दीपावली और पटाखे



दीपावली पर पटाखे के संबध में दो बाते आ रही है..

1. पटाखे फोड़ने के बारे में और
2. पटाखे न फोड़ने के बारे में
 पटाखे जरूर फोड़े पर इतना ध्यान रहे कि दीपावली के पटाखे हिंदू फैक्ट्रियों में बने हो अन्यथा जिन फटाखे से आप मुस्लिमों के कान खाने वाले हो वही पटाखे उनके घर को आबाद करगे, एक अनुमान के अनुसार दीपावली के पटाखों के निर्माण में मुस्लिमों भागीदारी 70% है इस प्रकार हिंदुवो का 70% पैसा सिर्फ धमको में मुस्लिमों कि प्रगति कर रहा है और उनको आतंकियों के समर्थन में धन मुहैया करवा रहा है... 
 
 
दीपावली में पटाखे के समर्थन के संबध में कोई पौराणिक साक्ष्य नहीं मिलते है, कि पटाखे दीपावली का अनिवार्य तत्व है और इसके बिना दीपावली नहीं मनाई जा सकती है.. 
 
 
दीपावली दैवी साधना का दिन है और साधना शांति के बिना संभव नहीं है, पटाखों की धूम में शांति कैसे हो सकती है और बिना शांति के साधना भी असम्भव है... 
 
लक्ष्मी पूजा के संबध में मान्यता है कि लक्ष्मी जी की पूजा के समय घंटी बजाने का प्राविधान नहीं है क्योकि घंटी बजाने से जिस उल्लू की सावरी पर लक्ष्मी जी आती है वह घंटी की आवाज सुन कर घरों में नहीं आता है वह पटाखों के धमको कि आवाज सुन कर कैसे आ सकता है?
 
मैं पटाखा विरोधी नहीं हूँ किन्तु इस बात का जरूर विरोधी हूँ कि दीपावली का पटाखों से कोई पौराणिक वास्ता नहीं है, अगर दीपावली पटाखों का पर्व होता तो इसका नाम दीपावली नहीं पटाखावली होता..


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श्री हनुमान वडवानल स्रोत के जाप से तुरंत दर्शन देते हैं बजरंग बली



श्री हनुमान वडवानल स्रोत के जाप से बड़ी से बड़ी समस्या भी टल जाती है, श्री हनुमान वडवानल स्रोत का प्रयोग अत्यधिक बड़ी समस्या होने पर ही किया जाता है। इसके जाप से बड़ी से बड़ी समस्या भी टल जाती है और सब संकट नष्ट होकर सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। श्री हनुमान वडवानल स्रोत के प्रयोग से शत्रुओं द्वारा किए गए पीड़ा कारक कृत्या अभिचार, तंत्र-मंत्र, बंधन, मारण प्रयोग आदि शांत होते हैं और समस्त प्रकार की बाधाएं समाप्त होती हैं। 
पाठ करने की विधि
शनिवार के दिन शुभ मुहूर्त में इस प्रयोग को आरंभ करें। सुबह स्नान-ध्यान आदि से निवृत्त होकर हनुमानजी की पूजा करें, उन्हें फूल-माला, प्रसाद, जनेऊ आदि अर्पित करें। इसके बाद सरसों के तेल का दीपक जलाकर लगातार 41 दिनों तक 108 बार पाठ करें। अंत में भगवान को प्रसाद चढ़ाएं तथा अपनी मनोकामना पूर्ण करने की प्रार्थना करें। 




 
विनियोग
ॐ अस्य श्री हनुमान् वडवानल-स्तोत्र-मन्त्रस्य श्रीरामचन्द्र ऋषिः,
श्रीहनुमान् वडवानल देवता, ह्रां बीजम्, ह्रीं शक्तिं, सौं कीलकं,
मम समस्त विघ्न-दोष-निवारणार्थे, सर्व-शत्रुक्षयार्थे
सकल-राज-कुल-संमोहनार्थे, मम समस्त-रोग-प्रशमनार्थम्
आयुरारोग्यैश्वर्याऽभिवृद्धयर्थं समस्त-पाप-क्षयार्थं
श्रीसीतारामचन्द्र-प्रीत्यर्थं च हनुमद् वडवानल-स्तोत्र जपमहं करिष्ये।
 
ध्यान 
मनोजवं मारुत-तुल्य-वेगं जितेन्द्रियं बुद्धिमतां वरिष्ठं।
वातात्मजं वानर-यूथ-मुख्यं श्रीरामदूतम् शरणं प्रपद्ये।।
 
