एनडीए - अच्छी नौकरी के साथ-साथ देश सेवा का जज्बा NDA - Good Job with the Passion to Serve the Country



 

थल सेना हो, नौसेना हो या वायु सेना, सेना में ऑफिसर बनना छात्रों का ख्वाब होता है। अपने इस ख्वाब को वे हकीकत में बदल सकते हैं नेशनल डिफेंस अकादमी (एनडीए) के माध्यम से। यूपीएससी द्वारा इसके लिए साल में दो बार प्रवेश परीक्षा आयोजित की जाती है। सेना में नौकरी का अलग ही क्रेज है। इसकी सबसे बड़ी खासियत यह है कि देश सेवा का बेहतरीन अवसर मिलता है। अब सैलरी भी काफी दमदार हो गयी है। यही कारण है कि अधिकतर युवा इस नौकरी को पाने के लिये प्रवेश परीक्षा की तैयारी करते है। एनडीए में नौकरी करने का एक अलग ही क्रेज होता है। इस नौकरी की सबसे बड़ी खासियत यह है कि आपको कम उम्र मे ही कई अहम जिम्मेदारियां मिल जाती है। करीब छह दशक पूर्व अपनी स्थापना से लेकर आज तक नेशनल डिफेंस एकेडमी (एनडीए) सेना के तीनों विंग्स - आर्मी, नेवी और एयरफोर्स के ऑफिसर कैडेट को ट्रेनिंग देने में अग्रणी रहा है। भारतीय सशस्त्र सेना के अधिकांश ऑफिसर आज इसी संस्थान के पूर्व छा़त्र है।


 

तकनीकी विकास के अनुरूप कैडेट्स को बेहतर ट्रेनिंग देने के मद्देनजर अपनी स्थापना से लेकर अब तक इस संस्थान के स्वरूप में काफी बदलाव आया है। संस्थान की 2500 छात्रों को प्रशिक्षित करने की क्षमता भी अब बढ़कर 3000 हो चुकी है। खास बात यह है कि बेहतर ट्रेनिंग और समझ के लिये संस्थान द्वारा विश्व के अन्य प्रमुख मिलिट्री संस्थानों, जैसे यूनाइटेड स्टेट्स मिलिट्री एकेडमी, आस्ट्रेलियन डिफेंस एकेडमी आदि के साथ मिलकर संयुक्त अभियान भी चलाया जाता है। इसके अलावा संस्थान द्वारा विभिन्न देशों, जैसे अफगानिस्तान, ईरान, इराक, नेपाल, श्रीलंका, उज्बेकिस्तान आदि के कैडेट्स को भी ट्रेनिंग दी जाती है। ऐसे महत्वपूर्ण संस्थान का हिस्सा आप भी बन सकते है, एनडीए की प्रवेश परीक्षा में सफलता प्राप्त करके।


डिफरेंट एग्जाम, डिफरेंट प्रिपरेशन

एनडीए की परीक्षा अन्य परीक्षाओं से काफी अलग होती है। अन्य परीक्षाओं में जहां मानसिक मजबूती देखी जाती है, तो वहीं इस परीक्षा में शारीरिक और मानसिक दोनों की मजबूती आवश्यक है। यही कारण है कि इस परीक्षा में उत्तीर्ण होने वाले स्टूडेंट्स कम उम्र में ही सैन्य अधिकारी बन जाते है।


बारहवीं उत्तीर्ण जरूरी

एनडीए एंट्रेंस टेस्ट के लिए अभ्यर्थी की आयु जारी अधिसूचना के अनुसार साढ़े 16 से 19 वर्ष के बीच होनी चाहिए। जो अभ्यर्थी आर्मी में प्रवेश पाना चाहते है, उनके लिए किसी भी संकाय से 12वीं या समकक्ष परीक्षा उत्तीर्ण होना जरूरी है। एयरफोर्स और नेवी में जाने के इच्छुक छात्रों के लिए मैथमेटिक्स और फिजिक्स से 12वीं या समकक्ष परीक्षा उत्तीर्ण होना जरूरी है। 12वीं की परीक्षा दे चुके छात्र भी एंट्रेंस टेस्ट के लिए अप्लाई कर सकते है। लेकिन उन्हें एसएसबी इंटरव्यू के समय 12वीं उत्तीर्ण करने का प्रमाण देना होगा। आवेदन करते समय छात्रों को स्पष्ट रूप से यह बताना होगा कि वे किस विंग में जाना चाहते है। हालांकि अंतिम चयन लिखित परीक्षा और एसएसबी में छात्रों के प्रदर्शन के आधार पर ही होता है।


एग्जाम पैटर्न

एनडीए में प्रवेश के इच्छुक छात्रों को तीन चरणों में एंट्रेंस टेस्ट से गुजरना होता है। सबसे पहले उन्हें यूपीएससी द्वारा आयोजित लिखित परीक्षा में बैठना होता है। इसमें दो पेपर होते है- मैथ्स (300 अंकों का) और जनरल एबिलिटी (600 अंकों का)। दोनों ही पेपर ढाई-ढाई घंटे के होते है। सभी प्रश्न ऑब्जेक्टिव टाइप के होंगे और गलत उत्तरों के लिये अंक काटे जाएंगे।


एसएसबी से ओएलक्यू की जाँच

रिटेन टेस्ट क्लियर करने वाले अभ्यर्थियों को सेना के सर्विस सेलेक्शन बोर्ड यानी एसएसबी द्वारा इंटरव्यू और व्यक्तित्व परीक्षण के लिये कॉल किया जाता है। इसका उददेश्य अभ्यर्थी की पर्सनैलिटी, बुद्धिमता और सेना में एक ऑफिसर के रूप में उसकी ऑफिसर लाइक क्वालिटी (ओएलक्यू) को जांचना होता है। एसएसबी के सेंटर कई शहरों में है और अभ्यर्थी को उसके निकटवर्ती सेंटर पर ही बुलाया जाता है। आमतौर पर एसएसबी इंटरव्यू पांच दिनों तक होता है, लेकिन इसमें पहले दिन स्क्रीनिंग टेस्ट ही होता है, जिसमें साइकोलॉजिस्ट टेस्ट देने होते है। इस दौरान उनका ग्रुप डिस्कशन यानी जीडी, साइकोलॉजिस्ट टेस्ट, इंटरव्यू बोर्ड तथा ग्रुप टास्क ऑफिसर द्वारा उनकी ओएलक्यू को जांचा-परखा जाता है। एनडीए परीक्षा के आधार पर अंतिम रूप् से चुने गये अभ्यर्थियों को नेशनल डिफेंस एकेडमी, खडगवासला, पुणे में तीन वर्ष की ट्रेनिंग दी जाती है। ट्रेनिंग के दौरान वे अपनी स्ट्रीम के अनुसार ग्रेजुशन की पढाई भी पूरा करते है। इसके लिये उनके पास फिजिक्स, कैमिस्ट्री, मैथ एवं कम्प्यूटर साइंस विष्यों के साथ बीएससी का या पोलिटिकल साइंस, इकोनॉमिक्स, हिस्ट्री आदि विषयों के साथ बैचलर ऑफ़ आट्र्स यानी बीए का विकल्प होता है। हालांकि, ट्रेनिंग के पहले वर्ष में तीनों सेनाओं के लिये चयनित अभ्यर्थियों को एक ही कोर्स की पढाई करनी होती है। दूसरे साल में उनके द्वारा चुने गये बिंग यानी आर्मी, नेवी या एयरफोर्स के आधार पर उनके कोर्स का लिेबस बदल जाता है। एनडीए में तीन वर्ष की ट्रेनिंग के उपरान्त कैडेट्स को उनके द्वारा चुनी गई बिंग की विशेष जानकारी के लिये स्पेशल ट्रेनिंग पर भेजा जाता है। इसके तहत् आर्मी के लिये चयनित कैंडिडेट्स को इंडियन मिलिट्री एकेडमी (देहरादून), एयरफोर्स के कैंडिडैट्स को एयरफोर्स एकेडमी (हाकिमपेट) तथा नेवी के लिये चुने गए कैंडिडेट्स को नेवल एकडमी (लोनावाला) भेजा जाता है। ट्रेनिंग को सफलतापूर्वक पूरा करने वाले कैडेट्स को उनके द्वारा चुने गए सेना के किसी एक बिंग में कमीशंड ऑफिसर के रूप में नियुक्त किया जाता है। अगर आप इस पद के लिये गंभीर है, तो इसकी तैयारी शुरू कर दें।


तैयारी कैसे करें


मैथमेटिक्स मैथमेटिक्स के प्रश्नों को हल करने के लिए कॉन्सेप्ट क्लियर रखें तथा तीन राउंड में प्रश्नों को हल करने की कोशिश करें। इससे आप अधिक से अधिक प्रश्नों का सही जवाब दे सकते है। शॉर्टकट मेथड फायदेमंद होते है। मैथ्स के लगभग सभी टॉपिक से प्रश्न पूछे जाते है। इसलिए पूरे सिलेबस पर अपनी कमांड बनाए रखें।

अंग्रेजी के पेपर में अधिक अंक आएं, इसके लिए रीडिंग पर खूब ध्यान देना चाहिए। इससे कॉम्प्रिहेंशन सवालों को हल करने में मदद मिलती है। इसके अलावा वोकाबुलरी को मजबूत बनाने, एंटोनीम्स और सिनोनिम्स सेंटेंस में ग्रामर संबंधी गलतियां पहचानने और टेंस व प्रीपोजीशन की प्रैक्टिस करने पर काफी ध्यान देना चाहिए। बेहतर रीडिंग के लिए इन बातों का ध्यान रखें। किसी समाचार-पत्र के संपादकीय को नियमित रूप से पढ़े। साथ ही सामान्य पत्र-पत्रिकाएं भी पढ़ते रहें। फिक्शन, साइंस स्टोरी आदि पढ़ने का भी अभ्यास किसी भी रीडिंग के दौरान स्टोरी के थीम को समझने की कोशिश करें। साथ ही वर्ड्स और सेंटेंस को समझने की कोशिश करें। किसी भी रीडिंग के दौरान स्टोरी के थीम को समझने की कोशिश करें। साथ ही वर्ड्स और सेंटेंस को समझने की कोशिश करें। वोकाबुलरी की तैयारी के दौरान प्रत्येक सिटिंग में 49-50 शब्द याद करें और फिर हर दूसरे-तीसरे दिन उन्हें दोहराते भी रहें। जो वड्र्स याद न हो, उन्हें फिर से याद करने की कोशिश करें। ऐसे शब्दों को लिखकर दीवार पर टांग दें, ताकि नजर बार-बार उन पर जाए। इडियम्स ऐंड फे्रजैज पर खास घ्यान दें।

जनरल नॉलेज में साइंस बैकग्राउंड वाले छात्रों के मुकाबले आर्ट बैकग्राउंड के छात्रों को जनरल नॉलेज में अधिक मेहनत करने की जरूरत होती है। विज्ञान विषयों में कांसेप्ट क्लियर होना चाहिए, जबकि आर्ट्स विषयों में सेलेक्टिव स्टडी फायदेमंद होती है। मॉडल प्रश्न-पत्र से यह आकलन किया जा सकता है कि किस सेक्शन से अधिक प्रश्न पूछे जाते है। करंट अफेयर्स की तैयारी विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं और समाचार-पत्रों से नियमित रूप से करनी चाहिए। जनरल नॉलेज की तैयारी के लिए 11वीं - 12वीं स्तर की किताबों का अध्ययन ठीक ढंग से करें।

एग्जाम टिप्स


टेस्ट के दौरान किसी भी प्रॉब्लम पर ज्यादा देर तक रुके रहना बहुमूल्य समय को बर्बाद करना है। ऐसे में सबसे अच्छा तरीका यह है कि प्रश्न-पत्र को तीन राउंड से सॉल्व करें। पहले राउंड (10 से 12 मिनट) में सबसे आसान प्रश्नों को हल करें। साथ ही मार्क करते जाए कि किन प्रश्नों को दूसरे राउंड में हल करना है। इस राउंड में कुछ मुश्किल प्रश्न हल हो जाएंगे। इसके बाद बचे हुए समय में यानी तीसरे राउंड में मुश्किल प्रश्नों को हल करने का प्रयास करें।

कोई जरूरी नहीं कि पूरे नियम से ही किसी प्रश्न का उत्तर ढूंढ़ा जाये। कई बार विकल्पों पर नजर डालने से भी आपको थोड़े से मेंटल कैलकुलेशन से उत्तर का पता चल जाता है। इससे मुश्किल सवालों को हल करने के लिए समय की बचत होती है। शॉर्टकट मेथड फायदेमंद होते है।

प्रैक्टिस का फायदा तो होता ही है। इसलिए मॉडल प्रश्न-पत्रों को हल करने का अधिक से अधिक प्रयास करें।

चूंकि सवाल 11 - 12वीं स्तर के होते हैं। इसलिए संबंधित सिलेबस की पढ़ाई शुरू से ही ठीक ढंग से करें।

वर्बल एबिलिटी को इम्प्रूव करें। बेहतर अंक लाने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है।



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प्रेरक प्रसंग लाईफ चेंजिंग स्टोरी Motivational Context - Life Changing Story



