वकालत किसी वरिष्ठता की मोहताज नहीं होती है, जिसमे ज्ञान और बहस करने का दम ख़म होता है उसी के पास मुवक्किल आते है.. बाकि तो नामित वरिष्ठ अधिवक्ता कभी कभी एक एक इंगेजमेंट के लिए भटकते देखा गया है..
हर
बार की तरह हर बार कम से कम किसी आवेदन करने वाले के साथ नाइंसाफी नहीं
हुई पर इतना जरूर है सरकारी वकालत के दम पर बहुत लोग बहती गंगा में हाथ धो
लिए..मेरे पिताजी को करीब आज से 20
साल पहले सीनियर हो जाना चाहिए था. आज जिस उम्र के लोग सीनियर बन रहे है
उससे ज्यादा उनकी वकालत का तजुर्बा है..
उनके साथी वकील मानते है कि आज की तारिख में उच्च न्यायालय की दोनों पीठों में उनके जैसा लेबर लॉ की पकड़ का वकील विरले ही मिलेगे, सर्विस और संवैधानिक मामलों में भी बेहतरीन पकड़ है और उनके इन तीनों क्षेत्र के मामलों में उनको कोई भी जज उनको कितने ही घंटे और कितनो ही दिन सुनना चाहे सुन सकते है.. इसके आलावा किसी भी प्रकृति के मामले में पकड कमजोर नहीं है..
उन्होंने पहली बार सीनियर एडवोकेट श्री वीकेएस चौधरी पूर्व महाधिवक्ता के आदेश निर्देश पर 2009 कुछ मतों से रह गए तथा 2013 में अपने सहयोगियों तथा जूनियरों के कहने पर आवेदन किया तब कई सीनियर जजों ने कहा मिस्टर सिंह आपको कौन नहीं जनता है और आपका कैसे नहीं हो सकता है फिर भी नहीं हुआ और उनके कई साल जूनियर्स जो खुद जो अपने सीनियर होने से पहले तक सीनियर इंगेज करते थे जब ऐसे लोग सीनियर हो गए तब से उन्होंने इस प्रकिया में प्रतिभाग नहीं किया..
अंतिम बार 2016 कुछ जूनियर के कहने पर मैंने उनको आवेदन के लिए फ़ोर्स किया पर उनके शब्दों को सुनने के बाद मैं निःशब्द था..
इस 2018 में बार के लिए उन्होंने कई वरिष्ठ जजों और सीनियर एडवोकेट के कहने के बाद भी प्रतिभाग नहीं किया, सीनियर का चोला पहन कर चोले का सम्मान होता है व्यक्ति का नहीं जबकि मैं उनके साथ रहा हूँ तो देखता हूँ अपने बहस के दौरान बेंच द्वारा और कोरिडोर में अपने अधिवक्ताओ द्वारा जो सम्मान मिलता है वह बड़े बड़े डेजिग्नेट सीनियर भी पाने को लालायित रहते है..
उनके साथी वकील मानते है कि आज की तारिख में उच्च न्यायालय की दोनों पीठों में उनके जैसा लेबर लॉ की पकड़ का वकील विरले ही मिलेगे, सर्विस और संवैधानिक मामलों में भी बेहतरीन पकड़ है और उनके इन तीनों क्षेत्र के मामलों में उनको कोई भी जज उनको कितने ही घंटे और कितनो ही दिन सुनना चाहे सुन सकते है.. इसके आलावा किसी भी प्रकृति के मामले में पकड कमजोर नहीं है..
उन्होंने पहली बार सीनियर एडवोकेट श्री वीकेएस चौधरी पूर्व महाधिवक्ता के आदेश निर्देश पर 2009 कुछ मतों से रह गए तथा 2013 में अपने सहयोगियों तथा जूनियरों के कहने पर आवेदन किया तब कई सीनियर जजों ने कहा मिस्टर सिंह आपको कौन नहीं जनता है और आपका कैसे नहीं हो सकता है फिर भी नहीं हुआ और उनके कई साल जूनियर्स जो खुद जो अपने सीनियर होने से पहले तक सीनियर इंगेज करते थे जब ऐसे लोग सीनियर हो गए तब से उन्होंने इस प्रकिया में प्रतिभाग नहीं किया..
अंतिम बार 2016 कुछ जूनियर के कहने पर मैंने उनको आवेदन के लिए फ़ोर्स किया पर उनके शब्दों को सुनने के बाद मैं निःशब्द था..
इस 2018 में बार के लिए उन्होंने कई वरिष्ठ जजों और सीनियर एडवोकेट के कहने के बाद भी प्रतिभाग नहीं किया, सीनियर का चोला पहन कर चोले का सम्मान होता है व्यक्ति का नहीं जबकि मैं उनके साथ रहा हूँ तो देखता हूँ अपने बहस के दौरान बेंच द्वारा और कोरिडोर में अपने अधिवक्ताओ द्वारा जो सम्मान मिलता है वह बड़े बड़े डेजिग्नेट सीनियर भी पाने को लालायित रहते है..
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