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते प्रकट-पराक्रम
सकल-दिङ्मण्डल-यशोवितान-धवलीकृत-जगत-त्रितय
वज्र-देह रुद्रावतार लंकापुरीदहय उमा-अर्गल-मंत्र
उदधि-बंधन दशशिरः कृतान्तक सीताश्वसन वायु-पुत्र
अञ्जनी-गर्भ-सम्भूत श्रीराम-लक्ष्मणानन्दकर कपि-सैन्य-प्राकार
सुग्रीव-साह्यकरण पर्वतोत्पाटन कुमार-ब्रह्मचारिन् गंभीरनाद
सर्व-पाप-ग्रह-वारण-सर्व-ज्वरोच्चाटन डाकिनी-शाकिनी-विध्वंसन
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महावीर-वीराय सर्व-दुःख
निवारणाय ग्रह-मण्डल सर्व-भूत-मण्डल सर्व-पिशाच-मण्डलोच्चाटन
भूत-ज्वर-एकाहिक-ज्वर, द्वयाहिक-ज्वर, त्र्याहिक-ज्वर
चातुर्थिक-ज्वर, संताप-ज्वर, विषम-ज्वर, ताप-ज्वर,
माहेश्वर-वैष्णव-ज्वरान् छिन्दि-छिन्दि यक्ष ब्रह्म-राक्षस
भूत-प्रेत-पिशाचान् उच्चाटय-उच्चाटय स्वाहा।
 
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते
ॐ ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ह्रौं ह्रः आं हां हां हां हां
ॐ सौं एहि एहि ॐ हं ॐ हं ॐ हं ॐ हं
ॐ नमो भगवते श्रीमहा-हनुमते श्रवण-चक्षुर्भूतानां
शाकिनी डाकिनीनां विषम-दुष्टानां सर्व-विषं हर हर
आकाश-भुवनं भेदय भेदय छेदय छेदय मारय मारय
शोषय शोषय मोहय मोहय ज्वालय ज्वालय
प्रहारय प्रहारय शकल-मायां भेदय भेदय स्वाहा।
 
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते सर्व-ग्रहोच्चाटन
परबलं क्षोभय क्षोभय सकल-बंधन मोक्षणं कुर-कुरु
शिरः-शूल गुल्म-शूल सर्व-शूलान्निर्मूलय निर्मूलय
नागपाशानन्त-वासुकि-तक्षक-कर्कोटकालियान्
यक्ष-कुल-जगत-रात्रिञ्चर-दिवाचर-सर्पान्निर्विषं कुरु-कुरु स्वाहा।
 
ॐ ह्रां ह्रीं ॐ नमो भगवते महा-हनुमते
राजभय चोरभय पर-मन्त्र-पर-यन्त्र-पर-तन्त्र
पर-विद्याश्छेदय छेदय सर्व-शत्रून्नासय
नाशय असाध्यं साधय साधय हुं फट् स्वाहा।
।।इति विभीषणकृतं हनुमद् वडवानल स्तोत्रं।।


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Anjana Sutha Stotram



 Anjana Sutha Stotram
Hauman (Anjana sutha) Stotram
[Prayer addressed to Hanuman]

[Here is a great and rare prayer addressed to Lord Hanuman as son of Anjana.]

1. Sukhekadhaam-bhushnam, Manoja garva-khandanam,
Anathmadhi-vigarhanam, Bhajeham-anjani-sutam

I sing about the son of Anjana, to whom the mace looks like an ornament,
Who berates all who are proud and, Punishes those who have not realized Their self

2. Bhavam-budhititushrame, Susevyamana-madbutam,
Shiva-avatarinam-param, Bhajeham-anjani-sutam

I sing about the son of Anjana, who assists us to cross the sea of life,
Who serves well in a wonderful manner and Who was born by the grace of Lord Shiva

3. GunakaramKripakaram, Sushantidam-Yashachyakaram,
Nijatambuddhi-dayakam, Bhajeham-anjani-sutam

I sing about the son of Anjana,who does good and showers mercy,
Who is peace personified grants fame and gives true spiritual wisdom.

4. SadaivDhusta-Bhanjanam, Sada-sudharva-vardhanam,
Mumuksha-Bhaktaranjam,Bhajeham-anjani-sutam

I sing about the son of Anjana, who always destroys bad people,
Who always increases courage to do good and who enjoys the devotion of realised souls.

5. Suramapada-sevinam, Suramanama-gayinam,
Suramabhakti-dayinam, Bhajeham-anjani-sutam

I sing about the son of Anjana, who serves the feet of Lord Rama,
Who grants us devotion to Lord Rama and always sings the name of Lord Rama.

6. Virakta-mandala-dhipam, Sadatma-vitsusevinam,
Subhakta-vrundvandanam, Bhajeham-anjani-sutam

I sing about the son of Anjana who is the chief of those who have given up ali,
Who is served by all those who are good souls and Who is saluted by crowds of great devotees

7. Vimukti-vigna-nashakam, Vimukti-bhakti-dayikam,
Maha-virakti-karakam, Bhajeham-anjani-sutam

I sing about the son of Anjana, Who removes roadblocks on way to salvation,
Who Grants us devotion leading to salvation and creates us great sense of detachment.

