ाता है और पुरुषों की कामेच्छा में बेहतर सुधार लाता है।
  36. अकरकरा जेनिटल्स में खून के प्रवाह को बढ़ाता है। जिससे कामेच्छा बढ़ जाती है। इजेकुलेशन में देरी होती है और पुरुषों की कामेच्छा में कमी को ठीक करता है। यह वीर्य के रिटेंशन को भी तेज करता है।
अकरकरा के नुकसान
अकरकरा बहुत ही लाभदायक जड़ी बूटी है। लेकिन असावधानी और बिना जानकारी इसका उपयोग करने से कुछ दुष्प्रभाव हो सकते हैं। जैसे- अत्यधिक लार गिरना, मुंह में छाला, जलन महसूस होना, सीने की जलन, एसिडिटी।


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चमत्कारी त्रिफला और सेवन के नियम



त्रिफला से कायाकल्प


त्रिफला तीन श्रेष्ठ औषधियों हरड़, बहेड़ा व आंवला के पिसे मिश्रण से बने चूर्ण को कहते है। जो की मानव-जाति को हमारी प्रकृति का एक अनमोल उपहार है त्रिफला सर्व रोगनाशक रोग प्रतिरोधक और आरोग्य प्रदान करने वाली औषधि है। त्रिफला से कायाकल्प होता है त्रिफला एक श्रेष्ठ रसायन, एंटीबायोटिक व एन्टिसेप्टिक है इसे आयुर्वेद का पेनिसिलिन भी कहा जाता है। त्रिफला का प्रयोग शरीर में वात पित्त और कफ का संतुलन बनाए रखता है। यह रोजमर्रा की आम बीमारियों के लिए बहुत प्रभावकारी औषधि है सिर के रोग, चर्म रोग, रक्तदोष, मूत्र रोग तथा पाचन संस्थान में तो यह रामबाण है। नेत्र ज्योति वर्धक, मल-शोधक, जठराग्नि-प्रदीपक, बुद्धि को कुशाग्र करने वाला व शरीर का शोधन करने वाला एक उच्च कोटि का रसायन है। आयुर्वेद की प्रसिद्ध औषधि त्रिफला पर भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर, ट्राम्बे, गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में रिसर्च करने के पश्चात यह निष्कर्ष निकाला गया कि त्रिफला कैंसर के सेल्स को बढ़ने से रोकता है।

त्रिफला के सेवन से अपने शरीर का कायाकल्प कर जीवन भर स्वस्थ रहा जा सकता है। आयुर्वेद की महान देन त्रिफला से हमारे देश का आम व्यक्ति परिचित है व सभी ने कभी न कभी कब्ज दूर करने के लिए इसका सेवन भी जरूर किया होगा। पर बहुत कम लोग जानते है इस त्रिफला चूर्ण जिसे आयुर्वेद रसायन भी मानता है इससे अपने कमजोर शरीर का कायाकल्प किया जा सकता है। बस जरूरत है तो इसके नियमित सेवन करने की। क्योंकि त्रिफला का वर्षों तक नियमित सेवन ही आपके शरीर का कायाकल्प कर सकता है।

इस तरह इसका सेवन करने से एक वर्ष के भीतर शरीर की सुस्ती दूर होगी , दो वर्ष सेवन से सभी रोगों का नाश होगा, तीसरे वर्ष तक सेवन से नेत्रों की ज्योति बढ़ेगी, चार वर्ष तक सेवन से चेहरे का सौंदर्य निखरेगा, पांच वर्ष तक सेवन के बाद बुद्धि का अभूतपूर्व विकास होगा, छ: वर्ष सेवन के बाद बल बढ़ेगा, सातवें वर्ष में सफ़ेद बाल काले होने शुरू हो जायेंगे और आठ वर्ष सेवन के बाद शरीर युवा शक्ति सा परिपूर्ण लगेगा।

