आयुर्वेद में सर्वोच्च स्थान पर विराजमान हरड़



हरड़ का महत्व


  • एक हरड़ का नित्य सेवन लम्बी आयु देता है और कहा भी गया है कि' माँ कभी नाराज हो सकती है परन्तु हरड नहीं।
  • दो बड़ी हरड (या 3 से 4 ग्राम हरड चूर्ण) को घी में भूनकर नियमित सेवन करने से व घी पीने से शरीर में बल चिरस्थायी होता है ।
  • हरड का प्रमुख कार्य है तत्वों को हटा कर हर एक अंग के दोषों को निकाल कर उन्हें शोधित कर उनकी गतिशीलता को बढ़ाना है।
  • यह दस्त से पेट के शोधन के बाद दस्त रोकती है।
  • हरड़ दांतों से चबाकर खाने से भूख बढ़ती है।
  • हरद भूनकर खाने से तीनों दोषों को ठीक करती है।
  • हरड़ पीसकर खाने से रेचक होती है।
  • भोजन के साथ खाने से बुद्धि और बल बढ़ाती है।
  • अधिक पसीना आना , पुरानी सर्दी खांसी , पुराने घाव भरने में लाभकारी।
  • मुहांसों पर इसे पीसकर कर लगाने से लाभ होता है।
  • हरड का मुरब्बा दस्त बंद कर भूख बढ़ता है।

ऋतु अनुसार हरड सेवन-विधि :
निम्न द्रव्य दिये गये अनुपात में मिलाकर प्रात: हरीतकी (हरड) का निरंतर सेवन करने से श्रेष्ठ रसायन के रूप में सभी प्रकार के रोगों से रक्षा करती है और धातुओं को पुष्ट करती है । पेट, आँख, अच्छी नींद, तनाव मुक्ति, जोड़ों के दर्द, मोटापे आदि के लिये इसे उपयोगी पाया गया है, पर पारम्परिक चिकित्सक इसे पूरे शरीर को मजबूत करने वाला उपाय मानते है।
एक फल ले और उसे रात भर एक कटोरी पानी में भिगो दे। सुबह खाली पेट पानी पीये और फल को फेंक दें। यह सरल सा दिखने वाला प्रयोग बहुत प्रभावी है। यह ताउम्र रोगों से बचाता है। वैसे विदेशों में किये गये अनुसंधान हर्रा के बुढापा रोकने की क्षमता को पहले ही साबित कर चुके हैं। यह प्रयोग लगातार 3 महीने ही करें . 3 महीने के बाद 15 दिनों का अवकाश ले फिर इस प्रयोग को शुरू कर दें.
शिशिर - हरड़ + पीपर (8 भाग : 1 भाग)
वसंत - हरड + शहद (समभाग)
ग्रीष्म - हरड़ + गुड ( समभाग)
वर्षा - हरड़ + सैंधव (8 भाग : 1 भाग)
शरद - हरड़ + मिश्री (2 भाग : 1 भाग)
हेमंत - हरड + सौंठ (4 भाग : 1 भाग)


Share:

अन्याय के प्रतिकार के योद्धा शहीद भगत सिंह



क्रांतिकारी युग पुरुष भगत सिंह का स्वतंत्रता आंदोलन में दिया गया बलिदान क्रांति का अमर प्रतीक है, जो युगों-युगों तक देश की माटी से जुड़े सपूतों को नई दिशा एवं उत्साह देता रहेगा, उन्होंने अपने खून से स्वतंत्रता के वृक्ष को सींचकर देश को जो मजबूती एवं ताजगी दी है भला उसे कौन भुला सकता है? उनका अनुपम बलिदान इतिहास की अमूल्य धरोहर है, भगत सिंह का जन्म ऐसे सिख परिवार में हुआ था जिस परिवार की दो-दो पीढि़याँ स्वतंत्रता के लिए खून बहा चुकी थीं, जो टूट गए परन्तु झुके नहीं, गुलामी की जंजीरों को तोड़ फेकने का संकल्प जिनकी हर सांस में भरा था।
Shaheed Bhagat Singh
28 सितम्बर 1907 में जन्मे भगत सिंह के पिता सरदार किशन सिंह, लोकमान्य गंगाधर तिलक के स्वतंत्रता आंदोलन के सक्रिय सहयोगी थे। क्रांतिकारी परिवार में जन्म लेने के कारण भगत सिंह को बचपन से ही संघर्ष एवं अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करने का संस्कार मिला था। तीसरी कक्षा में पहुँचते-पहुँचते भगत सिंह उस क्रांति की परिभाषा समझने लगे थे जिसके कारण उनके चाचा सरदार अजीत सिंह विदेशों में भटक रहे थे और अपने देश नहीं लौट सकते थे, वे अपनी चाची श्रीमती हुक्म कौर को कहते-चाची आँसू पोछ ले, मैं अंग्रेजों से बदला लूँगा एवं अपने देश से अंग्रेजों को बाहर निकाल कर चैन से बैठूँगा, एक बालक की ऐसी क्रांतिकारी बातों को सुनकर वह अपने गोद में उसे समेट लेती, मात्रा चौथी कक्षा में उन्होंने सरदार अजीत सिंह, सूफी अम्बिका प्रसाद, लाला हरदयाल की लिखी सैकड़ों पुस्तकों को पढ़ लिया था। इस अध्ययन से भगत सिंह की बुद्धि का बहुत विकास हुआ। उम्र के हिसाब से वे अभी बालक ही थे, परन्तु बातचीत, विचार एवं चाल-ढाल से वे काफी बड़ी-बड़ी बातें बहुत आत्मविश्वास से किया करते थे। जन्म से सिख होते हुए भी भगत सिंह के दादा सरदार अर्जुन सिंह आर्य समाजी सिद्धांतों में विश्वास रखते थे, इसलिए उन्होंने अपने दोनों पोतों का यज्ञोपवीत संस्कार करवाया और उसी दिन यह संकल्प लिया कि " मैं इस यज्ञ वेदी पर खड़े होकर अपने दोनों वंशधरों को देश के लिए अर्पित करता हूँ।" उन्होंने नई पीढ़ी में जन्में दो नन्हें सेनानियों को देश की बलिवेदी के लिए तैयार कर दिया। इसके बाद उनके मन में अंग्रेजों के प्रति विद्रोह की भावना वक्त के साथ और पुख्ता होती गई।
Shaheed Bhagat Singh
1919 में जब महात्मा गाँधी ने भारत की राजनीति में प्रवेश कर असहयोग आन्दोलन प्रारम्भ किया उस समय भगत सिंह सातवीं कक्षा के विद्यार्थी थे। 13 अप्रैल 1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग के भीषण हत्याकाण्ड ने भगत सिंह को अंदर तक झंकझोर दिया। उन्होंने जलियाँवाला बाग पहुँचकर निर्दोष, निहत्थी जनता के खून से सनी मिट्टी को अपने माथे से लगाया एवं एक शीशी में उस मिट्टी को भरकर काफी रात गए घर लौटे - उनकी छोटी बहन अमर कौर बोली - वीर जी, आज इतनी देर क्यों कर दी? भगत सिंह उदास थे, धीरे से वे, खून में सनी वह मिट्टी अपनी बहन की हथेली पर रखकर बोले - अंग्रेजों ने निर्दोषों के खून बहाये हैं, इस खून सनी मिट्टी की कसम मैं उनका खून भी इसी मिट्टी में मिलाकर ही दम लूँगा। उन्होंने यह बात अच्छी तरह समझ ली थी कि अहिंसा का मार्ग देश को आजादी नहीं दिला सकता, इसके लिए बहुत से बलिदान देने होंगे। धीरे-धीरे उनका सम्पर्क प्रो. जयचन्द्र विद्यालंकार से हुआ, जिनका सम्बंध बंगाल के क्रांतिकारियों से था। प्रो. विद्यालंकार के सम्पर्क के बाद उनका चरित्र और विकसित हुआ। वहीं उनकी मुलाकात विख्यात क्रांतिकारी शचीन्द्रनाथ सान्याल से हुई और भगत सिंह क्रांतिकारी दल में सम्मिलित हो गए।
Shaheed Bhagat Singh
1923 में जब भगत सिंह नेशनल कालेज में पढ़ रहे थे तब उनके घर में उनकी शादी की चर्चा होने लगी, तो उन्होंने अपने पिताजी को पत्र लिखा- मेरी जिन्दगी आजाद-ए- हिन्द के लिए है, मुझे आपने यज्ञोपवीत के समय देश के लिए समर्पित कर दिया था। मैं आपकी इस प्रतिज्ञा को पूरा कर रहा हूँ। उम्मीद है मुझे माफ़ कर देंगे और वे घर छोड़कर कानपुर चले गए। वहाँ का काम उन दिनों योगेश चन्द्र चटर्जी देख रहे थे। बटुकेश्वर दत्त, अजय घोष और विजय कुमार सिन्हा जैसे क्रांतिकारियों से उनका परिचय वहीं हुआ। बाद में श्री गणेश शंकर विद्यार्थी के "प्रताप" नामक अखबार के सम्पादक विभाग में "बलवंत सिंह" के नाम से लिखने लगे। बाद में भगत सिंह कानपुर से लाहौर लौट आये और पूरी शक्ति से "नौजवान भारत सभा" की स्थापना की। इस काम में उनके साथी थे भगवतीचरण। भगत सिंह का विचार था कि जनता को अपने साथ लिए बिना सशस्त्र क्रांति के लिए किए गए प्रयत्न सफल नहीं हो सकते।
Shaheed Bhagat Singh
29 जुलाई 1927 को उन्हें काकोरी केस के सिलसिले में गिरफ्तार कर लिया गया। उन्हें 15 दिन तक लाहौर के किले में रखा गया, फिर उन्हें पोस्टल जेल भेज दिया गया। कुछ सप्ताह बाद वे जेल से मुक्त कर दिए गए। नवम्बर 1928 में चाँद पत्रिका का "फांसी" अंक प्रकाशित हुआ जिसमें "विप्लव यज्ञ की आहुतियाँ" के शीर्षक से क्रांतिकारियों पर बहुत से लेख भगत सिंह ने लिखे। भारत में शासन सुधरों के विषय में सुझाव देने के लिए लार्ड साइमन की अध्यक्षता में एक कमीशन नियुक्त किया गया। 3 फरवरी 1928 को जब कमीशन मुम्बई पहुँचा तब तक भगत सिंह के नेतृत्व में एक सशक्त क्रांतिकारी दल का गठन हो चुका था। स्टेशन पर उतरते ही कमीशन को काले झण्डे दिखाने एवं "साइमन वापस जाओ" के नारे लगाने की योजना थी। भगत सिंह के साथ लाला लाजपत राय भी इसका विरोध कर रहे थे। अंग्रेज पुलिस ने लाजपत राय को बुरी तरह पीटा। चोट लगने के बाद भी उन्होंने जोरदार भाषण देते हुए कहा- "मैं घोषणा करता हूँ कि मुझे जो चोट लगी है वह भारत में अंग्रेजी राज के लिए कफन की कील साबित होगी।"
Shaheed Bhagat Singh
इस घटना के बाद 17 नवम्बर 1928 को लालाजी की मृत्यु हो गई। इस घटना के प्रमुख दोषी असिस्टेण्ट पुलिस सुप्रीटेण्डेंट मिस्टर साण्डर्स को बाद में गोली मारने के आरोप में पुलिस चन्द्रशेखर आजाद, भगत सिंह, राजगुरु और जयगोपाल आदि क्रांतिकारियों को पकड़ने हेतु कुत्ते की तरह पीछे पड़ गई थी, भगत सिंह के मन में आग भड़क रही थी। उन्होंने दिल्ली के केन्द्रीय असेम्बली में बम फेकने का निर्णय कर लिया। देश की आजादी के लिए संघर्ष करने वाले इन वीरों का हर क्षण किसी योजना में लगा हुआ था। असेम्बली में बम फेकने की बात भगत सिंह ने की थी, वे इसके लिए तैयार थे। 7 अप्रैल 1929 को वाइसराय के निर्णय की घोषणा असेम्बली में सुनाई जाने वाली थी। भगत सिंह के साथ बटुकेश्वर दत्त भी थे। भगत सिंह ने असेम्बली में बम फेंक दिया, पुलिस ने दोनों को गिरफ्रतार कर लिया। दिल्ली में 4 जून 1929 को मुकदमे की सुनवाई सेशन जज मिस्टर मिडलटन की अदालत में आरम्भ हुई। न्यायालय में भगत सिंह से पूछा गया कि क्रांति से वे क्या समझते हैं? उन्होंने कहा- क्रांति में घातक संघर्षों का अनिवार्य स्थान नहीं है न उसमें व्यक्तिगत बदला लेने की गुंजाइश है। क्रांति बम और पिस्तौल की संस्कृति नहीं है। क्रांति से हमारा प्रयोजन है कि अन्याय पर आधारित वर्तमान व्यवस्था में परिवर्तन होना चाहिए।
Shaheed Bhagat Singh
असेम्बली बम काण्ड का मुकदमा दिल्ली में चला था जहाँ भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त को यूरोपीय वार्ड में रखा गया था। 12 जून 1929 को उनको आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई। भगत सिंह को लाहौर सेन्ट्रल जेल में रखा गया जहाँ उन्होंने भूख हड़ताल शुरू कर दी थी। दुनिया भर के मुकदमों के इतिहास में लाहौर षड्यंत्र केस ही ऐसा केस था जिसमें न अभियुक्त उपस्थित हुए न उनके गवाह और न वकील ही, परन्तु अदालत ने फैसला दे दिया जिसके तहत भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को सजा सुनाई गई।
Shaheed Bhagat Singh
फांसी की सजा सुनाने के बाद भी भगत सिंह जेल में अध्ययन करते रहते। चाल्र्स डिकिन्स उनका प्रिय लेखक था। गोर्की, उमर खैयाम, एंजिल्स आस्कर वाइल्ड, जार्ज बनार्ड शा के साहित्य का उन्होंने गहराई से अध्ययन किया। इध्र क्रांतिकारी दल भी एक के बाद एक धमाके करने में जुटा रहा। बंगाल के महान क्रांतिकारी श्री सूर्यसेन के नेतृत्व में चटगाँव शस्त्रागार लूटा गया। बम के द्वारा रेलगाड़ी उड़ाने का प्रयास क्रांतिकारी यशपाल ने किया। नवयुवक हरिकृष्ण ने पंजाब के गवर्नर पर गोली चलाई। भगत सिंह को फांसी की सजा से बचाने के लिए हस्ताक्षर आन्दोलन पूरे देश भर में चला। महाराजा बीकानेर ने वाइसराय से प्रार्थना की एवं इंग्लैण्ड की पार्लयामेण्ट में उनके सदस्यों ने भी तर्क दिए कि वे भगत सिंह की जीवन रक्षा करें, परन्तु सब व्यर्थ रहा।
Shaheed Bhagat Singh 
3 मार्च 1931 को भगत सिंह अपने परिवार वालों से अंतिम बार मिले। उस दिन उनके दो छोटे भाई कुलवीर सिंह एवं कुलतार सिंह भी थे। भगत सिंह को अपने जीवन के प्रति कोई मोह नहीं था। उनके रक्त की एक-एक बूंद मातृभूमि के लिए थी। 23 मार्च 1931 की सुबह लाहौर जेल के चीफ वार्डन चतुर सिंह द्वारा फांसी की पूर्ण व्यवस्था हेतु निर्देश दिया गया। उसे जब मालूम हुआ कि भगत सिंह की जिन्दगी के कुछ ही घण्टे बाकी हैं तो वह बोला - आप अंतिम समय गुरुवाणी का पाठ कर लो "वाहे गुरु" का नाम ले लो। भगत सिंह जोर से हंस पड़े। बोले - इसलिए कि सामने मौत है, मैं बुज़दिल नहीं, जो डरकर परमात्मा को पुकारुँ। तभी एक जेल अधिकारी कहा - सरदार जी, फांसी लगाने का हुक्म आ गया है आप तैयार हो जायें। भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव तीनों अपनी-अपनी कोठरियों से बाहर आ गए, भगत सिंह बीच में थे। सुखदेव व राजगुरू दायें-बायें। क्षण भर के लिए तीनों रुके फिर चल पड़े फांसी के तख्ते पर भगत सिंह गा रहे थे - "दिल से निकलेगी न मर कर भी उलफत मेरी मिट्टी से भी खुश्बू-ए-वतन आएगी"
Shaheed Bhagat Singh
वार्डन ने आगे बढ़कर फांसी घर का काला दरवाजा खोला। तीनों ने अपना-अपना फंदा पकड़ा और उसे चूमकर अपने ही हाथ से गले में डाल दिया। जल्लाद डबडबाती आंखों एवं कंपकपाते हाथों से चरखी घुमाया तखता गिरा और तीनों वीर भारत माता की सेवा में अर्पित हो गए।