8. Sukhemya deva madvayam, Brihut-meva-tatsvayam,
Itihi-bodhi-kamgurum, Bhajeham-anjani-sutam

I sing about the son of Anjana, who is the God who blesses us with comfort,
Who by himself is very great and is the teacher who gives us wisdom.

9. Virakti-mukti-dayakam, Imam-stavan-supavanam,
Pathantiye-samadarat-na-sansaranti-te-dhruvam

If one reads with great devotion, this holy prayer,
Which grants detachment and devotion,
Would he not be Definitely remembered with great respect?


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विवाह, दहेज और कानून



विवाह एक ऐसा सामाजिक अवसर है जहां दो परिवार उपहारों का लेन-देन करते हैं। पर इन लेन-देनों में समानता नहीं होती, किसी एक पक्ष की ओर आमतौर पर झुकाव ज्यादा होता है। इसके अलावा विवाह के बाद भी काफी अर्से तक लेन-देन की यह प्रक्रिया चलती रहती है।

हमारे समाज में दहेज समुदाय के हर वर्ग तक पहुंच चुका है। इसका अमीरी-गरीबी से कोई ताल-मेल नहीं है और न ही सम्प्रदाय-जाति का भेद-भाव है। आज दहेज के रूप में मोटी रकम के साथ-साथ कार, फर्नीचर, कीमती कपड़े व भारी गहने भी वधू के परिवार से वर के परिवार भेजे जाते हैं। इसके अलावा वधू-पक्ष, वर-पक्ष एवं ब्याह के सारे खर्चे, जिसमें यात्रा खर्च भी शामिल होता है वहन करता है। यहीं नही वर-पक्ष को हक है कि वह कोई भी अप्रत्याशित मांग वधू के परिवार के सामने रखे और जिसे पूरी करना विवाह के लिए अनिवार्य समझा जाता है।
दहेज प्रतिषेध अधिनियम, 1961 की कुछ खास बातें
  •  दहेज का लेन-देन दोनों अपराध हैं। इसके लिए कम से कम पांच वर्ष कैद या पंद्रह हजार रुपये जुर्माना किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त दहेज की मांग करने पर भी छः मास सजा और दस हजार रुपये तक का जुर्माना किया जा सकता है।
  • यह कानून महिलाओं को पति या ससुराल वालों से सम्पत्ति/सामान लेने की स्थिति में उनकी सुविधा के लिए बनाया गया है। इसके तहत महिला के नाम पर शादी के समय दी गई सारी सम्पत्ति/दहेज शादी के बाद तीन माह के भीतर महिला के नाम कर दिया जाएगा। अगर इस सम्पत्ति/दहेज की मिल्कियत पाने से पहले महिला की मौत हो जाती है तो महिला के वारिस इस सम्पत्ति/दहेज को वापस लेने की मांग कर सकते हैं। अगर विवाह के सात साल के अंदर महिला की मौत हो जाती तो सारा दहेज उसके माता-पिता या बच्चों को दिया जायेगा।
  • दहेज हत्या के लिए सात साल की सजा दी जा सकती है। यह अपराध गैरजमानतीय है।
  • दोषी व्यक्ति पर धारा 304 बी के साथ ही भारतीय दण्ड संहिता की धारा 302 (हत्या) 306 (आत्महत्या के लिए उकसाना) 44 ए (क्रूरता) और दहेज विरोधी कानून सेक्शन 4 लगाया जा सकता है।
इस अधिनियम से क्या राहत मिल सकती है?
  • धारा 304बी :  यह धारा दहेज हत्या के मामलों में सजा के लिए लागू की जाती है। दहेज हत्या का अर्थ है, अगर औरत की मौत जलने या किसी शारीरिक चोट के कारण हुई है या शादी के सात साल के अन्दर किन्हीं अन्य संदेहास्पद कारणों से हुई है। यह धारा उस समय भी लागू की जा सकती है, जब साबित हो जाए कि पति या उसके माता-पिता या अन्य संबंधी दहेज के लिए उसके साथ हिंसा और बदसलूकी कर रहे थे जिसके कारणवश औरत की मौत हो गई हो।
  • धारा 302 : यह धारा दहेज हत्या के आरोप में सजा के मामले में लागू की जाती है जिसमें उम्र कै़द या फांसी की सजा हो सकती है।
  • धारा 306 : यह धारा मानसिक और भावनात्मक हिंसा, जिसके फलस्वरूप औरत आत्महत्या के लिए मजबूर हो गई हो, के मामलों में लागू होती है। इसके तहत जुर्माना तथा 10 साल तक की सजा सुनाई जा सकती है।
  • धारा 498ए : यह धारा पति या रिश्तेदारों द्वारा दहेज के लालच में क्रूरता और हिंसा के लिए लागू की जाती है। यहां क्रूरता के मायने हैं औरत को आत्महत्या के लिए मजबूर करना, उसकी ज़िंदगी के लिए खतरा पैदाकरना व दहेज के लिए सताना व हिंसा। इस सभी धाराओं के अलावा भारतीय दण्ड संहिता की धारा 113 ए, 174 (3) और धारा 176 भी दहेज व इससे जुड़ी हत्या की स्थिति में लागू की जा सकती है। इसके तहत दहेज हत्या की रिपोर्ट दर्ज होने पर आत्महत्या या मौत की दूसरी वजह होने के बावजूद पुलिस छान-बीन, कानूनी कार्यवाही, लाश का पोस्टमार्टम आदि करने का आदेश दे सकती है; ख़ासतौर पर जब मौत विवाह के सात वर्ष के अन्दर हुई हो या फिर किसी पर दहेज हत्या का संदेह हो।
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    दिल्ली का इण्डिया गेट