दो तोला हरड बड़ी मंगावे।तासू दुगुन बहेड़ा लावे।।
और चतुर्गुण मेरे मीता।ले आंवला परम पुनीता।।
कूट छान या विधि खाय।ताके रोग सर्व कट जाय।।
त्रिफला का अनुपात होना चाहिए :- 1:2:3=1(हरड )+2(बहेड़ा )+3(आंवला)
मतलब जैसे आपको 100 ग्राम त्रिफला बनाना है तो  20 ग्राम हरड़+40 ग्राम बहेड़ा+60 ग्राम आंवला
अगर साबुत मिले तो तीनों को पीस लेना और अगर चूर्ण मिल जाए तो मिला लेना
  1. हरड़ -  हरड को बहेड़ा का पर्याय माना गया है। हरड में लवण के अलावा पाँच रसों का समावेश होता है। हरड बुद्धि को बढाने वाली और हृदय को मजबूती देने वाली, पीलिया ,शोध ,मूत्राघात, दस्त, उलटी, कब्ज, संग्रहणी, प्रमेह, कामला, सिर और पेट के रोग, कर्ण रोग, खांसी, प्लीहा, अर्श, वर्ण, शूल आदि का नाश करने वाली सिद्ध होती है। यह पेट में जाकर माँ की तरह से देख भाल और रक्षा करती है। भूनी हुई हरड के सेवन से पाचन तन्त्र मजबूत होता है। हरड को चबाकर खाने से अग्नि बढाती है। पीसकर सेवन करने से मल को बाहर निकालती है। जल में पका कर उपयोग से दस्त, नमक के साथ कफ, शक्कर के साथ पित्त, घी के साथ सेवन करने से वायु रोग नष्ट हो जाता है। हरड को वर्षा के दिनों में सेंधा नमक के साथ, सर्दी में बूरा के साथ, हेमंत में सौंठ के साथ, शिशिर में पीपल, बसंत में शहद और ग्रीष्म में गुड के साथ हरड का प्रयोग करना हितकारी होता है। भूनी हुई हरड के सेवन से पाचन तन्त्र मजबूत होता है। 200 ग्राम हरड पाउडर में 10-15 ग्राम सेंधा नमक मिलाकर रखे। पेट की गड़बडी लगे तो शाम को 5-6 ग्राम फांक लें । गैस, कब्ज़, शरीर टूटना, वायु-आम के सम्बन्ध से बनी बीमारियों में आराम होगा। त्रिफला बनाने के लिए तीन मुख्य घटक हरड़, बहेड़ा व आंवला है इसे बनाने में अनुपात को लेकर अलग अलग औषधि विशेषज्ञों की अलग अलग राय पाई गई है
  2. बहेड़ा - बहेड़ा वात,और कफ को शांत करता है। इसकी छाल प्रयोग में लायी जाती है। यह खाने में गरम है, लगाने में ठंडा व रूखा है, सर्दी, प्यास, वात, खांसी व कफ को शांत करता है यह रक्त, रस, मांस ,केश, नेत्र-ज्योति और धातु वर्धक है। बहेड़ा मन्दाग्नि, प्यास, वमन कृमी रोग नेत्र दोष और स्वर दोष को दूर करता है बहेड़ा न मिले तो छोटी हरड़ का प्रयोग करते है
  3. आंवला - आंवला मधुर शीतल तथा रूखा है वात पित्त और कफ रोग को दूर करता है। इसलिए इसे त्रिदोषक भी कहा जाता है आंवला के अनगिनत फायदे हैं। नियमित आंवला खाते रहने से वृद्धावस्था जल्दी से नहीं आती। आंवले में विटामिन सी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है, इसका विटामिन किसी सी रूप (कच्चा उबला या सुखा) में नष्ट नहीं होता, बल्कि सूखे आंवले में ताजे आंवले से ज्यादा विटामिन सी होता है। अम्लता का गुण होने के कारण इसे आँवला कहा गया है। चर्बी, पसीना, कपफ, गीलापन और पित्त रोग आदि को नष्ट कर देता है। खट्टी चीजों के सेवन से पित्त बढता है लेकिन आंवला और अनार पित्तनाशक है। आंवला रसायन अग्निवर्धक, रेचक, बुद्धिवर्धक, हृदय को बल देने वाला नेत्र ज्योति को बढ़ाने वाला होता है।
कुछ विशेषज्ञों की राय है कि तीनो घटक (यानी के हरड, बहेड़ा व आंवला) समान अनुपात में होने चाहिए। कुछ विशेषज्ञों की राय है कि यह अनुपात एक, दो तीन का होना चाहिए। कुछ विशेषज्ञों की राय में यह अनुपात एक, दो चार का होना उत्तम है और कुछ विशेषज्ञों के अनुसार यह अनुपात बीमारी की गंभीरता के अनुसार अलग-अलग मात्रा में होना चाहिए ।एक आम स्वस्थ व्यक्ति के लिए यह अनुपात एक, दो और तीन (हरड़, बहेड़ा व आंवला) संतुलित और ज्यादा सुरक्षित है। जिसे सालों साल सुबह या शाम एक एक चम्मच पानी या दूध के साथ लिया जा सकता है। सुबह के वक्त त्रिफला लेना पोषक होता है जबकि शाम को यह रेचक (पेट साफ करने वाला) होता है। ऋतु के अनुसार सेवन विधि :-
  • 1.शिशिर ऋतु में ( 14 जनवरी से 13 मार्च) 5 ग्राम त्रिफला का आठवां भाग छोटी पीपल का चूर्ण मिलाकर सेवन करें।
  • 2.बसंत ऋतु में (14 मार्च से 13 मई) 5 ग्राम त्रिफला को बराबर का शहद मिलाकर सेवन करें।
  • 3.ग्रीष्म ऋतु में (14 मई से 13 जुलाई ) 5 ग्राम त्रिफला का चौथा भाग गुड़ मिलाकर सेवन करें।
  • 4.वर्षा ऋतु में (14 जुलाई से 13 सितंबर) 5 ग्राम त्रिफला का छठा भाग सेंधा नमक मिलाकर सेवन करें।
  • 5.शरद ऋतु में(14 सितम्बर से 13 नवम्बर) 5 ग्राम त्रिफला को चोथा भाग देशी खांड/शक्कर मिलाकर सेवन करें।
  • 6.हेमंत ऋतु में (14 नवंबर से 13 जनवरी) 5 ग्राम त्रिफला को छठा भाग सोंठ का चूर्ण मिलाकर सेवन करें।
विधिः 500 ग्राम त्रिफला चूर्ण, 500 ग्राम देसी गाय का घी व 250 ग्राम शुद्ध शहद मिलाकर शरद पूर्णिमा की रात को चांदी के पात्र में पतले सफेद वस्त्र से ढक कर रात भर चाँदनी में रखें। दूसरे दिन सुबह इस मिश्रण को कांच अथवा चीनी के पात्र में भर लें।