प्रेरक प्रसंग - लाईफ चेंजिंग स्टोरी Motivational Context - Life Changing Story 

नन्हीं बच्ची की मुस्कान ने बदला जीने का नजरिया

एक आदमी हर दिन ऑफिस जाने के लिए कालोनी के बाहर बस स्टॉप पर खड़ा रहता है। एक दिन उसने देखा कि एक महिला अपनी बच्ची के साथ वहाँ खड़ी थी। उसने उससे बस की जानकारी मांगी। आदमी ने बसों के क्रम के अनुसार उनके नंबर बता दिए। इस दौरान उस बच्ची ने उसे प्यारी-सी स्माइल दी, जो उसके मन को छू गई, उसने जेब से चॉकलेट निकालकर उसे दे दी, जो वह अकसर घर के लिए ले लिया करता था। उस बच्ची ने उसे थैंक्यू कहा। अब लगभग हर दिन बस स्टॉप पर उस व्यक्ति की उस महिला और उसकी बच्ची से नजरें मिल ही जाती थी। वह बच्ची स्माइल करती और गुड बाय बोलकर अपनी माँ के साथ बस में चली जाती थी। कुछ दिनों में पता चला कि वह बच्ची उस कालोनी में ही रहती थी। वह अकसर अन्य के साथ खेलती दिख जाती थी।
फिर एक दिन बस स्टॉप पर वह दोनों नहीं दिखे। उस आदमी ने सोचा कि हो सकता है बच्ची की छुट्टी वगैरह हो। कुछ दिन बीत गए, लेकिन वह बच्ची और उसकी माँ बस स्टॉप पर नहीं आई। वह मैदान में अन्य बच्चों के साथ भी नहीं दिखी। आदमी की जिज्ञासा बढ़ गई, उसने उनके बारे में जानकारी निकाली। पता चला कि वह महिला दुनिया छोड़ कर चली गई। महिला का पति उसे धोखा देकर छोड़ गया था। उसके पास कोई नौकरी वगैरह नहीं थी, माँ-बेटी की गुजर-बसर नहीं हो पा रही थी। अकेलेपन और तनावभरी जिंदगी से उसने हार मान ली थी। उस आदमी ने उसकी बच्ची के बारे में पूछा, तो पता चला कि उसे अनाथालय में रखा गया है क्योंकि उसका कोई नहीं था और कोई उसकी जिम्मेदारी उठाने के लिए भी तैयार नहीं था।
अगले ही दिन वह आदमी अनाथालय पहुँच गया। वहाँ उसने उस बच्ची के बारे में पूछा, तो उसे इशारे से बताया गया। वह अन्य बच्चों के साथ बगीचे में खेल रही थी। उसकी नज़रें उस व्यक्ति पर पड़ी, उसने फिर वही स्माइल दी। फिर वह उसके पास आई और कहने लगी - मेरी चॉकलेट कहाँ है। आदमी मुस्कुरा दिया और उसके लिए खरीदी चॉकलेट उसे दे दी। उसने फिर मधुर आवाज में उसे थैंक्यू कहा और वह चली गई। आदमी उसे खेल ते और मस्ती करते देखता रहा। रास्ते भर वह अपनी परेशानियों के बारे में सोचता रहा। वह उनके बारे में सोचता रहा, जिन्होंने उसे तकलीफ पहुँचाई। फिर भी उसे अब सब आसान लग रहा था। उसने सोचा, ये बच्ची इस हालात में भी मुस्कुरा सकती है, तो मैं क्यों नहीं। इस तरह उसने अपनी जिंदगी से निगेटिव सोच निकाल दी और अब पहले से ज्यादा खुश रहता है।
किसी काम को छोटा न समझे
नेपोलियन कहीं जा रहा था। रास्ते में उसकी नजर एक दृश्य पर पड़ी। वह रूक गया। कई कुली मिलकर भारी-भारी खंभों को उठाने का प्रयास कर रहे थे। और मारे पसीने के तरबतर थे। पास में खड़ा एक आदमी उन सबको तरह-तरह के निर्देश दे रहा था।
नेपोलियन ने उस आदमी के करीब जाकर कहा, "भला आप क्यों नहीं इन बेचारों की कुछ मदद करते ?"
उसे गुस्सा आ गया और झिड़कते हुए वह बोला, "तुझे मालूम है, मैं कौन हूँ ?"
"नहीं भाई, मैं तो अजनबी हूँ, मैं क्या जानूं कि आप कौन हैं ?" नेपोलियन ने विनम्रता से कहा।
"मैं इस काम का ठेकेदार हूँ", रोब जमाते हुए उसने कहा। नेपोलियन बिना कुछ कहे मजदूरों की तरफ चला गया और उन मजदूरों के काम में हिस्सा बांटने लगा। जब वह जाने लगा तो ठेकेदार से पूछा, "और तू कौन है ?"
"ठेकेदार साहब, बंदे को लोग नेपोलियन कहते हैं" नेपोलियन का नाम सुनते ही ठेकेदार की सिट्टी-पिट्टी गुम हो गयी। उसने अपनी असभ्यता के लिए उससे माफी मांगी। नेपोलियन ने उसे समझाया,"किसी भी काम को अपने ओहदे से नहीं देखना चाहिए और न ही किसी काम को छोटा समझना चाहिए।"


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जामुन - प्राकृतिक अनमोल औषधि (Berries - Natural Precious Medicine)



जामुन (वैज्ञानिक नाम : Syzygium cumini) एक सदाबहार वृक्ष है और यह भारतवर्ष में प्रायः सब जगह पैदा होते हैं। वनों में उगने वाली जामुन छोटी और खट्टी होती है और बगीचों में उगने वाली बड़ी और मीठी होती है। एक जामुन की जाति नदी किनारे लगती है जिसकी पत्ती कनेर के पत्तों जैसी होती है, इसे जल-जामुन कहते हैं। इस की दूसरी जाति के पत्ते आम के पत्तों के बराबर होते हैं और फल मध्यम होते हैं। इसकी तीसरी जाति के पत्ते पीपल के पत्तों के बराबर होते हैं और चिकने तथा चमकदार होते हैं। इसका फल बड़े जामुन के रूप में होता है। जामुन की कई किस्में हैं। कुछ जामुन के पत्ते मौलसिरी के पत्तों जैसे भी होते हैं। वैशाख और ज्येष्ठ मास में इनमें फल आते हैं, इसके फलों को जामुन कहते हैं। जामुन का रंग ऊपर से काला और अन्दर से लाल होता है। अन्दर इसमें गुठली होती है। गुणों में सभी जामुन फल एक जैसे गुणकारी होते हैं और बडे़ स्वादिष्ट व मीठे होते हैं। जामुन के वृक्ष बहुत बड़े-बड़े होते हैं। इसकी लकड़ी चिकनी, सुंदर तथा कमजोर होती है। ग्रीष्म ऋतु के अन्त और वर्षा ऋतु के प्रारंभ में इसके फल झड़ते हैं, जिन्हें लोग इसकी गुठलियों के लिए संग्रह करते हैं। गुठली औषधियों में प्रयोग होती है।
Jamun Information and Facts - Specialty Produce
जामुन को संस्कृत में जम्बू, सुरभीपला, महांस्कन्द्दवा, मेघमोदिनी, राजफला और शुकप्रिया कहते हैं। हिन्दी में जामुन, जामन, काला जामन, फलांदा और फलिंद कहते हैं। गुजराती में जांबू, बंगला में जाम, मराठी में जांभूल, तमिल में जंबुनावल, कर्नाटकी में नीरल या केंपुजं बीनेरलु, तेलिंगी में नेरेदु, मलयालम में नेतुजांबल या नावल, लैटिन में जांबोलेमन या सिजि़जीयम् और अंग्रेजी में जांबुल ट्री या जेम्बोल कहते हैं। जामुन का छत्र काफी घना होने के कारण इसे सड़कों के किनारे, खेतों में और खाली भूमि पर लगाया जाता है। पत्तियां गहरे हरे रंग की और चमकदार होती हैं। छाल स्लेटी-कत्थई होती है। यह नदी तट के पास बाढ़ से प्रभावित भूमि पर अधिक पैदा होता है व नदी, तालों के किनारे और दलदली क्षेत्रों में पाया जाता है। सुन्दर छायादार छत्र और सदापर्णी वृक्ष होने के कारण जामुन सड़कों के किनारे बहुतायत से रोपा जाता है।
Syzygium cumini, Syzygium jambolanum, Eugenia cumini, Eugenia jambolana
जामुन एक मध्यम आकार का वृक्ष है जिसकी ऊँचाई 32 मी. तक और व्यास 100 से.मी. या इससे अट्टिाक तक होता है। अधिकतम तापमान 50 डिग्री सेंटीग्रेड और न्यूनतम तापमान 2 डिग्री सेंटीग्रेड एवम् 875 से 5,000 मि.मी. वर्षा वाले क्षेत्र जामुन के लिए अनुकूल होते हैं। यह प्रजाति जलवायु की दृष्टि से बहुत सहनशील है। यह कंकरीली, क्षारीय और नमकयुक्त मृदा के अतिरिक्त अन्य समस्त प्रकार की पृदा में पनप सकता है। जामुन छाया सहन कर सकता है। यह तेजी से बढ़ने वाली प्रजाति है। जामुन के बीज अंकुरण क्यारियों में एक से.मी. के अन्तराल पर पतली नालियों में बोए जाते हैं। 6-7 से.मी., ऊँचे हो जाने पर बिजौलों को अंकुरण क्यारियों से निकाल कर प्रतिरोपण क्यारियों में प्रतिरोपित कर देते हैं। पॉलीथीन थैलों में सीट्टो बीज बोकर भी इसकी पौध तैयार की जाती है इसकी समय-समय पर सिंचाई, गुड़ाई व निराई करते रहना चाहिए। एक वर्ष की पौध रोपण हेतु उपयुक्त होती है। पौट्टाशालाओं में शाखा अट्टिाक होने की स्थिति में नीचे से 1/3 ऊँचाई तक शाखाओं को तेज धार चाकू से काट देना चाहिए।
Fruit Warehouse | Jamblang  ( Syzygium cumini )
जामुन की लकड़ी भारी और मजबूत होने के कारण इमारती लकड़ी के रूप में भी उपयोगी है। बैलगाड़ी के पहिए और नावें भी जामुन की लकड़ी से बनती है। खेती के औजारों के दस्ते बनाने में भी इसका उपयोग किया जाता है। इसे ईंधन के रूप में भी काम में लाया जाता है। जामुन की छाल, चमड़ा पकाने और रंगने के काम आती है। इसके पके हुए फल बहुत स्वादिष्ट होते है। इसका सिरका भी बनाया जाता है। पेट के विकारो के लिए जामुन के फल और इनका सिरका अचूक दवा माना गया है।

उपयोगिता और मान्यता
आयुर्वेद के अनुसार, जामुन की छाल कसैली, मल रोधक, मधुर, पाचक, रुक्ष, रूचिकारक तथा पित्त और दाह को दूर करने वाली होती है। इसके फल मधुर, कसैले, रूचिकारक, रूखे, मलरोधक, वातवर्धक और कफ, पित्त जीवपनोपयोगी फल: जामुन तथा अफरे को दूर करने वाले होते हैं। जामुन की गुठली मधुर, मलरोधक और मधुमेह (शक्कर की बीमारी) को नष्ट करती है।