    इंडिया गेट प्रथम विश्वयुद्ध एवं अपफगानयुद्ध में मारे गए शहीद सैनिकों की स्मृति में बनाया गया था। प्रथम विश्वयुद्ध में 70,000 भारतीय सैनिक तथा अपफगानिस्तान युद्ध में पश्चिमोत्तर सीमा पर भारतीय सैनिक शहीद हुए। इन्ही ब्रिटिश और भारतीय सैनिकों के नाम इंडिया गेट की दीवार पर अंकित है। इंडिया गेट की स्थापना की नींव ड्यूक ऑफ कनॉट ने 1921 में रखी। यह स्मारक ल्यूटियन्स के द्वारा डिजायन किया गया जो दस वर्ष के बाद तत्कालीन वायस लार्ड इरविन के द्वारा राष्ट्र को समर्पित किया गया। इसी में स्वतंत्राता प्राप्ति के काफी बाद भारत सरकार ने ‘अमर जवान ज्योति’बनवाये जो दिन-रात जलता है। अमर जवान ज्योति दिसंबर 1971 के भारत-पाक युद्ध में शहीद हुए भारतीय सैनिकों के त्याग और बलिदान की याद दिलाता है। भारतीय सैनिकों के सम्मान में यह बनाया गया है।


    इंडिया गेट का वास्तु प्रारूप में भी यूरोपीय और भारतीय कला का मिश्रण है। यह षटभुजीय आकार में है। यह भारतीय परिस्थिति में यूरोपीय मेमोरियल आर्क ‘‘आर्क डी ट्राइम्पफ’’ पेरिस की संरचना के अनुसार बना है। इंडिया गेट का स्मारक भरतपुर (राजस्थान) के लाल बलुआ पत्थर से निर्मित है। दोनों तरपफ पत्थर पर ‘इंडिया गेट’ खुदा हुआ है। 1914-1919 भी लिखा है। शिखर पर तेल डालने का स्थान है जो लाॅ को जलने के लिए ईंध्न उपलब्ध् करता है। पर अब गैस ईंध्न से यह चलता है। इंडिया गेट के चारों तरपफ विशाल हरा-भरा आकर्षक लॉन है जो इसकी सुंदरता को बढ़ाता है। यहां नौकायन की सुविध उपलब्ध् है। शाम होते ही इंडिया गेट आश्चर्यजनक रूप से प्रकाशित हो जाता है। झरने, प्रकाश के रंग के साथ मनोरम दृश्य प्रस्तु करते हैं जिससे पर्यटक आकर्षित होते हैं। इंडिया गेट राजपथ के अंतिम छोर पर अवस्थित है जो लोगों के लिए मनोरंजक पिकनिक स्थल है। यहां सालोभर पर्यटक और लोग आते हैं परंतु ग्रीष्म ऋतू में विशेष भीड़ रहती है। इंडिया गेट में प्रवेश और फोटोग्राफी निःशुल्क हैं तथा दर्शकों के लिए हमेशा दिन-रात खुला रहता है। नजदीकी मेट्रो स्टेशन - प्रगति मैदान है।

     

    राष्ट्रपति भवन:- ब्रिटिश शासन के दौरान वाइसराय भारत में सत्ता का केंद्र था। एक ऐसी घुरी जिसके चारों और प्रशासनिक व्यवस्था घूमती थी। इसलिए नई दिल्ली को इस तरह बनाने का पैफसला किया कि इसे केंद्र मान कर शहर का नक्शा बनाया जाए। दिल्ली के ऐतिहासिक स्मारक वाइसराय निवास, कनॉट प्लेस और इंडिया गेट राजपथ। इंडिया गेट पर एक हेक्सामेन बनाया गया जिस के चारों ओर उससे निकलने वाली सड़कों पर राजा महाराजा के निवास बनाने का विचार था अंग्रेज निर्माताओं का स्वपन था कि राज भवन को पहाड़ी के उफपर बनया जाए ताकि पूरे शहर में कहीं से भी देखा जा सके, परंतु जिस रूप में वायसराय हाउफस बना वह ल्यूटेन के लिए जीवन भर एक पीड़ा का कारण बना रहा यह। विजय चैक से भी दिखाई नहीं देती। नार्थ और साउथ ब्‍लाक कहीं ज्यादा भव्य रूप में दिखाई देते हैं। ल्यूटेन ने बहुत प्रयास किया हरर्बट बैंकर से विवाद भी हुआ और उसके सचिवालय बाद एक ऐसी बड़ी खाली जगह छोड़ने की व्यवस्था की गई जहां सरकारी समारोह आयोजित किए जा सके। आज हम इसे विजय चैक कहते हैं। उस समय इसे ग्रेट प्लेस कहते थे।