त्रिफला लेने का सही नियम
  • सुबह अगर हम त्रिफला लेते हैं तो उसको हम "पोषक " कहते हैं।क्योंकि सुबह त्रिफला लेने से त्रिफला शरीर को पोषण देता है जैसे शरीर में vitamin, iron, calcium, micronutrients की कमी को पूरा करता है एक स्वस्थ व्यक्ति को सुबह त्रिफला खाना चाहिए।
  • सुबह जो त्रिफला खाएं हमेशा गुड के साथ खाएं।
  • रात में जब त्रिफला लेते हैं उसे "रेचक " कहते है क्योंकि रात में त्रिफला लेने से पेट की सफाई (कब्ज इत्यादि) का निवारण होता है।
  • रात में त्रिफला हमेशा गर्म दूध के साथ लेना चाहिए।
बड़े व्यक्ति 10 ग्राम छोटे बच्चे 5 ग्राम मिश्रण सुबह-शाम गुनगुने पानी के साथ लें दिन में केवल एक बार सात्विक, सुपाच्य भोजन करें। इन दिनों में भोजन में सेंधा नमक का ही उपयोग करें। सुबह शाम गाय का दूध ले सकते हैं।सुपाच्य भोजन दूध दलिया लेना उत्तम है।

मात्राः 4 से 5 ग्राम तक त्रिफला चूर्ण सुबह के वक्त लेना पोषक होता है जबकि शाम को यह रेचक (पेट साफ करने वाला) होता है। सुबह खाली पेट गुनगुने पानी के साथ इसका सेवन करें तथा एक घंटे बाद तक पानी के अलावा कुछ ना खाएं और इस नियम का पालन कठोरता से करें ।

सावधानी : दूध व त्रिफला के सेवन के बीच में दो ढाई घंटे का अंतर हो और कमजोर व्यक्ति तथा गर्भवती स्त्री को बुखार में त्रिफला नहीं खाना चाहिए। घी और शहद कभी भी समान मात्रा में नहीं लेना चाहिए यह खतरनाक जहर होता है । त्रिफला चूर्ण के सेवन के एक घंटे बाद तक चाय-दूध कॉफी आदि कुछ भी नहीं लेना चाहिये। त्रिफला चूर्ण हमेशा ताजा खरीद कर घर पर ही सीमित मात्रा में (जो लगभग तीन चार माह में समाप्त हो जाये ) पीसकर तैयार करें व सीलन से बचा कर रखें और इसका सेवन कर पुनः नया चूर्ण बना लें।