शहीद भगत सिंह के क्रांतिकारी विचार  Shaheed Bhagat Singh Quotes In Hindi
  1. अगर बहरों को अपनी बात सुनानी है तो आवाज़ को जोरदार होना होगा. जब हमने बम फेंका तो हमारा उद्देश्य किसी को मारना नहीं था। हमने अंग्रेजी हुकूमत पर बम गिराया था। अंग्रेजों को भारत छोड़ना और उसे आजाद करना चाहिए।'
  2. 'आम तौर पर लोग चीजें जैसी हैं उसी के अभ्यस्त हो जाते हैं। बदलाव के विचार से ही उनकी कंपकंपी छूटने लगती है। इसी निष्क्रियता की भावना को क्रांतिकारी भावना से बदलने की दरकार है।'
  3. इंसानों को तो मारा जा सकता है, पर उनके विचारों को नहीं।
  4. इस कदर वाकिफ है मेरी कलम मेरे जज़्बातों से, अगर मैं इश्क़ लिखना भी चाहूँ तो इंक़लाब लिख जाता हूँ।
  5. किसी को ‘क्रांति’ शब्द की व्याख्या शाब्दिक अर्थ में नहीं की जा सकती , जो लोग इस शब्द का उपयोग या दुरुपयोग करते हैं उनके फायदे के हिसाब से इसे अलग अलग अर्थ और अभिप्राय दिए जाते हैं।
  6. क्रांति की तलवारें तो सिर्फ विचारों की शान से तेज की जाती हैं।
  7. क्रांति में अनिवार्य रूप से संघर्ष शामिल नहीं था। यह बम और पिस्तौल का मत नहीं था।
  8. जिंदगी तो सिर्फ अपने कंधों पर जी जाती है, दूसरों के कंधे पर तो सिर्फ जनाजे उठाए जाते हैं।
  9. जो भी व्यक्ति विकास के लिए खड़ा है, उसे हर एक रुढ़िवादी चीज की आलोचना करनी होगी, उसमें अविश्वास करना होगा, तथा उसे चुनौती देनी होगी।।
  10. देशभक्त को अक्सर सभी लोग पागल समझते हैं।
  11. निष्ठुर आलोचना और स्वतंत्र विचार यह क्रांतिकारी सोच के दो अहम् लक्षण हैं।
  12. निष्‍ठुर आलोचना और स्‍वतंत्र विचार, ये दोनों क्रांतिकारी सोच के दो अहम लक्षण हैं।
  13. प्रेमी पागल और कवि एक ही चीज से बने होते हैं और देशभक्‍तों को अक्‍सर लोग पागल कहते हैं।
  14. बम और पिस्तौल से क्रांति नहीं आती, क्रांति की तलवार विचारों की सान पर तेज होती है।
  15. बुराई इसलिए नहीं बढ़ रही है कि बुरे लोग बढ़ गए है बल्कि बुराई इसलिए बढ़ रही है क्योंकि बुराई सहन करने वाले लोग बढ़ गये है।
  16. मुझे कभी भी अपनी रक्षा करने की कोई इच्छा नहीं थी, और कभी भी मैंने इसके बारे में गंभीरता से नहीं सोचा।
  17. मेरा एक ही धर्म है, और वो है देश की सेवा करना।
  18. मेरे सीने में जो जख्म है वो जख्म नहीं फूलो के गुच्छे है, हमें तो पागल ही रहने दो हम पागल ही अच्छे है।
  19. मैं अभी भी किसी भी बचाव की पेशकश के पक्ष में नहीं हूं। यहां तक कि अगर अदालत ने मेरे सह-अभियुक्तों द्वारा बचाव, आदि के बारे में प्रस्तुत की गई याचिका को स्वीकार कर लिया है, तो मैंने अपना बचाव नहीं किया।
  20. मैं एक इंसान हूँ। वो हर बात मुझे प्रभावित करती है जो इंसानियत को प्रभावित करे।
  21. मैं एक ऐसा पागल हूं, जो जेल में भी आजाद है।।
  22. यदि बहरों को सुनना है तो आवाज को बहुत जोरदार होना होगा. जब हमने बम गिराया तो हमारा उद्देश्य किसी को हानि पहुंचना नही था। हमने अंग्रेजी हुकूमत पर बम गिराया था उन्हें यह आवाज़ सुननी थी कि अंग्रेज़ों को भारत छोड़ना चाहिए और उसे आजाद करना चाहिये।
  23. राख का हर एक कण मेरी गर्मी से गतिमान है, मैं एक ऐसा पागल हूँ जो जेल में भी आजाद हैं।
  24. राख का हर एक कण, मेरी गर्मी से गतिमान है।
  25. विद्रोह कोई क्रांति नहीं है। यह अंततः उस अंत तक ले जा सकता है।
  26. 'वे मुझे कत्ल कर सकते हैं, मेरे विचारों को नहीं, वे मेरे शरीर को कुचल सकते हैं लेकिन मेरे जज्बे को नहीं।'
  27. वो हर व्यक्ति जो विकास के लिए खड़ा है, उसे हर एक रुढ़िवादी चीज की आलोचना करनी होगी, उसके प्रति अविश्वास करना होगा और उसे चुनोती देनी होगी।
  28. व्‍यक्तियों को कुचलकर भी आप उनके विचार नहीं मार सकते हैं।
  29. सरफरोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है, देखना है ज़ोर कितना बाजु-ए-कातिल में है।
  30. स्वतंत्रता हर इंसान का कभी न ख़त्म होने वाला जन्म सिद्ध अधिकार है।
  31. हमारे देश के सभी राजनैतिक आंदोलनों ने, जो हमारे आधुनिक इतिहास में कोई महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, उस उपलब्धि की आदर्श में कमी थी जिसका उन्होंने उद्देश्य रखा था। क्रांतिकारी आंदोलन कोई अपवाद नहीं है।
  32. हमें यह स्पष्ट करना चाहिए कि क्रांति का मतलब केवल उथल-पुथल या एक प्रकार का संघर्ष नहीं है। क्रांति आवश्यक रूप से मौजूदा मामलों (यानी, शासन) के पूर्ण विनाश के बाद नए और बेहतर रूप से अनुकूलित आधार पर समाज के व्यवस्थित पुनर्निर्माण के कार्यक्रम का अर्थ है।