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    वट सावित्री व्रत 2018: जानें कथा और महत्व के बारे में



    वट सावित्री व्रत

    यूं तो भारतवर्ष में कर्इ व्रत-त्यौहार मनाए जाते है लेकिन इनमें से कुछ एेसे व्रत है जो आदर्श नारीत्व के प्रतीक के रूप में जाने जाते है। आैर इन्हीं में से एक है वट सावित्री व्रत। ये व्रत हर विवाहिता के लिए अहम माना जाता है। जिसके तहत विवाहित महिलाएं अपने पति की लंबी उम्र के लिए ये व्रत रखती है। हालांकि इस व्रत को लेकर एक निश्चित तिथि नहीं है। यानि कुछ पुराणों में जहां ये व्रत ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को करना बताया गया है वहीं कर्इ जगह वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या को करने का विधान है। लेकिन दोनों का उदेश्य एक समान है, सौभाग्य की वृद्घि। तो आइए जानते है वट सावित्री व्रत की कथा आैर इससे जुड़े विभिन्न पहलूआें के बारे में 

    वट सावित्री व्रत 2017 तारीख: 15 मर्इ, मंगलवार

    वट सावित्री व्रत कथा
    ये कथा सावित्री आैर सत्यभाम की है। सावित्री एक संपन्न राजा की बेटी थी जबकि सत्यवान बहुत ही दरिद्रतापूर्ण जीवन व्यतीत कर रहा होता है क्यूंकि उसके पिता का राजपाट सब कुछ छिन लिया जाता था। उसके माता-पिता के आंखों की रोशनी भी चली जाती है। इस कारण वो एक आम इंसान की तरह जिंदगी व्यतीत करते है। जब सावित्री आैर सत्यवान के विवाह की बात चलती है तो नारद मुनि आकर सावित्री के पिता को बताते है कि वे सत्यवान के साथ अपनी पुत्री का विवाह ना करें क्यूंकि सत्यवान अल्पायु है। लेकिन इसके बावजूद सावित्री की जिद के कारण वे इन दोनों का विवाह कर देते है। नारदजी द्वारा सत्यवान की मृत्यु के लिए बताए गए दिन में जब चार दिन शेष बचते है तभी से सावित्री व्रत रखने लगती है। नियत दिन आने पर सत्यवान पेड़ काटने के लिए जंगल जाता है, तब सावित्री भी उसके साथ चल देती है। जैसे ही सत्यवान पेड़ पर चढ़ता है कि उसके सिर में असहनीय दर्द होने लगता है आैर वह सावित्री की गोद में सिर रखकर लेट जाता है।

    कुछ देर बाद साक्षात यमराज अपने दूतों के साथ वहां पहुंचते है। आैर सत्यवान के जीवात्मा को लेकर वहां से जाने लगते है, सावित्री भी उनके पीछे-पीछे लगती है। यमराज सावित्री को पीछे आने के लिए मना करते है लेकिन सावित्री कहती है कि जहां तक मेरे पति जाएंगे वहां तक मुझे जाना चाहिए। इस पर यमराज प्रसन्न होते है आैर सावित्री को काेर्इ वरदान मांगने को कहते है सावित्री उनसे अपने सास-ससुर की नेत्र-ज्योति वापिस मांगती है। इस पर यमराज तथास्तु कहकर आगे बढ़ने लगते है। लेकिन फिर भी सावित्री उनके पीछे-पीछे चलती रहती है, इस पर यमराज उसे फिर से वर मांगने को कहते है तो सावित्री कहती है कि मेरे ससुर का खोया हुआ राज्य उन्हें वापस मिल जाए। यमराज तथास्तु कहकर उसे लौट जाने को कहते है। लेकिन फिर भी सावित्री उनके पीछे-चलती रहती है। यमराज उसे एक आैर वर मांगने को कहते है तो सावित्री कहती है कि मैं सत्यवान के साै पुत्रों की मां बनना चाहती हूं। सावित्री की मनोकामना सुनकर यमराज का दिल पिघल जाता है आैर वे सावित्री की मनोकामना पूरी होने का आशीर्वाद देते है। इसके बाद सावित्री उसी वट वृक्ष्र के पास वापिस लौटती है, जहां सत्यवान में पुनः प्राणों का संचार होता है आैर वो उठकर बैठ जाता है। इस तरह सावित्री को उसका सुहाग वापिस मिल जाता है आैर वो उसके साथ सुखद ग्रहस्थ जीवन बिताती है। 