त्रिफला से कायाकल्प
कायाकल्प हेतु नींबू लहसुन, भिलावा,अदरक आदि भी है। लेकिन त्रिफला चूर्ण जितना निरापद और बढ़िया दूसरा कुछ नहीं है।आयुर्वेद के अनुसार त्रिफला के नियमित सेवन करने से कायाकल्प हो जाता है। मनुष्य अपने शरीर का कायाकल्प कर सालों साल तक निरोग रह सकता है, देखे कैसे ?
  • एक वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर चुस्त होता है।
  • दो वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर निरोगी हो जाता है।
  • तीन वर्ष तक नियमित सेवन करने से नेत्र-ज्योति बढ़ जाती है।
  • चार वर्ष तक नियमित सेवन करने से त्वचा कोमल व सुंदर हो जाती है ।
  • पांच वर्ष तक नियमित सेवन करने से बुद्धि का विकास होकर कुशाग्र हो जाती है।
  • छः वर्ष तक नियमित सेवन करने से शरीर शक्ति में पर्याप्त वृद्धि होती है।
  • सात वर्ष तक नियमित सेवन करने से बाल फिर से सफेद से काले हो जाते हैं।
  • आठ वर्ष तक नियमित सेवन करने से वृद्धावस्था से पुन: यौवन लौट आता है।
  • नौ वर्ष तक नियमित सेवन करने से नेत्र-ज्योति कुशाग्र हो जाती है और सूक्ष्म से सूक्ष्म वस्तु भी आसानी से दिखाई देने लगती हैं।
  • दस वर्ष तक नियमित सेवन करने से वाणी मधुर हो जाती है यानी गले में सरस्वती का वास हो जाता है।
  • ग्यारह वर्ष तक नियमित सेवन करने से वचन सिद्धि प्राप्त हो जाती है अर्थात व्यक्ति जो भी बोले सत्य हो जाती है।
सेवन से लाभ 
  • औषधि के रूप में त्रिफला रात को सोते वक्त 5 ग्राम (एक चम्मच भर) त्रिफला चूर्ण हल्के गर्म दूध अथवा गर्म पानी के साथ लेने से कब्ज दूर होता है।
  • अथवा त्रिफला व ईसबगोल की भूसी दो चम्मच मिलाकर शाम को गुनगुने पानी से लें इससे कब्ज दूर होता है।
  • इसके सेवन से नेत्र ज्योति में आश्चर्यजनक वृद्धि होती है।
  • सुबह पानी में 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण साफ़ मिट्टी के बर्तन में भिगो कर रख दें, शाम को छानकर पी ले। शाम को उसी त्रिफला चूर्ण में पानी मिलाकर रखें, इसे सुबह पी लें। इस पानी से आँखें भी धो ले। मुंह के छाले व आँखों की जलन कुछ ही समय में ठीक हो जायेंगे।
  • शाम को एक गिलास पानी में एक चम्मच त्रिफला भिगो दे सुबह मसल कर नितार कर इस जल से आँखों को धोने से नेत्रों की ज्योति बढ़ती है।
  • एक चम्मच बारीक त्रिफला चूर्ण, गाय का घी 10 ग्राम व शहद 5 ग्राम एक साथ मिलाकर नियमित सेवन करने से आंखों का मोतियाबिंद, कांचबिंदु, दृष्टिदोष आदि नेत्र रोग दूर होते है। और बुढ़ापे तक आँखों की रोशनी अचल रहती है।
  • त्रिफला के चूर्ण को गोमूत्र के साथ लेने से अफारा, उदर शूल, प्लीहा वृद्धि आदि अनेकों तरह के पेट के रोग दूर हो जाते है।
  • त्रिफला शरीर के आंतरिक अंगों की देखभाल कर सकता है, त्रिफला की तीनों जड़ी बूटियां आंतरिक सफाई को बढ़ावा देते हैं।
  • चर्म रोगों में (दाद, खाज, खुजली, फोड़े-फुंसी आदि) सुबह-शाम 6 से 8 ग्राम त्रिफला चूर्ण लेना चाहिए।
  • एक चम्मच त्रिफला को एक गिलास ताजा पानी मे दो- तीन घंटे के लिए भिगो दे, इस पानी को घूंट भर मुंह में थोड़ी देर के लिए डाल कर अच्छे से कई बार घुमाएँ और इसे निकाल दे। कभी कभार त्रिफला चूर्ण से मंजन भी करें इससे मुंह आने की बीमारी, मुंह के छाले ठीक होंगे, अरूचि मिटेगी और मुख की दुर्गन्ध भी दूर होगी।
  • त्रिफला, हल्दी, चिरायता, नीम के भीतर की छाल और गिलोय इन सबको मिलाकर मिश्रण को आधा किलो पानी में जब तक पकाएं कि पानी आधा रह जाए और इसे छानकर कुछ दिन तक सुबह शाम गुड या शक्कर के साथ सेवन करने से सिर दर्द की समस्या दूर हो जाती है।
  • त्रिफला एंटीसेप्टिक की तरह से भी काम करता है। इसका काढ़ा बनाकर घाव धोने से घाव जल्दी भर जाते है।
  • त्रिफला पाचन और भूख को बढ़ाने वाला और लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या में वृद्धि करने वाला है।
  • मोटापा कम करने के लिए त्रिफला को गुनगुने काढ़े में शहद मिलाकर ले।त्रिफला चूर्ण पानी में उबालकर, शहद मिलाकर पीने से चर्बी कम होती है।
  • त्रिफला का सेवन मूत्र-संबंधी सभी विकारों व मधुमेह में बहुत लाभकारी है। प्रमेह आदि में शहद के साथ त्रिफला लेने से अत्यंत लाभ होता है।
  • त्रिफला की राख शहद में मिलाकर गर्मी से हुए त्वचा के चकत्ते पर लगाने से राहत मिलती है।
  • 5 ग्राम त्रिफला पानी के साथ लेने से जीर्ण ज्वर के रोग ठीक होते है।
  • 5 ग्राम त्रिफला चूर्ण गोमूत्र या शहद के साथ एक माह तक लेने से कामला रोग मिट जाता है।
  • टॉन्सिल्स के रोगी त्रिफला के पानी से बार-बार गरारे करवायें।
  • त्रिफला दुर्बलता का नाश करता है और स्मृति को बढ़ाता है। दुर्बलता का नाश करने के लिए हरड़, बहेड़ा, आँवला, घी और शक्कर मिलाकर खाना चाहिए।
  • त्रिफला, तिल का तेल और शहद समान मात्रा में मिलाकर इस मिश्रण कि 10 ग्राम मात्रा हर रोज गुनगुने पानी के साथ लेने से पेट, मासिक धर्म और दमे की तकलीफ दूर होती है इसे महीने भर लेने से शरीर का शुद्धिकरण हो जाता है और यदि 3 महीने तक नियमित सेवन करने से चेहरे पर कांति आ जाती है।
  • त्रिफला, शहद और घृतकुमारी तीनो को मिलाकर जो रसायन बनता है वह सप्त धातु पोषक होता है। त्रिफला रसायन कल्प त्रिदोषनाशक, इंद्रिय बलवर्धक विशेषकर नेत्रों के लिए हितकर, वृद्धावस्था को रोकने वाला व मेधा शक्ति बढ़ाने वाला है। दृष्टि दोष, रतौंधी (रात को दिखाई न देना), मोतियाबिंद, कांचबिंदु आदि नेत्ररोगों से रक्षा होती है और बाल काले, घने व मजबूत हो जाते हैं।
  • डेढ़ माह तक इस रसायन का सेवन करने से स्मृति, बुद्धि, बल व वीर्य में वृद्धि होती है।
  • दो माह तक सेवन करने से चश्मा भी उतर जाता है।