चरक के शास्त्र में जामुन की छाल को मूत्रसंग्रह और पुरीष रंजनीय बतलाया है। सुश्रुत के शास्त्र में रक्त पित्त नाशक, दाहनाशक, योनिदोषनाशक, वृष्य और संग्रही माना है। वैद्य लोग जामुन के सिरके को पेट की पीड़ा का नाश करने वाला और मूत्र अधिक लानेवाला मानते हैं। जामुन कृमि नाशक, रक्तप्रदर और रक्तातिसार का शामक है। जामुन का रस पीने से दस्त बंद हो जाती है। जामुन खून को साफ करता है और इसमें विजातीय तत्त्वों को शरीर से बाहर निकालने की अद्भुत क्षमता होती है।
 Jamun or Java plum - beneficial in chronic diarrhea
जामुन में निहीत तत्व व खनिज
जामुन के 100 ग्राम गूदे में लगभग 94 ग्राम पानी होता है। 14 ग्राम कार्बोहाईड्रेट (शर्करा), 14 मि ग्रा कैल्शियम, 14 मिग्रा फास्फोरस और अल्पमात्रा में लोहा पाया जाता है। प्रोटीन की मात्रा 0.7 ग्राम, वसा की मात्रा 0.3 ग्राम होती है। कुछ महत्त्वपूर्ण खनिज तत्त्वों के साथ 0.9 ग्राम रेशे भी पाए जाते हैं। जामुन के रस में विटामिन ‘सी’ 10 मिलीग्राम तथा कैरोटीन, थायमिन, रिबोफ्लेविन और नियासिन जैसे विटामिन भी मिलते हैं। इन सब तत्त्वों के कारण-जामुन के 100 ग्राम गूदे से 62 कैलोरी उर्जा मिल जाती है।
कुछ औषधीय प्रयोग
  1. मधुमेह (डायबिटीज) पर- जामुन की गुठली और गुड़मार बूंटी, दोनो समभाग लेकर कूट पीसकर चूर्ण बना लें। प्रतिदिन 6 ग्राम चूर्ण गर्म पानी के साथ प्रातः सायं सेवन करने से मधुमेह रोग मिट जाता है।
  2. स्वप्नदोष पर- जामुन की गुठली पीसकर चूर्ण बना लें, प्रातः सायं दो चम्मच (छः ग्राम) चूर्ण पानी से लें तथा रात्रि में दूध के साथ लेने से वीर्य गाढ़ा होता है, वीर्य के रोग दूर होते हैं तथा शीघ्रपतन व स्वप्नदोष मिट जाता है। जामुन की गुठली पंसारी या हकीमी अत्तार की दुकान से जितनी चाहें उतनी प्राप्त की जा सकती हंै।
  3. शैया मूत्र पर- निद्रावस्था में बालक-बालिका, बहुत से बड़े हो जाने के बाद भी बिस्तर में पेशाब कर देते हैं। कोई बड़ी उम्र के भी पेशाब कर देते हैं, इसे शय्यामूत्र रोग कहते हैं, इसके उपचार में जामुन की गुठली को कूटपीस कर चूर्ण बनालें, इस चूर्ण को प्रातः सायं एक चम्मच फांककर पानी पीलें, ऐसा करने से एक हफ्ते में बिस्तर में पेशाब करना मिट जायेगा।
  4. पुरानी बैठी हुई गले की आवाज पर- जामुन की गुठली का चूर्ण आधा चम्मच शहद में मिलाकर प्रातः सायं लेने से पुरानी बैठी हुई आवाज साफ हो जाती है। गायकों, वक्ताओं के लिए यह उपचार लाभकारी है।
  5. मधुमेह में- जामुन की गुठली सूखी तथा सूखे आंवले दोनों को कूटपीस कर चूर्ण बना लें। दोनों समभाग (बराबर-बराबर) ले लें। प्रातः निराहार (खाली पेट) गाय के दूध के साथ 6 ग्राम (दो चम्मच) चूर्ण फांककर दूध पी लें। ऐसा कुछ दिन करने से मधुमेह रोग समाप्त हो जाता है।
  6. चर्मरोगों पर- जामुन की गुठली बारीक पीस कर नारियल के तेल में मिलाकर लगाने से चर्म रोगों में लाभ मिलता है।
  7. कान से पानी बहने पर- जामुन की गुठली को पीसकर सरसों के तेल में डालकर गरम करें। ठण्डा होने पर सूती कपडे़ से छानकर शीशी भर लें। ड्रापर से कान में डालने से कुछ ही दिनों में कान बहना बन्द हो जाता है।
  8. मुंह के छाले- जामुन के नरम और ताजे पत्तों को पानी में पीसकर, और पानी बढ़ाकर कपड़े से छान लें, उस पानी से कुल्ले करने से मुंह के खराब से खराब छाले ठीक हो जाते हैं।
  9. बवासीर में- दस ग्राम जामुन के पत्तों को गाय के दूध में घोंटकर दस दिन तक प्रातः पीने से बवासीर में गिरने वाला खून बन्द हो जाता है।
  10. अफीम का नशा- दस ग्राम जामुन के पत्तों को पीसकर पानी में मिलाकर पीने से अफीम का नशा उतर जाता है।
  11. जूते से काटने पर- अगर किसी के पाँव में चमड़े के जूते से काटने पर जख्म हो जाता है तो जामुन की गुठली पानी में पीसकर लगाने से जख्म ठीक हो जाता है।
  12. दस्त में- जामुन की गुठली व आम की गुठली से उसकी गिरी फोड़कर निकाल लें, दोनो समभाग लेकर चूर्ण बनालें, दूध के साथ इसकी फंकी लेने से लगातार आ रही दस्तें बन्द हो जाती है।
  13. पेट में बाल या लोहे का अंश चला जाने पर पक्के जामुन खाना चाहिए, जामुन इन्हें पेट में गला देता है। जामुन खाना स्वास्थ्य वर्द्धक है।
  14. पेट के रोगों में- पन्द्रह दिन तक लगातार दिन में जामुन फल खाने से पेट के रोगों का शमन हो जाता है और मधमेह की शिकायत हो तो वह भी मिट जाती हैं।
  15. यदि गर्भवती स्त्री को अतिसार ( दस्तों) की शिकायत हो तो जामुन फल (पके हुए) खिलाने से राहत मिलती है। शांति मिलती है।
  16. बिच्छु के दंश पर- जामुन के पत्तों का रस लगाना चाहिए।
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बाबर के समय में भी था ताजमहल अर्थात तेजोमहालय !




प्रथमतः ताजमहल राज-प्रासाद होने के कारण स्मारक की भांति जन-सामान्य के लिए खुला नहीं था जैसा कि वह अब है और वह सतर्कता से आरक्षित था। वह केवल प्रतिष्ठित व्यक्तियों के लिए आमन्त्रण पर ही अधिगम्य था, या फिर विजेता के लिए। इसलिए इन दिनों के विज्ञापन एवं संचार-व्यवस्था के युग के समान कोई उसके विषय में प्रसंगों की प्राप्ति की अपेक्षा नहीं कर सकता। दूसरा उत्तर यह है कि प्राचीन और मध्ययुगीन भारत में विस्मय विमुग्ध कर देने वाले आकर्षक भवन, प्रासाद और मन्दिर इतनी अधिक संख्या में थे कि मात्र वर्णन के आधार पर उन्हें एक-दूसरे से वरीयता नहीं दी जा सकती थी। वह सब जो हम तक पहुंचा अथवा किसी यात्री द्वारा उल्लेख किया गया वह यही है कि "वे अवर्णनीय रूप से सुन्दर है" या "आश्चर्यजनक, आकर्षक, भव्य है।" 
मुस्लिम इतिहासों में एक स्पष्ट उदाहरण प्रस्तुत किया है कि मुहम्मद गजनी कहता है कि मथुरा का भव्य कृष्ण मन्दिर तो 200 वर्षों में भी पूर्ण नही हो पाया होगा और विदिशा (वर्तमान भिलसा) का मन्दिर तो 300 वर्ष में पूरा हो पाया होगा। वे जो कहते हैं, कि हमें शाहजहां से पूर्व ताजमहल के अस्तित्व का उल्लेख नहीं मिलता उनसे हम प्रतिप्रश्न करते हैं कि मुस्लिम आक्रामकों से पूर्व मथुरा और विदिशा के उन भव्य मन्दिरों का उल्लेख क्यों नहीं मिलता? इनका उत्तर सरल है। या तो पहले के विवरण उपलब्ध नहीं हैं या फिर किसी विवरण विशेष को इसलिए सुरक्षित रखने की चिन्ता नहीं की गई, क्योंकि भारत में ऐसे मन्दिरों की भरमार थी।
ताज महल की सच्चाई की कहानी
ताज महल की सच्चाई की कहानी
हमारा तीसरा उत्तर यह है कि पूर्ववर्ती इतिहास में ताजमहल एवं, अन्य भवनों के सम्बन्ध में, यद्यपि स्पष्ट उल्लेख प्राप्त होते हैं, तदपि कपटपूर्ण, पारम्परिक प्रशिक्षण द्वारा बुद्धि के कुण्ठित हो जाने के कारण हम उनके महत्व को ग्रहण करने में असमर्थ रहे। ताजमहल के सम्बन्ध में यही बात है। 

बादशाह बाबर अपने संस्मरण भाग-2, पृष्ठ 192 पर हमें बताता है "गुरुवार (10 मई 1526) को मध्याह्नोत्तर मैंने आगरा में प्रवेश किया और सुलतान इब्राहीम के प्रासाद में निवास किया।" उसके बाद पृष्ठ 251 पर बाबर आगे लिखता है- "ईद के कुछ ही दिनों बाद हमने सुलतान इब्राहीम के प्रासाद में (11 जुलाई 1526) बड़े हाल में, जो कि पत्थर के श्रृंखलायुक्त स्तम्भों से सज्जित हैं, गुम्बद की नीचे विराट भोज का आयोजन किया।"
यहाँ स्मरणणीय है कि बाबर ने दिल्ली और आगरा पर, इब्राहीम लोदी को पानीपत में पराजित करने पर, अधिकार किया था इस प्रकार उसने उन हिन्दू प्रासादों पर अधिकार लिया जिन पर एक अन्य विदेश विजेता इब्राहीम लोदी अधिकार किए हुए था। इसलिए बाबर आगरा के उस प्रासाद को जिस पर उसने अधिकार किया था, इब्राहीम का प्रासाद कहता है।
उसका विवरण देते हुए बाबर कहता है कि राजप्रासाद पत्थरों का श्रृंख्लाबद्ध स्तम्भों से सज्जित है। यह ताजमहल के स्तम्भ-पीठ के कोनों पर स्थित चार सुन्दर श्वेत स्तम्भों की ओर स्पष्ट संकेत है। फिर उसने एक भव्य महाकक्ष का विवरण दिया है जो स्पष्टतया वह कक्ष है जिसमें मुमताज और शाहजहां की बनावटी कब्रें हैं। बाबर आगे कहता है कि इसके मध्य में एक गुम्बद है। हमें विदित है कि केन्द्रीय बनावटी मकबरों वाले कक्ष में गुम्बद है। यह मध्य में स्थित माना जाता है, क्योंकि यह चारों और से इस प्रकार कमरों से घिरा हुआ है। इस प्रकार यह स्पष्ट है कि बाबर 10 मई 1526 से अपनी मृत्यु-पर्यन्त 26 दिसम्बर 1530 तक उस प्रासाद में रहा था, जो
वर्तमान में ताजमहल नाम से जाना जाता है। इसका अभिप्राय यह सिद्ध हुआ कि मुमताज(ताज की तथाकथित मलिका) की लगभग 1630 में मृत्यु से कम-से-कम 100 वर्ष पूर्व ताजमहल के अस्तित्व का स्पष्ट प्रमाण हमें उपलब्ध है। इस प्रकार के स्पष्ट उल्लेख के बावजूद भी ताजमहल से सम्बन्धित हमारे इतिहास और अन्य विवरण समस्त विश्व में बड़ी विनम्रता से दावा करते फिरते है कि दुखी शाहजहां ने एक खुले मैदान में अपनी पत्नी की मृत्यु पर उसके लिए ताजमहल नाम का एक मकबरा बनवाया।
बाबर द्वारा ताजमहल का उल्लेख करना ताजमहल के प्राचीन प्रासाद होने का चौथा स्पष्ट प्रमाण है। पहले तीन स्पष्ट प्रमाण थे- शहाजहां के दरबारी इतिहास-लेखो का यह निर्देश कि ताजमहल मानसिंह और जयसिंह का राजप्रासाद था, इसी के समान, मियां नूरुल हसन सिद्की की पुस्तक 'दि सिटी आफ ताज' के पृष्ठ 31 पर और 'ट्रेवल्स इन इंडिया' नाम पुस्तक के पृष्ठ 111 पर टैवर्नियर का वक्तव्य कि मकबरें से सम्बन्धित पूर्ण कार्य की अपेक्षा मचान बंधवाने का खर्च अधिक था, स्वीकारोक्ति है। उस वक्तव्य की विशेषता के विषय में हम पहले स्पष्ट कर चुके हैं।
बुरहानपुर के जैनाबाद में स्थित मुमताज महल का मकबरा
बुरहानपुर के जैनाबाद में स्थित मुमताज महल का मकबरा यहीं बच्चे को जन्म देते हुई थी मौत 
तब प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि जो ताजमहल शाहजहां के प्रतितामह बाबर के अधिकार में था, किस प्रकार इस परिवार के अधिकार से निकलकर शहाजहां के समय में जयसिंह के अधिकार में आया? इसका स्पष्टीकरण यह है कि बाबर के पुत्र हुमायूं को अपने पिता बाबर की विजयों के लाभ से वंचित होकर उसे भारत छोड़कर भगोड़े की तरह भागना पड़ा था। वह पुनः भारत तो लौटा किन्तु अपनी दिल्ली विजय के 6 मास के भीतर ही परलोक सिधार गया। इसलिए बाबर की मृत्यु के तुरन्त बाद अनेक क्षेत्र, नगर और भवन हिन्दुओं के अधिकार में आ गए। इनमें फतेहपुर सीकरी, आगरा और ताजमहल थे। यह स्मरणीय है कि बाबर के पौत्र अकबर को पुनः स्वयं नए सिरे से सब कुछ करना पड़ा था। दिल्ली, आगरा और फतेहपुर सीकरी का अधिकार प्राप्त करने से पूर्व अकबर को पानीपत में हिन्दू सेनापति हेमू के विरुद्ध निर्णायक युद्ध द्वारा विजय प्राप्त करनी पड़ी थी। उस समय आगरा का ताजमहल जयपुर के शासक-परिवार के अधिकार में चला गया जिसे कालान्तर में अकबर के हरम के लिए अपनी कन्या देने को बाध्य होना पड़ा था। जयपुर राज्य-परिवार का वंशज मानसिंह जो अकबर का समकालीन और उसका गुलाम था, उस समय ताजमहल का स्वामी था, और बादशाहनामा के अनुसार मानसिंह के पौत्र जयसिंह से मुमताज को दफनाने के बाद ताजमहल को हथियाया गया था।