    वट सावित्री व्रत की पूजा विधि
    सबसे पहले व्रत करने वाली महिलाएं सुबह उठकर नित्य दिनचर्या से निवृत्त होकर शुद्घ जल से स्नान करें। जिसके बाद नए वस्त्र धारणकर सोलह श्रृंगार करें। फिर वट वृक्ष के नीचे जाकर आसपास की जगह को साफ आैर स्वच्छ कर वहां सत्यवान आैर सावित्री की मूर्ति स्थापित करें। जिसके बाद सिंदूर, चंदन, पुष्प, रोली, अक्षत इत्यादि प्रमुख पूजन सामग्री से पूजन करें। फिर लाल कपड़ा, फल आैर प्रसाद चढ़ाए। इसके पश्चात धागे को बरगद के पेड़ में बांधकर जितना  संभव हो सकें उतनी बार परिक्रमा करें। फिर सावित्री-सत्यवान की कथा सुनें आैर ब्राहमण या जरूरतमंद को दान करें। जिसके बाद अपने-अपने घर लौट जाए आैर घर पहुंचकर पति का आशीर्वाद लें। व्रत शाम को खोलें। 

    वट वृक्ष की पूजा का महत्व
    भारतीय संस्कृति में कर्इ वृक्षों में भगवान का वास माना जाता है आैर इनकी पूजा विशिष्ट फल देने वाली मानी जाती है। इन्हीं में से एक है ‘बरगद का पेड़’ जिसे ‘वट वृक्ष’ भी कहा जाता है। पुराणों में वट वृक्ष में ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों का वास माना गया है। इसके नीचे बैठकर किसी भी प्रकार का पूजन करने, कथा सुनने या कोर्इ अन्य धार्मिक कार्य करने से शुभ फल मिलते है। इस वृक्ष में लटकी जटाआें को शिव की जटाएं मानी जाती है।


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    Major International Airports in India



    Major International Airports in India
    भारत के प्रमुख अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे
    1. अन्ना अं॰ हवाई अड्डा - चेन्नई
    2. इन्दिरा गाँधी अं॰ हवाई अड्डा - नई दिल्ली
    3. कालीकट अं॰ हवाई अड्डा - कोझीकोड
    4. कोचीन अं॰ हवाई अड्डा - कोच्चि
    5. गोपीनाथ बारडोली अं॰ हवाई अड्डा - गुवाहटी
    6. चौधरी चरण सिंह अं॰ हवाई अड्डा - लखनऊ
    7. छत्रपति शिवाजी अं॰ हवाई अड्डा - मुम्बई
    8. जयपुर अं॰ हवाई अड्डा - जयपुर
    9. त्रिवेन्द्रम अं॰ हवाई अड्डा - तिरुअनन्तपुरम
    10. दाबोलिम अं॰ हवाई अड्डा - गोवा
    11. देवी अहिल्याबाई होल्कर अं॰ हवाई अड्डा - इंदौर
    12. नेताजी सु॰ बोस अं॰ हवाई अड्डा - कोलकाता
    13. बाबा साहेब अम्बेदकर अं॰ हवाई अड्डा - नागपुर
    14. मंगलुरु अं॰ हवाई अड्डा - मंगलुरु
    15. राजीव गाँधी अं॰ हवाई अड्डा - हैदराबाद
    16. लाल बहादुर शास्त्री अं॰ हवाई अड्डा - वाराणसी
    17. वीर सावरकर अं॰ हवाई अड्डा - पोर्ट ब्लेयर
    18. शेख अलआलम अं॰ हवाई अड्डा - श्रीनगर
    19. श्री गुरु रामदास जी अं॰ हवाई अड्डा - अमृतसर
    20. स॰ बल्लभभाई पटेल अं॰ हवाई अड्डा - अहमदाबाद


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    पुष्य नक्षत्र पर करें ये काम, कार्य सिद्धि के साथ मिलेगी स्थायी समृद्धि