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मधुराष्टकं Madhurashtakam




madhurashtakam

अधरं मधुरं वदनं मधुरं, नयनं मधुरं हसितं मधुरं।
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥१॥

अधर, वदन नयना अति मधुरा, स्मित मधुर, हृदय अति मधुरा
चाल मधुर, सब कुछ मधु मधुरा, हे मधुराधिपते! मधु मधुरा

वचनं मधुरं चरितं मधुरं, वसनं मधुरं वलितं मधुरं ।
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥२॥

चरित मधुर, वचनं अति मधुरा, भेष मधुर, वलितं अति मधुरा
चाल मधुर अति, भ्रमण भी मधुरा, हे मधुराधिपते! मधु मधुरा

वेणुर्मधुरो रेनुर्मधुरः, पाणिर्मधुरः पादौ मधुरौ ।
नृत्यं मधुरं सख्यं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥३॥

मधुरं वेणु , चरण रज मधुरा, पाद पाणि दोनों अति मधुरा
मित्र मधुर मधु, नृत्यं मधुरा, हे मधुराधिपते! मधु मधुरा

गीतं मधुरं पीतं मधुरं, भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरं ।
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥४॥

गायन मधुर, पीताम्बर मधुरा, भोजन मधुरम, शयनं मधुरा
रूप मधुरतम, तिलकं मधुरा, हे मधुराधिपते! मधु मधुरा

करणं मधुरं तरणं मधुरं, हरणं मधुरं रमणं मधुरं ।
वमितं मधुरं शमितं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥५॥

करम मधुरतम, तारण मधुरा, हरण, रमण दोनों अति मधुरा
परम शक्तिमय मधुरम मधुरा, हे मधुराधिपते! मधु मधुरा

गुंजा मधुरा माला मधुरा, यमुना मधुरा वीचीर्मधुरा ।
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥६॥

कुसुम माल, गुंजा अति मधुरा, यमुना मधुरा, लहरें मधुरा
यमुना जल, जल कमल भी मधुरा, हे मधुराधिपते! मधु मधुरा

गोपी मधुरा लीला मधुरा, युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरं।
दृष्टं मधुरं सृष्टं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥७॥

मधुर गोपियाँ, लीला मधुरा, मिलन मधुर भोजन अति मधुरा
हर्ष मधुरतम, शिष्टं मधुरा, हे मधुराधिपते! मधु मधुरा

गोपा मधुरा गावो मधुरा, यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा ।
दलितं मधुरं फ़लितं मधुरं, मधुराधिपते रखिलं मधुरं ॥८॥

ग्वाले मधुरम, गायें मधुरा, अंकुश मधुरम, सृष्टिम मधुरा
दलितं मधुरा, फलितं मधुरा, हे मधुराधिपते! मधु मधुरा

- श्री श्री वल्लभाचार्य


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शरीर को निरोगी बनाती है तुलसी