Shaheed Bhagat Singh 


 

शहीद भगत सिंह के वास्तविक और दुर्लभ चित्र Original and Rare Photo of Bhagat Singh





Share:

संगठन कर्ता क्रन्तिकारी शहीद सुखदेव



सुखदेव थापर का जन्म पंजाब के शहर लायलपुर में श्रीयुत् रामलाल थापर व श्रीमती रल्ली देवी के घर विक्रमी सम्वत १९६४ के फाल्गुन मास में शुक्ल पक्ष सप्तमी तदनुसार १५ मई १९०७ को अपरान्ह पौने ग्यारह बजे हुआ था। उनके जन्म से तीन महीने पहले ही पिता का देहान्त हो गया था। उसके बाद उनका लालन-पालन चाचा लाला अचिन्तराम के यहां होता रहा। उनके घर में आढ़त का काम होता था।
संगठन कर्ता क्रन्तिकारी शहीद सुखदेव
ऐसा लगता है कि राजनीति की ओर प्रवृत्ति सुखदेव को अपने चाचा से प्राप्त हुई। वह असहयोग आन्दोलन में जेल गए थे। सुखदेव अपने चाचा की बड़ी इज्जत करते थे और खादी की वर्दी और हथकड़ी पहने हुए चाचा का चित्रा सुखदेव की मेज पर रखा रहता था। सुखदेव स्वभाव में मुंहपफट और स्वतंत्र विचार के व्यक्ति थे। उनका रहन-सहन और वेश-भूषा सभी से यही प्रकट होता था। साथियों ने उनका नाम ‘विलेजर’ रख छोड़ा था। बहुत दिनों तक लोग यह समझ नहीं पाए कि दल में सुखदेव बड़ा साबित होगा या भगतसिंह। यहां तक कि शिव वर्मा का, जिन्होंने उन्हें बहुत नजदीक से देखा, यह कहना है-‘‘एक संगठन-कर्ता के नाते भगतसिंह की अपेक्षा सुखदेव मुझे कहीं अधिक जंचा’’। शिव वर्मा की यह धरणा इस कारण थी कि भगतसिंह दूर-दूर, ऊपर-ऊपर उड़ाने भरते थे और बड़ी-बड़ी बातें सोचते थे जबकि सुखदेव दल के और साथियों की छोटी-छोटी जरूरत पर विचार करते रहते थे। जिन छोटी दिखने वाली बातों की ओर भगतसिंह का ध्यान कभी भी नहीं जाता था, उन पर सुखदेव गहराई से सोचते रहते थे। शिव वर्मा की यह धारणा थी कि भगतसिंह पार्टी के राजनीतिक नेता थे और सुखदेव उसके संगठन-कर्ता थे।
संगठन कर्ता क्रन्तिकारी शहीद सुखदेव
लाहौर षड्यंत्र के जयदेव, सुखदेव के चचेरे भाई थे। यह एक विशेष द्रष्टव्य तथ्य है कि सुखदेव ने सांडर्स की हत्या में भाग नहीं लिया था फिर भी वह इतने महत्वपूर्ण व्यक्ति समझे गए कि उन्हें फांसी की सजा हुई। सुखदेव में विचारों की स्वतंत्रता इस हद तक थी कि कभी-कभी वह बहुत अजीब बात कर देते थे। ऐसा उन्होंने, बाद में अनशन के दौरान किया। जबरदस्ती नाक से दूध पिला दिया तो उन्होंने अनशन ही तोड़ दिया, फिर शुरू कर दिया और फिर तोड़ दिया। सुखदेव विचारों से किसी भी प्रकार भगतसिंह या अन्य साथियों से पीछे नहीं थे। उन्होंने फांसी से कुछ पहले गांधीजी के नाम एक पत्र लिखा था जिसमें कहा गया: ‘‘क्रांतिकारियों का ध्येय इस देश में सोशलिस्ट प्रजातन्त्र प्रणाली स्थापित करना है। इस ध्येय में संशोधन के लिए जरा भी गुंजाइश नहीं है। मेरा ख्याल है, आपकी भी यही धरणा न होगी कि क्रांतिकारी तर्कहीन होते हैं ओर उन्हें केवल विनाशकारी कार्यों में ही आनन्द आता है। हम आपको बतला देना चाहते हैं कि यथार्थ में बात इसके विपरीत है। वे प्रत्येक कदम आगे बढ़ाने से पहले अपने चारों ओर की परिस्थितियों पर विचार कर लेते हैं। उन्हें अपनी जिम्मेदारी का ज्ञान हर समय बना रहता है। वे अपने क्रांतिकारी विधान में रचनात्मक अंश की उपयोगिता को मुख्य स्थान देते हैं, यद्यपि मौजूदा परिस्थितयों में उन्हें केवल विनाशात्मकअंश की ओर ध्यान देना पड़ा। ‘‘................ वह दिन दूर नहीं है जबकि उनके (क्रांतिकारियों के) नेतृत्व में और उनके झण्डे के नीचे जन-समुदाय उनके समाजवादी प्रजातंत्रा के उच्च ध्येय की ओर बढ़ता हुआ दिखाई पड़ेगा।’’

इसी पत्र में एक अन्य स्थान पर अपनी फांसी की सजा के बारे में उन्होंने लिखा, ‘‘लाहौर षड्यंत्र के तीन राजबन्दी, जिन्हें फांसी देने का हुक्म हुआ है और जिन्होंने संयोगवश देश में बहुत बड़ी ख्याति प्राप्त कर ली है, क्रांतिकारी दल के सब कुछ नहीं हैं। वास्तव में इनकी सजाओं को बदल देने से देश का उतना कल्याण न होगा, जितना इन्हें फांसी पर चढ़ा देने से होगा।’’


Share:

हाथ और बाँह की सुन्दरता के लिए प्राकृतिक उपचार



 हाथो और बाँहों की सुन्दरता के लिए प्राकृतिक उपचार
खूबसूरत हाथ
  • हाथ ज्यादा फटते हों तो थोड़ा-सा जामुन का सिरका रात को सोते समय हाथों पर लगाएं। सुबह हाथों को ताजे पानी से धो लें। यह उपाय प्रतिदिन करने से सप्ताह भर में ही आपके हाथ नाजुक-कोमल हो जायेंगे।
  • हाथों की झुर्रियां मिटाने के लिए आलू का रस हाथों पर मलें।
  • आधा नींबू काट लें। उस पर एक चम्मच चीनी रखकर हाथों की त्वचा पर तब तक रगड़ें, जब तक चीनी पूरी तरह घुल न जाए। इस उपचार से हाथों का खुरदरापन, कालापन तथा झुर्रियां दूर होती हैं।
  • हाथ ज्यादा खुरदरे हैं तो हाथों को कुछ देर तक गुनगुने पानी में रखें। फिर हाथों को सुखाकर बादाम का तेल लगाएं।
  • आध चम्मच नींबू के रस में एक चम्मच बेसन मिलाकर पानी की मदद से पेस्ट बना लें। हाथों को साबुन की बजाए इस पेस्ट से साफ करने से मैल तथा खुरदरापन समाप्त हो जाता है।
  • एक चम्मच शहद, एक चम्मच बादाम का तेल, दोनों को मिलाकर हाथों पर मलें। एक घंटे तक कोई काम न करें। इसके बाद हाथों को ताजे पानी से धे लें। प्रतिदिन ऐसा करते रहने से कड़े हाथ मुलायम हो जाते हैं और झुर्रियां भी दूर होती हैं।
  • एक चम्मच नींबू का रस, एक चम्मच ग्लिसरिन, एक चम्मच टमाटर का रस-तीनों को मिलाकर हाथों पर लगाएं। इससे हाथों की त्वचा का कालापन दूर होता है और त्वचा निखर उठती है।
  • हाथों पर समय उभर आई झुर्रियां दूर करने के लिए एक चम्मच जैतून का तेल मिलाकर हलका गरम कर इसकी मालिश धीरे-धीरे हाथों पर करें। झुर्रियां दूर होकर हाथ कोमल तथा सुंदर बनते हैं।
हाथों की एक्सरसाइज
  • दोनों हाथों की मुट्ठियां बांध् लें। फिर उन्हें खोलकर उंगलियों को अधिक से अधिक फैलाएं। यह एक्सरसाइज 8-10 बार करें।
  • उंगलियों को तेजी से पफैलाएं, फिर आपस में चिपकाएं और सिकोड़ें। इसे 10-12 बार करें।
  • हाथ को किसी टेबल पर रखकर उंगलियों को हारमोनियम बजाने के समान चलाएं। इससे रक्त संचार बढ़ता है।
सावधानी
  • हाथों को अधिक समय तक गीला न रखें। इससे हाथों त्वचा शुष्क एवं खुरदरी हो जाती है। रोजाना पौष्टिक आहार लें। गीले हाथों को पोंछकर कोई तेल या क्रीम लगाएं।
सुंदर बांहें
  • कच्चे दूध् में थोड़ा-सा नमक और आध चम्मच गुलाब जल मिलाकर बांहों पर लगाएं। 30 मिनट के बाद बांहों को धे लें। इससे त्वचा साफ होती है।
  • एक चम्मच कच्चा दूध्, आध चम्मच नींबू का रस, दो चम्मच टमाटर का रस-इन तीनों को मिलाकर बांहों पर लगाएं। 30 मिनट के बाद ठंडे पानी से धेलें। बांहें कोमल बनती हैं।
  • एक चम्मच कच्चे आलू का रस, एक चम्मच खीरे के रस में मिलाकर बांहों पर लेप करें। इससे बांहों की झुर्रियां मिटती हैं।
  • धूप में बांहें काली हो जाने पर एक चम्मच खीरे का रस, एक चम्मच टमाटर का रस तथा 3-4 बूंद नींबू का रस - इन तीनों को मिलाकर बांहों पर लगाएं। एक घंटे के बाद पानी से धो लें। प्रतिदिन के प्रयोग से बांहें गोरी और कोमल हो जाती हैं।
बांहों के एक्सरसाइज
  • बांहों की रोजाना मालिश करें। मालिश बांहों के लिए सबसे अच्छी एक्सरसाइज है। इससे नावश्यक चर्बी छंटती है मांसपेशियां मजबूत होती हैं तथा वे सुडौल हो जाती हैं।
  • बांहों को दिन में चार-पांच बार सामने की तरपफ झाड़ें। इससे रक्त संचार का संतुलन सही रहता है। 
कोहनियों पर भी ध्यान दें
  • नींबू का छिलका रोजाना कुहनियों पर मलने से काली पड़ गयी कोहनियां साफ एवं चिकनी हो जाती हैं।
  • खुरदरी कोहनियां होने पर आधे नींबू पर चीनी रखकर रगड़ें। इससे वहां का मैल ठीक से साफ होकर कोहनी सुन्दर हो जाती है।
  • एक चम्मच नींबू का रस एक गिलास गुनगुने पानी में डालें। रफमाल को इस पानी में भिगोकर काली हुई कोहनियों पर रखें ताकि मैल फूल जाए। फिर रफमाल से धीरे-धीरे रगड़कर मैल साफ करें।
महत्वपूर्ण लेख 


Share:

उच्च रक्तचाप के लिए घरेलू उपचार



वर्तमान मनुष्य का जीवन बहुत संघर्षमय है और इस कारण उसके रहन-सहन और खान-पान में बहुत बदलाव आया है। फास्टफूड (जंकफूड) की संस्कृति ने मनुश्य के स्वास्थ्य पर बहुत प्रभाव डाला है। साथ ही साथ प्रतिस्पर्धाओ के इस दौर में हरेक मनुष्य कम या अधिक तनावग्रस्त रहने लगा है। आज वह न ही सुकून से खा पाता है और न चैन की नींद से पाता है। उच्च रक्तचाप भी इन्हीं सब बातों का परिणाम है। रक्त वाहिनियों में बहता हुआ रक्त इसकी दीवारों पर जो दबाव डालता है रक्तचाप कहलाता है। उच्च रक्तचाप में यह दबाव सामान्य से अधिक हो जाता है। स्वस्थ मनुष्य का सामान्य रक्तचापः एक स्वस्थ्य मनुष्य का आराम करते समय यदि रक्तचाप नापा जाय तो वह सामान्यतः 120/80 मि0 मि0 मर्करी या इसके आसपपास होगा। हर व्यक्ति में यह दबाव भिन्न-भिन्न हो सकता है। यहाँ पर 120 मि. मि0 प्रकुंचन (सिस्टोलिक) तथा 80 मि0 मि0 प्रसारण (डायस्टोलिक) रक्त दबाव है। उम्र के साथ यह रक्तचाप बढ़ता जाता है, क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ रक्तवाहिनियों के लचीलेपन में कमी आती है।
उच्च रक्तचाप के लिए घरेलू उपचार
  • बढ़ता है रक्तचाप
    मनुष्य का शरीर भी एक बहुत ही जटिल प्रकार की मशीन है। इसका ठीक से रख-रखाव रखना बहुत आवश्यक है। ऐसा न करने से शरीर में तरह-तरह की व्याधियाँ उत्पन्न हो जाती हें। शरीर को चुस्तदुरुस्त रखने के लिए हमें नियमित व्यायाम, पौष्टिक मगर संतुलित भोजन का सेवन, गहरी व पर्याप्त नींद लेने के साथ-साथ प्रसन्नचित व तनाव मुक्त रहना चाहिए, किन्तु अक्सर ऐसा हो नहीं पाता है। इसीलिए हम अस्वस्थ भी रहते है। रक्तचाप बढ़ने के निम्न प्रमुख कारण हैः
    • मधुमेह से पीडि़त होना
    • गुर्दे की बीमारियाँ
    • अत्यधिक मानसिक तनाव
    • लगातार कई दिनों तक ठीक से सो न पाना
    • हृदय की बीमारियाँ
    • रक्त नालिकाओं का लचीलापन कम हो जाना
    • उत्तेजक पदार्थ, सिगरेट, बीड़ी, तम्बाकू आदि का अधिक सेवन करना।
    • अधिक चाय का सेवन
    • अधिक मदिरापान करने से
    • भोजन में अधिक चिकनाई, मलाई व सूखे मेवे लेने से
    • शारीरिक परिश्रम बिल्कुल न करने से
    • अत्यधिक मानसिक श्रम
  • उच्च रक्तचाप के सामान्य लक्षण
    उच्च रक्तचाप से पीडि़त व्यक्ति में सामान्यतः निम्नलिखित लक्षण मिल सकते हैं।
    • सामान्य कमजोरी और चक्कर
    • बेचैनी रहना एवं किसी भी काम में मन न लगना।
    • सिर भारी-भारी सा रहना या सिर में तीव्र पीड़ा होना।
    • बहुत अधिक तनाव महसूस करना। नाक से रक्त बहना।
    • बिना वजह चिड़चिड़ाहट रहना।
    • बांहों और अंगुलियों में कम्पन।
    • अनिद्रा
    • हर समय एकांत में लेटे रहने का मन करना, किसी भी काम में मन न लगना।
  • प्राकृतिक उपचार भी हो सकते हें कारगार
    आजकल जरा-सा बीमार पड़ने पर मनुष्य अंधाधुंध दवाइयाँ लेने लगता है, परन्तु वह अपने आहार-विहार में कोई परिवर्तन नहीं करता। इसका परिणाम यह होता है कि कुछ समय बाद उन दवाइयों का प्रभाव घटता जाता है, जिसमें हमे दवाइयों की मात्रा बढ़ानी पड़ती है, दूसरे इन दवाइयों के दुष्परिणाम से शरीर में नई बीमारियाँ उत्पन्न होने लगती हैं। अंग्रेजी दवाइयों का यह बहुत बुरा अवगुण है। इसलिए दवाइयाँ शुरू करने से पहले प्राकृतिक उपचार पर विचार करना चाहिए। प्राकृतिक उपचार में उपवास,पथ्य-अपथ्य एवं जीवन शैली में बदलाव लाने पर बल दिया जाता है।
    • रक्त प्रवाह को शुद्ध रखने के लिए उच्च रक्तचाप के रोगियों को उपवास रखना चाहिए।
    • उपवास के दौरान रोगी को कच्ची सब्जियों व फलों का रस बिना नमक मिलाए दो-तीन बार लेना चाहिए।
    • रोगी को अपना खान-पान इस उपवास के बाद भी नियमित रखना चाहिए
    • वसायुक्त, मिर्चा मसाला युक्त, अति प्रोटीनयुक्त आहार नहीं लेना चाहिए।
    • नमक, मसाले और डिब्बाबंद आहार का पूर्ण परहेज करने से रक्तदाब शीघ्र ही सामान्य होने लगता है।
    • शराब, सिगरेट, बीड़ी और तम्बाकू तो उच्च रक्तचाप के रोगियों के लिए बहुत ही हानिकारक है, एकदम त्याग देना चाहिए।
    • अधिक नमक का सेवन गुर्दे को प्रभावित करता है, जिसके कारण गुर्दे की समस्याएं पैदा हो जाती हैं एवं रक्तप्रवाह में अषुद्धियाँ मिल जाती हैं, जिससे उच्च रक्तचाप रहने लगता है। इसलिए सामान्य व्यक्ति को भी नमक कम से कम लेना चाहिए।
    • दिन भर में 10-12 गिलास पानी पीना हमारे स्वास्थ्य के लिए अच्छा है। यह पानी सारे शरीर की गंदगी मूत्र द्वारा बाहर निकाल देता है। इसी प्रकार ष्शरीर के लिए कुनकुनी धूप भी आवश्यक है। इससे शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, जिससे मनुष्य अधिक स्वस्थ व चुस्त-दुरुस्त रहता है।
  • सबसे उत्तम आयुर्वेदिक उपचार
    आयुर्वेदिक औषधियाँ प्रकष्ति के सबसे करीब हैं। प्रायः इनके कोई भी दुष्परिणाम देखने को नहीं मिलते हैं। आयुर्वेदिक औषधियाँ रोगी को स्वाभाविक रूप से स्वस्थ बनाने का प्रयत्न करतीहैं। इनको लम्बे समय तक बिना किसी भय के लिया जा सकता है। उच्च रक्तचाप के लिए निम्नलिखित आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन करना अच्छा रहता है।
    • जहर मोहरा खताई पिष्टी
    • राप्य भस्म
    • समीर-पन्नग रस
    • चन्द्रकला रस
    • चिन्तामणि रस
    • बालचन्द्र रस
    • रस राज रस
    • सर्पगंधा चूण योग
    • सर्पगंधाधन बटी आदि।
    महत्वपूर्ण लेख 


    Share:

    सतावर के प्रमुख औषधीय उपयोग



    सतावर का वानस्पतिक नाम ऐस्पेरेगस रेसीमोसस है यह लिलिएसी कुल का एक औषधीय गुणों वाला पादप है। इसे 'शतावर', 'शतावरी', 'सतावरी', 'सतमूल' और 'सतमूली' के नाम से भी जाना जाता है। यह भारत, श्रीलंका तथा पूरे हिमालयी क्षेत्र में उगता है। इसका पौधा अनेक शाखाओं से युक्त काँटेदार लता के रूप में एक मीटर से दो मीटर तक लम्बा होता है। इसकी जड़ें गुच्छों के रूप में होतीं हैं। वर्तमान समय में इस पौधे पर लुप्त होने का खतरा है।सतावर अथवा शतावरी भारतवर्ष के विभिन्न भागों में प्राकृतिक रूप से पाई जाने वाली बहुवर्षीय आरोही लता है। नोकदार पत्तियों वाली इस लता को घरों तथा बगीचों में शोभा हेतु भी लगाया जाता है। जिससे अधिकांश लोग इसे अच्छी तरह पहचानते हैं। सतावर के औषधीय उपयोगों से भी भारतवासी काफी पूर्व से परिचित हैं तथा विभिन्न भारतीय चिकित्सा पद्धतियों में इसका सदियों से उपयोग किया जाता रहा है। विभिन्न वैज्ञानिक परीक्षणों में भी विभिन्न विकारों के निवारण में इसकी औषधीय उपयोगिता सिद्ध हो चुकी है तथा वर्तमान में इसे एक महत्वपूर्ण औषधीय पौधा होने का गौरव प्राप्त है।
    Asparagus racemosus willd shatavari
    सतावर की पूर्ण विकसित लता 30 से 35 फुट तक ऊँची हो सकती है। प्रायः मूल से इसकी कई लताएं अथवा शाखाएं एक साथ निकलती हैं। यद्यपि यह लता की तरह बढ़ती है परन्तु इसकी शाखाएं काफी कठोर और लकड़ी के जैसी होती हैं। इसके पत्ते काफी पतले तथा सुइयों जैसे नुकीले होते हैं। इनके साथ-साथ इनमें छोटे-छोटे कांटे भी लगते हैं। जो किन्हीं प्रजातियों में ज्यादा तथा किन्हीं में कम आते हैं ग्रीष्म ऋतु में प्रायः इसकी लता का ≈परी भाग सूख जाता है तथा वर्षा ऋतु में पुनः नवीन शाखाएं निकलती हैं। सितंबर-अक्टूबर माह में इसमें गुच्छों में पुष्प आते हैं तथा तदुपरान्त उन पर मटर के दाने जैसे हरे फल लगते हैं।
    Asparagus racemosus willd shatavari
    धीरे-धीरे ये फल पकने लगते हैं तथा पकने पर प्रायः लाल रंग के हो जाते हैं। इन्हीं फलों से निकलने वाले बीजों को आगे बिजाई हेतु प्रयुक्त किया जाता है। पौधे के मूलस्तम्भ से सफेद ट्यूबर्स (मूलों) का गुच्छा निकलता है जिसमें प्रायः प्रतिवर्ष वृद्धि होती जाती हैं औषधीय उपयोग में मुख्यतया यही मूल आथवा इन्हीं ट्यूबर्स का उपयोग किया जाता है।