विंसेंट स्मिथ हमें बताता है- " बाबर के संघर्षमय जीवन का उसके आगरा स्थित उद्यान-प्रासाद में शातिंमय अन्त हुआ।" पुनः यह एक ज्वलन्त प्रमाण है कि बाबर का अन्त ताजमहल में हुआ। आगरा में केवल ताजमहल ही एक ऐसा प्रासाद है, जिसमें सुरम्य उद्यान था। बादशाहनामा इसका उल्लेख 'सब्ज जमीनी' के रूप में करता है जिसका अभिप्राय होता है हरा-भरा, विस्तीर्ण वैभवशाली, रसीला, प्राचीरों से घिरा उद्यान।
मुमताज़ की क़ब्र भी बुरहानपुर
मुमताज़ की क़ब्र भी बुरहानपुर
बाबर भारत में नवागुन्तुक होने के कारण अपनी पश्चिम एशिया स्थित मातृभूमि के प्रति अनुरक्त था, इसलिए उसने इच्छा व्यक्त की थीं कि उसको काबुल के समीप दफनाया जाय। तदनुसार उसका शव वहां ले जाया गया। यदि उसकी ऐसी इच्छा न होती तो सम्भव है मुगलों की भारत में अपहरणकारी प्रवृत्ति के अनुसार ताजमहल में ही, जहां उसकी मृत्यु हुई थी, उसे दफनाया जाता। यदि वह वहां दफनाया गया होता तो हमारा इतिहास ये बतलाता कि हुमायूं ने अपने पिता के प्रति महान् धार्मिक आदरभावना के वशीभूत उसके लिए ताजमहल जैसे अद्भुत मकबरे का निर्माण कराया।
यदि मुमताज की अपेक्षा शाहजहां की दूसरी पत्नी सरहन्दी बेगम, जो कि वर्तमान में ताजमहल के बाहरी भाग मे दफन है, वह 1630 में मरी होती तो तब कदाचित् यह कहा जाता कि हथियाए गए हिन्दू प्रासाद के गुम्बद वाले केन्द्रीय कक्ष में उसे दफनाया गया था। उस स्थिति में हमारा इतिहास मुमताज की अपेक्षा सरहन्दी बेगम के प्रति शाहजहां के प्रेम का कपोल-कल्पित वर्णन करता।
इस प्रकार ताजमहल एक बार सन् 1530 में बाबर का मकबरा बनने से बचा और फिर एक बार 100 वर्ष के बाद सरहन्दी बेगम के मकबरे के रूप में भी भावी पीढ़ी में प्रख्यात होने से बचा। यदि ऐसा हो गया होता तो हमारा इतिहास और पर्यटक-साहित्य हुमायूं के अपने पिता बाबर के प्रति अथवा शाहजहां का मुमताज की अपेक्षा सरहन्दी बेगम के प्रति अगाध प्रेम का कोई-न-कोई उपयुक्त स्पष्टीकरण रच ही लेता। ऐसी वे कपोल-कल्पानाएं हैं जो वर्तमान मध्यकालीन इतिहास की पुस्तकें अपने काल्पनिक अनुमानों को प्रमाणित करने के लिए दुलकी चाल हैं। प्रथम मुगल बादशाह बाबर ताजमहल में रहा था और वहीं उसकी मृत्यु हुई। इसकी पुष्टि बाबर की पुत्री गुलबदन बेगम द्वारा लिखित हुमायूंनामा, एनैट एसव्म् बेबेरिज द्वारा अंग्रेजी में अनूदित हुमायूं के इतिहास, से भी होती है।
गुलबदन बेगम के इतिहास के अनूदित संस्करण पृष्ठ 109 और 110 पर अंकित है कि (बाबर की) " मृत्यु सोमवार 26 दिसम्बर, 1530 को हुई। उन्होंने हमारी बाबुओं और माताओं का इस बहाने से वहां से बाहर भेज दिया कि चिकित्सक देखने के लिए आ रहे हैं सब उठ गए। वे सभी बेंगमों और मेरी माताओं को बड़े भवन में ले गए।" (पृष्ठ 109 पर अंकित टिप्पणी में 'ग्रेट-हाउस को प्रासाद के रूप में लिखा है।) "मृत्यु को गुप्त रखा गया। शुक्रवार 29 दिसंबर, 1530 को हुमायूं सिहासन पर बैठा" पृष्ठ 110 पर अंकित टिप्पणी कहती है- " बाबर का शव पहले वर्तमान ताजमहल से नदी के दूसरी और राम अथवा आराम बाग में रखा गया था। बाद में उसको काबुल ले जाया गया।"
उपरिलिखित उ़द्धरण से स्पष्ट है कि बाबर की मृत्यु ताजमहल में हुई थी। जब यह विदित हो गया कि उसकी मृत्यु हो गई तो हरम की औरतें जो अन्यत्र रहती थीं, प्रासाद अर्थात् ताजमहल में लाईं गयीं। बाद में हुमायूं को ताजमहल में मुकुट पहनाना था इसलिए बाबर का शव ताजमहल से उठाकर यमुना नदी के उस पार राम बाग अथवा आराम बाग नामक प्रासाद में ले जाया गया। इतिहासकारों और पुरातत्त्ववेत्ताओं की यह धारणा कि आगरा के राम बाग प्रासाद का बाबर की मृत्यु से कुछ-न-कुछ सम्बन्ध अवश्य है, उसका इस उद्धरण से स्पष्टीकरण होता है।
हिन्दल (बाबर का पुत्र और बादशाह हुमायूँ का भाई) के विवाह के भोज के सम्बन्ध में गुलबदन बेगम लिखती है-" रत्नजडि़त सिंहासन जिसे मेरी मलिका ने भोज के लिए दिया उसे भव्य भवन के सामने वाले चौक में रखा गया और एक स्वर्ण-जडि़त दीवान उसके सामने रखा गया (जिस पर) बादशाह सलामत और उनकी प्रियतमा साथ-साथ बैठ, भवन (रहस्यमय) के अष्टकोणीय कक्ष में एक रत्नजडि़त सिंहासन स्थापित था और इसके ऊपर तथा नीचे स्वर्ण-जडि़त झालरें और मोती की लडि़याँ लटक रही थीं।"
रहस्यमय भवन का अष्टकोषीय कक्ष स्पष्टतया ताजमहल का वह मध्यवर्ती कक्ष है जिसमें 100 वर्ष बाद शाहजहां ने मुमताज की कब्र बनवाई और 1666 में ओरंगजेब ने अपने पिता बादशाह शाहजहां को दफनाया। ताजमहल रहस्यमय भवन इसलिए कहलाता है क्योंकि इसका मूल शिव-मन्दिर जैसा प्रतीत होता है। वही भवन विशाल भवन भी कहलाता है, क्योकि यह भव्य राजकीय आवास था। 
सुप्रसिद्ध इतिहासविद् प्रो.पी. एन. ओक ने अपनी पुस्तक "ताजमहल मन्दिर भवन है" से जनजागरण हेतु प्रकाशित 
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बकुची - कुष्ठ रोग, दंत कृमि, श्वास, पीलिया एवं अर्श की रामबाण औषधि



बकुची (Psoralea corylifolia)
बकुची (Psoralea corylifolia) के छोटे-छोटे पादप, वर्षा ऋतु में समस्त भारत वर्ष में अपने आप उगते हैं तथा जगह-जगह इसकी खेती भी की जाती है। साधारणतया बाकुची के पौधे एक वर्षायु होते हैं, परन्तु उचित देखभाल करने से 4-5 वर्ष तक जीवित रह जाते हैं। औषधि कर्म में इसके बीज और बीजों से प्राप्त तेल का व्यवहार किया जाता है। इस पर शीतकाल में पुष्प लगते हैं तथा ग्रीष्म ऋतु में पुष्प फलों में बदल जाते हैं।
Bakuchi for a perfect Skin
बाह्मस्वरूप - बाकुची के 1-4 फुट तक ऊंचे सीधे खडे़ कोमल पौधे होते हैं, परन्तु शाखाएं अपेक्षाकृत कड़ी और ग्रंथि बिन्दुकित होती हैं। पत्रा साधारण, सवृन्त, 1-3 लम्बी गोलाकार, प्रायः चिकनी दोनों पृष्ठों पर कृष्ण बिन्दुकित होती है। पुष्प नीली झाई लिये, हलके बैंगनी रंग के पत्राकोण से उद्भूत, मंजरियों पर 10-30 की संख्या में लगते हैं। फली छोटी-छोटी काले रंग की, लम्बी, गोल, चिकनी होती हैं तथा प्रत्येक फली में एक बीज, फली के ही आकार का कृष्ण वर्ण एवं बेल फल की भांति सुगन्धित होता है।
रासायनिक संघठन - बाकुची के बीजों में एक उड़नशील तेल, एक राल या रेबिन, एक स्थिर तेल तथा दो क्रिस्टलाइन सत्व सोरालेन पाये जाते हैं। फल के छिलके से सोरोलिडिन सत्व भी प्राप्त किया गया है। बाकुची के कुष्ठघ्न एवं कृमिघ्न कर्म इन्हीं दोनों तत्वों के कारण होते हैं।
विभिन्न रोगों में लाभ 
गुणधर्म - बाकुची मधुर, कड़वी, पाक में तिक्त, कटु रसायन, बिष्टम्भनाशक, शीतल, रुचिकारी, दस्तावर,रूखी, हृदय को हितकारी और कफ रक्तपित्त, श्वास, कोढ़, प्रमेह, ज्वर तथा कृमि को नष्ट करने वाली है। 1 फल पित्तवर्धक, केश तथा त्वचा को हितकारी, चरपरा, कुष्ठ, कफ वात, वमन, श्वास, खांसी शोथ, आम और पांडु रोग विनाशक है।
दंतकृमि - बाकुची की जड़ को पीसकर जरा सी मात्रा में भुनी हुई फिटकरी मिला लें, सुबह शाम इससे मंजन करने से दांत के कीड़े नष्ट हो जायेंगे।
श्वास - आधा ग्राम बीजों का चूर्ण अदरक के रस के साथ दिन में 2-3 बार सेवन करने से खांसी में आराम मिलता है। कफ ढीला होकर निकल जाता है।
दस्त और पेचिश - बाकुची के पत्तों का साग सुबह शाम नियमित रूप से कुछ सप्ताह खिलाते रहने से बहुत लाभ होता है।
पीलिया - 10 मिलीलीटर पुनर्नवा के रस में आधा ग्राम पिसी हुई बाकुची के बीजों का चूर्ण मिलाकर सुबह शाम प्रतिदिन सेवन करने से लाभ होता है। ज्यादा बाकुची का सेवन वमन पैदा करता है।
अर्श - 2 ग्राम हरड़, 2 ग्राम सोंठ और 1 ग्राम बाकुची के बीज लेकर पीस लें, आधे चम्मच की मात्रा में गुड़ के साथ सुबह शाम सेवन करने से लाभ मिलेगा।
बांझपन - मासिक धर्म से शुद्ध होने के पश्चात बाकुची के बीजों को तेल में पीसकर योनि में रखने से गर्भधारण करने की क्षमता समाप्त हो जाती है।
गांठ -  बाकुची के बीजों को पीसकर गांठ पर बांधते रहने से गांठ बैठ जायेगी।