विदेशी चिकित्सक इन दिनों भारतीय जड़ी बूटियों पर व्यापक अनुसंधान कर रहे हैं। अमेरिका के मेसाच्युसेट्स संस्थान सहित विश्व के अनेक शोध संस्थानों में जड़ी-बूटियों पर शोध कार्य चल रहे हैं। "वर्ल्ड-एड्स" के अनुसार अमेरिका के नेशनल कैंसर रिसर्च इंस्टीट्यूट में कैंसर एवं एड्स के उपचार में कारगर भारतीय जड़ी-बूटियों को व्यापक पैमाने पर परखा जा रहा है। विशेष रू प से तुलसी में एड्स निवारक तत्वों की खोज जारी है। मानस रोगों के संदर्भ में भी इन पर परीक्षण चल रहे हैं। आयुर्वेदिक जड़ी बूटियों पर पूरे विश्व का रुझान इसके दुष्प्रभाव मुक्त होने की विशेषता के कारण बढ़ता जा रहा है।

कैंसर में कारगर तुलसी
एक अध्ययन से यह बात स्पष्ट हो गई है कि अब तुलसी के पत्तों से तैयार किए गए पेस्ट का इस्तेमाल कैंसर से पीड़ित रोगियों के इलाज में किया जा सकता है। दरअसल वैज्ञानिकों को "रेडिएशन-थेरेपी" में तुलसी के पेस्ट के जरिए विकिरण के प्रभाव को कम करने में सफलता हासिल हुई है। तुलसी में विकिरण के प्रभावों को शांत करने के गुण हैं। यह निष्कर्ष पिछले दस वर्षों के दौरान भारत में ही मणिपाल स्थित कस्तूरबा मेडिकल कॉलेज में चूहों पर किए गए परीक्षणों के आधार पर निकाला गया। दस वर्षो की अवधि में हजारों चूहों पर परीक्षण किए गए।
दुष्प्रभाव नहीं
कैंसर के इलाज में रेडिएशन के प्रभाव को कम करने के लिए प्रयोग किया जाने वाला "एम्मी फास्टिन" महंगा तो है ही, साथ ही इसके इस्तेमाल से लो- ब्लड प्रेशर और उल्टियां होने की समस्याएं भी देखी गई हैं। जबकि तुलसी के प्रयोग से ऐसे दुष्प्रभाव सामने नहीं आते।
संक्रामक रोगों से बचाती है
डॉ. के. वसु ने तुलसी को संक्रामक-रोगों जैसे यक्ष्मा, मलेरिया, कालाजार इत्यादि की चिकित्सा में बहुत उपयोगी बताया है।
पुदीना, तुलसी का मिश्रण
चूहों पर किए गए परीक्षणों के बाद यह साबित हुआ है कि पुदीना और तुलसी के मिश्रण के लगातार सेवन से कैंसर होने की आशंका कम हो जाती है। एक विश्वविद्यालय में लगभग बीस सप्ताह तक चूहों के दो अलग समूहों पर यह प्रयोग किया गया। दोनों समूह के चूहों पर रसायन का लेप किया गया। एक समूह को तुलसी और पुदीना का मिश्रण भी पिलाया गया। जिन चूहों की त्वचा पर सिर्फ रसायन का लेप किया गया था, उनके शरीर पर बड़े-बड़े फोड़े निकल आए। जिन चूहों को तुलसी और पुदीना का मिश्रण पिलाया गया, उनमें ऐसा नहीं हुआ।
मच्छर नाशक
"बुलेटिन ऑफ बॉटनिकल सर्वे ऑफ इंडिया" में प्रकाशित एक शोध के अनुसार तुलसी के रस में मलेरिया बुखार पैदा करने वाले मच्छरों को नष्ट करने की अद्भुत क्षमता पाई जाती है। वनस्पति वैज्ञानिक डॉ. जी.डी. नाडकर्णी का अध्ययन बतलाता है कि तुलसी के नियमित सेवन से हमारे शरीर में विद्युत-शक्ति का प्रवाह नियंत्रित होता है और व्यक्ति की जीवन अवधि में वृद्धि होती है। तभी तो भारत के लगभग हर घर के चौक में सदियों से तुलसी का स्थान रहा है। कहा जाता है कि इसके आसपास मच्छर नहीं होते।


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ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।



पवित्रीकरण मंत्र - ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
हिन्दू धार्मिक ग्रंथों के अनुसार ‘स्नान’ एक अहम कार्य है। यदि यह आध्यात्मिक नियमों के अनुसार किया जाए तो ही फलदायी होता है। इसके अनुसार स्नान करने का सही समय सुबह 4 बजे का है जिसे ‘ब्रह्म मुहूर्त’ कहा जाता है। गंगा के तट पर पानी में लगातार डुबकियां लगाता इंसान क्या सोचता है? शायद वह यही सोचता है कि यही वो मार्ग है जो उसे जीवन समाप्त होने के बाद मोक्ष पाने में सहायक होगा। यह मार्ग उसके जीवन-मरण के चक्र को खत्म कर उसे संसार के जंजाल से बाहर निकालने में मदद कर सकेगा।



ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत्पुंडरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः॥
(हरिभक्तिविलस ३।३७, गरुड़ पुराण)


Om Apavitrah Pavitro Vaa Sarva-Avasthaam Gato-[A]pi Vaa |
Yah Smaret-Punnddariikaakssam Sa Baahya-Abhyantarah Shucih ||

Whether all places are permeated with purity or with impurity,
whosoever remembers the lotus-eyed Lord (Vishnu, Rama, Krishna) gains inner and outer purity.

चाहे (स्नानादिक से) पवित्र हो अथवा (किसी अशुचि पदार्थ के स्पर्श से) अपवित्र हो, (सोती, जागती, उठती, बैठती, चलती) किसी भी दशा में हो, जो भी कमल कमल नयनी (विष्णु, राम, कृष्ण) भगवान का स्मरण मात्र से वह (उस समय) बाह्म (शरीर) और अभ्यन्तर (मन) से पवित्र होता है |


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महाकालेश्वर मंदिर उज्जैन Mahakaleshwar Temple Ujjain



महाकालेश्वर मंदिर भारत के बारह ज्योतिर्लिंगों में से एक है। यह मध्य प्रदेश राज्य के उज्जैन नगर में स्थित, महाकालेश्वर भगवान का प्रमुख मंदिर है। पुराणों, महाभारत और कालिदास जैसे महाकवियों की रचनाओं में इस मंदिर का मनोहर वर्णन मिलता है। स्वयंभू, भव्य और दक्षिणमुखी होने के कारण महाकालेश्वर महादेव की अत्यंत पुण्यदायी महत्ता है। मान्यता है कि इसके दर्शन मात्र से ही मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। सावन में तो इसकी छटा देखते ही बनती है। कांवड़ियों के जयकारों और मंदिरों के घंटों से ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे हम किसी शिव लोक में आ गए हैं।
 

बम बम भोले के जयकारे
इतिहास से पता चलता है कि उज्जैन में सन् 1107 से 1728 ई. तक यवनों का शासन था। इनके शासन काल में अवंति की लगभग 4500 वर्षों में स्थापित हिन्दुओं की प्राचीन धार्मिक परंपराएं प्रायः नष्ट हो चुकी थी। लेकिन 1690 ई. में मराठों ने मालवा क्षेत्र में आक्रमण कर दिया और 29 नवंबर 1728 को मराठा शासकों ने मालवा क्षेत्र में अपना अधिपत्य स्थापित कर लिया।
इसके बाद उज्जैन का खोया हुआ गौरव पुनः लौटा और सन 1731 से 1801 तक यह नगरी मालवा की राजधानी बनी रही। मराठों के शासनकाल में यहाँ दो महत्त्वपूर्ण घटनाएँ घटीं - पहला, महाकालेश्वर मंदिर का पुनर्निर्माण और ज्योतिर्लिंग की पुनर्प्रतिष्ठा तथा सिंहस्थ पर्व स्नान की स्थापना, जो एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी। आगे चलकर राजा भोज ने इस मंदिर का विस्तार कराया।
सावन में लगता है कावड़ियों का मेला
महाशिवरात्रि एवं श्रावण मास में हर सोमवार को इस मंदिर में अपार भीड़ होती है। मंदिर से लगा एक छोटा-सा जलस्रोत है जिसे कोटितीर्थ कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इल्तुत्मिश ने जब मंदिर को तुड़वाया तो शिवलिंग को इसी कोटि तीर्थ में फिकवा दिया था। बाद में इसकी पुनर्प्रतिष्ठा करायी गयी। सन 1968 के सिंहस्थ महापर्व के पूर्व मुख्य द्वार का विस्तार कर सुसज्जित कर लिया गया था। इसके अलावा निकासी के लिए एक अन्य द्वार का निर्माण भी कराया गया था। लेकिन दर्शनार्थियों की अपार भीड़ को दृष्टिगत रखते हुए बिड़ला उद्योग समूह के द्वारा 1980 के सिंहस्थ के पूर्व एक विशाल सभा मंडप का निर्माण कराया। हाल ही में इसके 198 शिखरों पर 16 किलो स्वर्ण की परत चढ़ाई गई है। अब मंदिर में दान के लिए इंटरनेट सुविधा भी चालू की गई है। कहते हैं भोलेनाथ सब की सुनते हैं, इसलिए महाकालेश्वर मंदिर से कोई भी  खाली हाथ नहीं लौटता।

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कैलाश मानसरोवर



कैलाश मानसरोवर 
मानसरोवर तिब्बत में स्थित एक झील है। यह झील लगभग 320 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है । इसके उत्तर में कैलाश पर्वत तथा पश्चिम में रक्षातल झील है । यह समुद्रतल से लगभग 4556 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है । इसकी परिमिति लगभग 88 किलोमीटर है और औसत गहराई 90 मीटर ।
कैलाश मानसरोवर
हिन्दू धर्म में इसे लिए पवित्र माना गया है । इसके दर्शन के लिए हज़ारों लोग प्रतिवर्ष कैलाश मानसरोवर यात्रा में भाग लेते है । हिन्दू विचारधारा के अनुसार यह झील सर्वप्रथम भगवान ब्रह्मा के मन में उत्पन्न हुआ था । संस्कृत शब्द मानसरोवर, मानस तथा सरोवर को मिल कर बना है जिसका शाब्दिक अर्थ होता है - मन का सरोवर । यहां देवी सती के शरीर का दांया हाथ गिरा था। इसलिए यहां एक पाषाण शिला को उसका रूप मानकर पूजा जाता है। यहां शक्तिपीठ है।
अमरनाथ मंदिर के बाद कैलाश मानसरोवर को भगवान शिव का धाम माना गया है। अमरनाथ मंदिर के दर्शनों की तरह यह स्थल भी बेहद दुर्गम स्थान पर स्थित है। मानसरोवर को दूसरा कैलाश पर्वत कहा गया है। भगवान शिव के निवास स्थल के नाम से प्रख्यात यह स्थल अपनी अपरंपार महिमा के लिये प्रसिद्ध है। यह पर्वत कुल मिलाकर 48 किलोमीटर में फैला हुआ है। कैलाश मानसरोवर की यात्रा अत्यधिक कठिन यात्राएं में से एक यात्रा मानी जाती है। इस यात्रा का सबसे अधिक कठिन मार्ग भारत के पड़ोसी देश चीन से होकर जाता है। यहां की यात्रा के विषय में यह कहा जाता है, कि इस यात्रा पर वही लोग जाते है, जिसे भगवान भोलेनाथ स्वयं बुलाते है। यह यात्रा प्रत्येक वर्ष मई से जून माह के मध्य अवधि में होती है। कैलाश मानसरोवर यात्रा की अवधि 28 दिन की होती है।
कैलाश मानसरोवर स्थल धरती पर किसी स्वर्ग से कम नहीं है। इस स्थल के विषय में यह मान्यता है, कि जो व्यक्ति इस स्थल का पानी पी लेता है। उसके लिये भगवान शिव के बनाये स्वर्ग में प्रवेश मिल जाता है। एक पौराणिक कथा के अनुसार भगवान ब्रह्मा जी ने मानसरोवर का निर्माण स्वयं किया था। माता के 51 शक्तिपीठों के अनुसार, इस स्थान पर माता सती का एक हाथ गिरा था। जिसके बाद ही यह झील बनी है। तभी से यह स्थान मात के 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है।
कैलाश मानसरोवर
कैलाश मानसरोवर मंदिर समुद्र स्थल से 4 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। इतनी ऊंचाई पर होने के कारण यहां के गौरी नामक कुण्ड में सदैव बर्फ जमी रहती है। इस मंदिर के दर्शनों को आने वाले तीर्थयात्री इस बर्फ को हटाकर इस कुंड में स्नान करना विशेष रुप से शुभ मानते है। यहां भगवान शिव बर्फ के शिवलिंग के रुप में विराजित है। इस स्थान से भारत में जाने वाली कई महत्वपूर्ण नदियां निकलती है। कैलाश मानसरोवर के जल का पानी पीकर, गौरी कुण्ड में स्थान अवश्य किया जाता है।
इस धार्मिक स्थल की यात्रा करने वाले यात्रियों में न केवल हिन्दू धर्म के श्रद्वालु आते है, बल्कि यहां पर बौद्ध व अन्य धर्म के व्यक्ति भी कैलाश मानसरोवर में स्थित भगवान शिव के दर्शनों के लिये आते है, और पुन्य कमा कर जाते है। इसी स्थान पर एक ताल है, जो राक्षस ताल के नाम से विख्यात है। इस ताल से जुड़ी एक पौराणिक कथा प्रचलित है, कि यहां पर रावण ने भगवान शिव की आराधना की थी। रावण राक्षस कुल के थें, इसी कारण इस ताल का नाम "राक्षस ताल" पड़ा है।
कैलाश मानसरोवर के विषय में कहा जाता है, कि देव ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना इसी स्थान पर की थी। यहां पर गंगा नदी कैलाश पर्वत से निकलते हुए चार नदियों का रूप लेती है। जिससे उसके चार नाम हो जाते है। मानसरोवर की यात्रा का दृश्य बड़ा ही मनोरम है। यहां पर प्रकृति का रंग गहरा नीला और बेहद बर्फीला हो जाता है। कैलाश मानसरोवर की यात्रा करने वाले श्रद्धालु यहां आकर कैलाश जी की परिक्रमा अवश्य करते है। कैलाश की परिक्रमा करने के बाद मानसरोवर की परिक्रमा की जाती है। यहां के सौन्दर्य को देख कर सभी को इस तथ्य पर विश्वास हो गया कि इस स्थान को ब्रह्माण्ड का मध्य स्थान क्यों कहा जाता है।


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