    सतावर के प्रमुख औषधीय उपयोग
    सतावर भारतीय चिकित्सा पद्धतियों में प्रयुक्त होने वाले प्रमुख औषधीय पौधों में से एक हैं जिन विकारों के निदान हेतु इसका प्रमुखता से उपयोग किया जाता है, वे निम्नानुसार है-
    • शक्तिवर्धक के रूप में
      विभिन्न शक्तिवर्धक दवाइयों के निर्माण में सतावर का उपयोग किया जाता है। यह न केवल सामान्य कमजोरी, बल्कि शुÿवर्धन तथा यौनशक्ति बढ़ाने से संबंधित बनाई जाने वाली कई दवाईयों जिसमें यूनानी पद्धति से बनाई जाने वाली माजून जंजीबेल, माजून शीर बरगदवली तथा माजून पाक आदि प्रसिद्ध हैं, में भी प्रयुक्त किया है। न केवल पुरुषों बल्कि महिलाओं के विभिन्न योनिदोषों के निवारण के साथ-साथ यह महिलाओं के बांझपन के इलाज हेतु भी प्रयुक्त किया जाता हैं इस संदर्भ में यूनानी पद्धति से बनाया जाने वाला हलवा-ए-सुपारी पाक अपनी विशेष पहचान रखता है।
    • दुग्ध बढ़ाने हेतु
      माताओं का दुग्ध बढ़ाने में भी सतावर काफी प्रभावी सिद्ध हुआ है तथा वर्तमान में इससे संबंधित कई दवाइयां बनाई जा रही हैं। न केवल महिलाओं बल्कि पशुओं-भैसों तथा गायों में दूध बढ़ाने में भी सतावर काफी उपयोगी सिद्ध हुआ है।
    • चर्मरोगों के उपचार हेतु
      विभिन्न चर्म रोगों जैसे त्वचा का सूखापन, कुष्ठ रोग आदि में भी इसका बखूबी उपयोग किया जाता है।
    • शारीरिक दर्दों के उपचार हेतुआंतरिक हैमरेज, गठिया, पेट के दर्दों, पेशाब एवं मूत्र संस्थान से संबंधित रोगों, गर्दन के अकड़ जाने (स्टिफनेस), पाक्षाघात, अर्धपाक्षाघात, पैरों के तलवों में जलन, साइटिका, हाथों तथा घुटने आदि के दर्द तथा सरदर्द आदि के निवारण हेतु बनाई जाने वाली विभिन्न औषधियों में भी इसे उपयोग में लाया जाता है। उपरोक्त के साथ-साथ विभिन्न प्रकार के बुखारों ह्मलेरिया, टायफाइड, पीलिया तथा स्नायु तंत्र से संबंधित विकारों के उपचार हेतु भी इसका उपयोग किया जाता है। ल्यूकोरिया के उपचार हेतु इसकी जड़ों को गाय के दूध के साथ उबाल करके देने पर लाभ होता है। सतावर काफी अधिक औषधीय उपयोग का पौधा है। यूं तो अभी तक इसकी बहुतायत में उपलब्धता जंगलों से ही है परन्तु इसकी उपयोगिता तथा मांग को देखते हुए इसके कृषिकरण की आवश्यकता महसूस होने लगी है तथा कई क्षेत्रों में बड़े स्तर पर इसकी खेती प्रारंभ हो चुकी है जो न केवल कृषिकरण की दृष्टि से बल्कि आर्थिक दृष्टि से भी काफी लाभकारी सिद्ध हो रही है।
    सतवारी से दवा बनाने की विधिपाँच किलो भैंस के दूध् का घर पर मावा (खोवा) बनायें, पाँच किलो दूध का लगभग एक किलो मावा बन जाता है, मावा बनाने के लिए दूध को धीमी आँच पर रख दें। जब दूध पकते -पकते गाढ़ा-सा हो जाये और मावा बनने वाला हो तब पचास ग्राम शतावरी का चूर्ण उसमें डालकर कुछ देर तक हिलाते रहें। मावा बनने के साथ शतावरी का चूर्ण उसमें एकदिल हो जाएगा। जब मावा बनकर तैयार हो जाये तब 20-20 ग्राम के पेड़े बना ले और काँच के पात्रा में सुरक्षित रख ले।
    सेवन विधिरोजाना प्रातः निराहार एक पेड़ा दूध् के साथ बच्चे बड़े सभी खा सकते हैं। बारह मास इन पेड़ों का सेवन किया जा सकता है।
    लाभशतावरी के पेड़ों के नियमित सेवन से बालको की बुद्धि,स्मरणशक्ति और निश्चय-शक्ति बढ़ती है और अच्छा विकास होता है। रूपरंग निखरता है। त्वचा मजबूत और स्वस्थ होती है।
    शरीर भरा-भरा पुष्ट और संतुलित होता है। पफेपफड़े रोग रहित और मजबूत बनते हैं। आँखों में चमक और ज्योति बढ़ती है। शरीर की सब प्रकार की कमजोरियां नष्ट होकर अपार वीर्य वृद्धि और शुक्र वृद्धि होती है। इसके सेवन से वृद्धावस्था दूर रहती है और मनुष्य दीर्घायु होता है।
    जो बच्चे रात को चैंक कर और डर कर अचानक नींद से जाग उठते हों उनके सिरहाने, तकिये के नीचे या जेब में शतावरी के पौधे की एक छोटी सी डंठल रख दें अथवा बच्चे के गले में बांध दें तो बच्चा रात में नींद में डरकर या चैंककर नहीं उठेगा।

    महत्वपूर्ण लेख 


    Share:

    भरण-पोषण का अधिकार अंतर्गत धारा 125 द.प्र.स. 1973



    मानव एक सामाजिक प्राणी है, मानव पशुओं जैसा व्यव्हार तो नहीं करता क्योकि मानव में सोच समझ की शक्ति और बुद्धि है जो कि पशु में नहीं होती। फिर भी सामाजिक प्राणी होने के कारण समाज में रहते हुए किसी पारिवारिक कलह या पति-पत्नी का झगड़ा इस तरह बढ़ता है कि पति पत्नी अलग रहने के लिए बाध्य हो जाते हैं। यही झगड़ा कभी-कभी संबंध विच्छेद की स्थिति तक पहुंचा देता है। आपस के झगड़े में केवल दोनों ही कष्टता की चक्की में नहीं पीसे जाते परन्तु उनके साथ नाबलिग बच्चे भी संकट व कष्ट भोगते है। इसी प्रकार वृद्ध असहाय माता-पिता को उनके पुत्र या पुत्री भूलकर उनकी अवहेलना करते है और ऐसे असहाय वृद्ध रोटी कपड़ों के लिए तरसते रह जाते है। मानव को सम्मान की जिन्दगी बसर करने के लिए रोटी, कपड़ा और मकान की मूलभूत आवश्यकता है। जैसे की पानी तथा वायु की। संसार में जो प्राणी आया है कि उसे अपने को जीवित रखने के लिए भर पेट खाने की आवश्यकता है। कई बार पारिवारिक कलह के कारण पत्नी, नाबालिग बच्चे, वृद्ध, महिला लाचार हो जाते हैं क्योंकि वह अपना भरण-पोषण करने में सामर्थ नहीं रहते हैं।
    Alimony and Maintenance Support after Divorce