कुष्ठ रोग
  1. बाकुची के बीज चार भाग और तबकिया हरताल एक भाग, दोनों को चूर्ण कर गोमूत्रा में घोंटकर श्वेत दागों पर लगाने से सफेद दाग दूर हो जाते हैं।
  2. बाकुची और पवाड़ समभाग लेकर सिरके में पीसकर सफेद दागों पर लगाने से दाग में लाभ होता है।
  3. बाकुची, गंधक व गुड्मार को बराबर की मात्रा में लेकर तीनों का चूर्ण कर लें तथा 12 ग्राम चूर्ण को रात्रि में जल में भिगो दें तथा प्रातःकाल निथरा हुआ जल सेवन कर लें तथा नीचे के तल में जमा पदार्थ श्वेत दागों पर लगाते रहने से श्वेत कुष्ठ नष्ट हो जाता है।
  4. बाकुची तेल दो भाग, तुवरक तेल दो भाग, चंदन तेल एक भाग मिलाकर रख लें, इस तेल के लगाने से सामान्य त्वक् रोग तथा श्वेत कुष्ठ आदि रोग नष्ट होते हैं।
  5. शुद्ध बाकुची चूर्ण एक ग्राम की मात्रा में आंवले अथवा खैर त्वक के 100 मिलीग्राम क्वाथ के साथ सेवन करने से श्वित्र रोग नष्ट हो जाता है।
  6. बाकुची को तीन दिन तक दही में भिगोकर पिफर सुखाकर रख लें। इसका आतशी शीशी में तेल निकाल लें। इस तेल में नौसादर मिलाकर श्वेत दागों पर लेप करें।
  7. बाकुची, कलौंजी, धतूरे के बीज समभाग लेकर आक के पत्तों के रस में पीसकर श्वेत दागों पर लगाने से श्वेत कुष्ठ नष्ट हो जाता है।
  8. बाकुची, इमली, सुहागा और अंजीर मूलत्वक् समभाग लेकर जल में पीसकर सफेद दागों पर लेप करने से श्वित्र रोग नष्ट हो जाता है।
  9. बाकुची, पवांड, गेरू समभाग लेकर कूट पीसकर अदरक के रस में खरल कर सफेद दागों पर लगाकर धूप सेंकने से श्वेत कुष्ठ नष्ट हो जाता है।
  10. बाकुची, गेरू और गंधक समभाग लेकर, पीसकर अदरक के रस में खरल कर 10-10 ग्राम की टिकिया बनाकर एक टिकिया रात्रि को 30 मिली जल में डाल दें प्रातः ऊपर का स्वच्छ जल पी लें तथा नीचे की बची हुई औषधि को श्वेत दागों पर मालिश कर धूप सेंकने से श्वित्र (धवल) रोग नष्ट होता है।
  11. बाकुची, अजमोद, पवांड तथा कमल गट्टा समान भाग लेकर कूट पीस, मधु मिलाकर गोलियां बना लें। एक से दो गोली तक प्रातः सायं अंजीर मूल त्वक् क्वाथ के साथ सेवन करने से श्वेत कुष्ठ दूर होता है।
  12. शुद्ध बाकुची 1 ग्राम तथा काले तिल 3 ग्राम लेकर 2 चम्मच मधु मिला, प्रातः सायं सेवन करने से श्वित्र रोग नष्ट होता है।
  13. शुद्ध बाकुची, अंजीर की जड़ की छाल, नीम की छाल तथा पत्रा समभाग लेकर कूट पीसकर खैर छाल के क्वाथ में खरल करके रख लें। दो से पांच ग्राम तक की मात्रा जल के साथ सेवन करने से श्वेत कुष्ठ में लाभ होता है।
  14. बाकुची पांच ग्राम, केसर एक भाग लेकर दोनों को कूट पीसकर गोमूत्रा में खरल कर गोली बना लें। यह गोली जल में घिसकर लगाने से श्वित्र रोग में लाभप्रद है।
  15. बाकुची 100 ग्राम, गेरू 25 ग्राम, पवांड़ के बीज 50 ग्राम लेकर सबको कूट पीसकर वस्त्रा पूत चूर्ण कर भांगरे के रस की 3 भावनाएं देकर रख लें। प्रातः सायं गोमूत्रा में घिसकर लगाने से श्वित्र रोग में लाभ होगा।
  16. बाकुची चूर्ण को अदरक के रस में घिसकर लेप करने से श्वित्र रोग नष्ट होता है।
  17. बाकुची दो भाग, नीला थोथा तथा सुहागा एक एक भाग लेकर कपड़छान चूर्ण कर एक सप्ताह भांगरे के रस में घोंटकर रख लें। इसको नींबू स्वरस में मिला श्वित्र पर लगाने से श्वेत दाग नष्ट होते हैं। यह प्रयोग तीक्ष्ण है, अतः इसके प्रयोग के फलस्वरूप फाले होने पर यह प्रयोग बन्द कर देवें।
  18. शुद्ध बाकुची चूर्ण की एक ग्राम मात्रा, बहेड़े की छाल तथा जंगली अंजीर मूल छाल के क्वाथ में मिलाकर निरन्तर सेवन करते रहने से श्वित्र तथा घोर पुंडरीक में लाभ होता है।
  19. बाकुची हल्दी, अर्कमूलत्वक् समान भाग लेकर महीन चूर्ण कर कपड़छान कर लें। इस चूर्ण को गोमूत्रा या सिरका में पीसकर श्वित्र के दागों पर लगाने से श्वेत दाग नष्ट हो जाते हैं। यदि लेप उतारने पर जलन हो तो तुबरकादि तेल लगाएं।
  20. बाकुची एक किलोग्राम को जल में भिगोकर, छिलके रहित करके पीसकर 8 किलो गौदुग्ध तथा 16 लीटर जल में पाक करें। जल के जल जाने पर दूध मात्रा लेकर उसमें जामन लगाकर जमा दें। मक्खन निकालकर उसका घी बना लें। एक चम्मच घी की मात्रा मधु मिलाकर चाटने से श्वेत कुष्ठ में लाभ होता है।
  21. बाकुची तेल की 10 बूंदे बताशे में डालकर प्रतिदिन कुछ दिनों तक सेवन करने से श्वित्र रोग में लाभ होता है।
  22. बाकुची को गोमूत्र में भिगोकर रखें तथा तीन-तीन दिन बाद गोमूत्रा बदलते रहें, इस तरह कम से कम 7 बार करने के बाद उसको छाया मे सुखाकर पीसकर रखें। उसमें से 1-1 ग्राम सुबह शाम ताजे पानी से खाने से एक घंटा पहले सेवन करें, इससे श्वित्र (सफेद दाग) में निश्चित रूप से लाभ होता है, अनुभूत है।
  23. 1 ग्राम बाकुची और 3 ग्राम काले तिल को मिलाकर एक वर्ष तक दिन में दो बार सेवन करने से कुष्ठ रोग नष्ट होता है।
महत्वपूर्ण लेख
  1. बकुची - कुष्ठ रोग, दंत कृमि, श्वास, पीलिया एवं अर्श की रामबाण औषधि
  2. बढ़ते बच्चों का दैनिक आहार (The Daily Diet of Growing Children)
  3. उत्तम रोगनाशक रामबाण औषधि - रससिंदूर (Ras Sindoor)
  4. गुर्दे की पथरी का औषधीय चिकित्सा (Pharmacological Therapy of Kidney Stones)
  5. स्वप्नदोष रोकने का आयुर्वेदिक एवं प्राकृतिक इलाज
  6. हाथ और बाँह की सुन्दरता के लिए प्राकृतिक उपचार
  7. उच्च रक्तचाप के लिए घरेलू उपचार
  8. सतावर के प्रमुख औषधीय उपयोग
  9. रात्रि भोजन एवं शयन के मुख्य नियम
  10. मधुमेह नाशिनी जामुन के अन्य लाभ
  11. स्वास्थ्य के लिए उपयोगी है बरगद, पीपल और गूलर
  12. जटिल समस्या के लिए अचूक औषधि है अलसी
  13. औषधीय गुणों से युक्त अदरक
  14. हिस्टीरिया (Hysteria) : कारण और निवारण
  15. जड़ी बूटी ब्राह्मी - एक औषधीय पौधा
  16. घुटनों के दर्द का आयुर्वेदिक इलाज


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बढ़ते बच्चों का दैनिक आहार (The Daily Diet of Growing Children)



सही खुराक व खेलकूद बच्चों की ग्रोथ के लिए बहुत जरूरी है। आजकल बच्चों को न तो संतुलित आहार ही मिल रहा है और न ही खेलने-कूदने का पर्याप्त समय ही, जिससे उनका शारीरिक व मानसिक विकास किसी न किसी रूप में अवश्य ही प्रभावित होता है।
A Healthy Approach to Your Child's Diet...
बढ़ती उम्र में संतुलित भोजन की अधिक आवश्यकता होती है। क्योंकि लड़कों में 50 प्रतिशत मांसपेशियां व लड़कियों में इस उम्र में चर्बी जमा होती है। संतुलित आहार मोटापे, हाई ब्लडप्रेशर, दिल के रोग, शुगर, हड्डियों की कमजोरी, एनीमिया व विटामिन की कमी आदि से बचाता है।
भोजन की मात्रा कार्य के आधार पर होनी चाहिए। अगर थोड़ा काम करके पूरी खुराक या ज्यादा खुराक बच्चा लेगा तो वह मोटा हो जायेगा। अंदर जाने वाली कैलोरीज व कार्य के रूप में बाहर आने वाली कैलोरीज समान होनी चाहिए।
 Secrets of the benefits of the fruit on health
संतुलित भोजन में 50 प्रतिशत सलाद, सब्जियां व फल होने चाहिए। 25 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेट जैसे रोटी, चावल, व 25 प्रतिशत प्रोटीन जैसे दाल, दूध, पनीर आदि होना चाहिए। भोजन में अधिक फाइबर होने चाहिए व सॉफ्ट ड्रिंक को भोजन में कोई जगह न दें।
पौष्टिक और संतुलित भोजन
  • कार्बोहाइड्रेट:- कार्बोहाइड्रेट भोजन में सबसे अधिक होता है व ऊर्जा के सर्वाधिक होता हैं  फल, सब्जियां, मक्का, गेहूं, चावल। बच्चों के भोजन में इन खाद्य पदार्थों को शामिल करें।
  • वसा:- वसा एसैंशियल फैटी एसिड का खजाना होता है। अनसैच्युरेटिड फैट बच्चों को दें जैसे सरसों का तेल, मूंगफली का तेल, सोयाबीन का तेल आदि। सैच्युरेटिड़ फैट से कोलेस्ट्रोल बढ़ता है।
  • प्रोटीन:- बढ़ते बच्चों को प्रोटीन प्रतिदिन देना चाहिए, जैसे दालें, फलियां, सोयाबीन, पनीर, दूध, दही आदि डेयरी प्रोडक्ट्स इसके प्रमुख होता हैं।
  • आयरन:- आयरन की कमी बढ़ती उम्र में एनीमिया की वजह बन सकती है। आयरन हरी पत्तेवाली सब्जियों, अनाज, फलियों, ड्राई प्रूफड्स आदि से प्राप्त होता है। इनका सेवन बच्चों को पर्याप्त मात्रा में कराएं।
  • कैल्सियम:- हड्डियों की ग्रोथ बढ़ती उम्र में होती है। इस समय एक दिन में 1300 मिग्रा. कैल्सियम की आवश्यकता होती है, पर खाने में कैल्सियम की मात्रा इतनी नहीं होती है और कोल्ड ड्रिंक्स तथा कॉफ़ी ज्यादा पीने से कैल्सियम की और कमी हो जाती है। कैल्सियम दूध, पनीर, दही, केला व डेयरी उत्पाद से प्राप्त होता है।
  • जिंक:- जिंक बढ़ते बच्चों की ग्रोथ के लिए बहुत आवश्यक है। दालें, पनीर, दूध आदि से आसानी से इसे प्राप्त किया जा सकता है। बच्चों के भोजन में इन चींजों को शामिल करें।

नाश्ता जरूर दें:- नाश्ते का जीवन में सर्वाधिक महत्व है। यह दिमाग के लिए जरूरी है। नाश्ता करने से चुस्ती-पफुर्ती बनी रहती है और शरीर मोटा नहीं होता है। नाश्ता न करने से मोटापा घटने के बजाय और बढ़ जाता है। नाश्ता हल्का और पौष्टिक दें।
  • नाश्ते में पफास्ट फ़ूड को शामिल न करें। इनमें कैलोरीज अधिक होती हैं और फाइबर्स न के बराबर होते हैं। इन्हें खाने से मोटापा, उच्च रक्तचाप, दिल के रोग और मधुमेह की बीमारी आदि हो सकती है। सॉफ्ट ड्रिंक्स से दांत खराब होते हैं और हड्डियां भी कमजोर होती हैं। इनमें मिले केमिकल अन्य रोग भी पैदा करते हैं।
  • फ्रूट्स चाट, अंकुरित दालों की चाट, ड्राई फ्रूट्स की चाट बनाकर बच्चों को नाश्ते में दे सकते हैं।
  • कम फैट व कम ऊर्जा वाली चीजें ही बच्चों को नाश्ते में दें।
  • बच्चों को टी. वी. अधिक देर तक न देखने दें क्योंकि वे बैठे-बैठे जंक फ़ूड खाते व कोल्ड ड्रिक्स पीते हैं। और ऊर्जा का व्यय नहीं हो पाता है। अगर टी. वी. देखना है तो खेलना-कूदना भी जरूरी है। प्रतिदिन 30 से 40 मिनट तक शारीरिक श्रम के रूप में बच्चों को खेलने-कूदने दें और पसीना आने दें। पसीना आना बहुत जरूरी है। इससे शरीर निरोग हो जाता है और बच्चों की नींद भी गहरी आती है और नींद अच्छी आने से बच्चों का पाचन संस्थान ही नहीं बल्कि शारीरिक व मानसिक विकास भी समुचित रूप से होता है। खुराक व श्रम के संतुलन से ही बढ़ती उम्र के बच्चे स्वस्थ रहते हैं।
महत्वपूर्ण लेख 


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घुटनों के दर्द - गठिया का आयुर्वेदिक इलाज



आपके घुटनो में कैसा भी दर्द हो इसे मात्र सात दिनों में दूर करने की अचूक घरेलु औषधि मौजूद है। आज के समय में घुटनो का दर्द उम्र बढ़ने के साथ साथ बढ़ता रहता है और कई बार घुटनो में दर्द चोट लगने की वजह से या फिर गठिया रोग के होने की वजह से भी होता है। लेकिन कई लोग ये कहते है की घुटनो की ग्रीस ख़त्म हो गए इसलिए हमें दर्द हो रहा है या फिर यूरिक एसिड का शरीर में जयादा बढ़ जाना भी इसकी दर्द की वजह है। कई बार तो घुटनो का दर्द इतना जयादा बढ़ जाता है की वो सहन भी नहीं होता है और व्यक्ति का बुरा हाल हो जाता है। व्‍यायाम करने से हम इस दर्द से कुछ हद तक मुक्त हो सकते है क्योकि इससे एक तो घुटनो की जकड़न खत्‍म हो जाती है और दूसरे घुटनो की गति को आसान कर देती है जिससे दर्द भी कम हो जाता है।
घुटनों के दर्द - गठिया का आयुर्वेदिक इलाज
जब हमारे घुटने सही काम नहीं करते तो हमें चलने फिरने आदि में दिक्कत हो जाती है और घुटनो को मोड़ने और सीधे करने में भी बहुत दिक्‍कत होती है। घुटनो पर लालिमा व सूजन बनी रहती है। इस कारण से घुटनो को मोड़ते समय चटकने व टूटने जैसी आवाज आने लगती है। जिससे घुटने में दर्द होता है उन पैरो में झुनझुनी होने लगती है। आर्युवेद मे घुटनो में होने वाले दर्द से बचने के लिएअनेक अचूक उपाय मौजूद है। जिससे आपके घुटनो के दर्द को कम ही नहीं करता बलिकी आपके दर्द को जड़ से ख़त्म कर देता है। तो आइये जानते है वो कौन सा उपाय है। इसके लिए जो सामान चाहिए वो बहुत ही आसानी से आपकी किचन में मिल जायेगा : एक छोटा चम्मच हल्दी जोकि एक एंटीसेप्टिक व एंटीबायोटिक का काम करती है, एक चम्मच शहद और चुटकी भर चुना इन तीनो सामान मात्रा को आपस में अच्छे से मिला कर थोड़ा सा पानी डालकर पेस्ट जैसा बना लेना है। आप इस सामान को थोड़ा ज्‍यादा भी ले सकते अगर आपके घुटने पर ये कम पड़ रहा हो। अब इस पेस्ट को अपने घुटनो पर हल्‍के हल्‍के दस मिनट तक मालिश करना है और ये उपाय आपके रात को सोते समय करना है। अब जब आप मालिश कर ले तो इस पर कोई सूती कपडा या फिर बैंडेज बांधकर सो जाये और सुबह गुनगुने पानी से घुटने को धो दे। इस उपाय से आपका दर्द कहला जायेगा और ये उपाय आपको लगातार सात दिनों तक करना है और आपका दर्द कैसा भी हो जड़ से ख़तम हो जायेगा। आपको कुछ बातो का ध्‍यान रखना है जैसे वसा युक्त व प्रोटीनयुक्त खाना खाने से परहेज करे। जैसे-
  1. आलू, शिमला मिर्च, हरी मिर्च, लाल मिर्च, अत्‍यधिक नमक, बैगन आदि न खाये।
  2. घुटनो की गर्म व बर्फ के पैड्स से सिकाई करे।
  3. घुटनो के निचे तकिया रखे।
  4. वजन कम रखे इसे बढ़ने न दे।
  5. ज्‍यादा लम्बे समय तक खड़े न रहे।
  6. आराम करे दर्द बढ़ाने वाली गति विधिया न करे इससे आपका दर्द और बढता जायेगा और आप इसे सहन नहीं कर पाएंगे।
  7. सुबह खली पेट तीन से चार अखरोट खाये, विटामिन इ युक्त खाना खाये धुप सेके।
इन बातो को ध्‍यान रखने के साथ साथ इस उपाय को करे तो आपके घुटनो का दर्द जड़ से ख़त्म हो जायेग।

गठिया रोग के लक्षण और उसका सरल घरेलू उपचार Gathiya Bai Ka Ayuvedic Upchar
गठिया को आयुर्वेद में संधि शोथ यानि "जोड़ों में दर्द" नाम दिया कहा जाता है। आधुनिक चिकित्सा के अनुसार खून में यूरिक एसिड की अधिक मात्रा होने से गठिया रोग होता है। जैसे जैसे उम्र बढ़ती है गठिया की समस्या भी बढ़ती चली जाती है। आज कल हमारी दिनचर्या हमारे खान-पान से गठिया का रोग 45 -50 वर्ष के बाद बहुत से लोगो में पाया जा रहा है। गठिया में हमारे शरीर के जोडों में दर्द होता है, गठिया के पीछे यूरिक एसीड की बड़ी भूमिका रहती है। 
गठिया के प्रकार - संधिशोथ दो प्रकार के होते हैं :
  1. तीव्र संक्रामक संधिशोथ - किसी भी तीव्र संक्रमण के समय यह शोथ हो सकता है।
  2. जीर्ण संक्रामक (chronic invective) संधिशोथ - यह शोथ प्राय: शरीर के अनेक अंगों पर होता है। पाइरिया, जीर्ण उंडुक शोथ, जीर्ण पित्ताशय शोथ, जीर्ण वायुकोटर शोथ, जीर्ण टांसिल शोथ, जीर्ण ग्रसनी शोथ (pharyngitis) इत्यादि।

घुटनों के दर्द को ठीक करने के आसान घरेलू उपाय
घुटनों के दर्द का आयुर्वेदिक इलाज घुटने के दर्द के लिए राज का रामबाण इलाज़

घुटनों के दर्द का कारण
  1. मानव शरीर में पैर जितने ही महत्त्वपूर्ण हैं, उतने ही उनके बीच में बने घुटने। इन्ही से पैरों को मुड़ने की क्षमता मिलती है और घुटनों में कई कारणों से दर्द होने लग जाता है। शरीर के जोड़ों में सूजन उत्पन्न होने पर गठिया होता है या कहे कि जब जोड़ों में उपास्थि (कोमल हड्डी) भंग हो जाती है। शरीर के जोड़ ऐसे स्थल होते हैं जहां दो या दो से अधिक हड्डियाँ एकदूसरे से मिलती हैं जैसे कि कूल्हे या घुटने। उपास्थि जोड़ों में गद्दे की तरह होती है जो दबाव से उनकी रक्षा करती है और क्रियाकलाप को सहज बनाती है। जब किसी जोड़ में उपास्थि भंग हो जाती है तो आपकी हड्डियाँ एक दूसरे के साथ रगड़ खातीं हैं, इससे दर्द, सूजन और ऐंठन उत्पन्न होती है।
  2. सबसे सामान्य तरह का गठिया हड्डी का गठिया होता है। इस तरह के गठिया में, लंबे समय से उपयोग में लाए जाने अथवा व्यक्ति की उम्र बढ़ने की स्थिति में जोड़ घिस जाते हैं जोड़ पर चोट लग जाने से भी इस प्रकार का गठिया हो जाता है। हड्डी का गठिया अक्सर घुटनों, कूल्हों और हाथों में होता है। जोड़ों में दर्द और स्थूलता शुरू हो जाती है। समय-समय पर जोड़ों के आसपास के ऊतकों में तनाव होता है और उससे दर्द बढ़ता है।
  3. गठिया उस समय भी हो सकता है जब प्रतिरोधक क्षमता प्रणाली, जो आमतौर से शरीर को संक्रमण से बचाती है, शरीर के ऊतकों पर वार कर देती है। इस प्रकार की गठिया में रियुमेटायड गठिया सबसे सामान्य गठिया होता है। इससे जोड़ों में लाली आ जाती है और दर्द होता है और शरीर के दूसरे अंग भी इससे प्रभावित हो सकते हैं, जैसे कि हृदय, पेशियाँ, रक्त वाहिकाएँ, तंत्रिकाएं और आँखें।
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गठिया क्या होता है?
गठिया एक लंबे समय तक चलने वाली जोड़ों की स्थिति होती है जिससे आमतौर पर शरीर के भार को वहन करने वाले जोड़ जैसे घुटने, कूल्हे, रीढ़ की हड्डी तथा पैर प्रभावित होते हैं। इसके कारण जोड़ों में काफी अधिक दर्द, अकड़न होती है और जोड़ों की गतिविधि सीमित हो जाती है। समय के साथ साथ गठिया बदतर होता चला जाता है। यदि इसका उपचार नहीं किया जाता है, तो घुटनों के गठिया से व्यक्ति का जीवन काफी अधिक प्रभावित हो सकता है। गठिया से पीडि़त व्यक्ति अपनी रोजमर्रा की गतिविधियां करने में समर्थ नहीं हो पाते और यहां तक कि चलने-फिरने जैसा सरल काम भी मुश्किल लगता है। इस प्रकार के मामलों में, क्षतिग्रस्त घुटने को बदलने के लिए डॉक्टर सर्जरी कराने के लिए कह सकता है।

क्यों होता है गठिया
अनहेल्दी फूड, एक्सरसाइज की कमी और बढ़ते वजन की वजह से घुटनों का दर्द भारत जैसे देशों में एक बड़ी समस्या का रूप लेता जा रहा है। 40-45 की उम्र में ही घुटनों में दिक्कतें आने लगी हैं। सर्वेक्षण कहते हैं कि दुनिया में करीब 40 प्रतिशत लोग घुटनों में दर्द से परेशान हैं। इनमें से लगभग 70 प्रतिशत आर्थराइटिस जैसी बीमारियों से भी जूझ रहे हैं। इनमें से 80 फीसदी अपने घुटनों को आसानी से मोड़ तक नहीं सकते। घुटनों की खराबी के शिकार 25 फीसदी लोग अपने रोजमर्रा के कामों को भी आसानी से नहीं कर पाते हैं। भारत में यह समस्या काफी गंभीर है। घुटनों का दर्द काफी हद तक लाइफ स्टाइल की देन है। यदि लाइफ स्टाइल और खानपान को हेल्दी नहीं बनाया तो यह समस्या और भी गंभीर हो सकती है। घुटने पूरे शरीर का बोझ सहन करते हैं। इन्हें बचाने का तरीका हेल्दी लाइफ स्टाइल, एक्सरसाइज और हैल्दी खानपान है। खाने में कैल्शियम वाला भोजन सही मात्रा में लें, सब्जियाँ जरूर खायें, फैट और चीनी से परहेज करें और मोटापे का पास भी न फटकने दें।

क्या वजन कम करने से गठिया में लाभ मिलता है?
  1. घुटनो के गठिया से पीडि़त व्यक्ति के लिए निर्धारित वजन से अधिक वजन होना या मोटापा घुटनों के जोड़ों के लिए हानिकारक हो सकता है। अतिरिक्त वजन से जोड़ों पर अतिरिक्त दबाव पड़ता है, मांसपेशियों तथा उसके आसपास की कण्डराओं (टेन्डन्स) में खिंचाव होता है तथा इसके कार्टिलेज में टूट-फूट द्वारा यह स्थिति तेजी से बदतर होती चली जाती है। इसके अलावा, इससे दर्द बढ़ता है जिसके कारण प्रभावित व्यक्ति एक सक्रिय तथा स्वतंत्र जीवन जीने में असमर्थ हो जाता है।
  2. यह देखा गया है कि मोटे लोगों में वजन बढ़ने के साथ साथ जोड़ों (विशेष रूपसे वजन को वहन करने वाले जोड़) का गठिया विकसित करने का जोखिम बढ़ जाता है। इसलिए, यह महत्वपूर्ण है कि मोटे लोगों को या तो अपने वजन को नियंत्रित करने अथवा उसे कम करने केलिए उचित कदम उठाने चाहिए।
  3. गठिया से पीडि़त मोटापे/अधिक वजन से पीडि़त लोगों में वजन में 1 पाउंड (0.45 किलोग्राम) की कमी से, घुटने पर पड़ने वाले वजन में 4 गुणा कमी होती है। इस प्रकार वजन में कमी करने से जोड़ पर खिंचाव को कम करने, पीड़ा को हरने तथा गठिया की स्थिति के आगे बढ़ने में देरी करने में सहायता मिलती है।
गठिया रोग में रामबाण है अदरक का
हम सब अदरक के गुणों का कई सालों से भरपूर फयदा उठाते आ रहे है। अदरक बहुत सारी बीमारियों से हमारी रक्षा करता है और बहुत सारी शारीरिक समस्‍याओं मेरामबाण की तरह काम करता है। यह हम भली भांति जानते है, अदरक से गठिया रोग को जड़ से खत्म किया जा सकता है। अदरक के इस पानी से मसाज करने से रक्‍त प्रवाह (blood circulation) में भी सुधार आता है। गठिया जैसे जटिल रोगों को जड़ से खत्म करने के लिए अदरक के दो प्रयोग है-
  1. पहले ½ चम्मच अदरक ले और इसको पीस लें और अब इसमे 150 ml गर्म पानी डाल कर अच्छी तरह से मिक्स कर लें और ठंडा होने के बाद इस मिश्रण का सेवन करें। दिन में दो बार लगातार 1 महीने तक इस मिश्रण का सेवन करें इससे इस रोग आपको बहुत अधिक लाभ होगा और आराम की साँस ले पाएंगे।
  2. 30-40 ग्राम सूखा हुआ अदरक ले और अब इसको कपड़े में लपेट कर थैली बना लें अब गर्म पानी ले और इस अदरक की थैली को गर्म पानी में 5 मिनटों तक रखें। इस प्रयोग को करने से पहले ध्यान रखे के पानी गर्म हो। अब इस मिश्रण में सूती कपड़ा भीगों लें और निचोड़ कर कपड़े को प्रभावित जगह पर लगा कर रखें। इस कपड़े को गर्म रखने के लिए उपर से किसी सूखे कपड़े से कवर कर लें। 5 मिनटों के बाद इस कपड़े को फिर से भीगों कर प्रभावित जगेह पर लगा कर रखें इस प्रकिया को 3 बार रिपीट करें ऐसा करने से इस रोग में लाभ होगा।