     
    हिन्दू धर्म ग्रंथों में पुष्य नक्षत्र को सबसे शुभकारक नक्षत्र कहा जाता है। पुष्य का अर्थ होता है कि पोषण करने वाला और ऊर्जा-शक्ति प्रदान करने वाला नक्षत्र। इस नक्षत्र में जन्म लेने वाले व्यक्ति हमेशा ही लोगों की भलाई व सेवा करने के लिए तत्पर रहते हैं। इस नक्षत्र में जन्मे जातक अपनी मेहनत और साहस के बल पर जिंदगी में तरक्की प्राप्त करते हैं। मान्यता है कि इस शुभ दिन पर संपत्ति और समृद्धि की देवी माँ लक्ष्मी का जन्म हुआ था। जब भी गुरुवार अथवा रविवार के दिन पुष्य नक्षत्र आता है तो इस योग को क्रमशः गुरु पुष्य नक्षत्र और रवि पुष्य नक्षत्र के रूप में जाना जाता है। यह योग अक्षय तृतीया, धन तेरस, और दिवाली जैसी धार्मिक तिथियों की भांति ही शुभ होता है। कहते हैं कि इस दिन माँ लक्ष्मी घर में बसती है और वहां एक लंबे समय तक विराजती है इसीलिए, इस यह घड़ी पावन कहलाती है। पुष्य नक्षत्र का स्वभाव फलप्रदायी और ध्यान रखने वाला है। पुष्य नक्षत्र के दौरान किए जाने वाले कार्यों से जीवन में समृद्धि का आगमन होता है। इस दिन ग्रहों के अनुकूल स्थितियों में भ्रमण कर रहे होने से वे आपके जीवन में शांति, संपत्ति और स्थायी समृद्धि लेकर आते हैं।


    वैदिक ज्योतिष में महात्मय 
    हमारे वैदिक ज्योतिष में बारह राशियों में समाविष्ट होने वाले 27 नक्षत्रों में आठवें नक्षत्र ‘पुष्य’ को सबसे शुभ नक्षत्र कहते हैं। इसी नक्षत्र में गुरु उच्च का होता है। देवों के आशीर्वाद से पुरस्कृत इस नक्षत्र के देवता बृहस्पति और दशा स्वामी शनि हैं। कर्क राशि के अंतर्गत समाविष्ट होने से इस नक्षत्र के राशिधिपति चंद्र हैं। इस प्रकार से गुरु व चंद्र के शुभ संयोग इस नक्षत्र में होने से किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए पुष्य नक्षत्र श्रेष्ठ माना जाता है। क्या आपकी जन्मकुंडली में महत्वपूर्ण ग्रह अच्छी स्थिति में विराजमान है ? 

    जीवन में समृद्धि का आगमन
    पुष्य नक्षत्र का दशा स्वामी शनि होने से इस नक्षत्र के दरमियान घर में आयी संपत्ति या समृद्धि चिरस्थायी रहती है। पुष्य नक्षत्र में किए गए कामों को हमेशा सफलता व सिद्धि मिलती है। इसलिए, विवाह को छोड़कर हर एक कार्यों के लिए पुष्य नक्षत्र को शुभ माना जाता है। दिवाली के दिनों में चोपड़ा खरीदने के लिए व्यापारीगण पुष्य नक्षत्र को विशेष महत्व देते हैं। इसके अलावा, वर्ष के दौरान भी पुष्य नक्षत्र में जब गुरु पुष्यामृत योग बन रहा हो तब सोने, आभूषण और रत्नों को खरीदने की प्रथा सदियों से प्रचलित है।

    पुष्य नक्षत्र में किए जाने वाले मांगलिक कार्य 
    • इस मंगलकर्ता नक्षत्र के दौरान घर में आयी संपत्ति या समृद्धि चिरस्थायी रहती है।
    • ज्ञान और विद्याभ्यास के लिए पावन दिन।
    • इस दिन आध्यात्मिक कार्य किए जा सकते हैं।
    • मंत्रों, यंत्रों, पूजा, जाप और अनुष्ठान हेतु शुभ दिन।
    • माँ लक्ष्मी की उपासना और श्री यंत्र की खरीदी करके जीवन में समृद्धि ला सकते हैं।
    • इस समय के दौरान किए गए तमाम धार्मिक और आर्थिक कार्यों से जातक की उन्नति होती है।
    गुरु, शनि और रवि पुष्य नक्षत्र
    गुरुवार और रविवार के दिन पड़ने वाले पुष्य योग को गुरु पुष्य और रवि पुष्य नक्षत्र कहते हैं। गुरु पुष्य और रवि पुष्य योग सबसे शुभ माने जाते हैं। इस समय के दौरान छोटे बालकों के उपनयन संस्कार और उसके बाद सबसे पहली बार विद्याभ्यास के लिए गुरुकुल में भेजा जाता है। इसका ज्ञान के साथ अटूट संबंध है एेसा कह सकते हैं। इसके अलावा, शनि व गुरु के संबंध को उत्तम ज्ञान की युति कहते हैं। पंचाग को देखकर हर एक कार्य करना चाहिए।

    पुष्य नक्षत्रः मांगलिक कार्यों से शुभ फलों की प्राप्ति का पावन पर्व 
    • इस दिन पूजा या उपवास करने से जीवन के हर एक क्षेत्र में सफलता की प्राप्ति होती है।
    • कुंडली में विद्यमान दूषित सूर्य के दुष्प्रभाव को घटाया जा सकता है।
    • इस दिन किए कार्यों को सिद्धि व सफलता मिलती है।
    • धन का निवेश लंबी अवधि के लिए करने पर भविष्य में उसका अच्छा फल प्राप्त होता है।
    • काम की गुणवत्ता और असरकारकता में भी सुधार होता है।
    • इस शुभदायी दिन पर महालक्ष्मी की साधना करने से उसका विशेष व मनोवांछित फल प्राप्त होता है।
    पुष्य नक्षत्र को ब्रह्याजी का श्राप मिला था, इसलिए यह नक्षत्र शादी-विवाह के लिए वर्जित माना गया है। पुष्य नक्षत्र में दिव्य औषधियों को लाकर उनकी सिद्धि की जाती है। जीवन में संपत्ति और समृद्धि को आमंत्रित करने के लिए पुष्य नक्षत्र व्यक्ति को पूरा अवसर प्रदान करता है। इस दिन किए गए सभी मांगलिक कार्य सफलतापूर्वक पूर्ण होते हैं।


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    ॥ सर्वरोगनाशक श्रीसूर्यस्तवराजस्तोत्रम् ॥




    विनियोग
    ॐ श्री सूर्यस्तवराजस्तोत्रस्य श्रीवसिष्ठ ऋषिः । अनुष्टुप् छन्दः । 
    श्रीसूर्यो देवता । सर्वपापक्षयपूर्वकसर्वरोगोपशमनार्थे पाठे विनियोगः ।

     ऋष्यादिन्यास
    श्रीवसिष्ठऋषये नमः शिरसि । अनुष्टुप्छन्दसे नमः मुखे । श्रीसूर्यदेवाय नमः हृदि । सर्वपापक्षयपूर्वकसर्वरोगापशमनार्थे पाठे विनियोगाय नमः अञ्जलौ । 

    ध्यानं
    ॐ रथस्थं चिन्तयेद् भानुं द्विभुजं रक्तवाससे । 
    दाडिमीपुष्पसङ्काशं पद्मादिभिः अलङ्कृतम् ॥ 

    मानस पूजनं एवं स्तोत्रपाठ
    ॐ विकर्तनो विवस्वांश्च मार्तण्डो भास्करो रविः । 
    लोकप्रकाशकः श्रीमान् लोकचक्षु ग्रहेश्वरः ॥ 
    लोकसाक्षी त्रिलोकेशः कर्ता हर्ता तमिस्रहा । 
    तपनः तापनः चैव शुचिः सप्ताश्ववाहनः ॥ 
    गभस्तिहस्तो ब्रध्नश्च सर्वदेवनमस्कृतः । 
    एकविंशतिः इत्येष स्तव इष्टः सदा मम ॥ 
    ॥ फलश्रुतिः ॥ 

     श्रीः आरोग्यकरः चैव धनवृद्धियशस्करः । 
    स्तवराज इति ख्यातः त्रिषु लोकेषु विश्रुतः ॥ 
    यः एतेन महाबहो द्वे सन्ध्ये स्तिमितोदये । 
    स्तौति मां प्रणतो भूत्वा सर्व पापैः प्रमुच्यते ॥ 
    कायिकं वाचिकं चैव मानसं यच्च दुष्कृतम् । 
    एकजप्येन तत् सर्वं प्रणश्यति ममाग्रतः ॥ 
    एकजप्यश्च होमश्च सन्ध्योपासनमेव च । 
    बलिमन्त्रोऽर्घ्यमन्त्रश्च धूपमन्त्रस्तथैव च ॥ 
    अन्नप्रदाने स्नाने च प्रणिपाति प्रदक्षिणे । 
    पूजितोऽयं महामन्त्रः सर्वव्याधिहरः शुभः ॥  
    एवं उक्तवा तु भगवानः भास्करो जगदीश्वरः । 
    आमन्त्र्य कृष्णतनयं तत्रैवान्तरधीयत ॥ 
     साम्बोऽपि स्तवराजेन स्तुत्वा सप्ताश्ववाहनः । 
    पूतात्मा नीरुजः श्रीमान् तस्माद्रोगाद्विमुक्तवान् ॥ 

     भगवान् सूर्यनामावली
    १. विकर्तन २. विवस्वान् ३. मार्तण्ड ४. भास्कर ५. रवि ६. लोकप्रकाशक ७. श्रीमान् ८. लोकचक्षु ९. ग्रहेश्वर १०. लोकसाक्षी ११. त्रिलोकेश १२. कर्ता १३. हर्ता १४. तमिस्रहा १५. तपन १६. तापन १७. शुचि १८. सप्ताश्ववाहन १९. गभस्तिहस्त २०. ब्रघ्न ( ब्रह्मा ) २१. सर्वदेवनमस्कृत इति ।
    
    


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