    इसलिए हम सभी का सामाजिक कर्तव्य हो जाता है कि इस प्रकार के पारिवारिक कलह से दुखी दम्पती को सही रास्ते पर लाए तथा उनका उचित मार्गदर्शन करें ताकि वह अपने बच्चों का भविष्य सुखमय व सुन्दर बना सकें। इस प्रकार दंपति का भी यह सामाजिक कर्तव्य बनता है कि वह पारिवारिक कलह को भूलकर अपने लिए नही तो बच्चो के भविष्य के लिए सुखमय जीवन व्यतीत कर सामाजिक तथा पारिवारिक शांति को बनाए रखें। कई बार पति-पत्नी का झगड़ा पारिवारिक कलह से बढ़कर पति-पत्नी के अलग रहने से लेकर सम्बन्ध विच्छेद तक की स्थिति तक पंहुचा देता है। इस कलह की चक्की में सन्तान भी पिस जाती है।
    कई बार वृद्ध असहाय माता पिता भी पुत्र व पुत्रियों की अवेहलना का शिकार बने, पैसे-पैसे के लिए मोहताज हो जाते हैं। पति पत्नी, बच्चों व माता-पिता को खर्चा प्राप्त करने सम्बन्धित अधिकार है, आईए इस पर चर्चा करें। पत्नी, नाबालिग बच्चों या बूढ़े मां-बाप, जिनका कोई अपना भरण-पोषण का सहारा नहीं है और जिन्हें उनके पति/पिता ने छोड़ दिया है या बच्चे अपने मां बाप के बुढापें में उनका सहारा नहीं बनते हैं और उनको भरण-पोषण का खर्च नहीं देते हैं तो धारा 125 दण्ड प्राक्रिया संहिता के अन्तर्गत ऐसे व्यक्ति खर्चा गुजारा प्राप्त करने का अधिकार रखते हैं। इस धारा 125 दण्ड प्राक्रिया संहिता, 1973 के तहत पति या पिता का यह कानूनी कर्तव्य है कि वह पत्नी, जायज या नाजायज नाबलिग बच्चों का पालन पोषण करें। अगर ऐसा पति या पिता पत्नी या बच्चों को खर्चा देने से इन्कार करें तो उनके द्वारा प्रार्थना पत्र या दरखास्त देने पर न्यायिक दण्डाधिकारी प्रथम श्रेणी को कानूनी अधिकार है कि वह आवदेक को 500 रूपये खर्च प्रति व्यक्ति की दर से प्रदान करें और यह रकम उस पति से या पिता से अदालत के निर्देश द्वारा जबरन वसूल की जा सकती है।
     भरण-पोषण धारा 125 द.प्र.स. 1973 के प्रावधान
    दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 125 से 128 तक इस सामाजिक समस्या निवारण के लिए बनाए गये कानून हैं। इन धाराओं के अधीन, निश्रित पत्नी, बच्चे व माता-पिता याचिका प्रथम श्रेणी के ज्युडिशियल मैजिस्ट्रेट की अदालत में दायर कर सकते हैं।
    खर्चा प्राप्त करने के लिए याचिका ऐसे अधिकार क्षेत्र वाले ज्युडिशियल मैजिस्ट्रेट, प्रथम श्रेणी की अदालत में दी जा सकती है।
    जहां पति उस समय रह रहा हो।जहां प्रतिवादी हाल तक आवेदक के साथ रहता रहा हो,
    जहां आवेदक रहता हो/जहां प्रतिवादी का स्थाई निवास हो,
    जहां पति-पत्नी याचिका से पहले (चाहे अस्थाई रूप से) रह रहे हों।
    1. धारा 125 सी0आर0पी0सी0 की कार्यवाही की प्रणाली
      खर्चे के लिए दी गई याचिका-आरोप पत्र न होकर एक याचिका होती है इसलिए प्रतिपक्षी को अभियुक्त नहीं बल्कि प्रत्यार्थी माना जाता है। यह कार्यवाही पूर्णतया फौजदारी नहीं होती बल्कि अर्ध-फौजदारी होती है। याचिका अदालत में प्रत्यार्थी को सम्मन जारी किये जाते हैं। अगर प्रत्यार्थी सम्मन लेने से जान बूझकर इन्कार करे या सम्मन मिलने के बावजूद अदालत में उपस्थित न हों तो उनके खिलाफ एक तरफा कार्यवाही के आदेश दिये जा सकते हैं। एक तरफा फैसले का आदेश उचित कारण साबित किये जाने पर तीन महीने के अन्दर रद्द करवाया जा सकता है। प्रार्थी या प्रत्यार्थी दोनों पक्षों को अपने आरापों को साबित करने के लिए गवाही देने का अधिकार है। दोनों पक्ष स्वयं अपने गवाह के तौर पर अदालत के समक्ष पेश होने का अधिकार रखते हैं। केस व अनुमान सावित्री बनाम गोबिन्द सिंह रावत,1986(1) सी.एल.आर.पेज नं0 331 में उच्च न्यायालय द्वारा निर्देश दिया गया है कि जब तक 125 सी0आर0पी0सी0 के तहत कारवाई पूरी होने तक गुजारा भता बारे कोई अन्तिम फैसला नहीं होता तब तक अन्तरिम आदेश के तहत 125 सी0आर0पी0सी0 की दरखास्त दायर होते ही गुजारा भता दिया जा सकता है। यहां यह भी बताना उचित होगा कि केस व अनुमान श्रीमती कमला वगैरा बनाम महिमा सिंह, 1989(1) सी.एल.आर.पेज न0 501 में दर्ज, उच्च न्यायालय द्वारा दिये गये फैसले के मुताबिक ऐसी हर दरखास्त जेर धारा 125 सी0आर0पी0सी0 दुबारा चालू हो सकती है जो प्रार्थीय के न आने के कारण खारिज कर दी गई हो। यहां यह भी बताना उचित होगा कि केस व अनुमान पवित्र सिंह बनाम भुपिन्द्र कौर, 1988 एस.एल.जे. पेज न0 164 में दर्ज उच्च न्यायालय के फैसले के मुताबिक ऐसी दरखास्त जेर धारा 125 सी0आर0पी0सी0 जो राजीनामा की वहज से वापिस ले ली गई हो दुबारा चलाई जा सकती है अगर उस केस का राजीनामा टूट जाये।
    2. धारा 125 सी0आर0पी0सी0 के अधीन खर्चा प्राप्त करने की पात्रता हर उस व्यक्ति पर जो साधन सम्पन्न है, यह कानूनी दायित्व है कि वहः
      अपनी पत्नी जो अपना, खर्चा स्वयं वहन न कर सकती हों,
      अपने नाबालिग बच्चों (वैध व अवैध) जो स्वयं अपना खर्चा चलाने में असमर्थ हो,
      अपने बालिग बच्चों (वैध व अवैध) सिवाय विवाहित पुत्री के) जो शारीरिक या मानसिक रूप से अक्षम होने पर अपना खर्चा स्वयं वहन न कर सकते हों,
      अपने वृद्ध व लाचार माता पिता जो स्वयं अपना खर्चा उठाने में असमर्थ हो, कि वह उनका खर्चा व पालन पोषण का व्यय उठाएं।
      ध्यान रहे कि केवल कानूनन व्याहिता पत्नी ही खर्चा लेने की अधिकारिणी है।
      दूसरी (पत्नी जो विवाह कानून द्वारा मान्य नहीं है, या रखैल, खर्चा प्राप्त करने की हकदार नहीं है लेकिन वैध या अवैध सन्तानें इस धारा के अन्तर्गत खर्चा लेने की हकदार है।)
    3. खर्चा प्राप्त करने हेतू साक्ष्य
      खर्चा प्राप्त करने के लिए प्रार्थी को निम्नलिखित बातें साबित करना आवश्यक हैः-
      1. कि प्रार्थी के पास खर्चा देने के पर्याप्त साधन हैं।
      2. वह जानबूझकर भरण-पोषण देने में आनाकानी या इन्कार कर रहा है।
      3. आवेदक प्रत्यार्थी के साथ न रहने के लिए मजबूर है, अगर पति के खिलाफ व्यभिचार (परस्त्रीगमन) निर्दयता (शारीरिक व मानसिक) दूसरी शादी या अन्य ऐसे कोई आरोप साबित हो तो पत्नी द्वारा अलग रह कर खर्चा प्राप्त करने का अधिकार मान्य होगा।
    4. आवदेक के पास स्वयं अपना खर्चा चलाने के लिए कोई साधन उपलब्ध न है।
      1. लेकिन अगर पत्नी स्वयं व्यभिचारणी का जीवन बिता रही है। या
      2. पत्नी बिना किसी उचित कारण के पति के साथ रहने से मना करती हो
      3. पति-पत्नी स्वयं रजाबन्दी से अलग रह रहे हों, तो खर्चा प्राप्त करने की याचिका रद्द की जा सकती है। अदालत द्वारा प्रति माह व्यक्ति (आवेदक) 500 रूपये से अधिक खर्चे का आदेश नहीं दिया जा सकता। यह आदेश अदालत द्वारा दोनों पक्षों की आर्थिक व सामाजिक परिस्थितियों, उनकी जिम्मेदारियों को ध्यान में रखते हुए निर्धारित किया जाता है। किसी भी पक्ष की परिस्थितियों में फेर बदल होने पर खर्च के आदेश को रद्द या कम या ज्यादा किया जा सकता है।
    5. धारा 127 सी0आर0पी0सी0 के तहत खर्चे मे तबदीली
      अगर खर्चा प्राप्त करने वाले व्यक्ति का समय व्यतीत हो जाने के उपरान्त अदालत द्वारा प्रदान किये हुए खर्चे से गुजारा नहीं होता या जिस व्यक्ति के विरूद्ध खर्चा लगवाया गया है उसकी आर्थिक स्थिति में खर्चे के निर्देश उपरान्त तबदीली आती है तो खर्चा प्राप्त करने वाले व्यक्ति को अधिकार है कि वहा न्यायिक दण्डाधिकारी प्रथम श्रेणी की अदालत में खर्चा बढ़ाने के लिए आवेदन धारा 127 दण्ड प्राक्रिया संहिता के तहत दे सकता है। 2001 के अधिनियम 50 ने तबदीली लाई है कि खर्चे की रकम अदालत हालत के मुताबिक तय करेगी और इसकी कोई सीमा न होगी। अगर इस प्रकार के आवेदन पर पत्नी, बच्चों या माता पिता के खर्चा तबदीली करने की सुनवाई करता है तो अदालत किसी दिवानी दावे में हुए फैसले को भी मद्देनजर रखेगी। इस प्रकार अगर किसी पत्नी ने तलाक लिया है या पति ने उसे तलाक दिया है और ऐसी पत्नी तलाक लेने के उपरान्त दूसरी शादी कर लेती है तो अदालत को अधिकार है कि वह पति के आवेदन पर ऐसी पत्नी के खर्चा गुजारे के आदेश को उसके द्वारा शादी करने की तारीख से रद्द कर सकती है।
    6. धारा 128 सी0आर0पी0सी0 के अधीन आदेश कैसे लागू किया जाता है
      अगर प्रत्यार्थी बिना किसी उचित कारण के आदेश का उलंघन करता है तो खर्चे की रकम के बारे में वारन्ट जारी किया जा सकता है। वारन्ट जारी होने के बावजूद मासिक खर्चे के भुगतान होने की स्थिति में प्रत्यार्थी को एक माह तक की कैद हो सकती है। खर्चे के आदेश को लागू करने की याचिका, देय तिथि के एक साल के भीतर दिया जाना अनिवार्य है। हमारे उच्च न्यायालय द्वारा दिये गये फैसले के मुताबिक प्रत्यार्थी को उतने महीने तक लगातार जेल में बन्द रखा जा सकता है जितने महीने तक का गुजारा भता उसने नहीं अदा किया हो। यहां यह भी कहना उचित है कि किसी भी पत्नी को अपने पति से देय गुजारा वसूल करने के लिये अदालत में कोई पैसा जमा करवाने की जरूरत नहीं होती हैं।  एमपरर बनाम सरदार मोहम्मद, ए.आई.आर. 1935, लाहौर, पेज 758
    हिन्‍दू विवाहित स्त्री, हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा-24 के तहत गुजारा भत्ता ले सकती है और तो और पति की मृत्यु के पश्चात यदि स्त्री दूसरा विवाह नहीं करती तो उसे सास-ससुर से भी गुजारा भत्ता लेने का अधिकार है। हिन्दू विवाह अधिनियम के अनुसार पत्नी अपने बच्चों की शिक्षा, सुरक्षा और भरण-पोषण के लिए आवेदन कर सकती है। इसके लिये उसे यह साबित करना होता है कि जीवन यापन के लिए उसके पास आय का कोई स्थायी स्रोत नहीं है और वह वित्तीय तौर पर अपना गुजारा नहीं कर सकती। फैमिली कोर्ट ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि बिना कारण पति का घर छोड़ने से पत्नी को भरण-पोषण पाने का अधिकार नहीं है। इसी के साथ अदालत ने युवती द्वारा पति के खिलाफ लगाया गया भरण-पोषण का आवेदन खारिज कर दिया। फैमिली कोर्ट ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि बिना कारण पति का घर छोड़ने से पत्नी को भरण-पोषण पाने का अधिकार नहीं है। इसी के साथ अदालत ने युवती द्वारा पति के खिलाफ लगाया गया भरण-पोषण का आवेदन खारिज कर दिया।

    भरण पोषण से सम्‍बन्धि कुछ महत्‍वपूर्ण वाद

    प्रकरण - एक 
    जहांगीराबाद के आकाश ने भोपाल निवासी सपना से आर्य समाज मंदिर में विवाह कर लिया। शादी के चार माह के पश्चात ही दोनों में विवाद होने लगे। सपना ने आकाश पर मारपीट, धमकी देने और घरेलू हिंसा के झूठे आरोप लगाकर दहेज प्रताडऩा का मामला दायर किया। मामला कोर्ट में चला, पति ने साबित कर दिया कि उसे दहेज प्रताडऩा के झूठे प्रकरण में फंसाया गया है। कोर्ट ने पति के पक्ष में निर्णय दिया। पति केस तो जीत गया लेकिन इस दौरान उसका कारोबार चौपट हो गया। इसके बाद पति ने अपनी पत्नी से क्षतिपूर्ति वसूलने का प्रकरण दायर किया। पत्नी ने झूठे प्रकरण दर्ज करने के मामले मे कार्यवाही करने के लिए कोर्ट में इस्तगासा लगाया। कोर्ट के आदेश के बाद पत्नी ने पति को क्षतिपूर्ति के रूप में कुछ राशि दी। यही नहीं पति ने पत्नी से भरण-पोषण की भी मांग की। पति को क्षतिपूर्ति की राशि मिली। हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत उसे भरण-पोषण का लाभ भी मिल सकता है।
    प्रकरण - दो 
    फैमिली कोर्ट ने एक मामले में फैसला सुनाते हुए कहा कि बिना कारण पति का घर छोड़ने से पत्नी को भरण-पोषण पाने का अधिकार नहीं है। इसी के साथ अदालत ने युवती द्वारा पति के खिलाफ लगाया गया भरण-पोषण का आवेदन खारिज कर दिया। मनीषा धनारे निवासी द्वारकापुरी ने फैमिली कोर्ट में पति शैलेंद्र धनारे निवासी गंगा नगर सनावद रोड खरगोन के खिलाफ भरण-पोषण का प्रकरण दायर किया था। उसमें युवती ने इस आधार पर भरण-पोषण की मांग की थी कि वह कम पढ़ी हुई है और कोई हुनर नहीं जानती। पति इंजीनियर है और उसकी कमाई ज्यादा है। पति का घर का मकान होने के साथ कई एकड़ जमीन है। शैलेंद्र की ओर से अधिवक्ता समीर वर्मा ने जवाब पेश कर कहा कि युवती ने पति के खिलाफ दहेज प्रताड़ना, घरेलू हिंसा, भरण-पोषण के साथ तलाक के लिए भी केस लगा रखा है। इन प्रकरणों के कारण उसे (पति को) बार-बार अदालत में आना पड़ रहा है। इस कारण उसकी आय प्रभावित रही है। उस पर वृद्ध माता-पिता की देखभाल का भी जिम्मा है। अधिवक्ता ने कोर्ट को यह भी बताया कि युवती ने महिला थाना इंदौर में भी दहेज प्रताड़ना की शिकायत की थी। उसमें उसने कहा कि पति उसे खरगोन स्थित ससुराल में रखना चाहता है, जबकि वह इंदौर में पति के साथ रहना चाहती है।