गठिया रोग के लक्षण
घुटनों के दर्द के निम्नलिखित कारण हैं-
  1. आर्थराइटिस- लूपस जैसा- रीयूमेटाइड, आस्टियोआर्थराइटिस और गाउट सहित अथवा संबंधित ऊतक विकार
  2. बरसाइटिस- घुटने पर बार-बार दबाव से सूजन (जैसे लंबे समय के लिए घुटने के बल बैठना, घुटने का अधिक उपयोग करना अथवा घुटने में चोट)
  3. टेन्टीनाइटिस- आपके घुटने में सामने की ओर दर्द जो सीढ़ियों अथवा चढ़ाव पर चढ़ते और उतरते समय बढ़ जाता है। यह धावकों, स्कॉयर और साइकिल चलाने वालों को होता है।
  4. बेकर्स सिस्ट- घुटने के पीछे पानी से भरा सूजन जिसके साथ आर्थराइटिस जैसे अन्य कारणों से सूजन भी हो सकती है। यदि सिस्ट फट जाती है तो आपके घुटने के पीछे का दर्द नीचे आपकी पिंडली तक जा सकता है।
  5. घिसा हुआ कार्टिलेज (उपास्थि)(मेनिस्कस टियर)- घुटने के जोड़ के अंदर की ओर अथवा बाहर की ओर दर्द पैदा कर सकता है।
  6. घिसा हुआ लिगमेंट (ए सी एल टियर)- घुटने में दर्द और अस्थायित्व उत्पन्न कर सकता है।
  7. झटका लगना अथवा मोच- अचानक अथवा अप्राकृतिक ढंग से मुड़ जाने के कारण लिगमेंट में मामूली चोट
  8. जानुफलक (नीकैप) का विस्थापन
  9. जोड़ में संक्रमण
  10. घुटने की चोट- आपके घुटने में रक्त स्राव हो सकता है जिससे दर्द अधिक होता है
  11. श्रोणि विकार- दर्द उत्पन्न कर सकता है जो घुटने में महसूस होता है। उदाहरण के लिए इलियोटिबियल बैंड सिंड्रोम एक ऐसी चोट है जो आपके श्रोणि से आपके घुटने के बाहर तक जाती है।
  12. अधिक वजन होना, कब्ज होना, खाना जल्दी-जल्दी खाने की आदत, फास्ट-फ़ूड का अधिक सेवन, तली हुई चीजें खाना, कम मात्रा में पानी पीना, शरीर में कैल्सियम की कमी होना।
गठिया/घुटनों के दर्द का आयुर्वेदिक इलाज
  1. किसी चोट का दर्द हो या घुटने का दर्द आप इस दर्द निवारक हल्दी के पेस्ट को बनाकर अपनी चोट के स्थान पर या घुटनों के दर्द के स्थान पर लगाइए इससे बहुत जल्दी आराम मिलता है। दर्द निवारक हल्दी का पेस्ट कैसे बनाएं इसके लिए आप सबसे पहले एक छोटा चम्मच हल्दी पाउडर लें और एक चम्मच पिसी हुई चीनी और इसमें आप बूरा या शहद मिला लें, और एक चुटकी चूना मिला दें और थोड़ा सा पानी डाल कर इसका पेस्ट जैसा बना लें। इस लेप को बनाने के बाद अपने चम्मच के स्थान पर यार जो घुटना का दर्द करता है उस स्थान पर स्लिप को लगा ले और ऊपर से किराए बैंडेज या कोई पुराना सूती कपड़ा बांध दें और इसको रातभर लगा रहने दें और सुबह सादा पानी से इसको धो ले इस तरह से लगभग 7:00 से लेकर 1 सप्ताह से लेकर 2 सप्ताह तक ऐसा करने से इसको लगाने से आपके घुटने की सूजन मांसपेशियों में खिंचाव अंदरुनी चोट होने वाले दर्द में बहुत जल्दी आराम मिलता है और यह पृष्ठ आप के दर्द को जड़ से खत्म कर देता है।
  2. सौंठ से बनी दर्द निवारक दवा सौंठ भी एक बहुत अच्छा दर्द निवारक दवा के रूप में फायदेमंद साबित हो सकता है, सौंठ से दर्दनिवारक दवा बनाने के लिए एक आप एक छोटा चम्मच सौंठ का पाउडर व थोड़ा आवश्यकतानुसार तिल का तेल इन दोनों को मिलाकर एक गाढ़ा पेस्ट जैसा बना ले। दर्द या मोच के स्थान पर या चोट के दर्द में आप इस दर्द निवारक सौंठ के पेस्ट को हल्के हल्के प्रभावित स्थान पर लगाएं और इसको दो से 3 घंटे तक लगा रहने दें इसके बाद इसे पानी से धो लें ऐसा करने से 1 सप्ताह में आपको घुटने के दर्द में पूरा आराम मिल जाता है और अगर मांसपेशियों में भी खिंचाव महसूस होता है तो वह भी जाता रहता है।
  3. सर्दियों के मौसम में रोजाना 5-6 खजूर खाना बहुत ही लाभदायक होता है, खजूर का सेवन आप इस तरह भी कर सकते हैं रात के समय 6-7 खजूर पानी में भिगो दें और सुबह खाली पेट इन खजूर को खा ले और साथ ही वह पानी भी पी ले जिनको जिसमें आपने रात में खजूर भिगोए थे. यह घुटनों के दर्द के अलावा आपके जोड़ों के दर्द में भी आराम दिलाता है।
घुटनों के दर्द - गठिया का आयुर्वेदिक इलाज 
गठिया के रोग में अचूक आयुर्वेदिक घरेलू एवं सामान्य उपचार
  1. खाने के एक ग्रास को कम से कम 32 बार चबाकर खाएं। इस साधरण से प्रतीत होने वाले प्रयोग से कुछ ही दिनों में घुटनों में साइनोबियल फ्रलूड बनने लग जाती है।
  2. पूरे दिन भर में कम से कम 12 गिलास तक पानी अवश्य पिए। ध्यान दीजिए, कम मात्रा में पानी पीने से भी घुटनों में दर्द बढ़ जाता है।
  3. भोजन के साथ अंकुरित मेथी का सेवन करें।
  4. बीस ग्राम ग्वारपाठे अर्थात् एलोवेरा के ताजा गूदे को खूब चबा-चबाकर खाएं साथ में 1-2 काली मिर्च एवं थोड़ा सा काला नमक तथा ऊपर से पानी पी लें। यह प्रयेाग खाली पेट करें। इस प्रयोग के द्वारा घुटनों में यदि साइनोबियल फ्रलूड भी कम हो गई हो तो बनने लग जाती है।
  5. चार कच्ची-भिंडी सवेरे पानी के साथ खाएं। दिन भर में तीन अखरोट अवश्य खाएं। इससे भी साइनोबियल फ्रलूड बनने लगती है। अनुभूत प्रयोग है।
  6. एक्यूप्रेशर-रिंग को दिन में तीन बार, तीन मिनट तक अनामिका एवं मध्यमा अंगुलि में एक्यूप्रेशर करें।
  7. प्रतिदिन कम से कम 2-3 किलोमीटर तक पैदल चलें।
  8. दिन में दस मिनट आंखें बंद कर, लेटकर घुटने के दर्द का ध्यान करें। नियमित रूप से अनुलोम-विलोम एवं कपालभाति प्राणायाम का अभ्यास करें। अनुलोम-विलोम धीरे-धीरे एवं कम से कम सौ बार अवश्य करें। इससे लाभ जल्दी होने लगता है।

मुद्रा-चिकित्सा
  1. तर्जनी अंगुलि (इंडेक्स-फिंगर)को अंगूठे के नीचे गद्दी पर लगाएं और अंगूठे से हल्का दबाएं। यह प्रयोग आध-आध घंटा दिन में दो बार करें।
  2. नाभि में अरंड के बीज को छीलकर लगाएं और प्लास्टिक की टेप से चिपका दें। दूसरे दिन नहाने से पहले हटा दें। यह प्रयोग नहाने के लगभग दो घंटे बाद करें।
  3. घुटनों में दर्द होना, साइनोबियल फ्रलूड खत्म होना इत्यादि रोगों से पीडि़तों को दूध नहीं पीना चाहिए, क्योंकि दूध में लैक्टिक-एसिड पाया जाता है, जो कि घुटनों में दर्द को बढ़ाता है। हाँ, दूध को ठंडा करके उसमें शहद, सोंठ मिलाकर धीरे-धीरे पिएं। सौंठ से अभिप्राय ड्राई-जिंजर है।
  4. स्टेरॉयड के इंजेक्शन भूलकर भी नहीं लगाएं। इनके ढेरों साइड इफेक्ट होने के साथ साथ एक स्थिति ऐसी पैदा हो जाती है-‘‘मर्ज बढ़ता ही गया, ज्यूं-ज्यूं दवा की’’।

गठिया रोग के घरेलू उपचार
एलोवेरा 
त्रिफला जूस, एलोवेरा जूस, एलोवेरा गार्लिक जूस, इनमें से कोई एक रोग के लक्षणों के अनुसार सेवन करने से अवश्य ही रोग से मुक्ति मिल जाती है। पूर्ण धैर्य के साथ तीन-चार महीनों तक नियमित रूप से खाली पेट सेवन करना चाहिए।
 
आयुर्वेद के अनुसार सेवनीय अन्य औषधियां
अमृता सत्व, गोदंती भस्म, प्रवाल पिष्टी, स्वर्ण माक्षिक भस्म, महावत विध्वंसन रस, वृहद वातचितामणि रस, एकांगवीर रस, महायोगराज गुग्गुल, चंद्रप्रभावटी, पुनर्नवा मंडुर इत्यादि औषधियों का कुछ दिनों विशेषज्ञ के परामर्श से सेवन करने से बिना किसी साइडइपैफक्ट के ही आशातीत लाभ मिलता है।
 
सेवन करने से बचें
दही, लस्सी, अचार, दूध्, चाय तथा रात के समय हलका व सुपाच्य आहार लें। रात के समय चना, भिंडी, अरबी, आलू, खीरा, मूली, दही राजमा इत्यादि का सेवन भूलकर भी नहीं करें।

गठिया के दौरान क्या न करें/ गठिया रोग मे परहेज
  1. ऐसे जूतों का प्रयोग करने से बचिए जिनकी पीडि़त ऊंची हैं तथा बहुत ही कठोर हैं तथा सेण्डल पहनने से बचें इसके स्थान पर ऐसे जूतों का प्रयोग करें जिनकी एड़ी नीची है या जिनके फीते बांधे जा सकते हैं तथा जिनसे पैरों को उचित सहायता प्राप्त होती है।
  2. खड़ी ढ़लानों पर चलने तथा बहुत ही नर्म तथा असमान तल या जमीन पर चलने से बचें।
  3. सीढि़यां का प्रयोग करने से बचें जहां संभव हो वहां पर एलेवेटर का प्रयोग करें यदि आपको सीढि़यां का प्रयोग करना ही पड़ता है।
  4. तो एक बार में एक सीढ़ी चढ़ें तथा हैंड रेल को पकड़ कर चलिए।
  5. हमेशा स्वस्थ पैर को आगे रखें।
  6. भारी वस्तुओं को लेकर चलने से बचें भारी वस्तुओं से घुटनों पर अतिरिक्त तनाव या भार पड़ता है।
  7. कुर्सी के पीछे टांगों को मोड़ने से बचें, अपनी टांगों को आराम से फैलाएं तथा बार बार उनकी स्थिति को बदलते रहें।
  8. लंबे समय तक निरन्तर खड़े रहने से बचिए इसके बदले में हर घंटे के बाद एक ब्रेक लें।
  9. बिस्तर या कुर्सी से उठते समय प्रभावित घुटने पर दबाव डालने से बचिए। इसके अलावा उठने के लिए दोनो हाथों के साथ नीचे की ओर बल लगाते हुए उठिए।
  10. कम ऊंचाई वाली कुर्सियों पर बैठने से बचें ऐसी कुर्सियों को चुनें जिनकी सीट ऊंची हैं और उन पर आर्मरेस्ट लगी हुई हैं।
  11. घुटनों को मोड़ने से बचिए अनेक ऐसे कार्य जिनके लिए घुटनों को मोड़ने की जरूरत होती है, उन्हें कम ऊंचाई की कुर्सियों या स्टूल का प्रयोग करके किया जा सकता है।

आपके घुटनो में कैसा भी दर्द हो इसे मात्र सात दिनों में दूर करने की अचूक घरेलु औषधि मौजूद है। आज के समय में घुटनो का दर्द उम्र बढ़ने के साथ साथ बढ़ता रहता है और कई बार घुटनो में दर्द चोट लगने की वजह से या फिर गठिया रोग के होने की वजह से भी होता है। लेकिन कई लोग ये कहते है की घुटनो की ग्रीस ख़त्म हो गए इसलिए हमें दर्द हो रहा है या फिर यूरिक एसिड का शरीर में जयादा बढ़ जाना भी इसकी दर्द की वजह है। कई बार तो घुटनो का दर्द इतना जयादा बढ़ जाता है की वो सहन भी नहीं होता है और व्यक्ति का बुरा हाल हो जाता है। व्‍यायाम करने से हम इस दर्द से कुछ हद तक मुक्त हो सकते है क्योकि इससे एक तो घुटनो की जकड़न खत्‍म हो जाती है और दूसरे घुटनो की गति को आसान कर देती है जिससे दर्द भी कम हो जाता है।

जब हमारे घुटने सही काम नहीं करते तो हमें चलने फिरने आदि में दिक्कत हो जाती है और घुटनो को मोड़ने और सीधे करने में भी बहुत दिक्‍कत होती है। घुटनो पर लालिमा व सूजन बनी रहती है। इस कारण से घुटनो को मोड़ते समय चटकने व टूटने जैसी आवाज आने लगती है। जिससे घुटने में दर्द होता है उन पैरो में झुनझुनी होने लगती है। आर्युवेद मे घुटनो में होने वाले दर्द से बचने के लिएअनेक अचूक उपाय मौजूद है। जिससे आपके घुटनो के दर्द को कम ही नहीं करता बलिकी आपके दर्द को जड़ से ख़त्म कर देता है। तो आइये जानते है वो कौन सा उपाय है। इसके लिए जो सामान चाहिए वो बहुत ही आसानी से आपकी किचन में मिल जायेगा : एक छोटा चम्मच हल्दी जोकि एक एंटीसेप्टिक व एंटीबायोटिक का काम करती है, एक चम्मच शहद और चुटकी भर चुना इन तीनो सामान मात्रा को आपस में अच्छे से मिला कर थोड़ा सा पानी डालकर पेस्ट जैसा बना लेना है। आप इस सामान को थोड़ा ज्‍यादा भी ले सकते अगर आपके घुटने पर ये कम पड़ रहा हो। अब इस पेस्ट को अपने घुटनो पर हल्‍के हल्‍के दस मिनट तक मालिश करना है और ये उपाय आपके रात को सोते समय करना है। अब जब आप मालिश कर ले तो इस पर कोई सूती कपडा या फिर बैंडेज बांधकर सो जाये और सुबह गुनगुने पानी से घुटने को धो दे। इस उपाय से आपका दर्द कहला जायेगा और ये उपाय आपको लगातार सात दिनों तक करना है और आपका दर्द कैसा भी हो जड़ से ख़तम हो जायेगा।
अब आपको कुछ बातो का ध्‍यान रखना है जैसे वसा युक्त व प्रोटीनयुक्त खाना खाने से परहेज करे। आलू, शिमला मिर्च, हरी मिर्च, लाल मिर्च, अत्‍यधिक नमक, बैगन आदि न खाये। घुटनो की गर्म व बर्फ के पैड्स से सिकाई करे। घुटनो के निचे तकिया रखे।वजन कम रखे इसे बढ़ने न दे। ज्‍यादा लम्बे समय तक खड़े न रहे। आराम करे दर्द बढ़ाने वाली गति विधिया न करे इससे आपका दर्द और बढता जायेगा और आप इसे सहन नहीं कर पाएंगे। सुबह खली पेट तीन से चार अखरोट खाये, विटामिन इ युक्त खाना खाये धुप सेके। इन बातो को धायण रखने के साथ साथ इस उपाय को करे तो आपके घुटनो का दर्द जड़ से ख़त्म हो जायेगा।

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नोट - चिकित्सीय परामर्श अवश्य ले, यह केवल ज्ञान वर्धन के लिए है।



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रससिंदूर बहु उपयोगी एक सर्वश्रेष्ठ रसायन है, जो औषधि प्रयोग करने पर शारीरिक तथा मानसिक रोगों को दूर करे, जिससे शीघ्र आने वाला बुढ़ापा रुक जाए, जिससे बुद्धि का विकास हो, जो शारीरिक धातुओं की पुष्टि करें उसे रसायन औषधि कहते हैं, रसायन औषधियों में रससिंदूर एक प्रमुख औषधि है, अनेक रोगों में इसका प्रयोग किया जाता है जो अत्यंत लाभदायक सिद्ध होता है।
Baidyanath ras sindoor is more beneficial for sexual & general debility as well as asthma, urinary problems.
रससिंदूर शरीर के सभी रोगों को नष्ट करता है, मधुमेह के लिए यह चमत्कारिक औषधि है, प्रबल शूल को नष्ट करता है, कुछ दिनों तक रससिंदूर के सेवन से भगंदर- बवासीर का समूल नाश हो जाता है। किसी भी ज्वर के लिए यह संजीवनी का काम करता है, सभी प्रकार की सूजन की यह अचूक औषधि है। इसके सेवन से बुद्धि का विकास और शरीर में अत्यंत आनंद का अनुभव होता है।
Ras Sindur (Shadguna Jarit), Health and Medicine Dabur India Ltd.
रति शक्तिवर्धक रससिंदूर वीर्य विकारों को दूर करने वाला तथा कामोद्दीपक है। अनेक प्रकार की कामोद्दीपक औषधियां टॉनिक आदि सब रससिंदूर के आगे व्यर्थ हैं। यह गुल्म रोगहर (पेट में वायु का गोला) तथा रमण इच्छा को अत्यंत तीव्र करने वाला है। पांडुरोग, मोटापा, व्रण, शरीर की रूक्षता तथा अग्निमांद्य को दूर करता है। कुष्ठ रोगों को नाश करने वाला एवं रतिकला में चतुर स्त्री को प्रसन्नता प्रदान करने वाला है।
रससिंदूर वायु दोष शामक और उसे सम अवस्था में रखने वाली उत्तम औषधि है। इससे धमनियों में रक्त का संचार का काम सुचारू रूप से करती हैं, साथ ही वात नाड़ियों अपना काम सुचारू रूप से करती हैं, साथ ही वात नाड़ियां अपना काम विशेष दक्षता पूर्वक करती हैं। इससे रससिंदूर का सेवन करने वाले सदैव स्वस्थ और रोग रहित रहते हैं।
विविध रोगों में रससिंदूर का प्रयोग
  1. नये ज्वर में रससिंदूर को उचित मात्रा में लेकर फूल वाली तुलसी के पत्ते के रस के साथ अथवा अदरक के रस के साथ या पान के स्वरस के साथ प्रयोग करना चाहिए।
  2. पुराने ज्वर में रससिंदूर का प्रयोग करना हो तो गिलोय, पित्तपापड़ा तथा धनिया के चतुर्थांश अवशेष काढ़े के साथ देना चाहिए। 
  3. प्रमेह (मधुमेह) में रससिंदूर को गिलोय के स्वरस के साथ देना चाहिए। 
  4. प्रदर रोग में इसको अशोक, खरेंटी, लोध्र आदि ग्राही और शोथहर द्रव्यों के कषाय के साथ सेवन करना चाहिए। 
  5. रक्त प्रदर रोग में वसाकषाय अथवा लोध्र कषाय के साथ दिन में दो बार सेवन करने से तुरंत लाभकारी होता है। 
  6. पुराने प्रमेह में इसे वंग भस्म मिलाकर शहद के साथ कुछ दिनों तक सेवन करने से आराम मिलता है। 
  7. अपस्मार (हिस्टीरिया) में वचचूर्ण के साथ रससिंदूर का सेवन करना चाहिए। 
  8. उन्माद रोग में पेठे के स्वरस के साथ सेवन करना गुणकारी होता है। 
  9. मूर्च्छा रोग में रससिंदूर को एक रत्ती मात्रा में लेकर दो रत्ती पिप्पली चूर्ण मिलाकर शहद के साथ सेवन करें और रोगी को ठंडे जल से स्नान कराएं ऐसा करने से कुछ ही दिनों में इस रोग से छुटकारा मिल जाता है। 
  10. श्वास रोग में बहेड़ा क्वाथ अथवा अडूसा के स्वरस के साथ रससिंदूर का सेवन तुरंत लाभ पहुंचाता है। 
  11. कामला (पीलिया) रोग में रससिंदूर को दारूहल्दी क्वाथ के साथ सेवन करना चाहिए। 
  12. पांडुरोग में रससिंदूर को लौह भस्म के साथ सेवन करना चाहिए। 
  13. मूत्र विकारों में रससिंदूर को मिश्री, छोटी इलायची बीज के चूर्ण तथा शिलाजीत - प्रत्येक संभाग के साथ ठंडे दूध से सेवन करना चाहिए। 
  14. पेट दर्द होने पर रससिंदूर को त्रिफला क्वाथ के साथ सेवन करना चाहिए। 
  15. अजीर्ण होने पर रससिंदूर को मधु के साथ देना चाहिए। 
  16. वमन अधिक होने पर बड़ी इलायची के क्वाथ से अथवा मधु के साथ सेवन करना चाहिए। गुल्म में सौंफ और छोटी हरड़ के क्वाथ के साथ अजवाइन चूर्ण या विड लवण के साथ सेवन करने से लाभ होता है। 
  17. शरीर में सूजन होने पर रससिंदूर को पुनर्नवा क्वाथ के साथ सेवन करने से लाभ मिलता है। 
  18. गर्भाशय के रोगों में रससिंदूर में एक माशा काकोली चूर्ण मिलाकर इसे नारियल के तेल के साथ सेवन कराना चाहिए। 
  19. भगंदर रोग में रससिंदूर का सेवन आंवला, हरड़, बहेड़ा और वायविडंग क्वाथ के साथ प्रयोग करना चाहिए। 
  20. पुराने घावों में इसका सेवन कण्टकारी, सुगंधबाला, गिलोय तथा सोंठ के क्वाथ के साथ प्रयोग करना चाहिए। 
  21. पुराने गठिया रोग में रससिंदूर को गुडूची, मोथा, शतावरी, पिप्पली, हरड़, वच तथा सोंठ के कषाय के साथ सेवन अत्यंत गुणकारी होता है। 
  22. काम शक्ति (वाजीकरण) को बढ़ाने के लिए रससिंदूर का सेवन सेमल की कांपल, मूसली चूर्ण के साथ दुग्धानुपान से सेवन करना चाहिए। 
  23. धातु वृद्धि के लिए अभ्रक भस्म अथवा स्वर्ण भस्म के साथ रससिंदूर का सेवन करना उत्तम है। 
  24. स्वप्नदोष को दूर करने के लिए इसमें जायफल, लौंग, कपूर तथा अफीम का चूर्ण मिलाकर जल अथवा शीतल चीनी के कषाय अनुपान से सेवन करने से स्वप्नदोष से कुछ ही दिनों में छुटकारा मिल जाता है। 
  25. साइटिका के भयानक दर्द में लौह भस्म 20 ग्राम + रस सिंदूर 20 ग्राम + विषतिंदुक वटी 10 ग्राम + त्रिकटु चूर्ण 20 ग्राम, इन सबको अदरक के रस के साथ घोंटकर 250 मिलीग्राम के वजन की गोलियां बना लीजिए और दो-दो गोली दिन में तीन बार गर्म जल से लीजिए। 
  26. कमर दर्द में रससिंदूर को जवाखार और सुहागा मिलाकर प्रयोग करना चाहिए।
रससिंदूर की सेवन मात्रा - एक वर्ष की उम्र वाले बच्चों के लिए रससिंदूर की मात्रा रत्ती का सोलहवां हिस्सा, दो वर्ष की आयु वाले रोगी के लिए रत्ती का सातवां भाग, छह वर्ष की आयु वालों के लिए रससिंदूर की मात्रा रत्ती का तीसरा भाग होना चाहिये। बारह वर्ष की आयु वालों के लिए रससिंदूर की आधी रत्ती और इससे अधिक उम्र वालों के लिए एक रत्ती की मात्रा दी जानी चाहिए।

रससिंदूर प्रयोग से पूर्व कर्म - रससिंदूर सेवन करने से पूर्व रोगी को पंचकर्म द्वारा शुद्ध कर लें। पंचकर्म के बाद उचित समय तक पथ्य सेवन करायें और फिर पूर्ण सोच-विचार के साथ रससिंदूर का प्रयोग करके वर्तमान रोग को दूर करें। यदि रसायन सेवन करने वाला रोगी बालक हो अथवा कृश या क्षीण हो तो उसे पंचकर्म नहीं कराएं। लेकिन उसे समय के अनुसार युक्तिपूर्वक रेचन कराना चाहिए।
 
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गुर्दे की पथरी का औषधीय चिकित्सा (Pharmacological Therapy of Kidney Stones)



पथरी रोग आधुनिक जीवन-शैली और खानपान की देन है यह रोग स्त्रियों की अपेक्षा पुरूषो में अधिक पाया जाता है। बच्चे और वृद्धों में मूत्राशय की पथरी ज्यादा होती है, जबकि वयस्कों में अधिकतर गुर्दो और मूत्रनली में पथरी बनजाती है, गुर्दे की पथरी अत्यधिक पीड़ादायक होती है, यदि समय पर इसका इलाज नहीं हुआ तो यह गुर्दे को क्षतिग्रस्त कर देती है जिससे जिंदगी खतरे में पड़ जाती है।
Urinary calculi/ kidney stone and its Ayurveda management
गुर्दे की पथरी पीडि़त रोगी को चाहिए कि वह प्रतिदिन 2-3 लीटर पानी पीएं जिससे मूत्र खुलकर आता रहे। गुर्दे की पथरी का एक मुख्य कारण ऑक्जेलेट है। इसलिए यदि आपको कभी गुर्दे में पथरी की समस्या रही हो तो कम ऑक्जेलेट युक्त खाद्य लेना चाहिए क्योंकि जो व्यक्ति गुर्दे में पथरी काली या गहरी भूरी, खुरदरी, कठोर, कांटेदार तथा वेदनायुक्त होती है। कैल्शियम ऑक्जेलेट तथा कैल्शियम फास्फेट की मिश्रित पथरी भी होती है। सरसो का साग, करी पत्ता, सहजन की पत्तियां बथुआ, गोगू (पिटवा या अंबाड़ी), कमल नाल, काजू, आवला, बादाम, फालसा, स्ट्राबेरी, प्लम, खेंदचीनी, लालमिर्च, चाकलेट, चाय, कोको, पालक, चैराई में ऑक्जेलेट की अधिक मात्रा पाई जाती है। इसलिए भोजन में इससे परहेज करना चाहिए।
My brother once caught up with the pain of Kidney due to kidney stone. It was the first time I saw my elder brother screaming in the pain.
गुर्दे की पथरी के लिए कुछ उपयोगी आयुवेदिक नुस्खे निम्न प्रकार है जो अत्यन्त लाभकारी है:-
  1. कुलत्थ क्वाथ: 25 ग्राम क्वाथ में सेंधा नमक मिलाकर दिन में एक बार पिलाएं।
  2. शुठादि क्वाथ: शुठादि क्वाथ 25 ग्राम में यवक्षार, सेंधा नमक मिलकार दो रत्ती हींग के साथ देने से लाभ होता है।
  3. पाषाणभेदादि क्वाथ: 25 ग्राम क्वाथ में गुड़ डालकर उसे शिलाजीत 3-4 रत्ती के साथ पिलाएं।
  4. गोखरू चूर्ण: गोखरू के चूर्ण को स्वल्प स्वर्णमाक्षिक भस्म के साथ, 3 ग्राम की मात्रा में दूध के साथ प्रतिदिन दें, अथवा गोक्षुर चूर्ण और यवक्षार मिलाकर जल से दें।
  5. शिलाजतु योग: शिलाजीत 4 से 6 रत्ती की मात्रा में शहद के साथ मिलकार चटाएं या दूध के साथ दें।
  6. हरिद्रा योगः हल्दी चूर्ण 3 ग्राम तथा गुड़ 10 ग्राम एक साथ मिलकार रोगी को खिलाएं।
  7. तिलादिक्षारः तिलनाल के क्षार या तिलनाल, अपामार्ग, पलाशकाष्ठ, यवकाण्ड और कदलीपत्र में से 2-4 द्रव्यों के क्षार को दूध के साथ दें, मात्रां 1 ग्राम, दिन में दो बार अथवा तिलनाल, अपामार्ग, करेले की बेल, जौ के डंठल आदि की भस्म को कपडे से छान कर रख लें, इसे 1 से 2 ग्राम की मात्रा में सात दिन तक दूध के साथ दें।
  8. कुलत्थादि घृतः इसे 10 ग्राम की मात्रा में दिन में एक साथ दें।
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