    प्रकरण - तीन
    कुछ प्रकरणों में माननीय न्यायालय ने पत्नी को गुजारा भत्ता देने से इंकार भी कर दिया है। एक प्रकरण में पत्नी ने शादी के डेढ़ साल बाद ही पति का घर छोड़ दिया था। पति ने उसे इसके लिए कभी उकसाया नहीं था। पति ने उसे घर वापस बुलाने के लिए नोटिस भेजा। कोई जवाब नहीं मिला तो उसने फैमिली कोर्ट में वैवाहिक अधिकारों को लेकर याचिका दायर की। इस बीच पत्नी ने गुजारा भत्ता पाने के लिए याचिका दायर कर दी। फैमिली कोर्ट ने पति की याचिका स्वीकार कर पत्नी की याचिका खारिज कर दी। पत्नी ने ट्रायल कोर्ट में गुजारा भत्ता के लिए याचिका दायर की तो पति ने इस मुकदमे पर चल रही सुनवाई को उच्च न्यायालय में चुनौती दी। माननीय न्यायाधीश महोदय ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी कि यदि पत्नी ने बिना किसी ठोस कारण के पति का घर छोड़ा है तो उसे गुजारा भत्ता पाने का कोई हक नहीं है। 

     भारतीय विधि और कानून पर आधारित महत्वपूर्ण लेख


    Share:

    वाहन दुर्घटना के अन्तर्गत मुआवजा



    सड़कों पर दिनों दिन बढ़ती भीड़ व बढ़ते हुए यातायात के कारण मोटर दुर्घटनाओ की संख्या में वृद्वि हो रही है। दुर्घटना की षिकार व्यक्ति को आर्थिक सहायता की आवश्यकता होती है। भारत देश कल्याणकारी देश होने के नाते इस प्रकार की सहायता देने के लिए वचनबद्व है। सबसे प्रमुख कार्य दुर्घटनाग्रस्त व्यक्ति को प्रातिकार या हर्जाना दिलाना होता है। मोटर गाडि़यों से सम्बन्धित कानून को अधिक कल्याणकारी और व्यापक बनाने के लिए मोटरयान अधिनियम 1988 (59 ऑफ़ 1988) नया मोटरयान अधिनियम सड़क यातायात तकनीकी ज्ञान, व्यक्ति तथा माल की यातायात सहूलियत के बारे में व्याख्या करता है। इसमें मोटर दुर्घटनाओं के लिए प्रतिकार दिलाने की व्यवस्था है। इस कानून के अन्तर्गत मोटरयान का तात्पर्य सड़क पर चलने योग्य बनाया गया प्रत्येक वाहन जैसे ट्रक, बस, कार, स्कूटर, मोटर साईकिल, मोपेड़ व सड़क कूटने का इंजन इत्यादि से है। इनसे होने वाला प्रत्येक दुर्घटना मोटर दुर्घटना मानी जाती है और उसके लिए प्रतिकार दिलाया जाता है।

    motor accident claim
    motor accident claim

    धारा 166 (ज्ञात मोटरयान से दुर्घटना जब गलती मोटर वाले की हो) : यदि दुर्घटना मोटर के स्वामी या चालाक की गलती से होती है तो उसके लिए प्रतिकर मांगने का आवेदन, उस इलाका के दुर्घटना दावा अधिकरण (मोटर दुर्घटना अध्यर्थना न्यायाधिकरण) जो कि जिला न्यायाधीश होता है को दिया जाता है वहां दुर्घटना होती है या जिस स्थान का आवेदक रहने वाला है या जहां प्रतिवादी रहता है उस अधिकरण के पास आवेदन आवेदक की इच्छानुसार स्थान का चयन करते हुए दायर किया जा सकता है। आवेदन घायल व्यक्ति स्वयं, विधिक प्रतिनिधि या एजेंट द्वारा दे सकता है। मृत्यु की दशा में मृतक का कोई विधिक प्रतिनिधि या उसका एजेंट आवेदन दे सकता है। जो छपे फार्म पर दिया जाता है। अगर छपा फार्म उपलब्ध न हो तो फार्म की नकल सादे कागज पर करके आवेदन दिया जा सकता है। एक आवेदन में मोटर के मालिक व चालक को तो पक्षकार बनाया ही जाता है बल्कि बीमा कम्पनी को भी पक्षकार बनाना चाहिए क्योंकि कोई भी मोटर गाड़ी बीमा करवाए बिना नहीं चलाई जा सकती। मोटरयान कर स्वामी इस बात के लिए आवद्ध है कि वह बीमा कम्पनी का नाम बताएं। दावा अधिकारी मुकद्दमें की सुनवाई करता है जो कि प्रायः संक्षिप्त होती है। दावा में यह साबित करना होता है कि:-

    1. दुर्घटना उस मोटर गाड़ी से हुई।
    2. मोटर वाले की गलती के कारण हुई
    3. दुर्घटना से क्या हानि हुई

    यदि दुर्घटना से मृत्यु होती है तो दावेदारों को यह भी साबित करना होता है कि मृतक के दावेदारों को क्या लाभ होता था व क्या लाभ भविष्य में होने की आशा थी। इसके आधार पर प्रतिकर की राशि नियत की जाती है, सम्पति की हानि भी साबित करनी होगी व 6000 रूपये तक मुआवजा अधिकरण दे सकता है। अगर किसी वाहन की बीमा राशि में अतिरिक्त बढ़ौतरी बाबत असीमित नुक्सान की जिम्मेवारी जमा कराया गया हो तो उस सूरत में बीमा कम्पनी 6000 रूपये से अधिक रक़म की सम्पति नुकसान की भी भरपाई करने की जिम्मेवार होगी अन्यथा इससे अधिक की राशि के लिए दिवानी दावा करना आवश्यक है। यदि किसी व्यक्ति को दुर्घटना से चोट लगी है तो उसके इलाज पर होने वाल व्यय, काम न कर पाने के कारण होने वाली हानि, आदि के विषय में प्रतिकर देय है। यदि कोई गम्भीर चोट आती है जिसका स्थाई प्रभाव हो जैसे की कोई लंगड़ा या काना हो जाए तो उसे शेष जीवन, उससे होने वाली असुविधा व हानि का भी प्रतिकर देय होगा। राशि बीमा कम्पनी द्वारा ही चुकाई जाती है। परन्तु तात्पर्य यह नहीं कि वह मोटर वाले से वसूल नहीं की जा सकती है। राशि जितनी दिलाई जाए वह चाहे कम्पनी चाहे मालिक या फिर दोनों से ही दिलाई जा सकती है। यह भी हो सकता है कि मोटर चालक या स्वामी का दोष साबित न हो पाये। उस सूरत में चाहिए कि आवेदन में ही यह मांग भी की गई हो कि गलती न होने पर मिलने वाले प्रतिकर तो दिलाया ही जाए। इस प्रकार यदि मोटर वाले की गलती साबित हो तो पूरा, अगर न साबित हो तो नियम प्रतिकर मिल जायेगा।

    मुआवजा लेने सम्बन्धित कार्यवाई : मोटर दुर्घटना की रिपोर्ट थाने में करनी चाहिए। रिर्पोट घायल व्यक्ति स्वयं या उसका कोई साथी लिखवा सकता है। रिपोर्ट में दुर्घटना का समय, स्थान, वाहन का नम्बर, दुर्घटना का कारण इत्यादि लिखवाने चाहिए। चोट के बारे में शीघ्रातिषीघ्र डाक्टरी जांच करवानी चाहिए। सम्पति हानि का विवरण भी देना चाहिए। गवाहों के नाम भी लिखवाने चाहिए। यदि बहुत घायल हुए हों तो प्रत्येक को अलग रिर्पोट लिखवाने की आवश्यकता नहीं, परन्तु यह देख लेना चाहिए कि रिर्पोट में पूरी बात आ गई है या नहीं ज्यादा घायल होने पर रिर्पोट अस्पताल में पुहंचने के बाद भी लिखवाई जा सकती है। डाक्टरी परीक्षा की नकल प्राप्त कर लेनी चाहिए और इलाज के कागज सावधानी से रख लेने चाहिए ताकि प्रतिकर लेते वक्त हानि साबित करने में सुविधा रहे।
    मृत्यु होने की दशा में शव परीक्षा पुलिस करवाती है लेकिन दुर्घटना में लम्बी चोटों के कारण मृत्यु कुछ दिन बाद होती है तो भी शव परीक्षा की आवश्यकता होती है क्योंकि यह मृत्यु भी दुर्घटना में घायल होने के कारण ही मानी जाती है। पुलिस को की गई रिर्पोट को भी मोटर दुर्घटना अध्यर्थना न्यायाधिकरण हर्जाने के लिए स्वीकार कर सकती है।

    धारा 173 के अधीन अपील : दावा अधिकरण के निर्णय से असन्तुष्ट कोई भी व्यक्ति निर्णय की तारीख के 90 दिन के भीतर उच्च न्यायालय में अपील कर सकता है। उचित कारण बताए जाने पर, उच्च न्यायालय 90 दिन के अविध के बाद भी अपील की सुनवाई कर सकता है अगर प्रतिकर की रक़म 10000 रूपये से कम हो तो अपील नहीं की जा सकती है और अगर प्रतिकर की रक़म ज्यादा हो तो अपील करने से पहले 25000 रूपये या प्रतिकर का 50 प्रतिशत जो भी कम हो, उच्च न्यायालय में जमा करवाना पड़ता है।

    अधिकरण द्वारा दिलाई गई रक़म प्राप्त करने की विधि :- यह रकम निर्णय के 30 दिन के अन्दर देय होती है अधिकरण द्वारा दिलाई गई रक़म की वसूली के लिए एक प्रमाण-पत्र जिला कलैक्टर के नाम भी प्राप्त किया जा सकता है। जिला कलैक्टर इस रक़म को मालगुजारी की बकाया रक़म की तरह-कुर्की गिरफतारी आदि से वसूल करवा सकता है। अन्यथा मोटर दुर्घटना अध्यर्थना न्यायाधिकरण खुद भी इजराए के जरिए मुआवजे की रक़म उत्तरवादियों से वसूल कर सकता है।

    कानूनी सहातया कार्यक्रमों के अंतर्गत लोक अदालत द्वारा दुर्घटनाओं में प्रतिकर सम्बन्धी वादों के निर्णय की विधि : मोटर दुर्घटना के प्रतिकर सम्बन्धी वादों के लोक अदालतों में संधिकर्ताओं की मद्द से तय कराने का प्रयास किया जाता हैं जो आवेदक अपना निर्णय, लोक अदालत के माध्यम से करवाने के इच्छुक हैं वह छपे फार्म में दी गई सूचनाओं के साथ प्रार्थना-पत्र सम्बन्धित अधिकरण को दे सकता है जिसमें वह यह अनुरोध कर सकता है कि उसका निर्णय लोक अदालत के माध्यम से शीघ्र करवाया जाए। इस आवेदन पर मोटर मालिक व बीमा कम्पनी को सूचना भेज कर निष्चित समय पर बुलाया जाएगा व प्रतिकर के बारे समझौते द्वारा निर्णय करवाने की कोषिष की जाएगी। ऐसी दशा में बीमा कम्पनी या मालिक से आवेदक की धन राशि बिना किसी विलम्ब के दिलाने का प्रयास किया जायेगा। 

    भारतीय विधि और कानून पर आधारित महत्वपूर्ण लेख



    Share:

    धारा 50 सी.आर.पी.सी. के अधीन हिरासत व जमानत सम्बन्धित अधिकार



    समाज में न्याय व्यवस्था रखना राज्य सरकार का संवैधानिक तथा कानूनी कर्तव्य है। भारत का संविधान भारत के लोगों को समान अधिकार और जीवित रहने का अधिकार प्रदान करता है तथा संविधान के तहत लोगों का यह मूलभूत अधिकार है कि बिना किसी अभियोग के किसी भी व्यक्ति को सजा न दी जाए औरदोषी व्यक्ति को केवल उतनी ही सजा दी जाए जितनी का कानून में प्रावधान है। किसी ऐसे दोषी व्यक्ति को दो बार किसी एक विशेष अभियोग में सजा नहीं दी जा सकती है।
    धारा 50 सी.आर.पी.सी. के अधीन हिरासत व जमानत सम्बन्धित अधिकार
    धारा 50  सीआरपीसी के अधीन हिरासत व जमानत सम्बन्धित अधिकार
    सामाजिक अव्यवस्था तथा अपराधिक व असामाजिक तत्वों से जनता की सुरक्षा के लिए पुलिस विभाग की रचना की गई है। पुलिस विभाग का मुख्य कर्तव्य जनता की सुरक्षा व सहयोग देना है परन्तु कई बार कानून प्रदत्त इन शक्तियों का पुलिस विभाग के कुछ कर्मियों द्वारा दुरूपयोग किया जाता है और कई बार जनता से पुलिस विभाग का अपना कर्तव्य पालन करने के लिए समुचित सहयोग प्राप्त नहीं होता। अतः यह आवश्यक हो जाता है कि हर व्यक्ति यह जान सके कि उसके अधिकार और कर्तव्य मुख्यतः बन्दी बनाए जाने पर व जमानत करवाने सम्बन्धी क्या है।
    पुलिस विभाग को बन्दी बनाने का अधिकार कानून प्रदत्त है परन्तु यह अधिकार असीमित नहीं है। कानून में यह व्यवस्था है कि समुचित कारण होने पर या अपराध जघन्न होने पर ही, पुलिस किसी व्यक्ति को बन्दी बना सकती है। मुख्यतः अपराध दो श्रेणियों में बांटे जा सकते है:-
    • संज्ञेय अपराध - इस प्रकार के अपराधों के लिए पुलिस बिना किसी वारंट के संदिगध अपराधी को गिरफ्तार कर सकती है। सामान्यतः गम्भीर अपराधों के लिए ही बिना वारंट गिरफ्तार करने का अधिकार है। गम्भीर या जघन्य अपराधों की श्रेणी में मुख्यतः निम्नलिखित अपराध आते हैंः-
      1. अगर वह हत्या, बलात्कार, अपहारण जैसे अपराधों का दोषी हो
      2. अगर उस पर चोरी-डकैती इत्यादि का अभियोग हो, या उसके पास चोरी का सामान इत्यादि बरामद हो।
      3. अगर वह इश्तहारशुदा भगोड़ा हो।
      4. अगर वह जेल से फरार हुआ हो।
      5. अगर व किसी भी सेना से भागा हुआ हो।
      6. गंभीर चोट पहुंचाना, बिना अधिकार प्रवेष करना, नाजायज शराब खरीद करना व रखना, इन्यादि भी संज्ञेय अपराध की परिभाषा में आते हैं।
    • असंज्ञेय अपराध इस प्रकार के अपराधों में छोटे-मोटे और व्यक्तिगत अपराध जैसे कि किसी पर बिना चोट पहुंचाए हमला करना, किसी की मान हानि करना या किसी को गाली गलौच देना गैर-कानूनी तौर पर दूसरी शादी करना आदि आते हैं। असंज्ञेय अपराध बारे जब पुलिस में सूचना दी जाती है, तो वैसी सूचना रोजनामचा में दर्ज की जाती है और सूचना देने वाला व्यक्ति पुलिस को बाध्य नहीं कर सकता कि वह प्रथम सूचना रिर्पोट (एफ0आई0आर0) दर्ज करें। इस प्रकार के असंज्ञेय अपराधों को पुलिस अनुवेषण या तहकीकात बिना इलाका मैजिस्ट्रेट से आदेश प्राप्त किए बिना नहीं कर सकता है।

    गिरफ्तार होने पर अपराधी के अधिकार है कि उसे यह जानकारी मिलें :- 
    1. कि वह किस अपराध में हिरासत में लिया जा रहा है।
    2. अगर वह वारंट के आधार पर गिरफ्तार किया गया है तो वह उस वारंट को देखे और पढ़े।
    3. किसी वकील को बुलाकर सलाह ले सके।
    4. अदालत के समय 24 घंटे के भीतर पेश किया जाए।
    5. उसे यह जानकारी दी जाए कि वह जमानत ले सकता है कि नहीं।
    6. अगर अदालत द्वारा उसे पुलिस हिरासत में रखने का आदेश हो तो वह अपना डाक्टरी मुआयना किसी सरकारी अस्पलात से करवाए।
    7. उसे किसी ऐसे बयान को देने के लिए बाध्य न किया जाए जो अदालत में उसके अपने खिलाफ साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता हो।
    8. अगर 24 घंटों के दौरान उसके साथ कोई अत्याचार या जोर जबरदस्ती की गई तो वह इलाका मैजिस्ट्रेट को इस बारे में बताए व उचित आदेश प्राप्त कर सके।
    9. उच्चतम न्यायालय के दिषा निर्देषानुसार हथकड़ी लगाए जाने सम्बन्धी अधिकार उच्चतम न्यायालय द्वारा यह निर्देष जारी किए गये हैं कि अपराधी को हथकड़ी सामान्यतः नहीं लगाई जाएगी बल्कि उचित कारणों पर ही लगाई जा सकती है जैसे (अपराधी द्वारा भागने की कोषिष या अपराधी के हिंसक होने की स्थिति या अन्य किसी ऐसे उचित कारण होने पर, व लिखित रूप से आदेश प्राप्त करने पर ही अपराधी को हथकड़ी लगाई जा सकती है।

    जमानत के अधिकार को आधार मानकर, अपराधों को दो श्रेणियों में बांटा जा सकता है:-
    1. धारा 436 सी0आर0पी0सी0 :- जमानत योग्य अपराध जिनमें जमानत प्राप्त करना अधिकार है। इस श्रेणी में आने वाले केसों में अपराधी जमानत करवाने का अधिकार रखता है और अगर वह मैजिस्ट्रेट या पुलिस द्वारा मांगी गई जमानत देता है तो उसे जमानत पर रिहा करना आवश्यक है।
    2. धारा 437 सी0आर0पी0सी0 :- बिना जमानत योग्य अपराध जिनमें जमानत देना या ना देना अदालत की इच्छा पर निर्भर करता है। इन अपराधों में जमानत सिर्फ अदालतों द्वारा दी जाती है और अदालत द्वारा अपराध की गम्भीरता, साक्ष्य को सुरिक्षत रखना इत्यादि बातों को ध्यान में रखते हुए, जमानत दरखास्त मंजूर या नामंजूर की जा सकती है।
    महिला अपराधी के अधिकार कुछ अतिरिक्त विशेषाधिकार प्राप्त है :-
    1. महिला अपराधी को किसी महिला पुलिस की ही हिरासत में रखा जा सकता है।
    2. किसी महिला को किसी अपराध की पूछताछ के लिए सूर्यास्त के बाद या सूर्योदय से पहले किसी भी पुलिस स्टेशन व चौकी में नहीं बुलाया जा सकता औा पूछताछ के वक्त महिला आरक्षी का उपस्थित रहना आवश्यक है।
    3. किसी भी महिला अपराधी की डाक्टरी जांच महिला डाक्टर द्वारा ही करवाई जा सकती है।
    4. किसी गिरफतार महिला की तलाशी केवल महिला ही ले सकती है।
    5. घर की तलाशी लेते वक्त महिला को अधिकार है कि वह तलाशी लेने वाली महिला अधिकारी/अधिकारी उस महिला को घर से बाहर आने का समय दें।
    धारा 53-54 सी0आर0पी0सी0 के अधीन अपराधी की डाक्टरी जांच
    पुलिस अधिकारी अदालत में दरखास्त देकर अपराधी का डाक्टरी मुआयना करवा सकता है ताकि उस डाक्टरी सर्टीफिकेट को वह साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल कर सके। जैसे बलात्कार के अपराध में वह शराब पीने का साक्ष्य प्राप्त करने के लिए भी डाक्टरी जांच का आदेश अदालत से हासिल कर सकता है।
    अपराधी स्वयं भी अपनी डाक्टरी जांच की लिए अदालत को प्रार्थना पत्र दे सकता है। ताकि यह साबित कर सके कि उस पर पुलिस द्वारा जयादती या मार-पीट की गई है। बलात्कार इत्यादि अपराधों की षिकार महिलाएं अपनी डाक्टरी जांच करवाने मे पुलिस से आमतौर पर सहयोग नहीं करती। उन्हें ऐसी जांच के लिए बाध्य तो नहीं किया जा सकता लेकिन परिणामस्वरूप आवश्यक साक्ष्य की कमी रह जाने के कारण अपराधी कानून के षिकंजे से छूटने में सफल हो जाता है और समाज में असामाजिक तत्वों को बढ़ावा मिलता है। इसलिए यह आवश्यक है कि पुलिस को जनता का सम्पूर्ण सहयोग प्राप्त हो।

    धारा 438 सी0आर0पी0सी0 के अधीन अग्रिम जमानत
    गैर जमानती अपराधों मे अग्रिम जमानत का भी प्रावधान है। इस कानून की धारा के अन्तर्गत कोई भी व्यक्ति जिसके विरूद्ध गैर जमानती अपराध का मुकदमा दर्ज किया गया हो सेशन अदालत या उच्च न्यायालय में अग्रिम जमानत करवाने हेतू प्रार्थना-पत्र दे सकता है। अदालत मुकद्दमें के विभिन्न पहलुओं को देखते हुए, शर्तो पर या बिना शर्त के अग्रिम जमानत मन्जूर या नामन्जूर कर सकती है।
    अगर कोई अपराधी स्वयं वकील का खर्च वहन करने में असमर्थ है तो उसे सरकारी खर्चे पर वकील अदालत द्वारा दिलाया जा सकता है। बल्कि अदालत स्वयं भी इस बात के लिए बाध्य है कि अगर किसी अपराधी के पास वकील न हो तो स्वयं उसे सरकारी खर्चे पर वकील देने की आज्ञा दें।

    जमानत
    इस शब्द का अभिप्राय यह है कि जहाँ कोई व्यक्ति किसी फौजदारी मुकद्दमें में अभियुक्त हो और अदालत उसके केस की सुनवाई के दौरान उसे जेल में बन्द रखने के बजाय उसे ‘‘जमानत’’ पर छोडे़ जाने के आदेश देती है तो उस सूरत में जो व्यक्ति उस अभियुक्त की उस अदालत में समय-समय पर हाजिर रहने की जिम्मेदारी लेता है, वह व्यक्ति उस अभियुक्त का जमानती कहलाता है और अगर वह व्यक्ति इस जिम्मेदार को निभाने में असफल रहता है तो वह अपने द्धारा ज़मानतनामें में लिखी रक्म (या उससे कम रक्म) अदालत के आदेश अनुसार देने का बाध्य रहता है। जब तक अभियुक्त या उसके ज़मानती पर अदालत द्वारा कोई जुर्माना अभियुक्त की किसी गैर हाजरी बारे नहीं लगाया जाता तब तक कोई भी रक्म दोषी या उसके जमानती द्वारा किसी भी व्यक्ति या अधिकारी को देने की कोई जरूरत न है। जब कभी ऐसी कोई रक्म कोई अदा करता है तो वह उस अदायगी की सरकारी रसीद पाने का हकदार है।

    विधि और कानून पर आधारित अन्य लेख


    Share: